प्रश्न की मुख्य माँग
- पूर्वोत्तर की कम निर्यात क्षमता के कारण।
- पूर्वोत्तर राज्यों की अप्रयुक्त व्यापार क्षमता।
- उन्हें भारत के निर्यात ढाँचे में एकीकृत करने के उपाय।
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उत्तर
भारत की निर्यात अर्थव्यवस्था अत्यधिक संकेंद्रित है, जहाँ चार तटीय राज्य 70% से अधिक निर्यात में योगदान करते हैं, जबकि 5,400 किमी. लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं वाला उत्तर-पूर्व क्षेत्र का योगदान मात्र 0.13% है। इस उपेक्षा के पीछे बुनियादी ढाँचे की कमी, सुरक्षा-प्रधान शासन और नीतिगत बहिष्करण है, जबकि क्षेत्र कृषि संसाधनों, सामरिक स्थिति और आसियान से जुड़ाव जैसी अपार संभावनाओं से युक्त है।
उत्तर-पूर्व में कम निर्यात क्षमता के कारण
- बुनियादी ढाँचे की कमी: सक्रिय व्यापार गलियारों, गोदामों और कोल्ड-चेन सुविधाओं का अभाव।
- उदाहरण: भारत-म्याँमार के मोरेह और जोखावथार गेटवे व्यापार केंद्रों के बजाय मात्र चेकपोस्ट बनकर रह गए।
- सुरक्षा-प्रधान दृष्टिकोण: नीतियाँ व्यापार संवर्द्धन के बजाय आतंकवाद-रोधी और निगरानी केंद्रित है।
- उदाहरण: वर्ष 2024 में फ्री मूवमेंट रेजीम समाप्त होने के बाद मिजोरम और मणिपुर में पारंपरिक रिश्ते तथा सीमा-पार व्यापार कम हो गया।
- संस्थागत बहिष्करण: राष्ट्रीय व्यापार नीति संस्थानों में उत्तर-पूर्व की भूमिका का अभाव है।
- उदाहरण: बोर्ड ऑफ ट्रेड और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में उत्तर-पूर्व का प्रतिनिधित्व नहीं है।
- आर्थिक वंचितता: उत्तर-पूर्व क्षेत्र चाय जैसे महत्त्वपूर्ण उत्पाद होने के बावजूद मूल्य संवर्द्धन और ब्रांडिंग से वंचित है।
- नीतिगत उपेक्षा: PLI और RoDTEP जैसी योजनाएँ गुजरात और तमिलनाडु जैसे औद्योगिक बेल्ट तक सीमित।
- उदाहरण: DGFT की वर्ष 2024 निर्यात रणनीति में 87 पृष्ठों में उत्तर-पूर्वी गलियारों पर एक भी अनुभाग नहीं था।
उत्तर-पूर्व के अप्रयुक्त व्यापार अवसर
- कृषि-आधारित निर्यात: उपजाऊ भूमि चाय, बागवानी और मसालों जैसे विशेष उत्पादों के लिए अनुकूल।
- उदाहरण: असम की चाय ब्रांडिंग और वैश्विक पैकेजिंग हब से मूल्य शृंखला में ऊपर जा सकती है।
- ऊर्जा निर्यात: नुमालिगढ़ रिफाइनरी का विस्तार पेट्रोलियम निर्यात की क्षमता को बढ़ाता है।
- उदाहरण: 9 मिलियन मीट्रिक टन क्षमता पर विविधीकृत निर्यात संभव होगा।
- आसियान से सीमा-पार व्यापार: 5,400 किमी. सीमा क्षेत्र को भारत-आसियान व्यापार से जोड़ा जा सकता है।
- उदाहरण: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग सक्रिय होने पर उत्तर-पूर्व सीधे आसियान बाजारों से जुड़ सकता है।
- सांस्कृतिक और जातीय संबंध: पड़ोसी समुदायों से सांस्कृतिक व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- सामरिक स्थिति: दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के संगम पर स्थित उत्तर-पूर्व भारत के पश्चिमी बंदरगाहों पर निर्भरता घटा सकता है।
भारत के निर्यात ढाँचे में एकीकरण हेतु उपाय
- भौतिक अवसंरचना निर्माण: राजमार्ग, गोदाम और कोल्ड-चेन नेटवर्क विकसित करना।
- उदाहरण: मोरेह से त्रिपक्षीय राजमार्ग को सक्रिय कर सीमा को वास्तविक व्यापार गलियारे में बदला जा सकता है।
- नीतिगत समावेशन: राष्ट्रीय निर्यात निकायों में उत्तर-पूर्वी राज्यों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
- उदाहरण: बोर्ड ऑफ ट्रेड में त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश की भागीदारी।
- कृषि-निर्यात के लिए समर्थन: स्थानीय स्तर पर पैकेजिंग, ब्रांडिंग और अनुसंधान केंद्र स्थापित करना।
- सुरक्षा से व्यापार की ओर परिवर्तन: सीमा प्रबंधन का फोकस व्यापारिक लचीलापन बढ़ाने पर केंद्रित करना।
- विशेष आर्थिक गलियारे: उत्तर-पूर्व में समर्पित निर्यात गलियारों और औद्योगिक प्रोत्साहनों का निर्माण।
- उदाहरण: नुमालिगढ़ रिफाइनरी और असम के कृषि समूहों को आसियान बाजारों से जोड़ना।
निष्कर्ष
संसाधनों और सामरिक स्थिति से संपन्न होने के बावजूद उत्तर-पूर्व अवसंरचना की कमी, सुरक्षा-प्रधान दृष्टिकोण और नीतिगत उपेक्षा के कारण निर्यात ढाँचे से बाहर है। यदि व्यापार गलियारे, ब्रांडिंग हब और नीतिगत समावेशन सुनिश्चित किए जाएँ, तो उत्तर-पूर्व भारत का आसियान के लिए द्वार बन सकता है, जो क्षेत्रीय विकास, रोजगार और एक्ट ईस्ट नीति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाएगा।
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