प्रश्न की मुख्य माँग
- वैधानिक ढाँचों और लक्षित संरक्षण हस्तक्षेपों की भूमिका।
- प्रजातियों के संरक्षण के लिए उभरते खतरे।
- प्रजातियों की सुरक्षा के उपाय।
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उत्तर
भूमिका
प्रजातियों का संरक्षण पारिस्थितिकी संतुलन और जैव विविधता की सहनशीलता के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व में लवणीय जल के मगरमच्छों की पुनर्बहाली यह दर्शाती है कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जैसे वैधानिक ढाँचे, आवास प्रबंधन और प्रजाति-विशिष्ट कार्यक्रमों जैसे लक्षित हस्तक्षेपों के साथ मिलकर कितने प्रभावी हो सकते हैं।
वैधानिक ढाँचे और लक्षित संरक्षण हस्तक्षेपों की भूमिका
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के माध्यम से कानूनी सुरक्षा: मगरमच्छों सहित प्रजातियों को व्यापक संरक्षण प्रदान करता है, जिससे शिकार और व्यापार पर प्रतिबंध लगता है।
- लक्षित संरक्षण परियोजनाएँ: प्रजातियों की पुनर्बहाली हेतु कैप्टिव ब्रीडिंग, आवास पुनर्स्थापन और रिहाई कार्यक्रम जैसी स्थल-विशिष्ट पहलों को लागू किया जाता है।
- उदाहरण: पश्चिम बंगाल की भागबतपुर मगरमच्छ परियोजना मगरमच्छों के प्रजनन और रिहाई पर केंद्रित रही।
- निगरानी और अनुसंधान: व्यवस्थित जनगणना और पारिस्थितिकी अध्ययन नीतिगत निर्णयों का मार्गदर्शन करते हैं तथा जनसंख्या प्रवृत्तियों और आयु संरचनाओं की पहचान में मदद करते हैं।
- उदाहरण: हालिया सर्वेक्षणों में मगरमच्छों के जीवित रहने की दर और जनसांख्यिकीय विविधता में सुधार पाया गया है।
- आकर्षक प्रजातियों से परे एकीकृत दृष्टिकोण: संरक्षण का ध्यान केवल करिश्माई प्रजातियों (जैसे- बाघ और हाथी) तक सीमित न रहकर अन्य प्रजातियों पर भी केंद्रित होता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र स्तर पर लाभ मिलता है।
- उदाहरण: मगरमच्छों की रक्षा से सुंदरबन में मैंग्रोव स्वास्थ्य और खाद्य शृंखलाओं का संरक्षण भी होता है।
- समुदायिक सहभागिता और जागरूकता: दीर्घकालिक संरक्षण हेतु सार्वजनिक संवाद रणनीतियों और स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है।
प्रजातियों के संरक्षण के समक्ष उभरते खतरे
- जलवायु परिवर्तन और आवास परिवर्तन: समुद्र स्तर में वृद्धि, लवणता, चक्रवात और अपरदन प्रजनन व आहार स्थलों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं।
- खंडन और शहरी दबाव: मानव बस्तियाँ, जलीय कृषि और अवसंरचना परियोजनाएँ सतत् आवास और गलियारों को संकुचित करती हैं।
- प्रदूषण और संसाधनों का दोहन: जलमार्गों का प्रदूषण और अत्यधिक मछली पकड़ना शिकार की उपलब्धता और जलीय पारिस्थितिकी संतुलन को बिगाड़ता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ और रोग: गैर-देशज प्रजातियाँ और रोगजनक पारिस्थितिकी संतुलन को बदल सकते हैं और स्थानीय जीवों की जीवित रहने की क्षमता को घटा सकते हैं।
- प्रतिक्रियात्मक बनाम सक्रिय नीतियाँ: वर्तमान ढाँचे प्रायः खतरों के उत्पन्न होने के बाद ही प्रतिक्रिया देते हैं; जलवायु शरण-स्थलों का मानचित्रण और सहायक प्रजनन जैसी पूर्वानुमानित पहलें सीमित हैं।
प्रजातियों की रक्षा हेतु उपाय
- सक्रिय और पर्याप्त वित्त पोषित संरक्षण योजनाएँ: आवास पुनर्स्थापन, कैप्टिव ब्रीडिंग और रिहाई कार्यक्रमों सहित पूर्वानुमानित कार्य योजनाएँ तैयार करना और पर्याप्त वित्तीय एवं मानव संसाधन सुनिश्चित करना।
- जलवायु-सहिष्णु रणनीतियाँ: जलवायु शरण-स्थलों की पहचान करना, समुद्र स्तर वृद्धि और लवणता के प्रभावों को शामिल करना तथा सहायक प्रव्रजन या प्रजनन को सक्षम बनाना।
- कानूनी प्रवर्तन को मजबूत करना: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का कठोर क्रियान्वयन सुनिश्चित करना और शिकार, अवैध व्यापार एवं आवास अतिक्रमण पर निगरानी बढ़ाना।
- समुदाय भागीदारी और जागरूकता: स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना, वैकल्पिक आजीविकाएँ प्रदान करना और मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने हेतु जागरूकता बढ़ाना।
- पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित और एकीकृत दृष्टिकोण: केवल एक प्रजाति पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (जैसे- मैंग्रोव और मीठे पानी के आवास) की रक्षा करना, जिससे स्थायी जैव विविधता प्रबंधन सुनिश्चित हो।
निष्कर्ष
मगरमच्छों की पुनर्बहाली यह दर्शाती है कि केंद्रित नीतिगत समर्थन और वैज्ञानिक हस्तक्षेप वन्यजीव आबादी को पुनर्जीवित कर सकते हैं। दीर्घकालिक संरक्षण के लिए जलवायु परिवर्तन, आवास क्षरण और प्रदूषण जैसी चुनौतियों से निपटना आवश्यक है, जिसे सक्रिय पारिस्थितिकी प्रबंधन और समुदाय भागीदारी के माध्यम से ही संभव बनाया जा सकता है।
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