प्रश्न की मुख्य माँग
- ‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन के निहितार्थों पर प्रकाश डालिए।
- परीक्षण कीजिए कि इलेक्ट्रॉनिक्स में इसको लागू करना, भारत की चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन संरक्षण के लक्ष्यों में किस प्रकार योगदान दे सकता है।
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उत्तर
भारत में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया राइट-टू-रिपेयर (R-2-R) अभियान उपभोक्ताओं को अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करने, संधारणीयता को बढ़ावा देने और ई-अपशिष्ट को कम करने का अधिकार देता है। वर्ष 2022 में लॉन्च किया गया यह अभियान मिशन LiFE के साथ संरेखित है, जो जिम्मेदार उपभोग और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करता है।
राइट–टू–रिपेयर आंदोलन के निहितार्थ
- उपभोक्ता सशक्तीकरण: R2R उपभोक्ताओं को मैनुअल और स्पेयर पार्ट्स को रिपेयर कराने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे निर्माताओं पर निर्भरता कम होती है।
- उदाहरण: R-2-R पोर्टल स्मार्टफोन और उपकरणों जैसे उत्पादों के लिए मरम्मत की जानकारी प्रदान करता है, जिससे सेल्फ-रिपेयर या थर्ड-पार्टी की सेवाएँ संभव होती हैं।
- पर्यावरणीय संधारणीयता: उत्पाद को अधिक समय तक प्रयोग किए जाने योग्य बनाने से R-2-R इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट कम होगा और संसाधनों का संरक्षण भी संभव होगा।
- उदाहरण: भारत ने वित्त वर्ष 22 में 1.6 मिलियन टन से अधिक ई-अपशिष्ट उत्पन्न किया; R-2-R का लक्ष्य प्रतिस्थापन के बजाय मरम्मत को बढ़ावा देकर इसे कम करना है।
- आर्थिक लाभ: रिपेयरिंग को बढ़ावा देने से स्थानीय व्यवसायों को मदद मिलती है और रिपेयरिंग क्षेत्र में रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
- उदाहरण: दिल्ली के नेहरू प्लेस जैसे रिपेयरिंग बाजार इलेक्ट्रॉनिक्स को नया रूप देकर, किफायती विकल्प और रोजगार प्रदान करते हुए विकसित होते हैं।
- नियोजित अप्रचलन का मुकाबला: R-2-R सीमित जीवनकाल वाले उत्पादों को डिजाइन करने की निर्माताओं की प्रथाओं को चुनौती देता है।
- कानूनी और नीतिगत ढाँचा: R-2-R उपभोक्ता अधिकारों और बौद्धिक संपदा पर चर्चा को बढ़ावा देता है तथा पहुँच एवं नवाचार के बीच संतुलन स्थापित करता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स में मरम्मत योग्यता को लागू करना: चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन संरक्षण में योगदान
चक्रीय अर्थव्यवस्था
- उत्पाद का जीवनकाल बढ़ाना: उपकरणों की रिपेयर करने से अपशिष्ट निपटान में देरी होती है, जिससे उत्पाद लंबे समय तक उपयोग में रहता है।
- उदाहरण: बचे हुए भागों से बनाए गए नवीनीकृत लैपटॉप नए डिवाइस के उत्पादन की आवश्यकता को कम कर देते हैं।
- संसाधन दक्षता: रिपेयर से नए उत्पादों के लिए आवश्यक कच्चे माल की निकासी कम हो जाती है।
- उदाहरण: बैटरी और स्क्रीन जैसे घटकों का पुनः उपयोग करने से धातुओं का संरक्षण होता है और खनन प्रभाव कम होता है।
- अपशिष्ट में कमी: इलेक्ट्रॉनिक्स की मरम्मत से उत्पन्न ई-अपशिष्ट की मात्रा में कमी आती है।
- स्थानीय आर्थिक विकास: रिपेयरिंग सेवाएँ स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करती हैं और लघु व्यवसायों को सहायता प्रदान करती हैं।
- डिजाइन में नवाचार: रिपेयर योग्य उत्पादों की माँग, निर्माताओं को टिकाऊपन और रिपेयर में आसानी वाले उत्पाद डिजाइन करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
- उदाहरण: कंपनियाँ मॉड्यूलर डिजाइन अपना सकती हैं, जिससे मरम्मत और अपग्रेड करना आसान हो जाता है।
संसाधन संरक्षण
- कच्चे माल की माँग में कमी: उपकरणों की रिपेयरिंग करने से नई सामग्रियों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- उदाहरण: स्मार्टफोन की मरम्मत करने से नए उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले दुर्लभ मृदा तत्त्वों की माँग कम हो जाती है ।
- ऊर्जा बचत: नए इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण में काफी ऊर्जा की खपत होती है; रिपेयरिंग में कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- निम्न कार्बन उत्सर्जन: उपकरणों को बदलने के बजाय उनकी रिपेयरिंग करने से विनिर्माण से संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है।
- जैव विविधता का संरक्षण: कच्चे माल के लिए खनन में कमी से आवास ह्वास में कमी आती है।
- संधारणीय उपभोग पैटर्न: R-2-R, उत्पादों के सोचे-समझे उपयोग को प्रोत्साहित करता है, जिससे संधारणीयता की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: नई खरीदारी के बजाय रिपेयरिंग का विकल्प चुनने वाले उपभोक्ता पर्यावरण संरक्षण लक्ष्यों में योगदान देते हैं।
भारत का राइट–टू–रिपेयर आंदोलन संधारणीय उपभोग को बढ़ावा देने, ई-अपशिष्ट को कम करने और संसाधनों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण है। उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने और रिपेयर–फ्रेंडली प्रथाओं को प्रोत्साहित करके यह देश के, एक चक्रीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण की ओर संक्रमण करने में मदद करेगा।
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