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रोजगार सृजन में केंद्रीय बजट की भूमिका: ‘विकसित भारत का लक्ष्य ‘

Lokesh Pal February 04, 2025 05:30 11 0

संदर्भ:

वर्ष 2024 के बजट में, प्रधानमंत्री की पांच-योजना पहल के तहत रोजगार से जुड़े  प्रोत्साहन (ईएलआई) की शुरुआत की गई थी। इस प्रोत्साहन नीति का लक्ष्य पांच वर्षों में चार करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा करना है।

रोजगार सृजन में केंद्रीय बजट की भूमिका:

  • कर राहत: केंद्रीय बजट में कर कटौती और राहत उपायों से डिस्पोजेबल आय में वृद्धि करके उपभोक्ता मांग को बढ़ावा मिल सकता है। इससे खर्च को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे खुदरा, विनिर्माण और सेवा जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा मिलेगा और अंततः अस्थायी रोजगार सृजन होगा।
  • व्यवसायों के लिए प्रोत्साहन: व्यवसायों को अस्थायी कर छूट या सब्सिडी प्रदान करने से अल्पावधि में नियुक्ति और निवेश को बढ़ावा मिल सकता है। हालाँकि, केवल ऐसे ऊपरी उपाय ही स्थायी रोजगार वृद्धि के लिए पर्याप्त नहीं हैं अतः इनसे आगे बढ़कर कार्य करना होगा।

रोजगार की वे श्रेणियाँ जिन पर भारत को ध्यान देना चाहिए:

  • जलवायु-अनुकूल नौकरियाँ: जलवायु परिवर्तन एक अत्यावश्यक और बढ़ती चिंता का विषय है। वर्ष 2019 में, भारत जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देशों में सातवें स्थान पर था, जिसने 2021 में 159 बिलियन डॉलर की आय का नुकसान वहन किया
    • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का अनुमान है कि 2030 तक अनुकूलन लागत लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी। 
    • कृषि, श्रम उत्पादकता और आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण ग्रामीण और शहरी अनुकूलन रणनीतियों में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है।
  • एआई-लचीली नौकरियाँ: भारत जैसे विकासशील देश के लिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की तीव्र प्रगति रोजगार के लिए, एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करती है, विशेष रूप से आईटी और व्यावसायिक सेवा क्षेत्रों में, जो वर्तमान में भारत के सेवा निर्यात का 70% से अधिक हिस्सा है। 
    • मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत में स्वचालन का 50% हिस्सा अगले दशक में अपनाया जा सकता है। 
    • मेटाजीपीटी, एआई-संचालित कोडिंग और चैटबॉट-संचालित ग्राहक सेवा जैसी प्रौद्योगिकियां पहले से ही मानव नौकरियों में प्रतिस्थापित हो रही हैं, जिससे रोजगार स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं।
  • आकांक्षा-केंद्रित नौकरियाँ: भारत के युवा, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में, एक विरोधाभास का सामना कर रहे हैं। डिजिटल मीडिया और स्टार्टअप संस्कृति के संपर्क में आने से उनकी आकांक्षाएँ व्यापक हुई हैं, लेकिन उनकी बुनियादी शिक्षा, खास तौर पर अंग्रेजी और तकनीकी कौशल में, कमज़ोर बनी हुई है। 
    • अनेक लोग अभी भी रोजगार पाने के लिए, सरकारी नौकरियों और कोचिंग संस्थानों पर निर्भर हैं, जो उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में निहित गहरी असुरक्षा को दर्शाता है।

भारत द्वारा रोजगार की आवश्यक श्रेणियों पर ध्यान केंद्रित करने के उपाय:

