प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के संदर्भ में भगत सिंह और महात्मा गाँधी के वैचारिक दृष्टिकोण का परीक्षण कीजिए।
- अहिंसा के प्रति उनके दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- राजनीतिक सक्रियता के प्रति उनके दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- स्वतंत्र भारत के लिए उनके दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
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उत्तर:
भगत सिंह और महात्मा गाँधी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दो महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे, फिर भी वे विपरीत वैचारिक दृष्टिकोणों वाले थे। जहाँ गाँधीजी अहिंसा और निष्क्रिय प्रतिरोध की वकालत करते थे, वहीं भगत सिंह क्रांतिकारी तरीकों में विश्वास करते थे, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर हिंसा का प्रयोग भी शामिल था। उनके अलग-अलग दृष्टिकोण ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष में अपनाई गई रणनीतियों की व्यापकता को दर्शाते हैं, जिनमें से प्रत्येक ने स्वतंत्रता आंदोलन में अद्वितीय योगदान दिया।
स्वतंत्रता के संदर्भ में वैचारिक परिप्रेक्ष्य
वैचारिक दृष्टिकोण |
गाँधीजी का दृष्टिकोण |
भगत सिंह का दृष्टिकोण |
अहिंसा का सिद्धांत |
गाँधीजी, अहिंसा और सत्य को स्वतंत्रता प्राप्ति का साधन मानते थे।
उदाहरण के लिए: चंपारण सत्याग्रह (1917) ने ब्रिटिश संस्थाओं के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध में लाखों लोगों को संगठित किया। |
भगत सिंह ने औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए सशस्त्र प्रतिरोध और क्रांतिकारी सक्रियता की वकालत की।
उदाहरण के लिए: सॉन्डर्स हत्या मामले (1927) और HSRA गतिविधियों में भगत सिंह की भागीदारी उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है। |
संघर्ष में युवाओं की भूमिका |
गाँधीजी का मानना था कि युवाओं को राष्ट्र निर्माण के लिए शांतिपूर्ण प्रतिरोध और रचनात्मक कार्यक्रमों में शामिल होना चाहिए।
उदाहरण के लिए:गाँधीजी ने युवाओं को असहयोग आंदोलन (1920) जैसे आंदोलनों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया तथा उनसे शांतिपूर्ण तरीके से ब्रिटिश संस्थाओं का बहिष्कार करने का आग्रह किया। |
भगत सिंह ने औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए क्रांतिकारी तरीकों पर जोर दिया, जिसमें यदि आवश्यक हो तो हिंसा का उपयोग भी शामिल है। उनका मानना था कि युवाओं को तत्काल और क्रांतिकारी कार्रवाई के लिए अपने जीवन का बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
उदाहरण के लिए: भगत सिंह अपने साथियों के साथ युवाओं को क्रांति के लिए प्रेरित करने हेतु केंद्रीय विधान सभा पर बमबारी (1929) करने जैसे कार्यों में शामिल थे। |
जन आंदोलन |
गाँधीजी ने व्यापक आधार वाले, समावेशी जन आंदोलनों पर बल दिया, जिसमें सभी क्षेत्रों के लोगों – शहरी और ग्रामीण, युवा और वृद्ध को शामिल किया गया। उदाहरण के लिए: गाँधीजी के आंदोलनों, जैसे असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन ने पूरे भारत में लाखों लोगों को आकर्षित किया। |
भगत सिंह का दृष्टिकोण क्रांतिकारी युवाओं के लघु, अत्यधिक प्रेरित समूहों पर केंद्रित था, जो उग्रवादी, प्रत्यक्ष कार्रवाई और सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत करते थे।
उदाहरण के लिए:भगत सिंह की HSRA ने जोशीले युवा क्रांतिकारियों को आकर्षित किया, जो मुख्य रूप से प्रत्यक्ष कार्रवाई के माध्यम से ब्रिटिश अधिकारियों और संस्थाओं को निशाना बनाते थे। |
स्वतंत्र भारत का विजन |
गाँधीजी ने अहिंसा, आत्मनिर्भरता और नैतिक शासन पर आधारित एक स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी। उदाहरण के लिए: गाँधीजी के राम राज्य के दृष्टिकोण में अहिंसा, ग्राम आत्मनिर्भरता और सामाजिक सद्भाव पर जोर दिया गया था। |
भगत सिंह ने स्वतंत्रता के बाद एक समाजवादी राज्य की कल्पना की थी, जिसका लक्ष्य आर्थिक समानता और शोषण का उन्मूलन था। उदाहरण के लिए: HSRA के साथ भगत सिंह की गतिविधियाँ और उनके लेखन में औपनिवेशिक और आर्थिक उत्पीड़न को समाप्त करने का उनका दृष्टिकोण झलकता है। |
आर्थिक आदर्श |
गाँधीजी ने स्वदेशी को बढ़ावा दिया, भारतीयों से ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए स्थानीय उत्पादन को अपनाने का आग्रह किया।
