निबंध लिखने का दृष्टिकोणभूमिका
मुख्य भाग
निष्कर्ष
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एक बार एक युवा छात्र ने भारत के संविधान के वास्तुकार डॉ. भीमराव अंबेडकर से प्रश्न किया , “लोकतंत्र की महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?” एक हल्की मुस्कान के साथ अंबेडकर ने उत्तर दिया, ” प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति नहीं, बल्कि एक साधारण नागरिक ही , लोकतंत्र में सर्वोच्च पद पर आसीन होता है।” यह गहन वक्तव्य लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को प्रकट करता है: नागरिक मात्र एक निष्क्रिय भागीदार नहीं, बल्कि वह संप्रभु सत्ता है, जिससे समस्त शक्तियों की उत्पत्ति होती है।
“लोकतंत्र में सर्वोच्च पद नागरिक का होता है” इस कथन का तात्पर्य है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को आकार देने और उन्हें बनाए रखने में व्यक्तियों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।दार्शनिक दृष्टिकोण से, यह लोकप्रिय संप्रभुता और सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत से प्रेरित है। यह सिद्धांत स्पष्ट करता है कि सरकारें अपनी वैधता शासित लोगों की सहमति से प्राप्त करती हैं। यह नागरिक की भूमिका को सत्ता के स्रोत और न्याय के अंतिम निर्णायक के रूप में परिभाषित करता है, जो समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित एक प्रणाली सुनिश्चित करता है।
यह विचार महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोकतंत्र को जवाबदेही, न्याय और प्रगति में निहित करता है। जनसत्ता का लोगों में निहित होना सुनिश्चित करता है कि सत्ताधारी शासक नहीं, बल्कि जनसंरक्षक के रूप में कार्य करें। नागरिकों की सक्रिय भागीदारी शासन में पारदर्शित तथा उत्तरदायित्व को बढ़ावा देती है।, जो लोकतंत्र को निरंकुशता और गतिहीनता से बचाते हुए सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देती है।
लोकतांत्रिक शासन में नागरिकों की भूमिका का विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शक्ति के केंद्रीकरण को समाप्त कर जनसत्ता की स्थापना के अनेक महत्वपूर्ण चरण सम्मिलित हैं। 1215 में मैग्ना कार्टा पर हस्ताक्षर ने इस दिशा में प्रथम आधारशिला रखी, जिसने निरंकुश राजतंत्र की शक्ति को सीमित करते हुए यह सिद्धांत स्थापित किया कि शासकों को प्रजा के अधिकारों का सम्मान करना अनिवार्य है। इसके पश्चात , अमेरिकी क्रांति ने इस सिद्धांत को सुदृढ़ किया कि सरकारों की वैधता शासितों की सहमति पर निर्भर करती है। इसी प्रकार, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने सामूहिक प्रयास और संघर्ष की शक्ति को उजागर किया, जब महात्मा गांधी जैसे दूरदर्शी नेताओं के नेतृत्व में सामान्य नागरिकों ने औपनिवेशिक शासन का विरोध करते हुए समानता और न्याय पर आधारित स्वशासन की मांग की।
लोकतंत्र में नागरिक को सर्वोच्च पद प्रदान करना, राजतंत्र और तानाशाही के असीमित अधिकारों के दमनकारी प्रभावों के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप विकसित हुआ। लोकतांत्रिक आदर्शों ने एक ऐसा संतुलन स्थापित किया, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और सामूहिक निर्णय-प्रक्रिया को प्राथमिकता दी गई। जॉन लॉक और जॉन-जाक रूसो जैसे विचारकों ने यह तर्क दिया कि सरकार का उद्देश्य जनता की सेवा करना है, न कि जनता को शासकों के अधीन रखना। इस परिवर्तन ने यह स्पष्ट किया कि सशक्त और जागरूक नागरिक ही न्याय और उत्तरदायित्व पर आधारित शासन सुनिश्चित कर सकते हैं।
सशक्त नागरिक केवल न्याय और जवाबदेही के संरक्षक ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के रक्षक भी होते हैं। इस भूमिका को निभाने के लिए नागरिकों को ऐसे मौलिक उत्तरदायित्व स्वीकार करनी चाहिए जो लोकतांत्रिक शासन की सक्रियता सुनिश्चित करें। इनमें सबसे प्रमुख है चुनावों में भागीदारी, जो लोकतंत्र का आधार है, जहां नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चयन करने और नीतियों को आकार देने के लिए अपने सार्वभौमिक अधिकार का प्रयोग करते हैं।मतदान के अतिरिक्त, नागरिकों के लिए यह भी आवश्यक है कि वे सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों और वैश्विक घटनाओं के प्रति सतर्क तथा जागरूक रहें। यह जागरूकता उन्हें सत्ता के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सक्षम बनाती है, जिससे वे शासकों को जवाबदेह ठहराने और लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
