Q. हाल ही में घोषित "संचार साथी" ऐप धोखाधड़ी वाले सिम कार्डों का पता लगाकर डिजिटल जवाबदेही को बढ़ाता है, लेकिन यह डेटा सुरक्षा और सहमति के संदर्भ में भी प्रश्न उठाता है। मूल्यांकन कीजिए कि भारत डिजिटल सुरक्षा आवश्यकताओं को मजबूत गोपनीयता सुरक्षा उपायों के साथ कैसे संतुलित कर सकता है। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत डिजिटल सुरक्षा आवश्यकताओं और मजबूत गोपनीयता सुरक्षा के बीच कैसे संतुलन बना सकता है। 
  • संबद्ध चुनौतियाँ। 

उत्तर

हाल ही में दूरसंचार विभाग द्वारा लॉन्च किया गया संचार साथी ऐप नागरिकों को धोखाधड़ीपूर्ण सिम कार्डों का पता लगाने और चोरी हुए उपकरणों की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है। दूरसंचार सुरक्षा में वृद्धि के बावजूद, इसकी अनिवार्य स्थापना ने गोपनीयता, उपयोगकर्ता सहमति, और संभावित निगरानी जोखिमों पर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

मुख्य भाग

भारत डिजिटल सुरक्षा आवश्यकताओं और मजबूत गोपनीयता सुरक्षा के बीच कैसे संतुलन बना सकता है

  • प्रत्यक्ष सहमति: ऐप का उपयोग स्वैच्छिक होना चाहिए, और ऑप्ट-इन विशेषताओं के साथ  नागरिकों को डिजिटल भागीदारी पर स्वायत्तता बनाए रखने में सक्षम बनाना चाहिए।
  • डेटा न्यूनिकीकरण: केवल आवश्यक धोखाधड़ी-संबंधित मेटाडेटा ही एकत्र किया जाए, अनावश्यक व्यक्तिगत जानकारी से बचा जाए जिसका दुरुपयोग हो सकता है।
  • कानूनी सुरक्षा: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के साथ सख्त सामंजस्य दूरसंचार डेटा के वैध प्रसंस्करण और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
  • स्वतंत्र निगरानी: समर्पित नियामकों को ऐप के संचालन का लेखा-परीक्षण करना चाहिए, शिकायतों का निपटारा करना चाहिए, और राज्य या कंपनियों द्वारा डेटा के अनियंत्रित दुरुपयोग को रोकना चाहिए।
  • पारदर्शिता मानक: सरकार को धोखाधड़ी का पता लगाने, डेटा उपयोग, और सुधारात्मक कार्यों पर नियमित रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिए ताकि सार्वजनिक भरोसा बढ़ सके।
  • उद्योग सहयोग: स्मार्टफोन निर्माताओं के साथ समन्वय तकनीकी व्यवहार्यता सुनिश्चित करता है, जिससे ऑपरेटिंग सिस्टम की शुचिता, उपयोगकर्ता विश्वसनीयता और अनुपालन का संतुलन बना रहता है।

संबद्ध चुनौतियाँ

  • निगरानी का भय: अनिवार्य रूप से एप को रखना, राज्य द्वारा निगरानी के रूप में देखा जा सकता है, जिससे डिजिटल अभिशासन पहलों की  विश्वासनीयता में कमी आती है।
  • अल्प विश्वास : डेटा दुरुपयोग और निगरानी के पिछले विवादों के कारण नागरिक सरकारी ऐप्स के प्रति संदेहपूर्ण रहते हैं।
  • कानूनी अस्पष्टता: संवैधानिक गोपनीयता सुरक्षा अब भी स्पष्ट नहीं है, जिससे न्यायिक व्याख्या में प्रवर्तन और सुरक्षा उपायों की अनिश्चितता बनी रहती है।
  • उद्योग प्रतिरोध: तकनीकी कंपनियाँ ऑपरेटिंग सिस्टम के सुरक्षा जोखिमों, अनुपालन बोझ और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित नुकसान का हवाला देते हुए निर्देशों का विरोध करती हैं।
  • आर्थिक लागत: पहले से फोन पर एप डाले जाने जैसी आवश्यकता, निर्माताओं के अनुपालन व्यय में वृद्धि करती है जिससे उपभोक्ताओं के लिए उपकरणों की कीमत बढ़ सकती है।
  • उपयोगकर्ता बहिष्करण: नागरिकों में कम डिजिटल साक्षरता सूचित सहमति में बाधा डाल सकती है, जिससे धोखाधड़ी पहचान में समान भागीदारी सीमित होती है।
    • उदाहरण: जन भागीदारी अपनाने में अंतराल पर रिपोर्टें।

निष्कर्ष

भारत की डिजिटल यात्रा को जवाबदेही के साथ गोपनीयता को भी समाहित करना चाहिए। पारदर्शी अभिशासन, मजबूत विधिक ढाँचा, और भागीदारीपूर्ण नीतिनिर्माण बिना विश्वास को कमजोर किए दूरसंचार सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं और संवैधानिक स्वतंत्रताओं में सामंजस्य स्थापित होगा तथा एक सुदृढ़, अधिकार-सम्मानित डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र भी विकसित हो सकेगा।

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