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भारतीय राज्यों में कल्याणकारी राजनीति

Lokesh Pal December 02, 2024 03:51 4 0

संदर्भ

हालिया राज्य चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा प्रायः अत्यधिक अवास्तविक वादे किए जाने के कारण, विशेषकर चुनाव से पहले, अवांछनीय परिणाम सामने आए हैं।

कल्याणकारी राजनीति 

  • राजनीति में, ‘कल्याण’ से तात्पर्य सरकारी कार्यक्रमों की एक शृंखला से है, जो लोगों तथा परिवारों को बुनियादी आवश्यकताओं में सहायता करते हैं या जीवन स्तर को बनाए रखते हैं।
  • कल्याणकारी कार्यक्रमों को करदाताओं द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तथा इनके तहत प्राप्तकर्ताओं को खाद्य टिकट, वाउचर या प्रत्यक्ष भुगतान जैसे लाभ प्रदान किए जाते हैं।
  • कल्याणकारी कार्यक्रम अक्सर निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित होते हैं:
    • अवसर की समानता।
    • धन का न्यायसंगत वितरण।
    • उन लोगों के लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी, जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं।

डिजिटल युग में सामाजिक कल्याण का वितरण

  • डिजिटल युग ने सामाजिक कल्याण प्रदान करने के तरीके को बदल दिया है, जिससे दक्षता, पारदर्शिता तथा समावेशिता संभव हुई है।
  • विभिन्न देशों की सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल तकनीकों का लाभ उठा रही हैं कि कल्याणकारी योजनाएँ लक्षित लाभार्थियों तक प्रभावी रूप से पहुँचें।
  • लाभ
    • पारदर्शिता: भारत के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म यह सुनिश्चित करते हैं कि धन सीधे लाभार्थियों तक पहुँचे, जिससे भ्रष्टाचार कम हो।
    • समावेशिता: आधार जैसी डिजिटल प्रणालियाँ भौगोलिक बाधाओं को पार करते हुए हाशिए पर पड़े समूहों के लिए सेवाओं तक पहुँच को सक्षम बनाती हैं।
    • दक्षता: मनरेगा की तरह स्वचालन, समय पर और सटीक लाभ वितरण सुनिश्चित करता है।
    • डेटा-संचालित नीति: वास्तविक समय आधारित डेटा संग्रह, कल्याण प्रभावों का आकलन करने और उन्हें बेहतर बनाने में सहायता करता है।
    • पहुँच में आसानी: ऐप और ऑनलाइन पोर्टल आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, जैसा कि पीएम- किसान जैसी योजनाओं में देखा गया है।

कल्याणकारी राजनीति बनाम पहचान की राजनीति

पहलू कल्याणकारी राजनीति पहचान की राजनीति
केंद्र सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताएँ तथा गरीबी कम करना। साझा सांस्कृतिक/पहचान चिह्नों (जैसे, जाति, धर्म, लिंग) पर आधारित राजनीतिक लामबंदी।
दृष्टिकोण समावेशी, आर्थिक पिछड़ेपन को लक्ष्य बनाना। समूह-विशिष्ट, विशिष्ट पहचान की मान्यता को प्राथमिकता देना।
संसाधनों का आवंटन आर्थिक स्थिति (गरीबी, बेरोजगारी, आदि) के आधार पर। पहचान श्रेणियों (जाति, धर्म, नृजातीयता) के आधार पर।
चुनावी रणनीति आर्थिक राहत के चुनावी वादे (जैसे- नकद हस्तांतरण, सब्सिडी)। समूह पहचान तथा अधिकारों के संरक्षण के आधार पर समर्थन जुटाना।
सामाजिक एकता पर प्रभाव सार्वभौमिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करके विविध समूहों को एकजुट किया जा सकता है। समूह मतभेदों पर जोर देकर सामाजिक विभाजन को गहरा कर सकता है।
दीर्घावधि बनाम अल्पावधि दीर्घकालिक संरचनात्मक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। दीर्घकालिक संरचनात्मक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
नीतिगत चुनौतियाँ कुशल लक्ष्यीकरण, वित्तपोषण और भ्रष्टाचार से बचना। प्रतिेस्पर्द्धी समूह हितों में संतुलन बनाए रखना तथा अन्य समूहों के बहिष्कार या अलगाव से बचना।

