प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि पश्चिम एशियाई संकट का विस्तार भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं को किस प्रकार प्रभावित करता है।
- चर्चा कीजिए कि पश्चिम एशियाई संकट का विस्तार इस क्षेत्र में भारत के द्विपक्षीय संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करता है।
- इन प्रभावों को कम करने के लिए भारत क्या उपाय कर सकता है, इसका सुझाव दीजिए।
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उत्तर
पिछले कुछ समय से पश्चिम एशिया में स्थाई रूप से कई संघर्ष जैसे इजरायल–फिलिस्तीन संकट, शिया-सुन्नी विभाजन और क्षेत्रीय शक्तियों जैसे ईरान और सऊदी–अरब के बीच प्रॉक्सी वॉर, होते आ रहे हैं। वर्ष 2023 के हमास-इजरायल युद्ध के बाद ये संघर्ष और भी तीव्र हो गए हैं , जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा हो गया है। भारत के हितों से, यह उथल-पुथल कनेक्टिविटी, द्विपक्षीय संबंधों, ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और प्रवासी सुरक्षा को बाधित करती है, जिसके लिए रणनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
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पश्चिम एशियाई संकट के विस्तार का भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर प्रभाव
- व्यापार मार्गों में व्यवधान: पश्चिम एशिया में बढ़ते संघर्ष प्रमुख समुद्री और भूमि व्यापार मार्गों को बाधित कर सकते हैं, जिससे यूरोप और मध्य एशिया के साथ भारत का व्यापार प्रभावित हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: होर्मुज जलडमरूमध्य, जो एक महत्वपूर्ण चोकपॉइंट है, में अस्थिरता तेल शिपमेंट को बाधित कर सकती है, जिससे भारत के ऊर्जा आयात पर असर पड़ सकता है।
- बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं में विलम्ब: क्षेत्रीय अस्थिरता, भारत और पश्चिम एशियाई देशों के बीच बुनियादी ढाँचे की पहल की प्रगति में बाधा डालती है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुँच के लिए महत्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों और क्षेत्रीय संघर्षों के कारण चाबहार बंदरगाह के विकास में काफी देरी हुई है, जिससे मध्य एशिया के साथ भारत का व्यापार संपर्क प्रभावित हुआ है।
- परियोजना लागत में वृद्धि: सुरक्षा जोखिम बढ़ने से संघर्ष क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए बीमा प्रीमियम और परिचालन लागत में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिए: अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) क्षेत्रीय तनाव के कारण लागत में वृद्धि का सामना कर रहा है, जिससे इसकी व्यवहार्यता प्रभावित हो रही है।
- निवेशकों की अनिच्छा: निरंतर बनी रहने वाली अस्थिरता, निवेशकों को कनेक्टिविटी परियोजनाओं में भाग लेने से रोकती है, जिससे वित्तपोषण संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- सामरिक सुभेद्यतायें: अस्थिर क्षेत्रों से होकर गुजरने वाले मार्गों पर निर्भरता, भारत के व्यापार को बाधित करती है।
- उदाहरण के लिए: स्वेज नहर जो क्षेत्रीय संघर्षों के प्रति अतिसंवेदनशील है, उस पर अत्यधिक निर्भरता, समुद्री व्यापार प्रवाह को प्रभावित कर सकती है।
पश्चिम एशियाई संकट के विस्तार का भारत के द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव
- तनावपूर्ण कूटनीतिक संबंध: अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में परस्पर विरोधी दलों के साथ गठबंधन करने से भारत के कूटनीतिक प्रयास जटिल हो सकते हैं और अन्य देशों के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: रक्षा प्रौद्योगिकी और आतंकवाद-रोधी सहयोग सहित इजरायल के साथ भारत के बढ़ते सामरिक और रक्षा संबंधों ने कभी-कभी मध्य पूर्व के देशों के बीच इन दोनों देशों के संबंध में लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- आर्थिक प्रतिबंध: प्रतिबंधित देशों के साथ संबंध, द्वितीयक प्रतिबंधों को आकर्षित कर सकते हैं, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत ईरान से तेल आयात करने के परिणामस्वरूप भारत को पहले भी कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- प्रवासी सुरक्षा चिंताएँ: बढ़ते संघर्षों से, पश्चिम एशिया में रहने वाले बड़े भारतीय प्रवासी समुदाय को खतरा है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1990-91 में संघर्षपूर्ण क्षेत्र और गंभीर रसद बाधाओं के बीच, खाड़ी युद्ध के दौरान भारत, कुवैत से 170,000 से अधिक नागरिकों को सफलतापूर्वक देश में वापस लाने में सफल हुआ।
- ऊर्जा सुरक्षा जोखिम: अस्थिरता, क्षेत्र से तेल और गैस की स्थिर आपूर्ति को खतरे में डालती है, जो भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: इराक और लीबिया के बीच के संघर्ष ने ऐतिहासिक रूप से तेल उत्पादन और निर्यात को बाधित किया है, जिससे आपूर्ति की कमी हुई है और परिणामस्वरूप वैश्विक तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव हुआ है।
- आतंकवाद विरोधी चुनौतियाँ: क्षेत्रीय संघर्षों के कारण चरमपंथी समूहों का प्रसार हो सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: पश्चिम एशिया में ISIS के उदय ने वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा दिया, जिसका असर दक्षिण एशिया में कट्टरपंथ और सुरक्षा पर पड़ा।
इन प्रभावों को कम करने के उपाय
- ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण : वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की खोज करके और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करके पश्चिम एशियाई तेल पर निर्भरता कम करना होगा।
- उदाहरण के लिए : संयुक्त राज्य अमेरिका और अफ्रीका से तेल आयात बढ़ाने से आपूर्ति जोखिम को कम करने और ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में मदद मिल सकती है।
- क्षेत्रीय भागीदारी को मजबूत करना: स्थिर पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने से वैकल्पिक व्यापार मार्ग विकसित करने, क्षेत्रीय संपर्क में सुधार करने और सुभेद्य मार्गों पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिए: भूमि संपर्क के लिए मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग करने से पश्चिम एशियाई मार्गों पर निर्भरता कम हो सकती है।
- सक्रिय कूटनीति: बहुपक्षीय मंचों में भागीदारी से क्षेत्रीय मुद्दों पर संवाद और सहयोग को बढ़ावा देकर पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिए: क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भाग लेना।
- प्रवासी हितों की रक्षा : विदेशों में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण के लिए मजबूत तंत्र स्थापित करना चाहिए।
- घरेलू क्षमताएँ बढ़ाना: घरेलू बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के परिणामस्वरूप बाह्य व्यापार मार्गों पर निर्भरता कम होने से आत्मनिर्भरता बढ़ती है और अधिक सुरक्षित व कुशल परिवहन नेटवर्क सुनिश्चित होता है।
- उदाहरण के लिए: भारत के पूर्वी तट पर बंदरगाहों का विकास करने से दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार संपर्क बढ़ सकता है, आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा और क्षेत्रीय संबंध मजबूत होंगे।
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पश्चिम एशियाई संकट की जटिलताओं का समाधान करने के लिए भारत को एक बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है जो कूटनीतिक जुड़ाव, आर्थिक विविधीकरण और सक्रिय सुरक्षा उपायों के बीच संतुलन बनाए रखे। आंतरिक क्षमताओं को मजबूत करके और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा देकर, भारत क्षेत्रीय अस्थिरता के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकता है व अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है।
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