Q. हाल ही में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर हुए संघर्ष दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सुरक्षा की संवेदनशीलता को उजागर करते हैं। चर्चा कीजिए कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) किस प्रकार द्विपक्षीय संबंधों को अस्थिर कर रहा है और आतंकवाद-रोधी सहयोग को जटिल बना रहा है। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • पाक-अफगान सीमा पर हाल की झड़पें किस प्रकार द्विपक्षीय संबंधों को अस्थिर कर रही हैं।
  • किस प्रकार वे आतंकवाद-रोधी सहयोग को जटिल बना रही हैं।

उत्तर

पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा अब भी अस्थिरता का केंद्र बनी हुई है, जिसे छिद्रपूर्ण सीमाएँ, उग्रवादी नेटवर्क और वैचारिक संबंध आकार देते हैं। वर्ष 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) एक प्रमुख अस्थिरकारी तत्व के रूप में उभरी है। इसकी सीमापार उपस्थिति ने संघर्षों को पुनर्जीवित किया है तथा क्षेत्रीय विश्वास और आतंकवाद-निरोधी सहयोग को कमजोर किया है।

TTP द्वारा पाकिस्तान–अफगानिस्तान संबंधों में अस्थिरता 

  • वैचारिक और संगठनात्मक संबंध: TTP की वैचारिक निकटता अफगान तालिबान के साथ होने के कारण काबुल का झुकाव इस संगठन के विरुद्ध कार्रवाई से बचने की ओर रहता है, जिससे इस्लामाबाद के साथ अविश्वास और गहराता है।
  • सीमापार उग्रवाद: TTP अफगान क्षेत्र को सुरक्षित ठिकाने के रूप में उपयोग कर पाकिस्तान में हमले करती है, जिसके जवाब में पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई सीमा तनाव को बढ़ा देती है।
    • उदाहरण: अक्टूबर 2025 में पाकिस्तान ने काबुल, खोस्त और जलालाबाद में TTP ठिकानों पर हवाई हमले किए।
  • राजनीतिक और कूटनीतिक विश्वास का टूटना: वर्ष 2021 के बाद पाकिस्तान को तालिबान से सहयोग की उम्मीद थी, परंतु काबुल की अवज्ञा और डूरंड  रेखा पर टकराव ने कूटनीतिक संबंधों को शत्रुतापूर्ण बना दिया।
  • संप्रभुता और स्वायत्तता का प्रश्न:  तालिबान, पाकिस्तान के दबाव में आकर TTP के खिलाफ कदम उठाने से बचता है ताकि वह स्वयं को स्वतंत्र और संप्रभु शासन के रूप में प्रस्तुत कर सके। इससे द्विपक्षीय तनाव और गहराता है।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता का प्रसार: डूरंड रेखा पर जारी झड़पें  व्यापार, सीमा सुरक्षा और नागरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रही हैं, जिससे दोनों देशों में अस्थिरता बढ़ रही है।

TTP द्वारा आतंकवाद-निरोधी सहयोग में जटिलताएँ

  • भिन्न खतरे की धारणा: पाकिस्तान TTP को अपने आंतरिक अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा मानता है, जबकि तालिबान इसे वैचारिक सहयोगी के रूप में देखता है, न कि आतंकवादी संगठन के रूप में।
  • खुफिया और सुरक्षा समन्वय का क्षरण: आपसी अविश्वास के कारण सूचना-साझाकरण और संयुक्त अभियानों में कमी आई है, जिससे क्षेत्रीय आतंकवाद-निरोधी तंत्र कमजोर हुआ है।
  • नागरिक हताहतों से वैधता पर प्रभाव: पाकिस्तानी हवाई हमलों में नागरिकों की मृत्यु से विरोधी भावनाएँ बढ़ती हैं, जिससे आतंकवाद-निरोधी सहयोग और कठिन हो जाता है।
  • बाहरी कूटनीतिक जटिलताएँ: जारी तनावों ने संयुक्त राष्ट्र (UN) या दोहा पहल जैसी अंतरराष्ट्रीय शांति प्रयासों को प्रभावित किया है।
    • उदाहरण: तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान बढ़ते TTP तनावों ने कूटनीतिक प्रभावों को उजागर किया।

निष्कर्ष

क्षेत्रीय स्थिरता के लिए समन्वित आतंकवाद-निरोधी प्रयास, संस्थागत सीमा नियंत्रण और नियमित सुरक्षा संवाद आवश्यक हैं। दोनों देशों को रणनीति को विचारधारा से अलग कर विश्वास पुनर्निर्माण की दिशा में काम करना होगा। संयुक्त राष्ट्र (UN) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय मंच इस दिशा में मध्यस्थता और दीर्घकालिक स्थिरता को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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