प्रश्न की मुख्य माँग
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से गरीबों के लिए पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने में मौजूद चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- वंचित आबादी को संतुलित आहार उपलब्ध कराने में PDS की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
भूमिका
विश्व बैंक (वर्ष 2025) के अनुसार, भारत ने गरीबी को उल्लेखनीय रूप से कम किया है, जहाँ नितांत गरीबी वर्ष 2011-12 में 16.2% से घटकर वर्ष 2022-23 में केवल 2.3% रह गई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) ने अभाव को कम करने में मदद की है, किंतु अनाज से आगे पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जो संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
मुख्य भाग
PDS के माध्यम से पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने में बनी चुनौतियाँ
- अनाज-केंद्रित वितरण: PDS मुख्य रूप से चावल और गेहूँ पर केंद्रित है, जबकि वांछित अनाज की खपत पहले ही संतृप्त हो चुकी है।
- उदाहरण: सर्वेक्षण से पता चलता है कि घरेलू व्यय में अनाज का हिस्सा केवल 10% है और इसका उपभोग सबसे गरीब और सबसे अमीर वर्गों में समान है।
- सब्सिडी के बावजूद खाद्य अभाव: PDS सहायता मिलने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में अभाव उच्च स्तर पर बना हुआ है।
- उदाहरण: PDS समायोजन के बाद भी 40% ग्रामीण और 10% शहरी आबादी प्रतिदिन दो वक्त के भोजन का वहन नहीं कर सकती।
- गरीबी रेखा से ऊपर के लोगो तक लाभ का रिसाव: सब्सिडी उन परिवारों द्वारा भी व्यापक रूप से ली जाती है, जिन्हें वास्तविक अभाव का सामना नहीं करना पड़ता है।
- उदाहरण: ग्रामीण भारत में 90–95% आय वर्ग के व्यक्ति, सबसे गरीब 0–5% वर्ग की तुलना में तीन गुना अधिक उपभोग करने के बावजूद, उनकी प्राप्त सब्सिडी का 88% प्राप्त करते हैं।
- अव्यवस्थित और अप्रभावी सब्सिडी प्रसार: लगभग 80 करोड़ आबादी को कवर करने वाली व्यापक प्रणाली राजकोषीय क्षमता पर बोझ डालती है, किंतु सबसे असुरक्षित वर्ग को प्रभावी रूप से लक्षित नहीं कर पाती है।
- प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उपेक्षा: PDS दालों जैसी प्रोटीन-समृद्ध और महँगी खाद्य वस्तुओं की पोषण संबंधी कमी को दूर करने में विफल है।
PDS की प्रभावशीलता बढ़ाने हेतु सुधार
- सब्सिडी आवंटन का पुनर्गठन: सब्सिडी को सबसे गरीब वर्ग की ओर मोड़ना और न्यूनतम पोषण मानकों से अधिक उपभोग वाले परिवारों से इसे हटाना।
- दाल वितरण का विस्तार: प्रोटीन-समृद्ध दालों को शामिल करने से वर्गों के मध्य पोषण असमानता को कम किया जा सकता है।
- कॉम्पैक्ट और लक्षित PDS: सार्वभौमिक अनाज वितरण से कॉम्पैक्ट, आवश्यकता-आधारित खाद्य सहायता की ओर परिवर्तन।
- उदाहरण: सभी वर्गों में संसाधनों की कमी के कारण वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली “अनियंत्रित और अप्रभावी” है।
- थाली इंडेक्स के माध्यम से संतुलित आहार सुनिश्चित करना: बेहतर नीतिगत लक्ष्य निर्धारण हेतु थाली-आधारित उपभोग मानकों का उपयोग करना।
- उदाहरण: गरीबी में कमी के बावजूद, 50% ग्रामीण और 20% शहरी आबादी प्रतिदिन दो थाली से वंचित रहती है, जो पोषण अंतराल को उजागर करता है।
- FCI की भंडारण आवश्यकता घटाना: अधिशेष खरीद और भंडारण लागत कम करने से विविधीकरण हेतु वित्तीय बचत संभव होगी।
निष्कर्ष
PDS को अब अनाज-प्रधान, सार्वभौमिक प्रणाली से हटाकर एक लक्षित और पोषण-संवेदी सुरक्षा जाल बनाना आवश्यक है। शांता कुमार समिति (वर्ष 2015) ने भी अतिरिक्त अनाज अधिकारों को कम करने, रिसाव रोकने और दालों व पौष्टिक खाद्य पदार्थों की ओर विविधीकरण की सिफारिश की थी। ऐसा पुनर्गठन प्रत्येक परिवार के लिए प्रतिदिन दो थालियों की वहन क्षमता सुनिश्चित करेगा, जिससे भारत की खाद्य सुरक्षा दक्षता और समानता के साथ आगे बढ़ेगी।
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