प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ रणनीतिक अनिवार्यता क्यों हैं।
- सुदर्शन चक्र के विकास (अवसर और चुनौतियाँ) के आलोक में इस पर चर्चा कीजिए।
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उत्तर
भारत द्वारा 2035 तक लक्षित सुदर्शन चक्र परियोजना एक एकीकृत और बहु-स्तरीय क्षेपणास्त्र रक्षा प्रणाली के विकास की परिकल्पना करती है। इसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) सक्षम समन्वय के साथ अंतरिक्ष आधारित अवरोधक, लंबी दूरी की मिसाइलें और निर्देशित ऊर्जा हथियार सम्मिलित होंगे। आज के युद्ध में, जहाँ नागरिक और सैन्य लक्ष्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, ऐसी प्रणालियाँ तकनीकी उपलब्धियों से परे सामरिक आवश्यकताएँ हैं।
उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ सामरिक अनिवार्यताएँ क्यों हैं (केवल तकनीकी चमत्कार नहीं)
- राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता सुनिश्चित करना: आधुनिक युद्धक परिदृश्य में शत्रु के पास बैलिस्टिक मिसाइलें, ड्रोन स्वॉर्म्स, क्रूज मिसाइलें और हाइपरसोनिक हथियार जैसे उन्नत आक्रामक साधन उपलब्ध हैं। इनसे रक्षा करना केवल तकनीकी कौशल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा का प्रश्न है। मजबूत मिसाइल रक्षा प्रणाली किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा नीति का मूल आधार बन जाती है।
- रणनीतिक स्वायत्तता और कम निर्भरता: यदि किसी देश के पास स्वदेशी मिसाइल रक्षा प्रणाली हो, तो उसे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं या महाशक्तियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। इससे न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होती है, बल्कि संभावित प्रतिबंधों (Sanctions) और तकनीक तक पहुँच से इनकार जैसी स्थितियों से भी सुरक्षा मिलती है।
- भू-राजनीतिक लाभ एवं प्रतिष्ठा: विश्वसनीय मिसाइल रक्षा क्षमता किसी राष्ट्र की वैश्विक स्थिति और शक्ति संतुलन को मजबूत करती है। यह न केवल सुरक्षा साझेदारियों में उस राष्ट्र की सौदेबाजी की क्षमता को बढ़ाती है, बल्कि उसे एक जिम्मेदार और प्रभावशाली शक्ति के रूप में भी प्रस्तुत करती है।
- मनोवैज्ञानिक एवं राजनीतिक स्थिरता: एक मजबूत मिसाइल रक्षा कवच (Defence Shield) जनता में विश्वास जगाता है और भय की स्थिति को कम करता है। इससे न केवल आंतरिक राजनीतिक स्थिरता बढ़ती है, बल्कि शत्रु राष्ट्रों के लिए किसी प्रकार का दबाव या ब्लैकमेल करना भी कठिन हो जाता है।
वर्ष 2035 तक भारत का सुदर्शन चक्र – अवसर और चुनौतियाँ
अवसर
- विभिन्न स्तरों पर एकीकरण: सुदर्शन चक्र परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह विभिन्न परतों (Layers) में फैली हुई सुरक्षा क्षमताओं को एकीकृत करती है। इसमें अंतरिक्ष आधारित अवरोधक (Space-based Interceptors), लंबी दूरी की मिसाइलें और लेजर/निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapons) शामिल होंगे। यह व्यवस्था वर्तमान में मौजूद बिखरी हुई प्रणालियों जैसे आकाश मिसाइल, बराक-8, और S-400 की तैनाती से कहीं अधिक प्रभावी और समन्वित सुरक्षा प्रदान करेगी।
- AI-संचालित रियल-टाइम ग्रिड: इस प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) होगी, जो विभिन्न सेंसरों और हथियारों को एक राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ेगी। यह ग्रिड पूरे 32 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सक्रिय रहकर तुरंत खतरे का आकलन करने और त्वरित प्रतिक्रिया देने में सक्षम होगा। यह भारत को भविष्य के नेटवर्क-केंद्रित युद्ध (Network-Centric Warfare) के लिए तैयार करेगा।
- स्वदेशी क्षमता विकास: सुदर्शन चक्र पूरी तरह से भारत की स्वदेशी तकनीकी क्षमता को मजबूत करेगा। विदेशी रक्षा आपूर्ति पर निर्भरता कम होगी और आत्मनिर्भर भारत के रक्षा लक्ष्य को बढ़ावा मिलेगा। हालाँकि, इसके लिए DRDO और संबंधित एजेंसियों को अपने पुराने इतिहास जैसे विलंब और लागत वृद्धि (Cost Overruns) को दूर करना होगा। यदि यह सफल हुआ तो भारत वैश्विक स्तर पर उच्च-प्रौद्योगिकी रक्षा निर्यातक भी बन सकता है।
- परमाणु सिद्धांत की विश्वसनीयता: भारत का परमाणु सिद्धांत “विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध पर आधारित है। सुदर्शन चक्र जैसे व्यापक बहु-स्तरीय रक्षा कवच से यह सिद्धांत केवल कागज पर नहीं, बल्कि व्यवहार में भी प्रभावी हो सकेगा।
चुनौतियाँ
- त्रि-सेवा समन्वय की चुनौती: सुदर्शन चक्र जैसी जटिल रक्षा प्रणाली की सफलता केवल तकनीकी क्षमता पर निर्भर नहीं करेगी, बल्कि थलसेना, नौसेना और वायुसेना— तीनों सेनाओं के बीच प्रभावी समन्वय और संयुक्त संचालन पर भी आधारित होगी। भारत की सैन्य संरचना में अक्सर अंतर-सेवा प्रतिद्वंद्विता देखी जाती है, जो यदि दूर नहीं हुई तो इस परियोजना की दक्षता और एकीकृत संचालन क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
- वित्तीय एवं तकनीकी दबाव: ऐसी उन्नत प्रणाली के विकास की लागत दसियों अरब डॉलर तक पहुँच सकती है। यदि योजनाबद्ध वित्तीय अनुशासन न रखा जाए, तो इसमें लागत वृद्धि (Cost Overruns) और संसाधनों की बर्बादी का गंभीर जोखिम है।
- समय की कमी: वर्ष 2035 तक इस परियोजना को पूर्ण करना एक विशाल चुनौती है, क्योंकि मात्र 11 वर्ष शेष हैं। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो इजरायल की आयरन डोम प्रणाली को विकसित होने में लगभग एक दशक लगा और अमेरिका को अपनी उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में कई दशकों का प्रयोगात्मक समय लगा।
निष्कर्ष
सुदर्शन चक्र परियोजना की सफलता वित्तीय, तकनीकी और संस्थागत अवरोधों को दूर करने पर निर्भर करेगी। यदि भारत त्रि-सेवा समन्वय सुनिश्चित करे, स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को सशक्त बनाए और सार्वजनिक–निजी भागीदारी को बढ़ावा दे, तो यह एक विश्वसनीय मिसाइल रक्षा कवच निर्मित कर सकता है। इससे न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा सुदृढ़ होगी, बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति (Global Standing) भी और अधिक प्रतिष्ठित एवं प्रभावशाली बनेगी।
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