कल्याणकारी राज्य 

  • कल्याणकारी राज्य एक सरकारी अवधारणा है, जहाँ राज्य अपने नागरिकों के सामाजिक तथा आर्थिक कल्याण के लिए जिम्मेदार होता है।
  • भारत में कल्याणकारी राज्य की विशेषताएँ
    • मौलिक अधिकार: ये सभी भारतीय नागरिकों को नागरिक स्वतंत्रता और बुनियादी अधिकारों की गारंटी देते हैं, जैसे कि बोलने की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता तथा कानून के समक्ष समानता।
    • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत: ये संविधान के भाग IV में शामिल किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत के लोग सामाजिक और आर्थिक अधिकारों तक पहुँच सकें।
      • अनुच्छेद-38: इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय से प्रेरित सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।
    • समाजवाद (Socialism): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में “समाजवाद” का तात्पर्य “सामाजिक कल्याणकारी राज्य” है

कल्याणकारी योजनाओं में केंद्र तथा राज्य सरकारों की भूमिका

भारत में केंद्र और राज्य सरकारें कल्याणकारी योजनाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा उनकी जिम्मेदारियों को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ (CSS)
    • इनका पूर्ण वित्तपोषण तथा क्रियान्वयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है तथा इसमें राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
    • केंद्र सरकार ही संपूर्ण लागत वहन करती है तथा क्रियान्वयन का प्रबंधन करती है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), उज्ज्वला योजना तथा प्रधानमंत्री -किसान केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ हैं।
  •  केंद्रीय प्रायोजित योजनाएँ (CSS)
    • इन योजनाओं को केंद्र तथा राज्य सरकारें मिलकर वित्तपोषित करती हैं। 
    • केंद्र सरकार एक निश्चित प्रतिशत धनराशि उपलब्ध कराती है और बाकी धनराशि राज्य सरकारें देती हैं।
      • आमतौर पर, केंद्र सरकार 60% का भुगतान करती है और राज्य सरकार 40% का भुगतान करती है। 
      • पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू और कश्मीर और विशेष श्रेणी के राज्यों जैसे कुछ क्षेत्रों में, केंद्र सरकार 90% का भुगतान कर सकती है, जबकि राज्य सरकार 10% का भुगतान करती है।
    • कार्यान्वयन में राज्य सरकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • उदाहरण: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY), और मध्याह्न भोजन योजना।
  • राज्य-विशिष्ट योजनाएँ
    • इन्हें पूरी तरह से राज्य सरकारों द्वारा डिजाइन और वित्तपोषित किया जाता है, जो राज्य के भीतर आबादी की विशिष्ट आवश्यकताओं को लक्षित करते हैं।
    • केंद्र सरकार वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है या नहीं भी कर सकती है।
    • उदाहरण: कर्नाटक की गृह लक्ष्मी योजना, तेलंगाना की रायथु बंधु (किसान कल्याण योजना), तथा दिल्ली की मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना।

