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विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना

Lokesh Pal February 28, 2024 05:00 114 0

संदर्भ :

हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री द्वारा देश में खाद्यान्न भंडारण क्षमता की कमी को दूर करने के लिए “सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना” शुरू की गई ।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सहकारी क्षेत्र के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: बफर स्टॉक और खाद्य सुरक्षा के मुद्दे, खाद्यान्न प्रबंधन।

संबंधित तथ्य :

  • विजन: वर्ष 2027 से पहले 100% भंडारण क्षमता प्राप्त करने के लिए अगले कुछ वर्षों में देश भर की  प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS) इसमें शामिल हो जाएंगी।

विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के बारे में:

  • इस योजना को कृषि और फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) उद्योग में क्रांति लाने के लिए तैयार किया गया है।
  • परियोजना का उद्देश्य:
    • देश में 700 लाख मीट्रिक टन के अतिरिक्त भंडारण संबंधी बुनियादी ढाँचे को  स्थापित करना।
    • देश की मौजूदा भंडारण क्षमता को दोगुना करना I
    • देश भर में PACS के माध्यम से एकीकृत अनाज भंडारण सुविधाओं का एक नेटवर्क स्थापित करना।
    • PACS की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना I

अनाज भंडारण की आवश्यकता:

  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: वैश्विक रूप से कृषि योग्य क्षेत्र के 11% और विश्व की 18% आबादी के साथ भारत द्वारा  राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) के माध्यम से सबसे बड़ा खाद्य कार्यक्रम संचालित किया जाता है। देश को अपने नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न भंडारण सुविधाओं के एक सुदृढ़ नेटवर्क की आवश्यकता होती है।
  • भंडारण की कमी: 311 MMT खाद्यान्न उत्पादन के साथ भारत को, 131% के वैश्विक अधिशेष की तुलना में 166 एमएमटी (47%) की भंडारण क्षमता की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • “सहकार-से-समृद्धि” के दृष्टिकोण को मूर्त रूप देना: सहकारिता मंत्रालय द्वारा “सहकार-से-समृद्धि” (सहयोग के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए ‘सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना’ लागू की जा रही है, जिसमें सहकारी समितियों की आर्थिक विकास क्षमता पर जोर दिया गया है। 
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): इस पहल का उद्देश्य सब्सिडी वाले अनाज तक पहुँच के माध्यम से पात्र लाभार्थियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिसमें गिरावट की चुनौतियों का समाधान करने और बीजों और फसलों की जीवन-अवधि  में वृद्धि के लिए सुदृढ़ भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: भारत में, विभिन्न क्षेत्रों में भंडारण संबंधी क्षमता भिन्न-भिन्न पायी जाती है, उदाहरण: कुछ दक्षिणी राज्यों की भंडारण क्षमता 90% और उससे भी अधिक है, जबकि उत्तरी राज्यों की क्षमता 50% से कम पायी गई है।

  • पैक्स भागीदारी को सक्षम बनाने हेतु : PACS के स्तर पर विभिन्न कृषि बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना , जिसमें विकेन्द्रीकृत गोदामों, कस्टम हायरिंग केंद्रों, उचित मूल्य की दुकानों आदि की स्थापना शामिल है।
  • बजटीय आवंटन: इस योजना का कार्यान्वयन 8 योजनाओं को मिलाकर किया जाएगा।
  • नाबार्ड द्वारा वित्तीय सहायता: वैकल्पिक निवेश निधि (AIF) योजना के माध्यम से लगभग 1% की रियायती दर पर PACS को पुनर्वित्त करने की सुविधा प्रदान की जाती है, जिसमें 2 करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं के लिए 3% ब्याज छूट शामिल है। 
  • कार्यान्वयन: इसका कार्यान्वयन विभिन्न राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) नाबार्ड, भारतीय खाद्य निगम (FCI), केंद्रीय भंडारण निगम (CWC), नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (NABCONS), राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (NBCC), आदि के सहयोग से किया जाएगा ।
  • एक अंतर-मंत्रालयी समिति (आईएमसी) और एक राष्ट्रीय स्तरीय समन्वय समिति (NLCC): इसके कार्यान्यन के संदर्भ में जवाबदेहिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, एक अंतर-मंत्रालयी समिति (IMC) और एक राष्ट्रीय स्तरीय समन्वय समिति (NLCC) का गठन किया गया है।
    • IMC इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि NLCC द्वारा  ( जिसमें संबंधित मंत्रालय/विभाग और केंद्र सरकार की एजेंसियों के सदस्य शामिल हैं) समग्र प्रगति की निगरानी और समीक्षा की जाती हैं।
  • निगरानी: राज्य स्तर पर राज्य सहकारी विकास समिति (SCDC) और राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के प्रत्येक जिले में जिला सहकारी विकास समिति (DCDC) का भी गठन किया गया है।

