प्रश्न की मुख्य माँग
- चीन के निरंतर दावों के पीछे की मंशा।
- भारत को कैसे जवाब देना चाहिए।
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उत्तर
अरुणाचल प्रदेश के एक निवासी की चीनी अधिकारियों द्वारा कथित हिरासत ने एक बार फिर भारत–चीन सीमा की अनसुलझी प्रकृति को उजागर किया है। चीन द्वारा अरुणाचल को भारत का अभिन्न भाग न मानना उसके गहरे रणनीतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक कारकों को दर्शाता है, जो द्विपक्षीय संबंधों में निरंतर तनाव उत्पन्न करते हैं।
चीन के दावों के पीछे की प्रेरणाएँ
- तिब्बत–तवांग संबंध: चीन तवांग को “दक्षिण तिब्बत” का हिस्सा बताता है, ताकि दलाई लामा के उत्तराधिकार पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके, क्योंकि मठ का ऐतिहासिक महत्व रहा है।
- उदाहरण: चीन की नीति के अनुसार, तवांग (अरुणाचल प्रदेश) में 6वें दलाई लामा का जन्म चीन के क्षेत्रीय दावों को वैध ठहराता है।
- सलामी स्लाइसिंग (Salami Slicing) रणनीति: चीन स्थानों के नाम बदलने जैसे छोटे-छोटे कदम उठाकर बिना युद्ध में उतरे अपने दावों के लिए “कानूनी” आधार तैयार करता है।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के 11 भौगोलिक स्थलों की “मानकीकृत” नई सूची जारी करना।
- मनोवैज्ञानिक युद्ध: अरुणाचल निवासियों के पासपोर्ट या वीजा पर प्रश्न उठाना स्थानीय लोगों का मनोबल गिराने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद को सामान्य बनाने का प्रयास है।
- उदाहरण: इस राज्य के खिलाड़ियों व नागरिकों को चीन द्वारा “स्टेपल्ड वीजा” जारी करने की पूर्व प्रथा।
- रणनीतिक प्रभुत्व: अरुणाचल के उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर नियंत्रण पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीनी जनमुक्ति सेना) को ब्रह्मपुत्र मैदानों पर रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा।
- उदाहरण: वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चीन का तीव्र अवसंरचना निर्माण सैन्य बढ़त के उद्देश्य से प्रेरित है।
- घरेलू राष्ट्रवादी राजनीति: अरुणाचल पर दावा जताना चीन में राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारता है और घरेलू राजनीतिक समर्थन को मजबूत करता है।
भारत को कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए?
- कूटनीतिक प्रत्युत्तर: भारत को लगातार कड़े राजनयिक विरोध दर्ज करने चाहिए और आवश्यक होने पर तिब्बत के संदर्भ में “एक चीन नीति” पर प्रश्न उठाना चाहिए।
- सीमा अवसंरचना: संपर्क परियोजनाओं को तेज किया जाए, ताकि त्वरित सैनिक तैनाती संभव हो सके और सीमा गाँवों से पलायन रोका जा सके।
- उदाहरण: “वाइब्रेंट विलेजेज कार्यक्रम” के तहत अरुणाचल के 455 सीमा गाँवों का समग्र विकास, जिसका शुभारंभ किबिथू से किया गया।
- सैन्य सुदृढ़ीकरण: सभी मौसम में पहुँच योग्य सुरंगों और अग्रिम ठिकानों का संचालन मजबूत किया जाए, ताकि चीनी जनमुक्ति सेना की तैनाती क्षमता का प्रभावी प्रतिरोध हो सके।
- उदाहरण: तवांग के लिए पूरे वर्ष संपर्क बनाए रखने हेतु सेला सुरंग का सामरिक महत्त्व।
- अंतरराष्ट्रीय साझेदारी: वैश्विक सहयोग का उपयोग कर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सीमा-मान्यता को प्रबल किया जाए और चीन के कथानक को चुनौती दी जाए।
- उदाहरण: अमेरिकी सीनेट का प्रस्ताव, जिसमें मैकमाहोन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में स्पष्ट मान्यता दी गई।
- जन-संप्रेषण: अरुणाचल के नागरिकों को सुरक्षा प्रोटोकॉल की जानकारी देना और विवादित क्षेत्रों के निकट यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
अरुणाचल प्रदेश पर भारत की संप्रभुता अपरिवर्तनीय है। चीन की उकसावे वाली गतिविधियाँ केवल रणनीतिक कार्य हैं, किंतु भारत की संतुलित कूटनीति, अवसंरचना विकास और वैश्विक साझेदारियों का संयोजन इस संप्रभुता को अक्षुण्य बनाए रख सकता है, साथ ही सीमा समुदायों में विश्वास बढ़ाते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ कर सकता है।
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