Q. भारत के चुनाव आयोग का पारदर्शिता पर हालिया रुख, विशेष रूप से फॉर्म 17C और चुनावी डेटा एक्सेस के संबंध में, लोकतांत्रिक जवाबदेही के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है। चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सार्वजनिक विश्वास, लोकतांत्रिक संस्थाओं और संवैधानिक सिद्धांतों को कैसे प्रभावित करती है, इसकी आलोचनात्मक जाँच कीजिये, चुनावी अखंडता को मजबूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार पारदर्शिता पर भारत के निर्वाचन आयोग का हालिया रुख, विशेष रूप से फॉर्म 17C और चुनावी डेटा तक पहुँच के संबंध में, लोकतांत्रिक जवाबदेही के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
  • परीक्षण कीजिए कि चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सार्वजनिक विश्वास, लोकतांत्रिक संस्थाओं और संवैधानिक सिद्धांतों को किस प्रकार प्रभावित करती है।
  • चुनावी सत्यनिष्ठा को मजबूत करने के लिए सुधार सुझाइये।

उत्तर

चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, जनता के विश्वास, मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं और समानता व निष्पक्षता जैसे संवैधानिक सिद्धांतों के पालन के लिए महत्त्वपूर्ण है। वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक 2023 के अनुसार, भारत 46वें स्थान पर है, जो सुधार की गुंजाइश दर्शाता है। फॉर्म 17C डेटा तक पहुँच सीमित करने के चुनाव आयोग के रुख ने पारदर्शिता और चुनावी सहिष्णुता के बीच संतुलन बनाने के संबंध में बहस उत्पन्न कर दी है।

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पारदर्शिता पर भारत के चुनाव आयोग का हालिया रुख

  • फॉर्म 17C से संबंधित चिंताएँ: फॉर्म 17C को साझा करने में ECI की अनिच्छा, चुनावी जवाबदेही के बारे में संदेह उत्पन्न करती है और रिपोर्ट किए गए वोटर टर्नआउट और वोट काउंट की सटीकता में विश्वास को कम करती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में, अस्पष्टीकृत वोटर टर्नआउट संशोधनों ने चुनाव निष्पक्षता के संबंध में संदेह उत्पन्न किया, जिसमें फॉर्म 17C डेटा के सक्रिय प्रकटीकरण की माँग की गई।
  • प्रतिबंधात्मक नियम संशोधन: नियम 93(2) के तहत चुनावी डेटा तक सार्वजनिक पहुँच को प्रतिबंधित करने से पारदर्शिता खत्म होती है, चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्ष जाँच में बाधा आती है और मतदाताओं का विश्वास कम होता है।
    • उदाहरण के लिए: चुनाव रिकॉर्ड तक पहुँच के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देश को संशोधन द्वारा कमजोर कर दिया गया, जिससे पारदर्शिता उपायों में देरी हुई।
  • अस्पष्ट चुनावी निर्णय: महत्त्वपूर्ण मतदाता डेटा प्रकाशित करने में देरी, संस्थागत विश्वसनीयता को कम करती है और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में संभावित पक्षपातपूर्ण प्रभाव के बारे में सवाल उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 के आम चुनावों के बाद, क्रॉस-सत्यापन के लिए आवश्यक फॉर्म 17 C विवरण को हटाते हुए‌  ECI ने सांख्यिकीय डेटा जारी करने में विलम्ब किया है ।
  • अपर्याप्त सक्रिय खुलासे: डेटा का खुलासा करने के लिए तकनीकी बाधाओं का ECI का औचित्य, भारत की डिजिटल गवर्नेंस में प्रगति के संदर्भ में विफल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया का हिस्सा होने के बावजूद, स्कैनिंग और अपलोडिंग सुविधाओं की कमी , ECI की विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
  • चयनात्मक पहुँच के मुद्दे: फॉर्म 17C को मतदान एजेंटों तक सीमित रखने के संबंध में ECI का रुख सूचना तक पहुँच में असमानता को बढ़ावा देता है, तथा नागरिक समाज और स्वतंत्र निगरानीकर्ताओं की तुलना में राजनीतिक लोगों को अधिक तरजीह देता है।

सार्वजनिक विश्वास, लोकतांत्रिक संस्थाओं और संवैधानिक सिद्धांतों पर पारदर्शिता का प्रभाव

जन विश्वास

  • पारदर्शिता जवाबदेही को बढ़ावा: चुनाव रिकॉर्ड तक आम पहुँच नागरिकों को संस्थानों को जवाबदेह बनाने में सक्षम बनाती है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में विश्वास बढ़ता है।
    • उदाहरण के लिए: वोटर टर्नआउट डेटा का खुलासा करने से चुनावी हेरफेर के संबंध में अटकलें कम हो जाती हैं।
  • गलत सूचना को रोकना: सत्यापित डेटा तक विश्वसनीय पहुँच, अफवाहों की गुंजाइश को कम करती है और चुनाव अधिकारियों द्वारा घोषित परिणामों की विश्वसनीयता को मजबूत करती है। 
    • उदाहरण के लिए: हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान वोटों की गिनती में पारदर्शिता की कमी ने संदेह उत्पन्न किया।

