Q. ‘अत्यधिक कार्य के घंटे व्यक्तिगत कल्याण और पेशेवर सत्यनिष्ठा को कमजोर करते हैं।" इस कथन के प्रकाश में, कार्य-जीवन संतुलन के संबंध में निगमों की नैतिक जिम्मेदारियों की जाँच कीजिये। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • समझाइए कि अत्यधिक कार्य-घंटे किस प्रकार व्यक्तिगत कल्याण और व्यावसायिक निष्ठा को कमजोर करते हैं।
  • कार्य-जीवन संतुलन के संबंध में निगमों की नैतिक जिम्मेदारियों की जाँच कीजिये।

उत्तर

हाल ही में कथित तौर पर कार्य से संबंधित तनाव के कारण एक युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन की दुखद मृत्यु ने भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में अत्यधिक कार्य-घंटों और खराब कार्य-जीवन संतुलन के मुद्दे को उजागर किया है। कर्मचारियों पर डाले जाने वाले असहनीय दबाव को ‘गुलामों की तरह कार्य ‘ बताते हुए उनकी माँ का बयान पेशेवरों द्वारा सामना किए जाने वाले तनाव और बर्नआउट के उच्च स्तर को दर्शाता है। यह घटना यह सुनिश्चित करने के लिए प्रणालीगत परिवर्तनों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है कि कॉर्पोरेट कार्य संस्कृति, कर्मचारी कल्याण और स्थायी कार्य-जीवन प्रथाओं को प्राथमिकता दे।

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अत्यधिक कार्य-घंटे किस प्रकार व्यक्तिगत कल्याण और पेशेवर सत्यनिष्ठा को कमजोर करते हैं

व्यक्तिगत कल्याण

  • स्वास्थ्य जोखिम में वृद्धि: लंबे समय तक कार्य करने से तनाव का स्तर बढ़ता है, जिससे बर्नआउट, हृदय संबंधी रोग और चिंता एवं अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चलता है कि प्रति सप्ताह 55 घंटे से अधिक कार्य करने वाले कर्मचारियों को संतुलित कार्य करने वालों की तुलना में हृदय रोग का अधिक जोखिम होता है।
  • जीवन की गुणवत्ता में कमी: अत्यधिक कार्य-घंटे परिवार, शौक और आराम के लिए समय सीमित कर देते हैं , जिससे समग्र जीवन संतुष्टि और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: आईटी कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा लंबे समय तक कार्य की प्रतिबद्धताओं के कारण पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो पाता है, जिससे व्यक्तिगत संबंध प्रभावित होते हैं।
  • नींद की कमी और थकान: लंबे समय तक कार्य करने से नींद का पैटर्न बिगड़ जाता है, जिससे क्रोनिक फैटीग और संज्ञानात्मक कार्य में कमी आती है। 
    • उदाहरण के लिए: कॉर्पोरेट कर्मचारी अक्सर औसतन 5-6 घंटे की नींद ले पाते हैं , जो अनुशंसित किये जाने वाले 7-8 घंटों से कम है , जिसके परिणामस्वरूप उनकी उत्पादकता में कमी आती है।
  • उत्तेजक पदार्थों पर निर्भरता में वृद्धि: लंबे समय तक कार्य करने के लिए, कई कर्मचारी कैफीन या उत्तेजक पदार्थों का सहारा लेते हैं, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों का सामना करना पड़ सकता हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अधिकांश कॉर्पोरेट कर्मचारी सक्रिय रहने के लिए दिन में कई बार कॉफी या एनर्जी ड्रिंक पर निर्भर रहते हैं, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जोखिम में पड़ जाता है।

