प्रश्न की मुख्य माँग
- सड़क दुर्घटनाओं में उच्च मृत्यु दर के मुख्य कारण।
- प्रभावी उपाय आवश्यक हैं।
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उत्तर
भारत में प्रतिदिन लगभग 400 सड़क दुर्घटनाओं में मौतें होती हैं, जिससे यह दुनिया के सबसे असुरक्षित देशों में से एक बन गया है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, पैदल यात्री, दोपहिया सवार और बस यात्री अधिकांश मृतकों में शामिल हैं। यद्यपि मोटर वाहन अधिनियम और सड़क सुरक्षा अभियानों के तहत कई नीतियाँ लागू की गई हैं, फिर भी खराब अवसंरचना, कमजोर प्रवर्तन और अप्रभावी संस्थागत तंत्र भारत की सड़कों को असुरक्षित बनाए रखते हैं।
उच्च मृत्यु दर के प्रमुख कारण
- कमजोर सड़क अवसंरचना और डिजाइन: कई राजमार्गों पर डिवाइडर, रोशनी, संकेतक और क्रैश बैरियर नहीं होते, जिससे दुर्घटना का जोखिम बढ़ जाता है।
- उदाहरण: नवंबर 2025 में चेवेला दुर्घटना (NH-163) डिवाइडर और स्ट्रीटलाइट की अनुपस्थिति के कारण हुई, जिससे कई जानें गईं।
- अपर्याप्त चालक प्रशिक्षण और लाइसेंसिंग प्रणाली: ड्राइविंग टेस्ट केवल वाहन संचालन पर आधारित होते हैं, न कि सुरक्षित ड्राइविंग व्यवहार या यातायात ज्ञान पर।
- उदाहरण: वर्तमान RTO प्रणाली सुरक्षा शिक्षा पर ध्यान नहीं देती; पारदर्शी और कौशल-आधारित प्रमाणन हेतु लाइसेंस सेवा केंद्र स्थापित करने का सुझाव दिया गया है।
- सड़क मानकों का कमजोर प्रवर्तन: राज्य सरकारें अक्सर भारतीय सड़क कांग्रेस (IRC) के मानकों की अनदेखी करती हैं और मोटर वाहन अधिनियम के सुरक्षा प्रावधानों को सही रूप से लागू नहीं करतीं।
- वाहन और तकनीकी मानकों की उपेक्षा: अधिकांश वाहनों, विशेषकर वाणिज्यिक वाहनों में, टक्कर-चेतावनी प्रणाली (collision warning system) या ऊर्जा अवशोषक बंपर नहीं होते।
- ट्रॉमा केयर और आपातकालीन प्रतिक्रिया की कमी: दुर्घटना के बाद समय पर चिकित्सा सहायता न मिलने से मृत्यु दर बढ़ती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
मौतों को कम करने और सुरक्षा सुधारने के प्रभावी उपाय
- वैज्ञानिक सड़क डिजाइन और रखरखाव: सड़क ऑडिट को अनिवार्य करें और IRC मानकों के अनुसार डिवाइडर, संकेतक और प्रकाश व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- उदाहरण: NH-163 जैसे राजमार्गों पर सड़क मोड़ों का सुधार, बैरियर लगाना और गड्ढों की मरम्मत से दुर्घटनाएँ घट सकती हैं।
- लाइसेंसिंग और चालक प्रशिक्षण में सुधार: मानकीकृत सुरक्षा प्रशिक्षण मॉड्यूल और डिजिटल टेस्टिंग सेंटर स्थापित किए जाएँ ताकि मूल्यांकन पारदर्शी और कौशल-आधारित हो।
- उदाहरण: पासपोर्ट सेवा केंद्र की तर्ज पर लाइसेंस सेवा केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं, ताकि भ्रष्टाचार समाप्त हो और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित हो।
- वाहन सुरक्षा प्रौद्योगिकी अपनाना: सभी वाहनों में टक्कर चेतावनी सिस्टम, सेंसर, और ऊर्जा-शोषक बंपर अनिवार्य किए जाएँ।
- पैदल यात्री और गैर-मोटर चालित अवसंरचना सुदृढ़ करना: सुरक्षित फुटपाथ, क्रॉसिंग और लाइटिंग सिस्टम बनाए जाएँ ताकि संवेदनशील उपयोगकर्ताओं की रक्षा हो सके।
- उदाहरण: केवल बेहतर पैदल यात्री अवसंरचना से ही प्रतिवर्ष हजारों जानें बचाई जा सकती हैं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में।
- मजबूत ट्रॉमा और आपातकालीन नेटवर्क का विकास: 24×7 ट्रॉमा केयर केंद्रों की स्थापना की जाए और इन्हें राष्ट्रीय राजमार्गों से जोड़कर राष्ट्रीय दुर्घटना प्रतिक्रिया ग्रिड बनाया जाए।
निष्कर्ष
भारत की सड़क सुरक्षा समस्या जागरूकता की कमी से अधिक प्रणालीगत उपेक्षा का परिणाम है। एक समग्र रणनीति, जिसमें अवसंरचना सुधार, तकनीकी प्रवर्तन, संस्थागत सुधार और आपातकालीन तैयारी शामिल हों, आवश्यक है। सड़क सुरक्षा को प्रतिक्रियात्मक नीति से निवारक सार्वजनिक नीति में बदलना ही “जीरो फैटलिटी कॉरिडोर” और सभी के लिए सुरक्षित गतिशीलता के लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है।
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