लोकतांत्रिक मूल्यों, जैसे स्वतंत्रता, समानता और समावेशिता की रक्षा करना नागरिकों का एक महत्वपूर्ण दायित्व है। इसमें अन्याय का विरोध करना, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना और बहुलवाद को बढ़ावा देना शामिल है। नागरिक कर्तव्य व्यावहारिक जिम्मेदारियों तक भी विस्तृत हैं, जैसे कि करों का भुगतान करना, जो सार्वजनिक सेवाओं को बनाए रखने में सहायक होते हैं, तथा जूरी सेवा या सार्वजनिक परामर्श में भाग लेना, जो एक निष्पक्ष एवं प्रतिनिधिमूलक न्याय प्रणाली सुनिश्चित करता है। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक चर्चाओं में सक्रिय भागीदारी लोकतंत्र को सुदृढ़ करती है, विविध विचारों को बढ़ावा देती है और सहमति निर्माण की प्रक्रिया में सहायक होती है।
सक्रिय नागरिकता सशक्त लोकतंत्र की आधारशिला है। जब नागरिक निष्क्रिय हो जाते हैं, तो लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हो जाती हैं, भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, तथा शासन की गुणवत्ता में गिरावट आती है। इसके विपरीत, सक्रिय और उत्तरदायी नागरिक एक मजबूत लोकतंत्र की रचना करते हैं, जो न केवल सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का प्रभावी समाधान करता है, बल्कि न्याय और समानता पर आधारित समावेशी प्रगति को भी सुनिश्चित करता है।
लोकतंत्र में नागरिकों को शासन को प्रभावित करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियां प्रदान की जाती हैं। इनमें सबसे प्रमुख है मतदान, जो नागरिकों को प्रत्यक्ष रूप से नेतृत्व और नीतियों को आकार देने का अवसर प्रदान करता है। शांतिपूर्ण विरोध और याचिकाएं सामूहिक असहमति व्यक्त करने तथा बदलाव की मांग करने के सशक्त साधन हैं, जबकि न्यायिक तंत्र तक पहुंच अन्याय को चुनौती देने और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के मार्ग प्रदान करती है।
इस क्षमता का प्रभावी प्रदर्शन स्थानीय आंदोलनों और नागरिक कार्रवाई के माध्यम से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, वनों और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हेतु चलाए गए अभियानों ने पर्यावरणीय नीतियों को नई दिशा दी, जिससे सतत विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। पारदर्शिता की मांग के लिए जन-अभियानों ने ऐसे कानूनी तंत्र स्थापित किए, जिन्होंने नागरिकों को सार्वजनिक संस्थानों की निगरानी का अधिकार प्रदान किया, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित हुई। इसी प्रकार, नागरिक पत्रकारिता ने एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरकर भ्रष्टाचार को उजागर किया और हाशिए पर पड़े समुदायों की आवाज़ को मंच दिया, जिससे सार्वजनिक विमर्श को प्रोत्साहन और प्रणालीगत सुधार को गति मिली।
वैश्विक स्तर पर, नागरिक अधिकार आंदोलन शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से गहराई से स्थापित अन्यायपूर्ण प्रणालियों को समाप्त करने की शक्ति का प्रतीक रहे हैं, जबकि स्थानीय स्तर पर सक्रियता ने विश्व में पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता को प्रेरित किया है। ये उदाहरण सक्रिय नागरिकता की परिवर्तनकारी क्षमता को उजागर करते हैं। जब नागरिक अपनी शक्तियों का उपयोग करके न्याय की मांग करते हैं, तो वे न केवल प्रणालीगत कमजोरियों को चुनौती देते हैं, बल्कि लोकतंत्र की नींव को भी सुदृढ़ करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि लोकतंत्र समानता, न्याय और प्रगति का माध्यम बना रहे।
लोकतंत्र की आधारशिला होने के बावजूद, नागरिकों की सर्वोच्च भूमिका कई चुनौतियों का सामना करती है, जो इसकी प्रभावशीलता को कमजोर कर सकती हैं। मतदाता उदासीनता तथा राजनीतिक प्रक्रियाओं के प्रति निराशा, जो अक्सर अधूरे वादों एवं संस्थानों पर विश्वास की कमी से प्रेरित होती है, चुनाव में भागीदारी को कम कर देती है, जिससे शासन की वैधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से फैलाई जाने वाली भ्रामक सूचना सूचित निर्णय लेने की प्रक्रिया को बाधित करती है तथा समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है, जिससे नागरिकों के लिए अपने नेताओं को जवाबदेह ठहराना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
