प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि जलवायु अनुकूलन रणनीति किस प्रकार संस्थागत विखंडन और डेटा विषमता की समस्या से ग्रस्त है।
- एकीकृत CPR मूल्यांकन ढाँचे की अनुपस्थिति के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
भारत का जलवायु भविष्य बढ़ते तापमान, अनियमित मानसून और बढ़ती आपदाओं के संकट से घिरा हुआ है जो इसकी 80% से अधिक आबादी के लिए खतरा है (विश्व बैंक)। इस तात्कालिकता के बावजूद, संस्थागत विखंडन और एकीकृत जलवायु भौतिक जोखिम (CPR) ढाँचे की कमी प्रभावी अनुकूलन में बाधा डालती है। यह अंतर दीर्घकालिक प्रत्यास्थता और नीतिगत सुसंगतता दोनों को कमजोर करता है।
भारत की जलवायु अनुकूलन रणनीति संस्थागत विखंडन और डेटा विषमता से कैसे ग्रस्त है?
- अव्यवस्थित संस्थागत प्रयास: NDMA, IMD और राज्य निकाय जैसी कई एजेंसियाँ एकीकृत समन्वय के बिना अलग-अलग काम करती हैं, जिससे अतिव्यापन और अकुशलता उत्पन्न होती है।
- असंगत पद्धतियाँ: विभिन्न संस्थाएं CPR आकलन के लिए विभिन्न मॉडलों और समयसीमाओं का उपयोग करती हैं, जिससे नियोजन के लिए डेटा अतुलनीय और अविश्वसनीय हो जाता है।
- सीमित डेटा साझाकरण: केंद्रीकृत डेटा की कमी सभी क्षेत्रों में समय पर और मानकीकृत CPR जानकारी तक पहुँच में बाधा डालती है।
- स्थानीयकृत डेटा का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: राष्ट्रीय और वैश्विक मॉडल भारत की सूक्ष्म जलवायु विविधता को प्रतिबिंबित करने में विफल रहते हैं, जिससे हाइपर लोकल प्रत्यास्थता रणनीतियाँ कमजोर हो जाती हैं।
- संसाधन की कमी: कई स्थानीय और जिला-स्तरीय संस्थाओं में जलवायु जोखिम आकलन तैयार करने और उसे लागू करने के लिए वित्तीय और मानवीय क्षमता का अभाव है।
एकीकृत CPR मूल्यांकन ढाँचे की अनुपस्थिति, दीर्घकालिक जलवायु प्रत्यास्थता और नीति सुसंगतता को कैसे कमजोर करती है
- प्रतिक्रियात्मक नीतिगत उपाय: पूर्वानुमानित C.P.R. ढाँचे के बिना, भारत की प्रतिक्रिया जोखिम-आधारित न होकर घटना-आधारित होती है, जिससे रणनीतिक मध्यक्षेप में देरी होती है।
- उदाहरण: असम को बाढ़ के बाद प्रत्येक वर्ष बड़े पैमाने पर राहत मिलती है, फिर भी दीर्घकालिक राहत को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
- अकुशल संसाधन आबंटन: गलत संरेखित आंकड़ों के कारण धन का वितरण उचित रूप से नहीं हो पाता है, जिससे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को अपर्याप्त संरक्षण मिलता है।
- बुनियादी ढाँचे की योजना बनाने में चुनौतियाँ: भविष्य के जलवायु तनावों को ध्यान में रखे बिना प्रमुख सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे का विकास जारी है।
- उदाहरण: वर्ष 2021 में चेन्नई की बाढ़ से पता चला कि प्रमुख परिवहन और नागरिक संपत्तियां, CPR इनपुट के बिना निचले इलाकों में बनाई गई थीं।
- निवेशकों के विश्वास में कमी: मानकीकृत CPR प्रकटीकरणों का अभाव निवेशक जोखिम स्पष्टता को सीमित करता है, जिससे बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के लिए वित्तपोषण प्रभावित होता है।
- उदाहरण: RBI के वर्ष 2023 निर्देश में दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जलवायु जोखिम रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बाधा: खंडित CPR डेटा भारत की वैश्विक अनुकूलन लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाने और अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण तक पहुँच बनाने की क्षमता को बाधित करता है।
आगे की राह
- एक केंद्रीकृत डेटा भंडार विकसित करना: एक राष्ट्रीय CPR प्लेटफॉर्म को वैज्ञानिक, सामाजिक-आर्थिक और स्थानीय जलवायु डेटा को एक स्थान पर एकीकृत करना चाहिए।
- उदाहरण: भारत के वर्ष 2023 अनुकूलन संचार में आगामी राष्ट्रीय अनुकूलन योजना के आधार के रूप में जिला-स्तरीय CPR डेटा की रूपरेखा दी गई है।
- मूल्यांकन पद्धतियों का मानकीकरण करना: एजेंसियों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए एकरूपी CPR मेट्रिक्स और IPCC-संरेखित प्रोटोकॉल अपनाना चाहिए।
- उदाहरण: IPCC के संकट-अनावरण-भेद्यता मॉडल को भारत-विशिष्ट CPR जोखिम मानक बनाने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है (IPCC छठी मूल्यांकन रिपोर्ट)।
- अंतर-एजेंसी सहयोग को बढ़ाना: नीतियों, डेटा प्रवाह और जिम्मेदारियों को एकीकृत करने के लिए नीति आयोग के तहत एक CPR समन्वय कार्यबल बनाना चाहिये।
- उदाहरण: ब्रिटेन की जलवायु परिवर्तन समिति संस्थागत सुसंगति और दूरदर्शी जोखिम नियोजन के लिए एक खाका प्रस्तुत करती है।
- क्षमता निर्माण में निवेश करना: स्थानीय निकायों को जोखिमों की पहचान करने तथा विकास योजना में CPR डेटा लागू करने के लिए उपकरणों और प्रशिक्षण से सुसज्जित करना चाहिए।
- CPR को योजना और वित्त में एकीकृत करना: सभी प्रमुख परियोजनाओं के लिए जोखिम-जाँच को अनिवार्य बनाना चाहिये तथा भारत के ढाँचे को वैश्विक प्रकटीकरण मानदंडों के अनुरूप बनाना चाहिये।
भारत की जलवायु रणनीति को प्रतिक्रियात्मक राहत से सक्रिय प्रत्यास्थता में बदलने के लिए एक एकीकृत CPR ढाँचा आवश्यक है। नियोजन और शासन में जोखिम आकलन को एकीकृत करने से अनुकूलन मजबूत होगा, सुभेद्य समुदायों की रक्षा होगी और भारत वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित होगा।
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