प्रश्न की मुख्य माँग
- हरित क्रांति की सफलता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- हरित क्रांति से सीखे गए प्रमुख सबकों पर चर्चा कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि इन सबकों का उपयोग भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान परिवेश को सुदृढ़ करने के लिए कैसे किया जा सकता है।
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उत्तर
वर्ष 1960 के दशक की हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न की कमी वाले राष्ट्र से एक आत्मनिर्भर राष्ट्र में बदल दिया, जो कृषि इतिहास में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ। यह केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि ही नहीं थी, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की वह विजय भी थी जिसने नौकरशाही जड़ता और वैचारिक प्रतिरोध को मात दी तथा भारत को अमेरिका से PL-480 गेहूं आयात पर स्थायी निर्भरता से बचाया (1968 की प्रचुर फसल के बाद इसे समाप्त कर दिया गया)।
हरित क्रांति की सफलता के पीछे के कारण
- वैज्ञानिक नवाचार और सहयोग: अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग ने मैक्सिकन बौनी गेहूं किस्मों तक पहुँच संभव की, जो भारतीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित थीं।
- उदाहरण के लिए: स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में विकसित नॉर्मन बोरलॉग के बीज, भारतीय मिट्टी में अत्यधिक अनुकूलित और सफल साबित हुए।
- कृषि की राजनीतिक प्राथमिकता: शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व ने खाद्य सुरक्षा को राष्ट्रीय संप्रभुता का केंद्रीय तत्व माना।
- उदाहरण के लिए: लाल बहादुर शास्त्री का नारा “जय जवान, जय किसान” और कृषि वैज्ञानिकों को उनका प्रत्यक्ष समर्थन।
- नौकरशाही विलंबों को कम करना: राजनीतिक इच्छाशक्ति ने लालफीताशाही को दूर करने, परीक्षणों और आयात में तेजी लाने में मदद की।
- उदाहरण के लिए: सी. सुब्रमण्यम (कृषि मंत्री) ने नौकरशाही द्वारा उत्पन्न अवरोधों के बावजूद बीजों के परीक्षणों में तेजी लाने में मदद की और वित्तपोषण को मंजूरी दी।
- वैज्ञानिकों से प्रत्यक्ष संवाद: नेताओं ने केवल नौकरशाही पर निर्भर रहने के बजाय प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों से प्रत्यक्ष संवाद किया।
- उदाहरण के लिए: सुब्रमण्यम जी ने सामान्य अधिकारियों को दरकिनार करते हुए स्वामीनाथन के प्रस्ताव को व्यक्तिगत रूप से सुना।
- वैचारिक विरोध पर विजय: वामपंथी समूहों और योजना आयोग की आपत्तियों के बावजूद, शीर्ष नेतृत्व ने वैज्ञानिक प्रमाणों का समर्थन किया और कई आवश्यक मंजूरियों को सहमति प्रदान की।
- उदाहरण: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री ने 1966 में 18,000 टन बीज के ऐतिहासिक आयात को मंज़ूरी दी थी।
- स्वतंत्र निगरानी और परिणाम: नेतृत्व ने राष्ट्रव्यापी स्वीकार्यता से पूर्व क्षेत्रीय परीक्षण और साक्ष्य पर अधिक बल दिया।
- प्रत्यक्ष परिणामों ने निरंतरता सुनिश्चित की: शीघ्र सफलता ने निर्णयों को वैधता प्रदान की और सुधारों को निरंतर बनाए रखने में मदद की।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1968 में गेहूँ के प्रचुर उत्पादन ने अमेरिकी खाद्य सहायता को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने में मदद की।
हरित क्रांति से सीखे गए प्रमुख सबक