असहमति का दमन, चाहे वह सेंसरशिप, डराने-धमकाने, या शांतिपूर्ण विरोधों पर प्रतिबंध के रूप में हो, नागरिकों की न्याय और सुधार की मांग करने की क्षमता को गंभीर रूप से बाधित करता है। सरकारों में तानाशाही प्रवृत्तियां लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती हैं, जिससे उन नागरिकों की आवाज दब जाती है, जिनकी सेवा करना उनका प्राथमिक दायित्व है। इसके साथ ही, आर्थिक असमानता लोकतांत्रिक भागीदारी में बाधाएं उत्पन्न करती है; हाशिए पर रहने वाले समुदाय अक्सर संसाधनों और मंचों की कमी के कारण राजनीतिक प्रक्रियाओं में प्रभावी भागीदारी नहीं कर पाते, जिसके परिणामस्वरूप उनकी चिंताओं को अनदेखा कर दिया जाता है।
ये चुनौतियां नागरिक भागीदारी को कमजोर कर लोकतांत्रिक प्रणाली को बाधित करती हैं, जिससे असीमित शक्ति और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। जब नागरिक निष्क्रिय रहते हैं या उन्हें सशक्त नहीं किया जाता, तो शासन कम जवाबदेह हो जाता है, तथा प्रणालीगत असमानताएं और अधिक गहरी हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त, अधिकारों और स्वतंत्रता में ह्रास एक गंभीर खतरा बन जाता है, क्योंकि सक्रिय नागरिक निगरानी के अभाव में निरंकुश प्रवृत्तियों को बल मिलता है। इसका परिणाम यह होता है कि न्याय, पारदर्शिता और सामाजिक प्रगति जैसे लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में पड़ जाते हैं।
हालांकि लोकतंत्र में नागरिकों को सर्वोच्च प्राधिकारी के रूप में मान्यता प्राप्त है, किंतु अनेक ऐसे अवसर आते हैं जब यह आदर्श प्रणालीगत चुनौतियों के कारण कमजोर पड़ जाता है। उदाहरणस्वरूप, नौकरशाही की अत्यधिक सक्रियता निर्वाचित अधिकारियों की अपेक्षा अनिर्वाचित अधिकारियों को महत्वपूर्ण शक्ति सौंप देती है, जिनके निर्णय बिना नागरिकों की सीधी भागीदारी के सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। इसी प्रकार, न्यायिक सक्रियता, जहाँ न्यायालय विधायी और कार्यपालिका क्षेत्रों में हस्तक्षेप करते हैं, कभी-कभी नागरिकों और उनके प्रतिनिधियों की उस भूमिका को प्रभावित कर सकती है, जो निर्णय लेने में सार्वजनिक इच्छा को प्रतिबिंबित करने के लिए आदर्श रूप में होनी चाहिए। हालांकि न्यायपालिका और नौकरशाही का उद्देश्य सार्वजनिक हित में कार्य करना होता है, किंतु ये कदम अनजाने में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकते हैं, जिससे नागरिकों को सर्वोच्च प्राधिकारी मानने की धारणा कमजोर होती है।
इसके अतिरिक्त ,समस्त नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का समान रूप से उपयोग करने में सक्षम नहीं होते। सामाजिक और आर्थिक असमानताएं सक्रिय भागीदारी के लिए आवश्यक संसाधनों, जैसे शिक्षा, सूचना, और यहां तक कि नागरिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए समय और ऊर्जा, तक पहुंच को गंभीर रूप से सीमित करती हैं। लैंगिक और सांस्कृतिक बाधाएं इस असमानता को और बढ़ा देती हैं, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समूहों के लिए, जो भेदभाव और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से बाहर किए जाने का सामना करते हैं। अनेक क्षेत्रों में, महिलाएं, निम्न जाति के समुदाय, और जातीय अल्पसंख्यक अब भी राजनीतिक क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व और
ये असमानताएँ ऐसे लोकतंत्र का निर्माण करती हैं जहाँ शक्ति का समान वितरण सुनिश्चित नहीं हो पाता, जिससे यह मूलभूत सिद्धांत कमजोर पड़ता है कि सभी नागरिक सत्ता के वास्तविक स्रोत हैं। व्यावहारिक स्तर पर, लोकतांत्रिक साधनों तक असमान पहुंच बड़ी जनसंख्या की शासन को प्रभावित करने की क्षमता को सीमित करती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंप्रभुता कमजोर होती है।
