Q. पाकिस्तान द्वारा वर्ष 1972 के शिमला समझौते को स्थगित करना भारत-पाक संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। क्षेत्रीय शांति और द्विपक्षीय कूटनीति के लिए इसके निहितार्थों की जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि पाकिस्तान द्वारा 1972 के शिमला समझौते को स्थगित करना किस प्रकार भारत-पाक संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक है।
  • क्षेत्रीय शांति के लिए इसके निहितार्थों का परीक्षण कीजिए।
  • द्विपक्षीय कूटनीति के निहितार्थों का उल्लेख कीजिये।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान द्वारा हस्ताक्षरित शिमला समझौता (वर्ष 1972) विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, द्विपक्षीय वार्ता और नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को हाल ही में निलंबित करना, एक गंभीर कूटनीतिक दरार को दर्शाता है।

भारत-पाक संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव

  • द्विपक्षीयता के सिद्धांत को कमजोर करना: शिमला समझौते में इस बात की पुष्टि की गई थी कि विवादों को द्विपक्षीय रूप से सुलझाया जाएगा; इसके निलंबन से कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण के द्वार खुल गए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पाकिस्तान पहले ही OIC 2024 बैठक और संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे मंचों पर कश्मीर मुद्दे को और अधिक आक्रामक तरीके से उठा चुका है।
  • मौजूदा संघर्ष प्रबंधन ढाँचे का क्षरण: समझौते में नियंत्रण रेखा की पवित्रता बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश दिए गए थे, इसके निलंबन से सीमा तनाव को कम करने के तंत्र कमजोर हो गए हैं।
  • विगत कूटनीतिक प्रगति को उलटना: नियंत्रण रेखा के पार व्यापार, बस सेवाएं और पीपुल -टू-पीपुल संबंध जैसे पिछले विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs) शिमला समझौते पर आधारित थे।
  • चीन के साथ अधिक रणनीतिक तालमेल: शिमला में द्विपक्षीय संबंधों की प्रतिबद्धता को त्यागकर पाकिस्तान चीन के समर्थन पर अपनी निर्भरता को मजबूत कर सकता है, जिससे भारत की दो-मोर्चे की सुरक्षा चुनौती और गहरी हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: पाकिस्तान-चीन संयुक्त वक्तव्य (वर्ष 2024) ने जम्मू और कश्मीर में भारतीय नीतियों के प्रति संयुक्त विरोध को दोहराया।
  • भविष्य की शांति वार्ता के लिए कम होती गुंजाइश: इस समझौते ने, सीमाओं के बावजूद, संवाद के लिए एक संदर्भ बिंदु प्रदान किया, इसके बिना, भविष्य की वार्ता अधिक ध्रुवीकृत और सशर्त हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: विश्लेषकों को डर है कि ट्रैक II संवाद और बैक-चैनल कूटनीति जैसे मंचों को एक आम कूटनीतिक आधार के बिना पुनर्जीवित करना कठिन हो जाएगा।

क्षेत्रीय शांति पर प्रभाव

  • सीमा पार झड़पों में वृद्धि: यह निलंबन नियंत्रण रेखा (LoC) के प्रति सम्मान को कम करता है, जिससे संघर्ष विराम उल्लंघन और सैन्य झड़पों की संभावना बढ़ जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 में भारत-पाकिस्तान LoC संघर्ष विराम समझौता कमजोर हो सकता है, जिससे वर्ष 2016-2018 के दौरान हुई लगातार गोलाबारी की घटनायें वापस से शुरू हो सकती हैं।
  • दक्षिण एशिया के कमजोर सुरक्षा संतुलन में अस्थिरता: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता अविश्वास व्यापक दक्षिण एशियाई शांति ढांचे और क्षेत्रीय सहयोग को प्रभावित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2016 के उरी हमले के बाद सार्क शिखर सम्मेलनों का लगभग खत्म हो जाना पहले से ही दक्षिण एशियाई एकीकरण प्रयासों की कमजोरी को दर्शाता है।
  • गैर-सरकारी तत्वों और आतंकी समूहों को प्रोत्साहन: द्विपक्षीय मानदंडों के खंडित होने से पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों से संचालित होने वाले आतंकी संगठनों को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह सीमा पार हमलों को बढ़ाने के लिए कूटनीतिक रिक्ति का लाभ उठा सकते हैं, जैसा कि पुलवामा (वर्ष 2019) में देखा गया था।
  • कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण: पाकिस्तान, आक्रामक तरीके से थर्ड पार्टी के हस्तक्षेप की पैरवी कर सकता है, जिससे बाह्य दबाव और संभावित भू-राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: OIC (वर्ष 2024 बैठक) में पाकिस्तान द्वारा हाल ही में कश्मीर को पुनः अंतर्राष्ट्रीय ध्यान में लाने का प्रयास किया गया, हालांकि भारत ने ऐसे प्रयासों का कड़ा विरोध किया है।
  • संभावित शस्त्र दौड़ और सैन्यीकरण: सीमा पर बढ़ते तनाव से हथियारों का निर्माण बढ़ सकता है जिससे सीमित क्षेत्रीय संसाधन विकास प्राथमिकताओं से दूर हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: भारत का रक्षा बजट वर्ष 2024 में 12% से अधिक बढ़ जाएगा, आंशिक रूप से पश्चिमी मोर्चे पर निरंतर सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने के लिए।
  • सीमावर्ती समुदायों पर मानवीय प्रभाव: नए सिरे का तनाव सीमा के आसपास रहने वाले नागरिकों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिससे विस्थापन, आजीविका में व्यवधान और मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पुंछ और राजौरी जिलों में नियंत्रण रेखा के किनारे के गाँवों को वर्ष 2024 की शुरुआत में संघर्ष विराम उल्लंघन के दौरान बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना पड़ा।