  • जलवायु-अनुकूल रोजगार पहल: रोजगार सृजन को बढ़ावा देते हुए, जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास करने चाहिए ताकि आर्थिक विकास को स्थिरता के साथ जोड़ना आवश्यक है। 
    • सरकार की बड़े पैमाने पर ऐसे कार्यक्रम शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका है, जो रोजगार सृजन के साथ-साथ पर्यावरणीय लचीलेपन और स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • ई-रिक्शा कार्यक्रम: इसके अंतर्गत, छह लाख गांवों में ई-रिक्शा उपलब्ध कराने की राज्य-सब्सिडी वाली पहल के माध्यम से महिलाओं पर विशेष ध्यान देते हुए  लगभग दो मिलियन रोजगार सृजित हो सकते हैं।
    • यह कार्यक्रम टिकाऊ और अंतिम-मील गतिशीलता की आवश्यकता को पूरा करेगा, कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा तथा ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा।
  • संपीड़ित बायोगैस संयंत्र का विकास : बायोगैस क्षेत्र में निवेश महत्वपूर्ण है। वर्तमान बुनियादी ढांचे में 82 संयंत्र शामिल हैं। इस संयत्र विकास पहल का लक्ष्य 2030 तक 5,000 संयंत्रों तक बढ़ाना है। बायोगैस उत्पादन का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार पैदा कर सकता है, कृषि अपशिष्ट को कम कर सकता है और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दे सकता है।
  • गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता: भारत के 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य में तेजी लाने से रोजगार सृजन  पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है ।
    • यह विस्तार विशेष रूप से विकेन्द्रीकृत और छतों पर सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो पारंपरिक ऊर्जा परियोजनाओं की तुलना में कहीं अधिक श्रम-गहन है। 
    • विकेन्द्रीकृत सौर ऊर्जा पर ध्यान केन्द्रित करके भारत दस लाख से अधिक नौकरियां पैदा कर सकता है, जिससे ऊर्जा परिवर्तन और रोजगार वृद्धि दोनों में योगदान मिलेगा।
  • शुद्ध-शून्य लक्ष्य: इस पहल के माध्यम से न केवल आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि 2070 तक भारत के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण प्रगति मिलेगी। हरित ऊर्जा और टिकाऊ क्षेत्रों में, नौकरियों का सृजन सीधे तौर पर दीर्घकालिक पर्यावरणीय लक्ष्यों का समर्थन करता है, इससे आजीविका और आर्थिक लचीलेपन में सुधार होता है।
  • एआई-लचीला रोजगार: चूंकि स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं, इसलिए उन नौकरियों के सृजन पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है जिन्हें  कृत्रिम बुद्धिमत्ता  आसानी से दोहरा नहीं सकता है। 
    • इन नौकरियों में मानवीय रचनात्मकता, शारीरिक संलग्नता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तकनीकी व्यवधान के बावजूद रोजगार सुरक्षित बना रहे।
  • बुनियादी खामियों को दूर करना: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में निवेश का विस्तार करने से एआई-लचीली नौकरियों का सृजन करने का महत्वपूर्ण अवसर प्राप्त किया जा सकता है। 
    • शिक्षा और स्वास्थ्य अर्थात इन दोनों ही क्षेत्रों में पेशेवरों की भारी कमी है – शिक्षक और स्वास्थ्य सेवा में कर्मियों की कमी देश भर में देखी जा सकती है। इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, दीर्घकालिक रोजगार पैदा कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि महत्वपूर्ण सेवाएँ मानव-केंद्रित बनी रहें।
  • ग्रामीण आजीविका को समर्थन: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जैसे कार्यक्रमों को मजबूत करने से ग्रामीण कारीगरों, किसानों और शिल्पकारों को महत्वपूर्ण समर्थन मिल सकता है, जिससे उन्हें वैश्विक और शहरी बाजारों तक बेहतर पहुंच मिल सकेगी। 
    • इन श्रमिकों को व्यापक आर्थिक अवसरों से जोड़ने से यह सुनिश्चित होता है कि हस्तशिल्प और जैविक खेती जैसे पारंपरिक उद्योग तकनीकी प्रगति के बावजूद भी प्रगतिशील बने रहेंगे।
  • कृषि आपूर्ति श्रृंखला अवसंरचना: युवाओं की आकांक्षाओं के साथ रोजगार सृजन को संरेखित करने की सबसे आशाजनक रणनीतियों में से एक बड़े पैमाने पर अवसंरचना विकास है।
    • उदाहरण के लिए, 70,000 एकीकृत पैक-हाउसों का निर्माण करके कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं में, 95% बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करने से दो मिलियन से अधिक नौकरियां पैदा हो सकती हैं। 
    • इन पैक-हाउसों से न केवल कृषि लॉजिस्टिक्स की दक्षता में सुधार होगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में, रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे, जिससे युवाओं के लिए कृषि एक अधिक आकर्षक करियर संबंधी विकल्प बन जाएगा।
  • कृषि-इनपुट विनिर्माण को बढ़ावा देना : उर्वरकों, कीटनाशकों और मशीनरी जैसे कृषि इनपुटों के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने से रोजगार सृजन को और बढ़ावा मिल सकता है।
    • इससे आयात पर निर्भरता कम होगी, स्थानीय उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, तथा विनिर्माण, अनुसंधान और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में कृषि-से-बाहर रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
  • ग्रामीण नौकरियों में परिवर्तन: तिलहन प्रसंस्करण जैसे ग्रामीण उद्योगों को पुनः ब्रांडिंग करके उन्हें युवाओं के लिए अधिक महत्त्वाकांक्षी और आकर्षक बनाया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन – तिलहन में तेजी लाने से भारत की खाद्य तेलों पर 57% आयात निर्भरता को कम करने में मदद मिल सकती है, साथ ही ग्रामीण तिलहन प्रसंस्करण को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
    • आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाकर, प्रसंस्करण तकनीकों में सुधार करके और डिजिटल विपणन प्लेटफार्मों का उपयोग करके, ग्रामीण उद्योगों को आधुनिक, आकर्षक करियर पथ में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ाना : इन पहलों को और अधिक समर्थन देने के लिए, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) एक संरचित रोजगार पारिस्थितिकी तंत्र की  स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी व सहयोग को बढ़ावा देकर, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए अधिक कुशल और टिकाऊ मॉडल तैयार कर सकती है, जिससे भर्ती में कम रिक्तियों और पारंपरिक नौकरी के अवसरों के प्रति असंतोष जैसी चुनौतियों का समाधान हो सकेगा।

निष्कर्ष:

अतः भारत अपने बुनियादी विकास क्षेत्रों में, रणनीतिक निवेश करके, न केवल जलवायु परिवर्तन और स्वचालन के  जोखिमों को कम कर सकता है, बल्कि अपने कार्यबल की पूरी क्षमता का उपयोग भी  कर सकता है, जिससे अंततः विकसित भारत का मार्ग प्रशस्त होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत का लक्ष्य जलवायु-लचीलापन, एआई-लचीलापन और आकांक्षा-केंद्रित नौकरियों को प्रोत्साहित करना है। विश्लेषण करें कि पर्यावरणीय स्थिरता, तकनीकी अनुकूलन और युवा आकांक्षाओं को एकीकृत करने से भारत के रोजगार परिदृश्य में, किस तरह बदलाव आ सकता है, हालांकि ग्रामीण-शहरी विभाजन, लैंगिक समावेशिता और आर्थिक आत्मनिर्भरता की चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। इस संदर्भ में, अभिनव समाधान सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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