लोकतांत्रिक संस्थाएँ

  • संस्थागत वैधता को मजबूत करना: पारदर्शी संचालन, ECI जैसी संस्थाओं की निष्पक्षता में जनता के विश्वास को मजबूत करता है और उनकी स्वायत्तता की रक्षा करता है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिकी चुनाव सहायता आयोग द्वारा सक्रिय खुलासे वैश्विक स्तर पर संस्थागत विश्वास को बढ़ाते हैं।
  • वैश्विक प्रतिष्ठा में वृद्धि: पारदर्शी चुनाव, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करते हैं जो मजबूत लोकतांत्रिक शासन को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: कनाडा का चुनाव आयोग, चुनावी डेटा तक सार्वजनिक पहुँच में एक मानक निर्धारित करता है।

संवैधानिक सिद्धांत

  • मौलिक अधिकारों को बनाए रखता है: पारदर्शिता सूचना के अधिकार के साथ संरेखित होती है, जो अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत गारंटीकृत सूचित नागरिक भागीदारी सुनिश्चित करती है।
    • उदाहरण के लिए: चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2024 के निर्णय ने सूचना के मौलिक अधिकार को मजबूत किया।
  • भागीदारी में समानता की सुरक्षा: पारदर्शिता सुनिश्चित करती है कि सभी हितधारकों को, संबद्धता के बावजूद, आवश्यक चुनाव-संबंधी डेटा तक पहुँच हो, जिससे निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिले। 
    • उदाहरण के लिए: रिकॉर्ड तक सीमित पहुँच, अनुच्छेद 14 के तहत समानता खंड का खंडन करती है ।

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चुनावी सत्यनिष्ठा को मजबूत करने के लिए सुधार

  • सक्रिय प्रकटीकरण: सार्वजनिक मंचों पर वोटर टर्नआउट और चुनावी डेटा का समय पर प्रकाशन अनिवार्य करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: मतदान के बाद रियलटाइम डेटा प्रसार सुनिश्चित करने के लिए भारत के चुनाव प्रबंधन पोर्टल जैसे प्लेटफार्म को अपग्रेड किया जा सकता है।
  • स्वतंत्र ऑडिट: वोट टर्नआउट और वोटों की गिनती को सत्यापित करने के लिए स्वतंत्र चुनावी ऑडिट तंत्र स्थापित करना चाहिए व गैर-पक्षपाती एजेंसियों के माध्यम से क्रॉस-सत्यापन सुनिश्चित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: कनाडा में, स्वतंत्र आयोग सटीकता की गारंटी के लिए चुनाव पूर्व और बाद में ऑडिट करते हैं।
  • विधायी सुरक्षा उपाय: पारदर्शिता में चूक के लिए कानूनी जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए, फॉर्म 17C सहित प्रमुख चुनावी दस्तावेजों तक सार्वजनिक पहुँच को अनिवार्य बनाने के लिए कानूनों में संशोधन करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण अफ्रीका में सूचना का अधिकार अधिनियम कानून द्वारा प्रमुख चुनावी डेटा तक पहुँच की गारंटी देता है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनावी डेटा को सुरक्षित और साझा करने के लिए ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए, जिससे वोटों की गिनती और मतदान के छेड़छाड़-रहित सार्वजनिक रिकॉर्ड सुनिश्चित हो सकें। 
    • उदाहरण के लिए: एस्टोनिया की ई-वोटिंग प्रणाली पारदर्शिता सुनिश्चित करने और चुनावों में छेड़छाड़ को रोकने के लिए ब्लॉकचेन का उपयोग करती है।
  • संस्थागत सुधार: चुनाव आयोग को अधिक स्वायत्तता के साथ पुनर्गठित करना चाहिए और चुनावी शिकायतों के लिए एक स्वतंत्र लोकपाल के माध्यम से इसकी जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: UK चुनाव आयोग एक संसदीय समिति को रिपोर्ट करता है, जिससे उसके निर्णयों पर नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित होता है।

चुनावी पारदर्शिता को मजबूत करने से लोकतांत्रिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है, संवैधानिक मूल्यों को बल मिलता है और संस्थाओं में नागरिकों का विश्वास बढ़ता है। चुनावी डेटा का रियलटाइम खुलासा, मजबूत ऑडिट तंत्र और वोट गोपनीयता पर RP अधिनियम की धारा 128 का पालन जैसे सुधार अंतराल को कम कर सकते हैं। डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए डिजिटल नवाचारों का लाभ उठाना, लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है

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