भारत में सामाजिक संरक्षण और कल्याण की राजनीति

मानव अधिकार के रूप में सामाजिक सुरक्षा

  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा-पत्र द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ष 2012 की अनुशंसा द्वारा सभी राष्ट्रों के लिए ‘सामाजिक सुरक्षा स्तर’ स्थापित करने पर बल दिया गया है।
  • भारत सामाजिक सुरक्षा पर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है, जैसा कि ILO की विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट, 2022 में बताया गया है। अनौपचारिक रोजगार भारत के कार्यबल का 90% हिस्सा है, जिससे कमजोरियों को दूर करने के लिए सामाजिक सुरक्षा महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • सामाजिक सुरक्षा का विस्तार
    • प्रारंभिक अनिच्छा के बावजूद, राजनीतिक-आर्थिक विचारों से प्रभावित होकर सामाजिक सुरक्षा उपायों का लगातार विस्तार हुआ है।
    • सामाजिक कल्याण व्यय 2017- 2018 में GSDP के 1.2-1.3% से बढ़कर वर्ष 2022- 2023 में 11 राज्यों में लगभग 1.6% (क्रिसिल रिपोर्ट, 2023) हो गया।
  • महिला-केंद्रित कल्याण योजनाएँ
    • महिला-केंद्रित योजनाएँ भारत की कल्याणकारी संरचना का केंद्र बनती जा रही हैं। उदाहरणों में शामिल हैं:
      • दिल्ली और हिमाचल: महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाएँ।
      • तमिलनाडु: कलैगनार मगलिर उरीमाई योजना (21 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं के लिए 1,000 रुपये प्रति माह, जिनकी घरेलू आय 2.5 लाख रुपये से कम) है।
      • मध्य प्रदेश: लाडली बहना योजना (गरीब महिलाओं के लिए 1,250 रुपये प्रति माह)।
      • कांग्रेस शासित राज्य: महालक्ष्मी (तेलंगाना) तथा गृह लक्ष्मी (कर्नाटक) कार्यक्रम।
    • महिलाओं को नकद हस्तांतरण से आर्थिक और सामाजिक लाभ सिद्ध हुए हैं, जिनमें घरेलू उपभोग में सुधार और संभावित सशक्तीकरण शामिल हैं।
  • राजनीतिक कल्याण योजनाओं का विकास
    • केंद्र सरकार ने शुरू में कल्याण विस्तार का विरोध किया (जैसे, मनरेगा का विरोध)। हालाँकि
      • वर्ष 2019: किसानों के लिए पीएम-किसान आय हस्तांतरण योजना शुरू की गई।
      • वर्ष 2020: कोविड-19 महामारी के दौरान, मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना का विस्तार किया गया।
      • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 800 मिलियन परिवारों को मुफ्त अनाज वितरण जारी है।
  • राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा तथा कल्याण स्थिरता में रुझान
    • उच्च राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा वाले राज्य (जैसे- राजस्थान, छत्तीसगढ़) मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखते हैं या उनमें संशोधन करते हैं, जिससे स्थिरता सुनिश्चित होती है।
    • कम राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा वाले राज्य (जैसे- गुजरात) नए कार्यक्रम शुरू करने में कम सक्रिय हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा ढाँचे में चुनौतियाँ
    • अधिकांश योजनाओं को कानूनी समर्थन का अभाव है तथा वे प्रकृति में प्रशासनिक हैं।
      • उदाहरण: महिलाओं की आय हस्तांतरण योजनाएँ अक्सर पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, जो पुरुष-प्रधान परिवारों में महिलाओं को निष्क्रिय लाभार्थी के रूप में मानती हैं।
    • कानूनी गारंटी का अभाव ऐसी योजनाओं की स्थिरता के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
    • कम राजनीतिक प्रभाव वाले समूह (जैसे- बहुत युवा और बुजुर्ग) मौजूदा सुरक्षा से वंचित हो रहे हैं।

कल्याणकारी राजनीति के प्रमुख मुद्दे

  • लोक-लुभावनवाद का प्रलोभन
    • राजनेता प्रायः गरीबों से अत्यधिक वादे करके वोट प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
    • गरीबी में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है:
      • वर्ष 1990 में, 90% गरीब लोग कम आय वाले देशों में रहते थे।
      • वर्तमान में, 75% गरीब लोग मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जिससे उच्च जीवन स्तर की माँग बढ़ गई है।
  • कल्याणकारी राज्य तथा मुफ्त सुविधाएँ
    • भारतीय राज्यों में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव पूर्व किए गए वादे रेवड़ी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं, जिसमें मुफ्त गैस सिलेंडर, स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए स्कूटर, नकद हस्तांतरण में वृद्धि, कृषि ऋण माफी, मुफ्त भोजन के पैकेट और किसानों के लिए मुफ्त बिजली शामिल हैं।
      • रेवड़ी संस्कृति एक शब्द है, जिसका प्रयोग चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को मुफ्त उपहार वितरित करने के लिए किया जाता है।
  • वितरण में चुनौतियाँ
    • संसाधनों की महत्त्वपूर्ण कमी के कारण इन वादों को पूरा करना अस्थायी हो गया है।
    • उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक को कल्याणकारी योजनाओं के अति-वादों के कारण चुनावों के बाद वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
  • लक्ष्यीकरण समस्याएँ
    • बहिष्करण त्रुटियों के परिणामस्वरूप वास्तविक गरीब लोग कल्याणकारी कार्यक्रमों से बाहर रह जाते हैं।
    • समावेशन त्रुटियों के कारण गरीबी रेखा से बाहर के व्यक्तियों को अनावश्यक रूप से लाभ मिलता है, जिससे सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ता है।
    • सब्सिडी का स्वैच्छिक परित्याग अप्रभावी सिद्ध हुआ है; उदाहरण के लिए, सरकार की अपील के बावजूद वर्ष 2021 में 247.2 मिलियन LPG ग्राहकों में से केवल 10.3 मिलियन ने ही सब्सिडी छोड़ी।