पेशेवर सत्यनिष्ठा 

  • कार्य की गुणवत्ता में कमी: क्षमता से अधिक कार्य करने से ध्यान और बारीकियाँ को समझने के संबंध में गलतियाँ होती हैं और कार्य की गुणवत्ता कम होती है। 
    • उदाहरण के लिए: वित्त और परामर्श जैसे क्षेत्रों में लंबे समय तक कार्य करने और थकान के कारण त्रुटि दर अधिक होती है, जिससे ग्राहक संतुष्टि और कंपनी की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है।
  • नैतिक शॉर्टकट और समझौते: अत्यधिक कार्यभार के दबाव के कारण कर्मचारी समय-सीमा को पूरा करने के लिए अनैतिक शॉर्टकट अपना सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: उच्च दबाव वाले वातावरण में, कर्मचारी अवास्तविक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए गुणवत्ता जाँच को अनदेखा कर सकते हैं या जोखिमों को कम करके बता सकते हैं, जिससे नैतिक मानकों से समझौता करना पड़ता है।
  • कम नवाचार और रचनात्मकता: थकान, रचनात्मकता को कम कर देती है और कर्मचारियों की नवीन तरीके से सोचने या नए विचार सोचने की क्षमता को सीमित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: मार्केटिंग और डिजाइन जैसे उद्योग, जो रचनात्मकता पर निर्भर करते हैं, अत्यधिक कार्यभार का सामना करने वाले कर्मचारियों द्वारा कम रचनात्मक आउटपुट की रिपोर्ट करते हैं ।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता का नुकसान: अत्यधिक कार्य दबाव से एक ऐसी संस्कृति बनती है जहाँ पारदर्शिता और जवाबदेही कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: समय की अत्यधिक माँग वाले कार्यस्थलों में अनदेखी किए गए अनुपालन और प्रक्रियात्मक चूक की अधिक घटनाएँ होती हैं, जिससे संगठनात्मक अखंडता प्रभावित होती है।

कार्य-जीवन संतुलन के संबंध में निगमों की नैतिक जिम्मेदारियाँ

  • उचित कार्य घंटे सुनिश्चित करना: निगमों का कर्तव्य है कि वे अत्यधिक घंटों वाले कार्य को रोकें और कार्य क्षमता के संबंध में यथार्थवादी अपेक्षाएँ निर्धारित करना। 
    • उदाहरण के लिए: सख्त नो-ओवरटाइम नीतियों को लागू करने वाली कंपनियों ने बेहतर कर्मचारी संतुष्टि और कम टर्नओवर दरों की सूचना दी है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करना: निगमों को परामर्श और कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे एक सहायक वातावरण का निर्माण हो सके। 
    • उदाहरण के लिए: कुछ निगम कर्मचारियों के लिए निःशुल्क परामर्श सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिससे तनाव-संबंधी अवकाश कम होता है और उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • पारदर्शी कार्यभार प्रबंधन: नैतिक निगम कार्यभार को निष्पक्ष रूप से वितरित करते हैं, जिससे कुछ कर्मचारियों या टीमों पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: टीम कार्यभार की नियमित समीक्षा असंतुलन की पहचान करने में मदद करती है, जिससे कर्मचारियों के बीच समान कार्य वितरण सुनिश्चित होता है।
  • समय-अवकाश और लचीलेपन को प्रोत्साहित करना: नियोक्ताओं को लचीले शेड्यूल प्रदान करने चाहिए और कर्मचारियों को नियमित ब्रेक और टाइम-ऑफ लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: माइक्रोसॉफ्ट इंडिया जैसी कंपनियों में लचीले कार्य-घंटे और अनिवार्य समयटाईम-ऑफ नीतियों ने उत्पादकता और कर्मचारी मनोबल पर सकारात्मक प्रभाव दिखाया है।
  • समावेशी नेतृत्व प्रथाओं को अपनाना: नेतृत्वकर्ताओं को एक समावेशी संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए जो व्यक्तिगत कल्याण और कार्य-जीवन की आवश्यकताओं का सम्मान करती हो और साथ-साथ सतत प्रथाओं को बढ़ावा देती है। 
    • उदाहरण के लिए: शीर्ष कंपनियाँ कार्य-जीवन संतुलन पर अर्द्धवार्षिक सर्वेक्षण करती हैं, जिसमें कर्मचारियों की संतुष्टि बनाए रखने के लिए नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

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भारत में स्वस्थ, नैतिक और उत्पादक कार्यबल सुनिश्चित करने के लिए कार्य-जीवन संतुलन के मुद्दों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। निगमों में कर्मचारियों को अत्यधिक कार्य-घंटों से बचाने और उनके व्यक्तिगत कल्याण का समर्थन करने की नैतिक जिम्मेदारी होती है। एक समावेशी और संतुलित कार्य संस्कृति को बढ़ावा देकर, कंपनियाँ न केवल कर्मचारी संतुष्टि को बढ़ा सकती हैं, बल्कि उनकी पेशेवर सत्यनिष्ठा और समग्र उत्पादकता में भी सकारात्मक योगदान दे सकती हैं ।

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