द्विपक्षीय कूटनीति के लिए निहितार्थ

  • द्विपक्षीय वार्ता ढाँचे का पतन: शिमला समझौता प्रत्यक्ष वार्ता के लिए आधार के रूप में कार्य करता था, इसके निलंबन से भविष्य में संरचित वार्ता के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच समाप्त हो गया है।
  • थर्ड पार्टी की मध्यस्थता के दबाव का फिर से उभरना: पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की माँग कर सकता है, तथा भारत के इस दृढ़ रुख को चुनौती दे सकता है, कि कश्मीर और अन्य मुद्दे द्विपक्षीय मामले हैं।
  • गहराता राजनयिक ठहराव और आपसी अविश्वास: एक दूसरे के देशों में राजनयिक मिशनों का दर्जा कम रह सकता है, जिससे सामान्य वाणिज्य दूतावास और सिटिजन-टू-सिटिजन संपर्क सीमित हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: पहलगाम आतंकी हमले (वर्ष 2025) के बाद, भारत ने पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को निष्कासित कर दिया, भारतीय समकक्षों को वापस बुला लिया और उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या कम कर दी।
  • क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर जटिलताएँ: भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष, क्षेत्रीय समूहों को पंगु बना सकता है और SCO, सार्क और यहां तक कि G-77 जैसे मंचों पर एजेंडा को जटिल बना सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: SCO विदेश मंत्रियों की बैठक (वर्ष 2023) में, पाकिस्तान ने कश्मीर संदर्भों पर भारत की अध्यक्षता का विरोध किया।
  • वीजा व्यवस्था का कठोर होना और लोगों के बीच अवरोध: तनाव बढ़ने से, विद्वानों, कलाकारों, तीर्थयात्रियों और विभाजित परिवारों की सीमा पार आवाजाही पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

वर्ष 1972 के शिमला समझौते के निलंबन के बाद आगे की राह

  • वैश्विक मंचों पर द्विपक्षीयता के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि: भारत को कश्मीर के अंतर्राष्ट्रीयकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत द्विपक्षीय विवाद समाधान के सिद्धांत को लगातार उजागर करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: संयुक्त राष्ट्र महासभा (वर्ष 2024) में, भारत ने दोहराया कि जम्मू और कश्मीर एक आंतरिक मामला है, और थर्ड पार्टी के हस्तक्षेप को खारिज कर दिया।
  • पाकिस्तान के आख्यानों को अलग-थलग करने के लिए कूटनीतिक पहुँच बढ़ाना: पाकिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय दुष्प्रचार को बेअसर करने के लिए अमेरिका, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात और ASEAN जैसे देशों के साथ मजबूत गठबंधन बनाये जाने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत-फ्रांस रणनीतिक वार्ता (वर्ष 2024) में सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता और क्षेत्रीय संप्रभुता को बनाए रखने की बात शामिल थी।
  • क्षेत्रीय संपर्क और वैकल्पिक साझेदारियों में निवेश: क्षेत्रीय ढाँचे में पाकिस्तान की प्रासंगिकता को कम करने के लिए सार्क-माइनस-पाकिस्तान पहल, BIMSTEC, IORA और मध्य एशिया संपर्क पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: चाबहार बंदरगाह परियोजना (वर्ष 2024) के चालू होने से पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच मजबूत होगी।
  • जम्मू और कश्मीर में विकास और सामान्य स्थिति को बढ़ावा देना: बाह्य हस्तक्षेप को नकारने के लिए जम्मू और कश्मीर में सामाजिक-आर्थिक विकास, निवेश प्रोत्साहन और राजनीतिक एकीकरण में तेजी लानी होगी।
    • उदाहरण के लिए: अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से, जम्मू और कश्मीर को 1.63 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।
  • दृढ़ किन्तु संतुलित सैन्य रुख जारी रखना: अनावश्यक तनाव को रोकते हुए परिचालन तत्परता बनाए रखना होगा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आक्रामक दिखे बिना उकसावे का निर्णायक ढंग से जवाब देना होगा।
    • उदाहरण के लिए: भारत के बालाकोट हवाई हमलों (वर्ष 2019) ने पूर्ण पैमाने पर युद्ध में प्रवेश किए बिना बल के संतुलित उपयोग का प्रदर्शन किया।

शिमला समझौते का निलंबन भारत-पाक संबंधों में गिरावट का संकेत देता है, जो दशकों से चली आ रही कूटनीतिक व्यवस्था को खत्म कर रहा है। भारत को अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की पुष्टि करते हुए और वैश्विक साझेदारी को मजबूत करते हुए, संयमित दृढ़ता के साथ जवाब देना चाहिए।

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