उदाहरण के लिए: चरखे का उनका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता का प्रतीक था। |
भगत सिंह का मानना था कि औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण आर्थिक समानता और गरीबी उन्मूलन की दिशा में आवश्यक कदम हैं। उदाहरण के लिए: उनके लेखन में उपनिवेशवाद के बाद की आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए औद्योगिक विकास की आवश्यकता पर जोर दिया गया। |
अहिंसा के प्रति दृष्टिकोण
गाँधीजी
- गाँधीजी की पूर्ण अहिंसा: गाँधीजी का मानना था, कि अहिंसा केवल एक रणनीति नहीं बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है, जो क्रूरता का सामना करते हुए भी शांतिपूर्ण प्रतिरोध की वकालत करता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, जहाँ हिंसक झड़पों में ब्रिटिश पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।
- नैतिक साहस में गाँधीजी का विश्वास:गाँधीजी का मानना था कि नैतिक साहस और सत्य, स्थायी परिवर्तन लाने में शारीरिक हिंसा से अधिक प्रभावशाली हैं।
- उदाहरण के लिए: सत्य और अहिंसा पर उनका जोर, भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे आंदोलनों के मार्गदर्शन में स्पष्ट था।
- गाँधीजी का सत्याग्रह पर बल देना: गाँधीजी का सत्याग्रह दर्शन शारीरिक बल के बजाय नैतिक विजय के विचार पर आधारित था जिसमें अहिंसा, साहस का सर्वोच्च रूप मानी जाती है।
- उदाहरण के लिए: नमक आन्दोलन (1930) सत्याग्रह का उदाहरण था, जिसमें बिना किसी हिंसा के व्यापक पैमाने पर सविनय अवज्ञा को प्रेरित किया गया।
भगत सिंह
- भगत सिंह का सशर्त बल प्रयोग: भगत सिंह ने कुछ स्थितियों में जनता को जागृत करने और ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए हिंसा को एक आवश्यक उपकरण के रूप में देखा।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1929 का सेंट्रल असेंबली बम विस्फोट भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा किया गया एक प्रतीकात्मक कार्य था, जिसका उद्देश्य भारत के युवाओं के मन में देशप्रेम की भावना का संचार करना ।
- भगत सिंह का क्रांतिकारी प्रतीकवाद: भगत सिंह ने राजनीतिक चेतना को प्रेरित करने के लिए हिंसक कृत्यों का प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग किया तथा तर्क दिया कि हिंसा, लोगों के बजाय दमनकारी व्यवस्थाओं पर निर्देशित होनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: जॉन सॉन्डर्स की हत्या में उनकी भूमिका का उद्देश्य दमनकारी ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध प्रहार करना था।
- क्रांतिकारी हिंसा के लिए भगत सिंह का औचित्य: भगत सिंह का तर्क था कि हिंसा तब उचित है, जब उसका प्रयोग व्यक्तियों को नुकसान पहुँचाने के बजाय दमनकारी व्यवस्थाओं को नष्ट करने के लिए किया जाए।
राजनीतिक सक्रियता के प्रति दृष्टिकोण
महात्मा गाँधी
- गाँधीजी का सविनय अवज्ञा आंदोलन: गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा और असहयोग जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया और जनता को ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थाओं और कानूनों का बहिष्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
- उदाहरण के लिए: सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934) ने नमक कर जैसे अन्यायपूर्ण कानूनों को निशाना बनाया तथा अहिंसक विरोध के लिए भारतीयों के व्यापक आधार को एकजुट किया।
- गाँधीजी की व्यापक राजनीतिक भागीदारी: गाँधीजी की राजनीतिक सक्रियता जन आंदोलनों पर केंद्रित थी, जिसमें किसानों से लेकर अभिजात वर्ग तक, विभिन्न क्षेत्रों के लोग शामिल थे।
- उदाहरण के लिए: चंपारण सत्याग्रह (1917) के दौरान उनके नेतृत्व ने नील किसानों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया तथा उन्हें प्रत्यक्ष रूप से आंदोलन में शामिल किया।
- गाँधीजी का आत्मनिर्भरता पर बल देना: गाँधीजी की सक्रियता ने स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया तथा भारतीयों से ब्रिटिश वस्तुओं को अस्वीकार कर भारतीय निर्मित उत्पादों को अपनाने का आग्रह किया।
- उदाहरण के लिए: गाँधीजी द्वारा चरखे की वकालत करना, ब्रिटिश शासन से आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक थी।
भगत सिंह
- भगत सिंह की प्रत्यक्ष क्रांतिकारी कार्रवाई: भगत सिंह की राजनीतिक सक्रियता औपनिवेशिक उत्पीड़न का तत्काल सामना करने के लिए बल प्रयोग सहित अन्य प्रत्यक्ष कार्रवाई पर केंद्रित थी।
