Q. भारत में शहरी गरीबी ग्रामीण गरीबी से भिन्न, अनूठी चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है। शहरी गरीबी के प्राथमिक कारणों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और मौजूदा सरकारी हस्तक्षेपों की प्रभावकारिता पर चर्चा कीजिए। सतत और समावेशी शहरी आजीविका के सृजन के लिए एक बहुआयामी रणनीति सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • शहरी गरीबी के प्राथमिक कारक।
  • शहरी गरीबी का मुकाबला करने में चुनौतियाँ।
  • मौजूदा सरकारी हस्तक्षेपों की प्रभावकारिता।
  • सतत् और समावेशी शहरी आजीविका के निर्माण के लिए बहुआयामी रणनीति।

उत्तर

प्रस्तावना

भारत में शहरी गरीबी एक विरोधाभास प्रस्तुत करती है। विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2011 में 10.7% से घटकर वर्तमान में मात्र 1.1% रह गई है। किंतु वास्तविकता में असमानता और असुरक्षा अब भी विद्यमान हैं। ग्रामीण गरीबी से भिन्न, शहरी गरीबी का स्रोत अनौपचारिक कार्य, अपर्याप्त आवास और कमजोर सामाजिक सुरक्षा है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंचना को बनाए रखता है। अतः इसके कारणों, सरकारी हस्तक्षेप और समावेशी आजीविका रणनीतियों का मूल्यांकन आवश्यक है।

मुख्य भाग

शहरी गरीबी के प्राथमिक कारण

  • अनियोजित शहरीकरण: तीव्र प्रवास और किफायती आवास की अनुपलब्धता ने झुग्गियों और अनौपचारिक बस्तियों को जन्म दिया, जहाँ अत्यधिक भीड़ तथा असुरक्षित जीवन स्थितियाँ पाई जाती हैं।
    • उदाहरण: मुंबई की धारावी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गियों में से एक है, जो किफायती आवास की कमी से विकसित हुई।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: अविकसित टियर-2 और टियर-3 शहर पर्याप्त रोजगार नहीं दे पाते, जिससे श्रमिक बड़े महानगरों की ओर पलायन करते हैं, जो पहले से ही बोझिल हैं।
    • उदाहरण: देश के आंतरिक हिस्सों से लोग, रोजगार के अभाव के कारण दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की ओर प्रवास करते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा से बहिष्कार: प्रवासियों के पास राशन कार्ड, निवास प्रमाण या डिजिटल पहुँच न होने से, वे कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।
  • पीढ़ीगत गरीबी का जाल: झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण की कमी का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे भी कम वेतन वाले अनौपचारिक कार्यों में धकेल दिए जाते हैं।

शहरी गरीबी से निपटने की चुनौतियाँ

  • अनिश्चित अनौपचारिक रोजगार: शहरी गरीब दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर रहते हैं, जहाँ “काम नहीं तो वेतन नहीं” की स्थिति उन्हें रोजगार के प्रति अनिश्चिता के प्रति अत्यधिक असुरक्षित बनाती है।
    • उदाहरण: कोविड-19 प्रतिबंधों के दौरान स्ट्रीट वेंडरों की आजीविका पूरी तरह समाप्त हो गई थी।
  • सेवाओं की उच्च लागत: शहरों में अस्पताल, स्कूल और पाइप्ड वॉटर जैसी सेवाएँ हैं, किंतु उनकी ऊँची लागत गरीबों के लिए अप्राप्य है।
  • कमजोर सामाजिक नेटवर्क: गाँवों की तुलना में शहरी गरीबों के पास सामुदायिक बंधन या पारिवारिक सहयोग का अभाव है, जिससे संकट में उनका अलगाव बढ़ता है।
  • झुग्गियों का विस्तार और जोखिम: असुरक्षित आवास, खराब स्वच्छता और स्वास्थ्य खतरों से गरीबी का चक्र और गहरा होता है।

सरकारी हस्तक्षेप की प्रभावशीलता

  • वन नेशन, वन राशन कार्ड (ONORC): प्रवासियों को पूरे भारत में खाद्यान्न उपलब्ध कराकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में 28 करोड़ ONORC लेन-देन दर्ज किए गए।
  • स्वच्छ भारत मिशन–अर्बन 2.0: सार्वजनिक शौचालय और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली से स्वच्छता और स्वास्थ्य स्थितियों में सुधार।
    • उदाहरण: इंदौर ने सामुदायिक भागीदारी से SBM के अंतर्गत लगातार देश का सबसे स्वच्छ शहरckl का  दर्जा बनाए रखा।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना–अर्बन (PMAY-U): किफायती आवास उपलब्ध कराकर झुग्गियों की वृद्धि को रोकने का प्रयास, यद्यपि धीमी क्रियान्वयन इसकी प्रभावशीलता घटाता है।
  • पीएम स्वनिधि योजना: स्ट्रीट वेंडरों को बिना जमानत के ऋण उपलब्ध कराकर अनौपचारिक श्रमिकों की ऋण तक पहुँच सुनिश्चित की गई।

सतत् एवं समावेशी शहरी आजीविका हेतु बहुआयामी रणनीति

  • समावेशी शहरीकरण: विकेंद्रीकृत योजना और नागरिक सहभागिता से नीतियाँ वास्तविक शहरी आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
    • उदाहरण: केरल की कुडुंबश्री नेटवर्क ने DAY-NULM को महिला सामूहिकों के माध्यम से प्रभावी ढंग से लागू किया।
  • टियर-2 और टियर-3 शहरों का सशक्तीकरण: छोटे शहरों में रोजगार, अवसंरचना और सेवाएँ विकसित कर महानगरों पर बोझ कम करना।
  • शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को सशक्त बनाना: विकेंद्रीकृत शासन से सेवा प्रदायगी में जवाबदेही और स्थिरता आती है।
    • उदाहरण: इंदौर का ULB-नेतृत्व वाला स्वच्छता अभियान सामूहिक आंदोलन बन गया।
  • लक्षित सामाजिक सुरक्षा और कौशल विकास: कौशल प्रशिक्षण, श्रम-प्रधान उद्योगों और सार्वभौमिक दस्तावेजीकरण से कल्याणकारी योजनाओं में बहिष्कार कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण: DAY-NULM का हुनर से रोजगार  कार्यक्रम शहरी युवाओं को स्थानीय नौकरियों हेतु प्रशिक्षित करता है।

निष्कर्ष

वर्ष 2050 तक भारतीय शहर लगभग 75% GDP उत्पन्न करेंगे और 60% उत्सर्जन में योगदान देंगे। इसलिए समावेशी शहरीकरण सतत् विकास के लिए अनिवार्य है। शहरी गरीबी का समाधान आजीविका सृजन, कौशल प्रशिक्षण, सामाजिक सुरक्षा और सशक्त स्थानीय शासन में निहित है। $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य हेतु शहरों को सभी के लिए गरिमा, अवसर और लचीलापन सुनिश्चित करना होगा।

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