किसानों को लाभ

  • भंडारण सुविधा के कारण किसानों के पास बाजार की स्थितियों के आधार पर अपनी उपज को बेचने का विकल्प उपलब्ध होगा और उन्हें किसी भी आकस्मिक संकट की स्थिति  में बिक्री के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
  • किसान पंचायत/ग्राम स्तर पर विभिन्न कृषि इनपुट और सेवाएँ प्राप्त करने में सक्षम होंगे। अपने व्यवसाय में विविधता लाने से उन्हें आय के अतिरिक्त स्रोत प्राप्त हो सकेंगे I
  • खाद्य आपूर्ति प्रबंधन श्रृंखला के साथ एकीकरण के माध्यम से, किसान अपने बाजार के आकार का विस्तार कर सकते हैं और अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।
  • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी आने से किसान बेहतर कीमत प्राप्त करने  में सक्षम हो सकेंगे।

भंडारण अवसंरचना में वृद्धि के लाभ:

  • कम क्षति : किसानों को फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी आएगी ।
  • खाद्यान्न प्रबंधन और परिवहन लागत में कमी लाना: चूँकि PACS एक खरीद केंद्र के साथ-साथ उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के रूप में भी काम करेगा, इसलिए खाद्यान्नों को खरीद केंद्रों तक पहुँचाने और स्टॉक को पुनः  गोदामों से FPS तक पहुँचाने में होने वाली लागत को भी बचाया जा सकता है I
  • खाद्य सुरक्षा : इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी I
  • कुशल खाद्य आपूर्ति श्रृंखला: कृषि उपज और उपभोक्ता माँग के बीच अंतर को समाप्त कर , एक स्थिर और कुशल खाद्य आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित हो पाएगी ।

चुनौतियाँ :