- वैश्विक वैज्ञानिक संपर्क: वैज्ञानिक प्रगति अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर आधारित होती है, जहाँ ज्ञान, जर्मप्लाज्म और अनुसंधान अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करके साझा किए जाते हैं। इस प्रकार का सहयोग दीर्घकालिक खाद्य संकटों के समाधान हेतु स्थायी तंत्र निर्मित करता है।
- उदाहरण के लिए: जापानी बौनी गेहूं की किस्में और बोरलॉग के मैक्सिकन बीजों ने भारत की खाद्य क्रांति को उत्प्रेरित किया और इसे वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग का मूर्त रूप बना दिया।
- नौकरशाही विलंबों में कमी: समय-संवेदनशील वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए त्वरित और निर्णायक फैसले आवश्यक होते हैं। यदि नौकरशाही संबंधी अवरोध बढ़ जाए तो नवाचारों का प्रभाव समय पर नहीं प्राप्त हो पाता और समाज इसके लाभ से वंचित रह जाता है।
- विज्ञान-आधारित नीति निर्माण: विशेषज्ञ वैज्ञानिक परामर्श पर आधारित नीतियाँ व्यावहारिक और संधारणीय समाधान प्रदान करती हैं। इसके विपरीत, केवल नौकरशाही दृष्टिकोण अक्सर समझौतावादी और अल्पकालिक नीतियों तक सीमित रह जाता है।
- तकनीकी रूप से जागरूक राजनीतिक नेतृत्व: वे नेता जिनके पास तकनीकी या वैज्ञानिक समझ होती है, वे नवाचारों की सार्थकता को अधिक गहराई से समझते हैं और उन्हें व्यावहारिक रूप में लागू करने का साहस रखते हैं। ऐसे नेतृत्व से विज्ञान और नीति-निर्माण में तालमेल स्थापित होता है।
- उदाहरण के लिए: भौतिकी विषय से स्नातक रहे सुब्रमण्यम जी ने बीज परीक्षणों के महत्व को तुरंत पहचान लिया, जबकि उनके कई पूर्ववर्ती इसे अनदेखा करते रहे।
- वैचारिक विरोध का सामना करना: वैज्ञानिक प्रगति को अक्सर राजनीतिक और वैचारिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। इसे केवल खंडन नहीं, बल्कि संतुलित और दूरदर्शी तरीके से प्रबंधित करना राष्ट्रीय हित में आवश्यक हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: वामपंथी दलों ने रॉकफेलर फाउंडेशन (अमेरिकी संस्था) से संबंधों के कारण बीज आयात का विरोध किया, किंतु नेतृत्व ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए साहसिक निर्णय लिया।
- स्वतंत्र निगरानी और सुधार: किसी भी वैज्ञानिक सफलता के बाद निरंतर मूल्यांकन आवश्यक है, ताकि अप्रत्याशित पारिस्थितिक और आर्थिक दुष्परिणामों को रोका जा सके। निरंतर समीक्षा के बिना सफलता असंतुलित परिणाम भी दे सकती है।
- उदाहरण: स्वामीनाथन ने जल और उर्वरकों के अति-उपयोग के प्रति चेतावनी दी थी, किंतु इनसे बचने के लिये आवश्यक नीतिगत सुधार सही समय पर लागू नहीं हो पाए।
- वैज्ञानिक सफलता की सार्वजनिक दृश्यता: जब कृषि-स्तर पर ठोस और तात्कालिक परिणाम प्राप्त होते हैं, तो सामान्य समाज में नवाचारों के प्रति विश्वास बढ़ता है और नवाचारों का व्यापक स्तर पर प्रसार संभव हो पाता है।
- उदाहरण के लिए: राज्य-स्तरीय किसान परीक्षणों ने नीति-निर्माताओं और कृषकों दोनों को नई गेहूं किस्म की वास्तविक क्षमता के प्रति आश्वस्त कर दिया।
विकसित भारत के लिए भारत के वैज्ञानिक परिवेश को मजबूत करने हेतु सीखे गए सबक को लागू करना
- वैश्विक वैज्ञानिक नेटवर्किंग को बढ़ावा देना: किसी भी वैश्विक वैज्ञानिक उपलब्धि के लिए निरंतर सहयोग, ज्ञान का आदान-प्रदान और वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता आवश्यक होती है। यह केवल तकनीकी खोज को गति नहीं देता, बल्कि राष्ट्रीय विज्ञान को वैश्विक स्तर से जोड़कर आत्मनिर्भरता को भी मजबूत करता है।
