Q. वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2025 में भारत का निम्न स्थान महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को सीमित करने वाली निरंतर बाधाओं को उजागर करता है। इस कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारणों की पहचान कीजिए और भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने के लिए केंद्रित उपाय सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • अर्थव्यवस्था में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारणों पर चर्चा कीजिए।
  • महिलाओं की आर्थिक भूमिका बढ़ाने के लिए केंद्रित उपाय सुझाइए।

उत्तर

वैश्विक आर्थिक और डिजिटल महाशक्ति के रूप में भारत के उदय के बावजूद, विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट, 2025 में 148 देशों में से 131वें स्थान पर रहने से लैंगिक समानता में बाधा डालने वाली गहरी संरचनात्मक और सामाजिक बाधाओं का पता चलता है। आर्थिक भागीदारी और स्वास्थ्य परिणामों के मामले में देश का प्रदर्शन विशेष रूप से खराब है, जो महिलाओं को कार्यबल और राष्ट्रीय विकास में पूरी तरह से शामिल करने के अवसरों को गँवाने का संकेत देता है।

अर्थव्यवस्था में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारण

  • महिलाओं में खराब स्वास्थ्य और पोषण संबंधी परिणाम: व्यापक एनीमिया (15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में 57%, NFHS-5) उत्पादकता, सीखने की क्षमता और मातृ स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। 
    • उदाहरण: भारतीय महिलाओं की स्वस्थ जीवन प्रत्याशा अब पुरुषों की तुलना में कम है।
  • विषम लिंग अनुपात और पुत्र को प्राथमिकता: जन्म के समय भारत का लिंग अनुपात विश्व स्तर पर सबसे अधिक विषम है, जो प्रणालीगत लिंग पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
  • श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी और वेतन अंतर: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में एक-तिहाई से भी कम कमाती हैं और अनौपचारिक, निर्वाह-योग्य कार्यों में ही केंद्रित रहती हैं।
    • उदाहरण: आर्थिक भागीदारी और अपॉर्चुनिटी सब इंडेक्स (WEF 2025) में भारत 143वें स्थान पर है।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ: भारतीय महिलाएँ अवैतनिक घरेलू कार्यों में 289 मिनट तथा अवैतनिक देखभाल में 137 मिनट खर्च करती हैं।
  • निर्णय लेने वाले स्थानों में सीमित प्रतिनिधित्व: कॉरपोरेट बोर्ड और बजट समितियों जैसे प्रमुख आर्थिक तथा नीति-निर्माण पदों पर महिलाएँ अनुपस्थित हैं।
  • आर्थिक मानकों और बजट में अदृश्यता: अवैतनिक देखभाल कार्य और अनौपचारिक योगदान GDP और नियोजन ढाँचों में नहीं गिने जाते। 
    • उदाहरण: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में एक-तिहाई से भी कम कमाती हैं और श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम बनी हुई है।
  • वृद्ध जनसंख्या से जनसांख्यिकीय दबाव: बढ़ती हुई वृद्ध जनसंख्या (वर्ष 2050 तक 20%) महिलाओं पर देखभाल का बोझ बढ़ाएगी।

महिलाओं की आर्थिक भूमिका बढ़ाने के लिए केंद्रित उपाय

  • महिला स्वास्थ्य और प्राथमिक देखभाल में निवेश करना: सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं में महिलाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए, एनीमिया का समाधान करना चाहिए और प्रसव संबंधी देखभाल तक पहुँच में सुधार करना चाहिए।
    • उदाहरण: महिलाओं की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट आवंटन में वृद्धि उत्पादकता बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य के लिए औपचारिक मान्यता और सहायता: बाल देखभाल और वृद्ध देखभाल सुविधाएँ स्थापित करनी चाहिए और देखभाल अर्थव्यवस्था को योजना में एकीकृत करना चाहिए।
    • उदाहरण: उरुग्वे और दक्षिण कोरिया ने विकास नीति में देखभाल का सफल एकीकरण दर्शाया है।
  • लिंग-उत्तरदायी बजट और डेटा संग्रहण को सुदृढ़ बनाना: टाइमयूज सर्वेक्षणों को संस्थागत बनाना और सार्वजनिक व्यय के लिंग-आधारित प्रभावों पर नजर रखना चाहिए।
    • उदाहरण: महिलाओं के अवैतनिक श्रम का व्यवस्थित लेखा-जोखा लक्षित निवेशों का मार्गदर्शन कर सकता है।
  • औपचारिक रोजगार तक महिलाओं की पहुँच का विस्तार करना: कौशल विकास, लचीली कार्य व्यवस्था प्रदान करना और कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • श्रम और सामाजिक संरक्षण सुधारों को लागू करना: मातृत्व लाभ, पेंशन और अवकाश नीतियाँ तैयार करनी चाहिए, जो कामकाजी महिलाओं तथा देखभाल करने वाली भूमिकाओं का समर्थन करती हों। 
    • उदाहरण: श्रम, स्वास्थ्य और कल्याण नीतियों को एकीकृत करने से कार्यबल से बाहर होने वालों की संख्या में कमी आएगी।
  • महिलाओं को आर्थिक चालक के रूप में देखें, लाभार्थी के रूप में नहीं: महिलाओं को अर्थव्यवस्था के सह-निर्माता के रूप में देखने के लिए आख्यानों और नीतियों में बदलाव करना चाहिए।
    • उदाहरण: मैकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने वर्ष 2015 में अनुमान लगाया था कि लैंगिक अंतर को कम करने से वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है।

निष्कर्ष

भारत की निम्न लैंगिक समानता रैंकिंग केवल एक सामाजिक चिंता ही नहीं, बल्कि एक विकासात्मक और आर्थिक जोखिम भी है। महिलाओं का आर्थिक समावेशन विकास की अपार संभावनाओं को खोल सकता है, सकल घरेलू उत्पाद में खरबों डॉलर जोड़ सकता है और भविष्य की जनसांख्यिकीय चुनौतियों को स्थिर कर सकता है। प्रतीकात्मक नारों से आगे बढ़ने के लिए, भारत को स्वास्थ्य निवेश, स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे, लैंगिक-संवेदनशील बजट और परिवर्तनकारी श्रम सुधारों के माध्यम से लैंगिक समानता को राष्ट्रीय नियोजन का केंद्र बिंदु बनाना होगा।

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