Q. भारतीय गाँवों में डिजिटल विभाजन ई-गवर्नेंस पहल की सफलता को कैसे प्रभावित करता है? ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल गवर्नेंस के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए रणनीति सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिये, कि भारतीय गाँवों में डिजिटल विभाजन, ई-गवर्नेंस पहल की सफलता को किस प्रकार प्रभावित करता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल शासन के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए रणनीति सुझाएँ।

 

उत्तर:

भारत के समावेशी विकास के लिए गाँवों में डिजिटल विभाजन को कम करना अति आवश्यक है, क्योंकि इसका असर 600,000 से अधिक गाँवों में रहने वाले 900 मिलियन ग्रामीण नागरिकों पर पड़ता है। प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाओं और बुनियादी ढाँचे तक पहुँच बढ़ाकर, ग्रामीण भारत आर्थिक विकास हासिल कर सकता है और वंचित क्षेत्रों का उत्थान कर सकता है, जिससे पूरे देश में सामाजिक-आर्थिक समानता सुनिश्चित हो सके।

भारतीय गाँवों में डिजिटल विभाजन, ई-गवर्नेंस पहल की सफलता को किस प्रकार से प्रभावित कर रहा है 

  • बुनियादी ढाँचे के विकास की उच्च लागत: दूरदराज के गाँवों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है। हालाँकि कम रिटर्न के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी इसमें कम हो जाती है, जिससे ऑनलाइन सर्विस डिलिव जैसी ई-गवर्नेंस पहलों की पहुँच सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतनेट परियोजना को उच्च लागत और चुनौतीपूर्ण भू-भाग के कारण कई राज्यों में देरी का सामना करना पड़ रहा है , जिससे ई-गवर्नेंस सेवाओं तक पहुँच धीमी हो रही है।
  • डिजिटल साक्षरता का अभाव: कई ग्रामीण नागरिक डिजिटल रूप से निरक्षर हैं, जिससे सरकारी ई-सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है और डिजिटल शासन में उनकी भागीदारी और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA) जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता के अंतर को ‌कम करने के लिए संघर्ष किया है, जिससे ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को अपनाने में कमी आई है।
  • असंगत इंटरनेट कनेक्टिविटी: बुनियादी ढाँचे के मौजूद होने पर भी, खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी अक्सर ऑनलाइन शासन सेवाओं की डिलीवरी को बाधित करती है, जिससे नागरिकों के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं का लाभ उठा पाना मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया पहल के तहत गाँवों में लो बैंडविड्थ, ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है जिससे आधार सत्यापन और डिजिटल भुगतान जैसी सेवाओं में बाधा आती है।
  • डिजिटल सेवाओं में विश्वास की कमी: ग्रामीण आबादी अक्सर डिजिटल प्लेटफॉर्म में विश्वास की कमी दिखाती है, वे ई-गवर्नेंस समाधानों की तुलना में पारंपरिक प्रणालियों को अधिक प्राथमिकता देते हैं, जो इन पहलों की पहुँच और प्रभावशीलता को सीमित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल क्लेम्स प्रक्रियाओं के संबंध में संदेह के कारण, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का लाभ प्रत्येक किसान को ‌नहीं  मिला है।
  • ई-गवर्नेंस सेवाओं का सीमित अनुकूलन: ई-गवर्नेंस सेवाओं को अक्सर शहरी मॉडल से जबरन जोड़ा जाता है, जिससे वे ग्रामीण आबादी की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए कम प्रासंगिक हो जाती हैं। यह विसंगति डिजिटल गवर्नेंस को अपनाने में बाधा डालती है। 
    • उदाहरण के लिए: PMJDY के तहत डिजिटल बैंकिंग जैसी बुनियादी सेवाएँ, ग्रामीण किसानों की मौसमी आय प्रतिरूप के अनुकूल नहीं हैं, जिससे योजना की प्रासंगिकता कम हो जाती है।

आगे की राह

  • डिजिटल साक्षरता बढ़ाना: ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए सशक्त बनाने हेतु व्यापक डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लागू किए जाने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) को सभी ग्रामीण परिवारों तक पहुँचाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए।
  • इंटरनेट लागत में कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट लागत में छूट देने के प्रयास किए जाने चाहिए ताकि डिजिटल सेवाओं को कम आय वाले परिवारों तक अधिक सुलभ बनाया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष डेटा प्लान शुरू करने से डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग बढ़ सकता है।
  • वित्तीय उत्पादों को अनुकूलित करना: ग्रामीण-विशिष्ट वित्तीय उत्पाद जैसे कि माइक्रोलोन और लचीली बचत योजनाएँ विकसित करने से डिजिटल वित्तीय सेवाओं को अपनाने में वृद्धि हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: ग्रामीण उपभोग पैटर्न के अनुरूप माइक्रो-क्रेडिट योजनाएँ, गाँवों के आर्थिक सशक्तीकरण में सुधार कर सकती हैं।
  • कृषि के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म को मजबूत करना: कृषि के लिए AI-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे कि फसल प्रबंधन और बीमा सेवाओं संबंधित प्लेटफॉर्म विकसित करने से उत्पादकता और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
    • उदाहरण के लिए: e-NAM प्लेटफॉर्म ने किसानों को डिजिटल रूप से बाजारों से जोड़ा है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है।
  • वित्तीय सुलभता के लिए क्षमता निर्माण: स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) जैसे स्थानीय संपर्क बिंदुओं के बीच क्षमता निर्माण से ग्रामीण नागरिकों को ऋण और बीमा जैसे वित्तीय उत्पादों का‌ लाभ उठाने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन का विस्तार करते हुए सूक्ष्म वित्त प्रदान करने के लिए SHGs की ‌सहायता  करता है।
  • AI को ह्यूमन इंटेलिजेंस के साथ जोड़ना: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को स्थानीय नेटवर्क के साथ
    एकीकृत करके, ग्रामीण आबादी को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए डिजाइन की गई व्यक्तिगत सेवाओं और समाधानों से लाभ मिल सकता है। 

    • उदाहरण के लिए: AI-आधारित फिनटेक प्लेटफॉर्म अब छोटे किसानों को फसल बीमा और डिजिटल वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने में मदद कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण आजीविका में वृद्धि हो रही है।
  • स्थानीय ट्रस्ट नेटवर्क का लाभ उठाना: स्थानीय खुदरा विक्रेता  और बिजनेस करेस्पांडेंट, ग्रामीण आबादी को माइक्रोक्रेडिट और बीमा जैसी सेवाएँ प्रदान करके डिजिटल पहुँच के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) बैंकिंग सेवाओं से वंचित ग्रामीण आबादी के लिए बैंकिंग सेवाओं की सुविधा प्रदान करने के लिए बिजनेस करेस्पांडेंट का उपयोग करती है, जिससे वित्तीय समावेशन सुनिश्चित होता है।

भारत को अपने गाँवों में डिजिटल विभाजन को कम करने के लिए किफायती इंटरनेट , वित्तीय समावेशन और अनुरूप डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है। स्थानीय नेटवर्क और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर, भारत समावेशी विकास को बढ़ावा दे सकता है और अपनी विशाल ग्रामीण आबादी के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास ला सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि डिजिटल क्रांति में कोई भी पीछे न छूट जाए।

 

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