- उदाहरण के लिए: लाहौर षडयंत्र (1928) ने औपनिवेशिक सत्ता के मूल पर प्रहार करने के लिए क्रांतिकारी सक्रियता में भगत सिंह के विश्वास पर प्रकाश डाला।
- भगत सिंह की लक्षित सक्रियता: भगत सिंह का लक्ष्य क्रांतिकारियों के एक मुख्य समूह को प्रेरित करना था, तथा उनका ध्यान क्रांतिकारी समाजवाद में विश्वास रखने वाले युवा कार्यकर्ताओं पर केंद्रित था।
- उदाहरण के लिए: HSRA में उनके नेतृत्व ने युवाओं को सशस्त्र संघर्ष में शामिल किया।
- भगत सिंह की बौद्धिक सक्रियता: भगत सिंह की सक्रियता बौद्धिक भी थी, जो युवाओं को प्रेरित करने के लिए क्रांतिकारी साहित्य और दार्शनिक विचारों पर केंद्रित थी।
- उदाहरण के लिए: ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ जैसे उनके लेखों का उद्देश्य रूढ़िवादिता को चुनौती देना और बौद्धिक प्रतिरोध को संगठित करना था।
स्वतंत्र भारत के लिए दृष्टिकोण
गाँधीजी
- गाँधीजी के राम राज्य की अवधारणा: स्वतंत्र भारत के लिए गाँधीजी का आदर्श ,राम राज्य की स्थापना करना था, जो अहिंसा, समानता और ग्रामीण आत्मनिर्भरता पर आधारित राज्य हो।
- उदाहरण के लिए: उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी जहाँ प्रत्येक गाँव आत्मनिर्भर होगा तथा सादा जीवन और सामुदायिक कल्याण के आदर्शों को बढ़ावा दिया जाएगा।
- गाँधीजी के स्वराज की अवधारणा: गाँधीजी ने नैतिक उत्थान पर आधारित स्वराज (स्व-शासन) की कल्पना की थी, जहाँ व्यक्ति राजनीतिक एवं नैतिक दोनों रूप से स्वयं पर शासन करेगा।
- उदाहरण के लिए: स्वराज की उनकी अवधारणा ने खादी आंदोलन जैसी पहल के माध्यम से नैतिक जिम्मेदारी, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर दिया।
- गाँधीजी का ग्रामीण विकास पर बल देना: गाँधीजी ग्राम-आधारित विकास में विश्वास करते थे, जिसमें कृषि, लघु-स्तरीय उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया जाये तथा पश्चिमी प्रौद्योगिकी पर न्यूनतम निर्भरता हो।
- उदाहरण के लिए: बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण के प्रति गाँधीजी का विरोध, उनके द्वारा लघु स्तर के खादी उद्योगों को बढ़ावा देने में स्पष्ट है।
- गाँधीजी का धार्मिक सद्भाव पर बल देना: गाँधीजी ने स्वतंत्र भारत की नींव के रूप में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक सद्भाव और एकता पर बल दिया।
- उदाहरण के लिए: उन्होंने भारत के विभाजन का विरोध किया और उनका मानना था कि स्वतंत्र भारत धार्मिक एकता पर आधारित होना चाहिए।
भगत सिंह
- भगत सिंह का समाजवादी गणराज्य का सपना: भगत सिंह ने एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य की कल्पना की थी, जिसका ध्यान आर्थिक समानता लाने, सामंतवाद का अंत करने और औपनिवेशिक पूंजीवाद को समाप्त करने पर था। उदाहरण के लिए: HSRA में भगत सिंह की भागीदारी स्वतंत्रता के बाद समाजवादी गणराज्य बनाने की दिशा में एक कदम था।
- भगत सिंह का औद्योगिक दृष्टिकोण: मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित भगत सिंह ने उत्तर-औपनिवेशिक भारत के लिए औद्योगिक विकास और आर्थिक आधुनिकीकरण की आवश्यकता देखी। उदाहरण के लिए: उनके लेखों और भाषणों में गरीबी को कम करने और असमानताओं को दूर करने के लिए भारत के औद्योगीकरण की वकालत की गई।
- भगत सिंह का धर्मनिरपेक्षता पर ध्यान: भगत सिंह ने धार्मिक और जातिगत विभाजन से मुक्त भारत की कल्पना की, तथा धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समानता की वकालत की। उदाहरण के लिए: धर्मनिरपेक्ष और एकीकृत भारत के लिए उनका आह्वान हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के साथ उनके जुड़ाव में परिलक्षित होता है, जो धार्मिक विभाजन को कम करने का प्रयास करता था।
भगत सिंह और महात्मा गाँधी ने अपनी विपरीत विचारधाराओं के बावजूद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रकार के पूरक भूमिका निभाई। गाँधी के अहिंसा और जन-आंदोलन के दर्शन ने इस मुद्दे पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया, जबकि भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना ने एक पीढ़ी को औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। दोनों नेताओं ने अपने अनूठे तरीकों से एक स्वतंत्र भारत के सपने को आकार दिया और ऐसी विरासतें आगे की पीढ़ी को दिया जो देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करती रहीं।
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