  • गैर-कार्यात्मक PACS: भारत में वर्तमान में 1 लाख PACS में से केवल 63,000 ही कार्यरत हैं।
  • नौकरशाही चुनौतियाँ: विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन और उनका समन्वय चुनौतियों के रूप में प्रस्तुत हो सकती हैं ।
  • संस्थानों की बहुलता: अलग-अलग उद्देश्यों के कारण उनकी प्रभावशीलता में कमी आने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है।
  • बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी की कमी: ग्रामीण परिवेश और तकनीकी बुनियादी ढाँचे की संभावित कमी को देखते हुए, आधुनिक भंडारण सुविधाओं की स्थापना और इसके लिये डिजिटल समाधान प्रस्तुत करना, एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
  • कौशल विकास के संबंध: उन्नत भंडारण सुविधाओं के संचालन और प्रबंधन के लिए कुशल लोगों की आवश्यकता होगी, जो कौशल विकास माँग के संबंध में चुनौती उत्पन्न कर सकता  है।
  • शासन के मुद्दे: खाद्य भंडारण में कृषि सहकारी समितियों की भागीदारी, FPO के साथ संभावित विवाद को देखते हुए चिंता उत्पन्न करती है, जो सरकार की FPOS पहल के तहत फसल उपरान्त प्रबंधन में भी संलग्न  हैं।
  • कृषि सहकारी समितियों की अकुशल कार्यप्रणाली: कृषि सहकारी समितियों पर वित्तीय जिम्मेदारियों के साथ-साथ भंडारण संबंधी बुनियादी ढाँचे के कार्यान्वयन की भी जिम्मेदारी है। गौरतलब है कि कृषि सहकारी समितियों की कार्यप्रणाली बहुत अक्षम मानी जाती है जो कि चिंता का विषय है ।
    • कृषि सहकारी समितियों के विपरीत, FPO को बेहतर प्रशासन संरचना वाले व्यवसायों के रूप में चलाया जा रहा है।
  • बुनियादी ढाँचे का रखरखाव: भारत को अपने बुनियादी ढाँचे के निर्माण में आसानी होने के बावजूद इसके प्रबंधन और रखरखाव में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें FCI भंडारण, पेयजल प्रणाली, सिंचाई प्रणाली के साथ और बहुत कुछ शामिल है।
  • पूँजीगत रखरखाव व्यय (Capex)): इसे शायद ही कभी वार्षिक बजट में शामिल किया जाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कोई भी प्रणाली विविध  कारणों से वित्तीय रूप से व्यवहार्य भी नहीं मानी जाती है।
  • अन्य समस्याएँ: इसमें कुलीन वर्ग का अधिपत्य , नौकरशाही/राजनीतिक हस्तक्षेप और ख़राब विपणन शामिल हैं। उनके समाधान के लिए उठाये जाने वाले कदमों को उजागर किये जाने की जरूरत है।

आगे की राह:

  • गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचा: मौजूदा भंडारण बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करना प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण  होन चाहिए, विशेषकर  खराब होने वाली वस्तुओं (फल, सब्जियाँ, दूध, मांस, मछली, आदि) के संदर्भ में ।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकियों में निवेश: आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ खराब होने वाली वस्तुओं के उच्च-गुणवत्ता वाले प्रसंस्करण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, जो पोषण मूल्य के नुकसान को कम करते हुए भोजन के सेल्फ लाइफ को  बढ़ाने में मदद करती हैं।
  • विवेकपूर्ण योजना: भारत के पास उसके वार्षिक रूप से खराब होने वाली उपज के केवल आठवें हिस्से की भंडारण क्षमता है। इसके लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न उत्पादों के लिए भंडारण आवश्यकताओं की विवेकपूर्ण योजना और आकलन की आवश्यकता है I
  • पैक्स का पुनरुद्धार: योजना की सर्वोत्तम क्षमता प्राप्त करने के लिए इन समितियों को पुनर्जीवित और क्रियाशील बनाने की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को संबोधित करना : आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके खाद्यान्न भंडारण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
  • निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन: सहकारी समितियों के खराब ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए केंद्र द्वारा  निजी क्षेत्र को विपणन बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाना चाहिए ।
  • निजी-सार्वजनिक-लोग (PPP) पहल पर ध्यान: अधिक सकारात्मकता हासिल करने के लिए, FPO की तर्ज पर पीपीपी (PPP) मॉडल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसे FPO के अंतर्गत लाना भी एक बेहतर विकल्प माना जाएगा ।
  • हर्मेटिक स्टोरेज का उपयोग: हर्मेटिक स्टोरेज जो कृषि वस्तुओं के लिए एक प्रकार की तकनीक है, जिसमें नमी के प्रति संवेदनशील वस्तुओं की सुरक्षा के लिए संशोधित वातावरण का उपयोग किया जाता  है। यह आसपास के वातावरण के साथ गैस विनिमय को प्रतिबंधित करके कीट संक्रमण को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि संग्रहीत वस्तुएं एफ्लाटॉक्सिन जैसे विषाक्त पदार्थों से मुक्त हैं।
  • News Source: Indian Express.

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