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गिद्ध रेस्तराँ/गिद्ध भोजनालय (Vulture Restaurant)

Samsul Ansari January 16, 2024 04:41 254 0

संदर्भ

पशुधन में दवाओं के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण पक्षी प्रजातियों की तेजी से घटती आबादी को संरक्षित करने के लिए झारखंड में एक ‘गिद्ध रेस्तराँ’ स्थापित किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • स्थान: यह रेस्तराँ झारखंड के कोडरमा जिले में स्थापित किया गया है।
  • भोजन प्राप्ति: यह डाइक्लोफेनिक दवा से मुक्त पशुओं के शव प्राप्त करने के लिए गोशालाओं (गाय आश्रय) और नगरपालिकाओं हेतु प्रोटोकॉल तैयार होने के बाद कार्य करना प्रारंभ कर देगा।

डाइक्लोफेनिक

  • मवेशियों के इलाज के लिए प्रयोग की जाने वाली दवा डाइक्लोफेनिक, गिद्धों में गुर्दे की विफलता और पक्षियों की आबादी में गिरावट से जुड़ी थी।
  • हालाँकि इस दवा पर वर्ष 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन कथित तौर पर यह अभी भी उपयोग के लिए उपलब्ध है।
  • डाइक्लोफेनिक दवा जो गिद्धों के लिए संभावित रूप से विषैली होती है, पशु चिकित्सकों द्वारा मवेशियों के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। 
  • वर्ष 1992 और 2007 के बीच भारतीय गिद्ध प्रजाति ‘जिप्स’ की तीन प्रजातियों- लंबी चोंच (जिप्स इंडिकस) और पतली चोंच वाले गिद्धों (जी. टेनुइरोस्ट्रिस) की संख्या में 97% की गिरावट जबकि सफेद दुम वाले (जी. बेंगालेंसिस) गिद्धों की संख्या में लगभग 99% की गिरावट आई है।

  • गोशालाओं और नगरपालिकाओं द्वारा प्रदान किए गए पशुधन के शवों को एक सीमांकित भोजन स्थल ‘गिद्ध रेस्तराँ’ में अपमार्जक पक्षियों को भोजन के रूप में परोसा जाएगा।
  • गौशालाओं और नगरपालिकाओं हेतु प्रोटोकॉल: कोडरमा में गिद्ध भोजनालय स्थापित किया गया है और गिद्धों/पक्षियों को भोजन परोसने के लिए गोशालाओं तथा नगर पालिकाओं हेतु एक प्रोटोकॉल का मसौदा तैयार किया जा रहा है। 
  • पहला ‘गिद्ध रेस्तराँ’: पहला ‘गिद्ध रेस्तराँ’ वर्ष 2015 में पश्चिमी घाट में भूख से मर रहे सफेद दुम वाले गिद्धों (जी. बेंगालेंसिस) के संज्ञान में आने पर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के फणसाड  वन्यजीव अभयारण्य (Phansad Wildlife Sanctuary) में स्थापित किया गया था। 
  • गिद्ध रेस्तराँ राज्य में पक्षी प्रजातियों की घटती आबादी को बढ़ाने का एक प्रयास है।
  • झारखंड में गिद्धों की स्थिति: झारखंड में पहले गिद्ध बड़ी संख्या में पाए जाते थे लेकिन प्रतिबंधित डाइक्लोफेनिक के प्रचलित उपयोग के कारण यह पक्षी कोडरमा और हजारीबाग जिलों के कुछ हिस्सों को छोड़कर राज्य से लगभग विलुप्त हो गया है।

गिद्ध (Vultures):

  • गिद्ध, शवों को खाने वाले एक अपमार्जक के रूप में संक्रमण नियंत्रण के प्राकृतिक तंत्र की कुंजी कहलाते हैं।
  • गिद्ध अपमार्जक होते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र को स्वच्छ करने का कार्य करते हैं। अच्छी बात यह है कि संक्रमित शव खाने के बावजूद गिद्ध संक्रमित नहीं होते हैं।
  • वर्ष 2022 में वन प्रभाग द्वारा किए गए बेसलाइन सर्वेक्षण में पाया गया कि कोडरमा में कुल 38 गिद्धों की गणना की गई थी। वर्ष 2023 में यह संख्या बढ़कर 145 हो गई। यहाँ गिद्धों की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • संरक्षण स्थिति:
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: अनुसूची-1
    • IUCN रेड लिस्ट: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
  • भारत गिद्धों की 9 प्रजातियों का निवास स्थान है, ये प्रजातियाँ हैं- ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड, लॉन्ग-बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड, हिमालयन, रेड-हेडेड, इजिप्शियन, बियर्ड, सिनेरियस और यूरेशियन ग्रिफॉन। 

भारत में गिद्ध संरक्षण के प्रयास

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिए एक गिद्ध कार्ययोजना 2020-25 शुरू की है।
  • यह कार्ययोजना डाइक्लोफेनिक दवा का न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित करेगी और गिद्धों के मुख्य भोजन, मवेशियों के शवों को विषाक्त होने से रोकने में सहायता करेगी।
  • भारत में गिद्धों की मौत के कारणों का अध्ययन करने के लिए वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (VCC) स्थापित किया गया था।
  • वर्ष 2004 में VCC को भारत में पहले गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र के रूप में अद्यतन किया गया था।

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