मुफ्त सुविधाएँ बनाम कल्याणकारी कार्यक्रम

पहलू

मुफ्त सुविधाएँ 

(Freebies)

कल्याणकारी कार्यक्रम 

(Welfare Programs)

परिभाषा

गैर-आवश्यक, प्रायः अनियोजित या अत्यधिक दान, जिसका उद्देश्य वोट या अल्पकालिक लाभ आकर्षित करना होता है।

नियोजित, लक्षित सामाजिक कार्यक्रम जिनका उद्देश्य दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक परिणामों में सुधार करना है।

उद्देश्य

मुख्यतः राजनीतिक, समर्थन प्राप्त करने या चुनाव जीतने के लिए।

सामाजिक न्याय और गरीबी उन्मूलन, जिसका उद्देश्य बुनियादी आवश्यकताओं और सेवाओं को उपलब्ध कराना है।

लक्ष्य निर्धारण

प्रायः ये वास्तविक जरूरतमंदों को उचित रूप से लक्षित किए बिना सार्वभौमिक या व्यापक आधार पर होते हैं।

विशिष्ट कमजोर समूहों (जैसे गरीब, महिलाएँ, बच्चे, बुजुर्ग) को लक्ष्य करने के लिए डिजाइन किया गया।

स्थिरता

सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण यह आमतौर पर लंबे समय तक स्थायी नहीं होता है।

सामान्यतः इसे दीर्घकालिक सरकारी योजना और बजट के माध्यम से टिकाऊ बनाया जाता है।

राजकोषीय प्रभाव

इससे सरकारी वित्त पर दबाव पड़ सकता है, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है।

करों, सरकारी राजस्व और सावधानीपूर्वक बजट आवंटन के माध्यम से वित्तपोषित।

कार्यान्वयन

इसे प्रायः संस्थागत समर्थन या कानूनी समर्थन के बिना शीघ्रता से क्रियान्वित और वापस लिया जा सकता है।

लगातार वितरण के लिए बुनियादी ढाँचे, योजना और कानूनी समर्थन की आवश्यकता होती है।

सामाजिक प्रभाव

इससे निर्भरता बढ़ सकती है तथा सामाजिक मूल्य या कार्य नैतिकता कमजोर हो सकती है।

आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करता है, सेवाओं तक पहुँच में सुधार करता है तथा सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देता है।

राजनीतिक प्रेरणाएँ चुनावी लाभ और वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित।

संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने और सामाजिक कल्याण में सुधार करने की इच्छा से प्रेरित।

उदाहरण

चुनाव के दौरान मुफ्त बिजली, मुफ्त स्मार्टफोन, मुफ्त गैस सिलेंडर।

मनरेगा, NFSA (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम), प्रधानमंत्री आवास योजना।

जवाबदेही एवं पारदर्शिता कार्यान्वयन में प्रायः पारदर्शिता या जवाबदेही का अभाव रहता है।

इसमें जवाबदेही, निगरानी और कार्यनिष्पादन मूल्यांकन की प्रणालियाँ हैं, हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

कल्याणकारी राजनीति के अनपेक्षित परिणाम

  • भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी
    • सब्सिडी वाली वस्तुओं और सेवाओं की कमी से ऐसे वातावरण का निर्माण होता है, जहाँ रिश्वत, कमीशन भुगतान और कालाबाजारी की प्रथाएँ पनपती हैं।
    • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP) द्वारा वर्ष 2016 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित किए जाने वाले लगभग 40% खाद्यान्न की कालाबाजारी की गई
  • विकृत प्रोत्साहन
    • निहित स्वार्थों तथा कालाबाजारी की माँग से प्रेरित होकर राजनेताओं को और भी अधिक अत्यधिक वादे करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ सरकार ने वर्ष 2022 के राज्य चुनावों से पहले किसानों को मुफ्त बिजली और महिलाओं को नकद हस्तांतरण का वादा किया था। इससे वित्तीय संकट पैदा हो गया और राज्य समय पर भुगतान करने में अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रहा है।
  • उत्पादक निवेश पर प्रभाव
    • असंवहनीय कल्याणकारी कार्यक्रमों पर अत्यधिक व्यय से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से संसाधन हट जाते हैं।
    • तेलंगाना में सरकार ने किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करने वाली योजना ‘रयथु बंधु’ की शुरुआत की, जिसके कारण महत्त्वपूर्ण सेवाओं में लंबित कार्यों की समस्या उत्पन्न हो गई।
  • राजनीति में विश्वास का क्षरण
    • वादों और क्रियान्वयन के बीच लगातार अंतराल से राजनीतिक दलों में जनता का विश्वास समाप्त हो रहा है।
    • विश्वास की यह कमी, ईमानदार शासन प्रयासों की विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
    • हिमाचल प्रदेश (वर्ष 2024) में, सत्तारूढ़ दल द्वारा महिलाओं को मुफ्त बिजली और नकद हस्तांतरण जैसे महत्त्वाकांक्षी वादे करने के बाद, राज्य को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और इनमें से कई वादे अधूरे रह गए।