लोकतंत्र में नागरिकों को सर्वोच्च प्राधिकारी के रूप में पुनर्स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाना आवश्यक है। सर्वप्रथम , नागरिक शिक्षा को सुदृढ़ करना अत्यावश्यक है। अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सार्थक भागीदारी के लिए अधिक सक्षम होते हैं। स्कूल पाठ्यक्रम में नागरिक शिक्षा का समावेश और व्यापक जन जागरूकता अभियान नागरिकों को उनकी शक्ति के प्रभावी उपयोग के लिए सक्षम और जागरूक बनाने में सहायक होंगे।
प्रौद्योगिकी नागरिक भागीदारी को और अधिक प्रभावी बना सकती है। ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म नागरिकों और सरकार के मध्य सुगम संवाद स्थापित करते हैं, जिससे नागरिक अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकते हैं, सेवाओं का लाभ प्राप्त सकते हैं तथा पारदर्शिता सुनिश्चित कर सकते हैं। डिजिटल उपकरण नौकरशाही प्रक्रियाओं को सरल बनाते हैं तथा भूगोलशास्र , साक्षरता और पहुंच से संबंधित बाधाओं को दूर करने में मदद करते हैं।
लोकतंत्र में समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का उन्मूलन अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और आर्थिक अवसरों तक समान पहुंच प्रदान करके वंचित समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है, जिससे वे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में प्रभावी भागीदारी कर सकें। साथ ही, नागरिकों के अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विरोध और न्याय की सुरक्षा के लिए एक सुदृढ़ कानूनी ढांचे की आवश्यकता है।
सरकारें और संस्थान नागरिक सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। पारदर्शिता, जवाबदेही, और समावेशिता को बढ़ावा देकर नागरिकों का विश्वास सुदृढ़ किया जा सकता है। स्वतंत्र संस्थाएँ, जैसे न्यायपालिका और चुनाव आयोग, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए मजबूत और निष्पक्ष रहनी चाहिए। नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ, जैसे सहभागी बजट निर्माण और सार्वजनिक सभाएँ (टाउन हॉल), यह सुनिश्चित करती हैं कि नागरिकों की आवाज़ लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अभिन्न हिस्सा बनी रहे। इससे लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी गहरी होती है तथा यह सुनिश्चित होता है कि लोकतंत्र प्रगति और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर होती रहे।
लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जागरूक, सक्रिय और सशक्त नागरिक ही लोकतांत्रिक आदर्शों को साकार और संरक्षित रखते हैं। लोकतंत्र तभी सशक्त होता है जब नागरिक अपनी भूमिका मतदान तक सीमित न रखते हुए, सार्थक संवाद में भाग लेते हैं, सरकारों की जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं, और न्याय एवं समानता का समर्थन करते हैं। एक जागरूक और सक्रिय नागरिकता उत्तरदायी और पारदर्शी शासन की आधारशिला है, जो यह सुनिश्चित करती है कि शक्ति का केंद्र जनता बनी रहे, न कि केवल
आगे का मार्ग नागरिकों और राज्य के मध्य आपसी विश्वास एवं उत्तरदायित्व पर आधारित साझेदारी को सुदृढ़ करने में निहित है। नागरिकों को अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक होकर उनकी सक्रियता से मांग करनी चाहिए, जबकि सरकारों को जनता की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी और संवेदनशील होना चाहिए। इस परस्पर सहयोग से नागरिक और राज्य मिलकर एक सशक्त, समावेशी और न्यायसंगत समाज के निर्माण की दिशा में प्रभावी प्रयास कर सकते हैं।
जॉन एफ. केनेडी के शब्दों में, “यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है—यह पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो।” यह प्रेरणादायक संदेश सक्रिय नागरिकता की आवश्यकता को रेखांकित करता है—यह नागरिकों से अपेक्षा करता है कि वे केवल परिवर्तन की प्रतीक्षा न करें, बल्कि उसमें सक्रिय योगदान दें। जब नागरिक लोकतंत्र में अपनी सर्वोच्च भूमिका को आत्मसात करते हैं, तो यह प्रणाली न केवल जीवंत बनी रहती है, बल्कि समानता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों को साकार करते हुए सभी के लिए प्रगति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।
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