प्रश्न की मुख्य माँग
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हाल ही में भारतीय आयात पर 25% टैरिफ वृद्धि के आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में निहितार्थ।
- भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता की रक्षा के लिए व्यापक नीतिगत प्रतिक्रिया।
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उत्तर
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 25% टैरिफ वृद्धि ने दोनों देशों के मध्य व्यापार तनाव को बढ़ा दिया है, जिससे भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों, जैसे वस्त्र और दवा, जो अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर हैं, के लिए खतरा उत्पन्न हुआ है। भारत के कुल निर्यात में अमेरिका को निर्यात की हिस्सेदारी लगभग 20% (87.4 बिलियन डॉलर) है, इस कदम से राजस्व हानि, रोजगार पर प्रभाव, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, तथा व्यापक भू-राजनीतिक तनावों के बीच द्विपक्षीय सहयोग में तनाव का खतरा है।
अमेरिका द्वारा टैरिफ वृद्धि के भारतीय आयात पर प्रभाव
आर्थिक प्रभाव
- व्यापार असंतुलन और निर्यात निर्भरता: भारत, अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे वह टैरिफ वृद्धि के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- उदाहरण: जहाँ भारत अमेरिकी आयात का केवल 3% हिस्सा ही आपूर्ति करता है वहीं भारत के कुल निर्यात का लगभग 20% अमेरिका को भेजा जाता है, जो बाजार पर उसकी महत्त्वपूर्ण निर्भरता को दर्शाता है।
- तुलनात्मक लाभ का नुकसान: श्रम-प्रधान क्षेत्रों को इस टैरिफ के कारण मार्जिन में कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ सकता है।
- उदाहरण के लिए, कम लाभ मार्जिन वाले वस्त्र और रत्न एवं आभूषण उद्योगों के निर्यात में भारी गिरावट आ सकती है।
- आर्थिक मंदी: यदि अमेरिका के आधे ऑर्डर रद्द कर दिए जाते हैं तो 25% टैरिफ से भारतीय निर्यात में 40 बिलियन डॉलर की कमी आ सकती है, जिससे वर्ष 2025-26 में भारत की GDP में 1% की कमी आ सकती है।
- रणनीतिक क्षेत्रों के लिए खतरा: टैरिफ से अमेरिका को भारत के बढ़ते स्मार्टफोन निर्यात पर खतरा मंडरा रहा है, जिससे PLI योजना के लाभ प्रभावित हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत में Apple के उत्पादन में अत्यधिक कमी हो सकती है, जिससे अमेरिका को सबसे बड़े स्मार्टफोन निर्यात करने वाले राष्ट्र के रूप में भारत की स्थिति खराब हो सकती है।
- मुद्रा और मुद्रास्फीति का प्रभाव: टैरिफ की घोषणा के बाद रुपये में गिरावट से आयात लागत बढ़ जाएगी, जिससे घरेलू मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए: कमजोर रुपये से कच्चे माल की लागत बढ़ जाती है, जिससे पूर्व से ही टैरिफ की मार झेल रहे निर्यातकों पर दबाव और बढ़ जाता है।
रणनीतिक प्रभाव
- व्यापार विचलन का जोखिम: अमेरिकी आयातक कम टैरिफ वाले वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे भारतीय निर्यातकों का बाजार संकुचित हो सकता है। उदाहरण के लिए: वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देश वस्त्र और समुद्री खाद्य क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं।
- भू-राजनीतिक तनाव: रूस के साथ भारत के ऊर्जा और सैन्य संबंधों से जुड़े टैरिफ अमेरिका के साथ कूटनीति को जटिल बनाते हैं।
- द्विपक्षीय व्यापार वार्ता पर दबाव: टैरिफ वृद्धि भारत की टैरिफ बाधाओं के प्रति अमेरिका के असंतोष का संकेत है, जिससे वार्ता जटिल हो सकती है।
- आपूर्ति शृंखला अनिश्चितता: टैरिफ आपूर्ति शृंखला को बाधित करता है, जिससे दीर्घकालिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विनिर्माण विकास को खतरा होता है।
अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए एक संतुलित नीति मिश्रण की आवश्यकता है, जिसमें अल्पकालिक राहत को दीर्घकालिक संरचनात्मक आर्थिक प्रत्यास्थता के साथ संतुलित किया जाए।
भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता की रक्षा के लिए व्यापक नीतिगत प्रतिक्रिया
- बाजार विविधीकरण: यूरोपीय संघ, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और ASEAN बाजारों के साथ व्यापारिक संबंधों का विस्तार करके अमेरिका पर निर्भरता कम करनी चाहिए। उदाहरण: भारत-यूरोपीय संघ व्यापार वार्ता और RCEP के विकल्प, इस दिशा में अवसर प्राप्त करने का प्रयास हैं।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: प्रौद्योगिकी अंगीकरण और कौशल विकास के माध्यम से उत्पादकता बढ़ानी चाहिए और लागत कम करनी चाहिए। उदाहरण के लिए: मेक इन इंडिया और PLI प्रोत्साहन जैसी सरकारी योजनाएँ प्रतिस्पर्द्धी विनिर्माण को बढ़ावा देती हैं।
- प्रभावित क्षेत्रों के लिए लक्षित सहायता: सुभेद्य उद्योगों को सब्सिडी, कर राहत और ऋण सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए। उदाहरण: टैरिफ से प्रभावित वस्त्र और दवा निर्यातकों के लिए त्वरित कर छूट और कम ब्याज दर वाले ऋण की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
- निर्यात नवाचार को बढ़ावा देना: टैरिफ प्रभावों को कम करने के लिए अनुसंधान एवं विकास, उत्पाद विविधीकरण और गुणवत्ता सुधार को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- मुद्रा प्रबंधन को सुदृढ़ करना: रुपये को स्थिर करने के लिए RBI के मध्यक्षेप और विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया जाना चाहिए। उदाहरण: पूर्व में रुपये की अस्थिरता के दौरान आयात लागत के दबाव को कम करने के लिए RBI के सक्रिय कदम अत्यधिक प्रभावशाली सिद्ध हुए थे।
निष्कर्ष
टैरिफ में यह बढोतरी भारत के लिए विकसित बाजारों पर अपनी अत्यधिक निर्भरता कम करने की एक समयोचित चेतावनी है। इससे लॉजिस्टिक्स, कारोबारी माहौल और प्रौद्योगिकी अंगीकरण में संरचनात्मक सुधारों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे तेजी से बदलते व्यापार परिदृश्य में भारत की व्यापक आर्थिक प्रत्यास्थता और वैश्विक निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता दोनों में वृद्धि होगी।
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