केस स्टडीज

  • हिमाचल प्रदेश
    • चुनावों के दौरान अत्यधिक कल्याणकारी वादे करने के बाद राज्य को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
    • मंत्रियों को दो महीने तक अपना वेतन नहीं मिला और सरकार ने कुछ कल्याणकारी योजनाओं को वापस लेने पर विचार किया।
    • सेली हाइड्रो इलेक्ट्रिक पॉवर कंपनी को बकाया राशि का भुगतान न करने के मामले में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने नई दिल्ली में हिमाचल भवन को संभावित नीलामी के लिए कुर्क करने का आदेश दिया।
  • कर्नाटक और तेलंगाना
    • इन राज्यों में, वादों में मुफ्त बस यात्रा, बिजली, सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर और वरिष्ठ नागरिकों के लिए पेंशन शामिल थे।
    • चुनाव के बाद, राजकोषीय तनाव ने इन वादों को पूरा करना जटिल बना दिया है।

आर्थिक तथा प्रशासनिक चिंताएँ

  • वित्तीय तनाव
    • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसे कार्यक्रम, जो 2 ट्रिलियन रुपये की वार्षिक लागत पर 810 मिलियन लोगों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान करते हैं, सार्वभौमिक बुनियादी आय योजनाओं से मिलते-जुलते हैं।
    • ऐसे कार्यक्रम राजकोषीय संसाधनों पर दबाव डालते हैं, जिससे दीर्घकालिक समावेशी विकास के लिए आवश्यक पूँजीगत व्यय के लिए बहुत कम धन बचता है।
  • गरीबों की पहचान करने में कठिनाई
    • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व आय आकलन को चुनौतीपूर्ण बनाता है।
    • केवल 100 मिलियन करदाताओं के साथ, गरीबों की सही पहचान करने के लिए आयकर डेटा अपर्याप्त है।

आगे की राह

  • लक्षित कल्याण तंत्र
    • कल्याणकारी कार्यक्रमों को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे उन लोगों की सही पहचान कर सकें और उन्हें लाभ पहुँचा सकें, जिन्हें वास्तव में उनकी जरूरत है।
    • बहिष्करण संबंधी त्रुटियों से बचने और समावेशन संबंधी त्रुटियों को रोकने के बीच संतुलन होना चाहिए।
  • राजकोषीय अनुशासन
    • राजनीतिक दलों को विशेष रूप से चुनावों के दौरान अवास्तविक और असंतुलित वादे करने से बचना चाहिए।
    • संसाधन-कुशल और प्रभावशाली कल्याणकारी पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • जन जागरूकता
    • अभियान के तहत गैर-गरीब लाभार्थियों को स्वैच्छिक रूप से सब्सिडी छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 
      • उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा LPG सब्सिडी छोड़ने की सार्वजनिक अपील को मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • उत्तरदायी शासन व्यवस्था
    • जनता का विश्वास जीतने के लिए सेवा वितरण में भ्रष्टाचार और अक्षमताओं को संबोधित किया जाना चाहिए।
    • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

हालाँकि कल्याणकारी योजनाओं ने सामाजिक सुरक्षा को बढ़ाया है, उनकी प्रशासनिक प्रकृति और कानूनी गारंटी की कमी स्थिरता के लिए चुनौतियाँ पेश करती है। कमजोर समूहों की समावेशिता, स्थिरता और दीर्घकालिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने के लिए एक संतुलित, कानूनी रूप से समर्थित ढाँचा आवश्यक है।

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