प्रश्न की मुख्य माँग
- भारतीय अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- अनुसंधान प्रशासन को मजबूत करने के लिए संस्थागत सुधारों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
भारत का अनुसंधान परिवेश (research ecosystem) अब भी विलंब, जटिलताओं और अक्षमताओं से प्रभावित है। हाल के उदाहरणों में बायोकेयर (Biocare) कार्यक्रम के अंतर्गत अटकी हुई वित्तीय एवं संस्थागत सहायता यह स्पष्ट करती है कि भारत की प्रणाली में गंभीर संरचनात्मक भेद्यताएँ मौजूद हैं। इनमें प्रमुख हैं—सीमित अनुसंधान अवसंरचना, प्रशासनिक बाधाएँ तथा संसाधनों के अपर्याप्त और असमान वितरण। ये समस्याएँ भारत की उस आकांक्षा को कमजोर करती हैं, जिसके अंतर्गत वह विज्ञान तथा नवाचार के क्षेत्र में एक वैश्विक अग्रणी शक्ति बनने का लक्ष्य रखता है।
भारत के अनुसंधान परिवेश की चुनौतियाँ
- वित्तपोषण और वितरण में विलंब: अनुसंधान परियोजनाओं के लिए स्वीकृति-पत्र (sanction letters) तथा अनुदान राशि समय पर न मिलना गंभीर समस्या है। ऐसी प्रशासनिक बाधाएँ वैज्ञानिकों के कॅरियर और चल रहे प्रयोगों को पटरी से उतार देती हैं।
- उदाहरण के लिए: DBT के बायोकेयर (Biocare) कार्यक्रम के अंतर्गत चयनित 75 महिला वैज्ञानिकों को न तो स्वीकृति-पत्र मिले और न ही समय पर वेतन।
- अपर्याप्त अनुसंधान अवसंरचना: युवा वैज्ञानिकों को प्रयोगशालाओं की कमी, आधुनिक उपकरणों का अभाव और सहयोगी अनुसंधान सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है। इससे उनकी उत्पादकता और नवाचार की क्षमता सीमित रह जाती है।
- जटिल एवं अक्षम प्रशासनिक प्रक्रियाएँ: अनुदान आवेदन की जटिल शर्तें, अत्यधिक कागज़ी कार्यवाही (red tape) और लंबी अनुमोदन प्रक्रियाएँ वैज्ञानिकों का कीमती समय नष्ट करती हैं तथा नए विचारों में उनकी रुचि घटाती हैं।
- अस्थिर और असुरक्षित कॅरियर संभावनाएँ: भारत में अनेक शोधार्थी वर्षों तक संविदा (contractual) अथवा पोस्ट-डॉक्टोरल भूमिकाओं में ही फँसे रहते हैं। उनके पास न तो स्थायी नौकरी की सुरक्षा होती है और न ही कॅरियर की स्पष्ट दिशा।
- कमजोर वित्तीय और सामाजिक प्रोत्साहन: अनुसंधान क्षेत्र में वेतन और छात्रवृत्तियाँ (fellowships) अपेक्षाकृत कम हैं, जो जीवनयापन की वास्तविक लागत से मेल नहीं खातीं। इससे मेधावी स्नातक शोध के क्षेत्र में आने से हिचकते हैं।
- समानता और समावेशिता की चुनौतियाँ: महिला वैज्ञानिकों और वंचित/अप्रतिनिधित्व वाले समूहों को अभी भी संरचनात्मक बाधाओं और अनियमित वित्तीय पहुँच का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप वे अवसरों से वंचित रह जाते हैं और अनुसंधान में उनकी भागीदारी सीमित हो जाती है।
अनुसंधान प्रशासन को मजबूत करने के लिए संस्थागत सुधार
- समयबद्ध संवितरण तंत्र: यह आवश्यक है कि छात्रवृत्तियाँ (fellowships) और अनुसंधान अनुदान निश्चित समय सीमा के भीतर जारी किए जाएँ तथा विलंब होने पर स्पष्ट दंडात्मक प्रावधान हों। इससे शोधार्थियों और वैज्ञानिकों का कॅरियर बाधित नहीं होगा।
- उदाहरण के लिए: ट्रेजरी सिंगल अकाउंट (Treasury Single Account) व्यवस्था में आपातकालीन कोष को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि बायोकेयर (Biocare) जैसी स्थितियों में होने वाले विलंब को रोका जा सके।
- जवाबदेही ढाँचे को मजबूत करना: संबंधित मंत्रालयों और कार्यक्रम प्रबंधकों को प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए कि वे समय पर धनराशि और संसाधन उपलब्ध कराया जाना चाहिए तथा योजनाओं का सुचारु क्रियान्वयन सुनिश्चित कीजिए। इससे प्रशासनिक पारदर्शिता और विश्वास दोनों में वृद्धि होगी।
- प्रक्रियाओं का सरलीकरण: अनुदान आवेदन और अनुमोदन की जटिल प्रक्रियाओं को समाप्त कर सिंगल-विंडो डिजिटल प्लेटफॉर्म (Single-window digital platforms) के माध्यम से सुगम बनाया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: जटिल आवेदन-पत्रों की जगह सरल, पारदर्शी और दक्ष तंत्र योजना के प्रारूप में ही शामिल किया जाना चाहिए।
- कॅरियर सुरक्षा और स्थायित्व में सुधार: युवा वैज्ञानिकों के लिए टेन्योर-ट्रैक मार्ग (tenure-track pathways), स्थायी संविदा (stable contracts) और स्पष्ट पदोन्नति प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। इससे प्रतिभाशाली शोधकर्ताओं को दीर्घकालीन स्थिरता और कॅरियर निर्माण का भरोसा मिलेगा।
- विश्वसनीयता और साझेदारी का निर्माण: अनुसंधान योजनाओं और सहायता का समय पर तथा निरंतर वितरण भारत की अनुसंधान प्रणाली में विश्वसनीयता और स्थायित्व पैदा करेगा। इससे न केवल घरेलू शोधकर्ताओं का विश्वास बढ़ेगा बल्कि भारत को वैश्विक सहयोग और भागीदारी आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
भारत की वैज्ञानिक क्षमता को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए अनुसंधान के शासन-तंत्र, वित्तपोषण तथा संस्थागत सहयोग को मजबूत बनाना अत्यंत आवश्यक है। एक सुदृढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science & Technology) परिवेश न केवल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करेगा, बल्कि भारत की ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था (knowledge economy) को गति देगा और साथ ही देश की वैश्विक नेतृत्व क्षमता को नवाचार (innovation) के क्षेत्र में और अधिक सुदृढ़ करेगा।
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