Q. भारत की उभरती आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीति, वैज्ञानिक नियोजन और प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से राहत-केंद्रित प्रतिक्रिया से लचीलापन निर्माण की ओर एक बदलाव को दर्शाती है। सार्वजनिक वित्त, संस्थागत समन्वय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भूमिका के संदर्भ में इस परिवर्तन पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण में परिवर्तन
  • सार्वजनिक वित्त की भूमिका
  • संस्थागत समन्वय 
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग

उत्तर

भारत की आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीति में एक मौलिक परिवर्तन देखा गया है, जो आपदा के बाद की प्रतिक्रिया से आगे बढ़कर तैयारी और लचीलापन निर्माण की दिशा में अग्रसर है। यह परिवर्तन बजटीय समर्थन, समन्वित संस्थागत ढाँचे और वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने पर केंद्रित है।

भारत के आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण में परिवर्तन

  • सक्रिय योजना और जोखिम मूल्यांकन: भारत ने आपदा के बाद राहत प्रदान करने की नीति से आगे बढ़कर जोखिम मानचित्रण, खतरा मूल्यांकन, और परिदृश्य-आधारित योजना को अपनाया है।
    • उदाहरण: भारत आपदा संसाधन नेटवर्क (India Disaster Resource Network – IDRN) का उपयोग रियल टाइम  में आपदा तैयारी और संसाधन मानचित्रण के लिए किया जाता है।
  • पूर्व चेतावनी प्रणालियों का एकीकरण: भारत अब मौसम विज्ञान और भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग बाढ़, चक्रवात और सूखे की पूर्व चेतावनी के लिए करता है।
    • उदाहरण: भारत मौसम विज्ञान विभाग की चक्रवात पूर्व चेतावनी प्रणाली और बिहार (वर्ष 2023) में बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली ने जनहानि को कम किया।
  • प्रकृति आधारित समाधान: आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन पर बल दिया जा रहा है।
    • उदाहरण: ओडिशा तट पर मैंग्रोव पुनर्स्थापन ने चक्रवातों से होने वाले नुकसान को घटाया।
  • प्रौद्योगिकी आधारित निगरानी:  भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.), ड्रोन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग निर्णय लेने और प्रतिक्रिया के लिए किया जा रहा है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने  वर्ष 2022 में असम की बाढ़ के दौरान मानवरहित विमानों द्वारा क्षति का आकलन किया।

A. सार्वजनिक वित्त की भूमिका

  • समर्पित आकस्मिक कोष:  राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष ने वर्ष 2024–25 में बाढ़ और चक्रवात प्रबंधन के लिए ₹1,500 करोड़ आवंटित किए।
  • आपदा जोखिम वित्तपोषण तंत्र:  बीमा योजनाएँ और लचीलापन बॉण्ड आर्थिक हानि को कम करने में सहायक हैं।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बाढ़ और सूखे से फसल हानि को कवर करती है।
  • अवसंरचना में लचीलापन हेतु निवेश: बाढ़ तटबंध, चक्रवात आश्रय स्थल और भूकंपरोधी विद्यालयों में निवेश किया जा रहा है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम न्यूनीकरण परियोजना के अंतर्गत ओडिशा में चक्रवातरोधी विद्यालयों का निर्माण किया गया।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रम: आपदा प्रबंधन कर्मियों के प्रशिक्षण हेतु बजटीय आवंटन किया गया है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2023 में 10,000 पंचायत स्तर के स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण दिया गया।

B. संस्थागत समन्वय

  • राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर समन्वय:  राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आपदा तैयारी, योजना और प्रतिक्रिया का समन्वय करते हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2021 की उत्तराखंड बाढ़ के दौरान राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने बहु-एजेंसी प्रतिक्रिया का नेतृत्व किया।
  • अंतर-मंत्रालयी सहयोग: स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण मंत्रालयों के बीच सहयोग से समग्र जोखिम न्यूनीकरण सुनिश्चित किया जाता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2020 की बिहार बाढ़ के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं और राहत वितरण के समन्वित प्रयास किए गए।
  • आपातकालीन परिचालन केंद्र: केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन के बीच वास्तविक समय में समन्वय सुनिश्चित किया जाता है।
    • उदाहरण: ओडिशा राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने चक्रवात यास (वर्ष 2021) के दौरान समय पर निकासी सुनिश्चित की।
  • अनुसंधान और ज्ञान साझा करना:  शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से आपदा जोखिम अनुसंधान किया जा रहा है।
    • उदाहरण: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान द्वारा खतरा मानचित्रण और आपदा उपरांत मूल्यांकन किया जा रहा है।

C. अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय और सेंदाई फ्रेमवर्क के अनुरूप नीति:
    भारत ने अपनी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को सेंदाई फ्रेमवर्क 2015–2030 के अनुरूप अद्यतन किया है।
  • द्विपक्षीय सहयोग: पड़ोसी देशों के साथ पूर्व चेतावनी प्रणालियों और प्रौद्योगिकी का साझा उपयोग किया जा रहा है।
    • उदाहरण: भारत–म्याँमार के मध्य बाढ़ पूर्वानुमान डेटा का विनिमय दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के अंतर्गत किया गया।
  • वैश्विक ज्ञान नेटवर्क में भागीदारी: अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं और सिमुलेशन अभ्यासों से सीख ली जा रही है।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जापान और संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय के सहयोग से सामुदायिक स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए।
  • वित्तीय और तकनीकी सहायता:  विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थान क्षमता निर्माण और लचीलापन अवसंरचना के लिए सहायता प्रदान कर रहे हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम न्यूनीकरण परियोजना के लिए ओडिशा और आंध्र प्रदेश में विश्व बैंक द्वारा वित्तीय सहयोग प्रदान किया गया।

निष्कर्ष

भारत अब वैज्ञानिक योजना, मजबूत वित्तीय तंत्र, समन्वित संस्थागत ढाँचे और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अपनी आपदा तैयारी को सुदृढ़ बना रहा है।  क्षमता निर्माण, पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ तथा पारिस्थितिकी तंत्र आधारित हस्तक्षेप पर निरंतर ध्यान भारत को दीर्घकालिक लचीलापन और सतत् विकास की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक होगा।

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