Q. भूजल पर भारत की निर्भरता प्रदूषण को मानव पूँजी और खाद्य सुरक्षा दोनों के लिए खतरा बनाती है। इस संकट के पीछे प्रणालीगत शासन विफलताओं का विश्लेषण कीजिए और लचीली, प्रदूषण-मुक्त जलभृत प्रणालियों के निर्माण के लिए दीर्घकालिक संरचनात्मक उपाय सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भूजल प्रदूषण के पीछे प्रणालीगत शासन की विफलताएँ।
  • लचीले, प्रदूषण-मुक्त जलभृतों के लिए दीर्घकालिक संरचनात्मक उपाय।

उत्तर

भूजल पर भारत की अत्यधिक निर्भरता ने प्रदूषण को मानव पूँजी और खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बना दिया है। फ्लोराइड, आर्सेनिक और यूरेनियम जैसे प्रदूषक, कमजोर शासन और असंवहनीय कृषि के साथ मिलकर स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं, फसल उत्पादकता को कम करते हैं और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ाते हैं, जिसके लिए तत्काल प्रणालीगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भूजल प्रदूषण के पीछे प्रणालीगत शासन की विफलताएँ

  • कमजोर निगरानी प्रणालियाँ: देशव्यापी, वास्तविक समय भूजल निगरानी प्रणाली का अभाव अदृश्य प्रदूषण का कारण बनता है।
    • उदाहरण: पंजाब के कुओं (यूरेनियम) में प्रदूषण का पता तब तक नहीं चला, जब तक कि जाँच में स्वास्थ्य संबंधी खतरे सामने नहीं आए।
  • औद्योगिक और सीवेज नियमों का अपर्याप्त प्रवर्तन: कमजोर नियामक प्रवर्तन के कारण औद्योगिक अपशिष्ट और अनुपचारित सीवेज जलभृतों को प्रदूषित करते हैं।
  • अस्थायी कृषि पद्धतियाँ: रासायनिक उर्वरकों और अधिक जल वाली फसलों का अत्यधिक उपयोग मृदा को अनुर्वर बनाता है और भूजल को प्रदूषित करता है।
    • उदाहरण: पंजाब और हरियाणा में धान की खेती से जलभृतों का क्षरण होता है और नाइट्रेट तथा फ्लोराइड का स्तर बढ़ता है।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: गरीब समुदायों के पास निस्पंदन या वैकल्पिक जल स्रोतों तक पहुँच का अभाव है, जिससे स्वास्थ्य और आर्थिक असुरक्षा बढ़ती जा रही है।
    • उदाहरण: गुजरात के मेहसाणा में फ्लोरोसिस के कारण श्रमिक अक्षम हो जाते हैं और घरेलू आय कम हो जाती है।
  • खंडित नीति और डेटा पहुँच: केंद्र, राज्य और स्थानीय प्राधिकरणों के बीच सीमित समन्वय और खुले डेटा की कमी समय पर हस्तक्षेप को बाधित करती है।

लचीले, प्रदूषण-मुक्त जलभृतों के लिए दीर्घकालिक संरचनात्मक उपाय

  • राष्ट्रव्यापी भूजल निगरानी प्रणाली: प्रदूषकों का शीघ्र पता लगाने के लिए वास्तविक समय, खुली पहुँच निगरानी।
  • सुदृढ़ नियामक प्रवर्तन: औद्योगिक अपशिष्टों और सीवेज उपचार के लिए सख्त अनुपालन।
    • उदाहरण: नदियों में अनुपचारित अपशिष्ट छोड़ने वाले उद्योगों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई।
  • सतत् कृषि पद्धतियाँ: रासायनिक अपवाह को कम करने के लिए फसल विविधीकरण, जैविक खेती और सूक्ष्म सिंचाई को प्रोत्साहन।
    • उदाहरण: पंजाब में पायलट योजनाएँ, जिनमें अधिक पानी की आवश्यकता वाले धान की बजाय दलहन और मक्का की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • विकेंद्रीकृत जल उपचार प्रणालियाँ: सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सामुदायिक स्तर पर निस्पंदन और शुद्धिकरण इकाइयाँ।
    • उदाहरण: नलगोंडा, तेलंगाना, फ्लोरोसिस प्रभावित गाँवों में सामुदायिक जल शोधन इकाइयों का उपयोग।
  • क्षमता निर्माण और किसान जागरूकता: जलभृत-अनुकूल पद्धतियों और सुरक्षित जल उपयोग पर किसानों को प्रशिक्षण।
    • उदाहरण: फसल सुरक्षा मानकों को बनाए रखने के लिए निर्यात-गुणवत्ता जाँच और किसान शिक्षा को संयुक्त रूप से लागू करना।

निष्कर्ष

भूजल प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए समन्वित शासन, वास्तविक समय निगरानी, ​​टिकाऊ खेती, विकेंद्रीकृत उपचार और प्रदूषण नियमों के सख्त क्रियान्वयन की आवश्यकता है। केवल दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से ही भारत लचीले, सुरक्षित जलभृत सुनिश्चित कर सकता है, मानव पूँजी की रक्षा कर सकता है, खाद्य प्रणालियों को सुरक्षित कर सकता है और अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय तथा आर्थिक नुकसानों को रोक सकता है।

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