- वैज्ञानिक-नीति निर्माता के बीच प्रत्यक्ष संवाद सुनिश्चित करना: नीति-निर्माण को वैज्ञानिक विशेषज्ञता पर आधारित होना चाहिए, जिसके लिए संस्थागत संवाद मंचों का निर्माण अनिवार्य है। ऐसा संवाद निर्णयों को व्यावहारिक, सटीक और दीर्घकालिक बनाता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1964 में सुब्रमण्यम की युवा कृषि वैज्ञानिकों से बैठक ने नौकरशाही संदेह को दरकिनार करते हुए वैज्ञानिकों की सलाह को सीधे नीति में स्थान दिलाया।
- वैज्ञानिक नेतृत्व में निवेश करना: ऐसे मंत्री और प्रशासक जिनके पास तकनीकी या वैज्ञानिक विशेषज्ञता होती है, वे प्रमाण-आधारित और भविष्य-आधारित नीतियाँ सुनिश्चित करते हैं। इस प्रकार का नेतृत्व विज्ञान और नीति के बीच सेतु का कार्य करता है।
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- उदाहरण के लिए: टेक नीति निर्माण में चीन के आगे रहने के पीछे एक मुख्य कारण यह भी है की उनके अधिकांश नेता इंजीनियरिंग और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि वाले होते हैं।
- अनुसंधान एवं विकास निधि में वृद्धि: नवाचार स्तर से प्रतिस्पर्धा हेतु अनुसंधान अवसंरचना और मानव संसाधन में पर्याप्त निवेश आवश्यक है। बिना वित्तीय प्रोत्साहन के विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित रह सकता है।
- उदाहरण के लिए: भारत कृषि सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.43% अनुसंधान एवं विकास पर व्यय करता है, जो चीन के आधे से भी कम है।
- नई वैज्ञानिक प्रगति हेतु स्वतंत्र निगरानी संस्थाएँ बनाना: ऐसे निगरानी तंत्र आवश्यक हैं जो वैज्ञानिक प्रगति के दीर्घकालिक पारिस्थितिक और सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन करें, ताकि अवांछित दुष्परिणामों को समय रहते रोका जा सके।
- विज्ञान को राष्ट्रीय मिशनों से जोड़ना: वैज्ञानिक प्रगति को खाद्य सुरक्षा, डिजिटल विकास और जलवायु लचीलापन जैसे रणनीतिक राष्ट्रीय लक्ष्यों से जोड़ा जाना चाहिए। जब विज्ञान राष्ट्रीय अभियानों का हिस्सा बनता है, तभी उसका वास्तविक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव दिखाई देता है।
- उदाहरण: जिस प्रकार हरित क्रांति ने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता दिलाई, उसी प्रकार स्वदेशी डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ आज की आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) को आगे बढ़ा सकती हैं।
निष्कर्ष
हरित क्रांति केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक–नेतृत्व सहयोग तथा प्रभावी शासन का परिणाम थी। यह दर्शाती है कि जब विज्ञान और शासन एक ही दिशा में कार्य करते हैं, तो ऐतिहासिक परिवर्तन संभव हो जाते हैं। विकसित भारत 2047 की परिकल्पना के लिए भारत को इसी मॉडल को पुनः अपनाना होगा — अर्थात् नौकरशाही अवरोधों को कम करना, विज्ञान में निवेश बढ़ाना, शोधकर्ताओं को सशक्त बनाना और वैज्ञानिक प्रयासों को सशक्त राजनीतिक समर्थन प्रदान करना। एम.एस. स्वामीनाथन के योगदान का सम्मान इसी में निहित है कि इन सबकों को डिजिटल प्रौद्योगिकी, जलवायु प्रत्यास्थता और जैव-प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में लागू किया जाए। ऐसा करने से भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी अग्रणी स्थान प्राप्त करेगा।
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