Q. महात्मा गांधी और भगत सिंह की अलग-अलग विचारधाराओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनके संबंधित दृष्टिकोण को कैसे आकार दिया? उनके दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र क्या थे? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग 

  • जाँच कीजिए कि महात्मा गाँधी एवं भगत सिंह की भिन्न विचारधाराओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनके दृष्टिकोण को किस प्रकार आकार दिया। 
  • उनके दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में विविध दृष्टिकोण देखे गए, महात्मा गाँधी  जैसे नेताओं ने अहिंसा की वकालत की एवं भगत सिंह ने क्रांतिकारी प्रतिरोध का समर्थन किया। जहाँ गाँधी  की विचारधारा सत्य (सत्याग्रह) तथा सविनय अवज्ञा में निहित थी, वहीं भगत सिंह की दृष्टि समाजवादी क्रांति से जुड़ी थी। उनकी विपरीत रणनीतियों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आकार देने वाली गहरी वैचारिक बहसों को प्रतिबिंबित किया।

महात्मा गाँधी एवं भगत सिंह की भिन्न विचारधाराएँ

पहलू महात्मा गाँधी  भगत सिंह
प्रतिरोध का दृष्टिकोण गाँधी जी ने बिना हिंसात्मक ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए अहिंसा एवं सविनय अवज्ञा की वकालत की। 

उदाहरण के लिए: दांडी मार्च (1930) नमक कर के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध था, जिसमें हिंसक टकराव के बिना जनता को संगठित किया गया था।

भगत सिंह औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने एवं जन प्रतिरोध को प्रेरित करने के लिए क्रांतिकारी तरीकों में विश्वास करते थे। 

उदाहरण के लिए: वर्ष 1929 के असेंबली बम विस्फोट घटना का उद्देश्य प्रत्यक्ष कार्रवाई का उपयोग करके किसी को नुकसान पहुँचाए बिना जनता के मुद्दों को ब्रिटिश सरकार तक पहुँचाना   था।

परिवर्तन का दर्शन गाँधी जी ने क्रमिक सुधार को बढ़ावा दिया, उनका मानना ​​था कि उत्पीड़कों एवं उत्पीड़ितों दोनों का नैतिक परिवर्तन होना चाहिए। 

उदाहरण के लिए: उन्होंने संवाद के माध्यम से सुधार की माँग की, जैसा कि गाँधी -इरविन समझौते (1931) में देखा गया, जिसमें कैदियों की रिहाई एवं सविनय अवज्ञा की शर्तों पर बातचीत की गई।

भगत सिंह ने उत्पीड़कों की अंतरात्मा की अपील को खारिज करते हुए तीव्र, आमूलचूल परिवर्तन पर जोर दिया। 

उदाहरण के लिए: उनका मानना ​​था कि क्रांति के लिए नई व्यवस्था बनाने के लिए पुरानी दमनकारी व्यवस्थाओं को नष्ट करना आवश्यक है।

जनता की भूमिका गाँधी जी ने जन भागीदारी पर जोर दिया, असहयोग एवं शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से किसानों, श्रमिकों तथा आम लोगों को संगठित किया। 

उदाहरण के लिए: असहयोग आंदोलन (1920-22) ने लाखों लोगों को बहिष्कार, विरोध एवं सरकारी नौकरियों से इस्तीफे में शामिल किया।

भगत सिंह अग्रणी नेतृत्व में विश्वास करते थे, जहाँ युवा एवं क्रांतिकारी जनता को जागृत करने के लिए कट्टरपंथी कार्यों का नेतृत्व करते हैं। 

उदाहरण के लिए: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) एक छोटा लेकिन समर्पित समूह था जो लक्षित क्रांतिकारी गतिविधियों की योजना बना रहा था।

भारत के लिए विजन गाँधी जी खादी, ग्रामीण उद्योगों एवं नैतिक मूल्यों पर आधारित एक विकेन्द्रित, आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था चाहते थे। 

उदाहरण के लिए: उन्होंने स्वदेशी एवं खादी को बढ़ावा दिया तथा लोगों से ब्रिटिश सामान खरीदने के बजाय अपना कपड़ा खुद बनाने का आग्रह किया।

भगत सिंह ने एक समाजवादी भारत की कल्पना की थी, जिसमें आर्थिक असमानता को खत्म किया जाएगा एवं वर्ग उत्पीड़न को खत्म किया जाएगा। 

उदाहरण के लिए: उनके पेपर ‘टू यंग पॉलिटिकल वर्कर्स’ में भूमि पुनर्वितरण एवं पूंजीवादी शोषण के अंत का आह्वान किया गया था।

ब्रिटिश शासन पर दृष्टिकोण गाँधी जी बिना किसी शत्रुता के स्वशासन (स्वराज) के लिए शांतिपूर्ण संक्रमण चाहते थे, तथा भविष्य में अंग्रेजों के साथ सहयोग की उम्मीद करते थे। 

उदाहरण के लिए: उन्होंने गोलमेज सम्मेलन (1931) में अंग्रेजों के साथ सहयोग किया, तथा क्रमिक सत्ता हस्तांतरण की माँग की।

भगत सिंह ने ब्रिटिश शासन को स्वाभाविक रूप से दमनकारी माना, तथा औपनिवेशिक संरचनाओं को पूरी तरह से एवं हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने की वकालत की। 

उदाहरण के लिए: सॉन्डर्स (1928) की हत्या का उद्देश्य संवाद को अस्वीकार करते हुए सीधे तौर पर ब्रिटिश दमन को दंडित करना था।

गाँधी  एवं भगत सिंह के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र

संघर्ष क्षेत्र गाँधी  का दृष्टिकोण भगत सिंह का दृष्टिकोण
हिंसा का प्रयोग गाँधी जी ने हिंसा का कड़ा विरोध किया, उनका मानना ​​था कि यह पीड़ित एवं अपराधी दोनों को भ्रष्ट कर देती है, जिससे बदले की भावना का अंतहीन चक्र चलता रहता है। 

उदाहरण के लिए: गाँधी जी ने चौरी चौरा घटना (1922) की निंदा की एवं प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस अधिकारियों की हत्या के बाद असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया।

भगत सिंह ने हिंसा को क्रांति के लिए एक आवश्यक उपकरण एवं औपनिवेशिक उत्पीड़न के लिए एक उचित प्रतिक्रिया के रूप में देखा। 

उदाहरण के लिए: भगत सिंह ने क्रांतिकारी कार्यों का बचाव किया, एवं ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता को जगाने के तरीके के रूप में हिंसा को उचित ठहराया।

अंग्रेजों से निपटना गाँधी जी बातचीत एवं नैतिक अपील में विश्वास करते थे, वे अंग्रेजों को भारत के भविष्य में संभावित साझेदार के रूप में देखते थे। 

उदाहरण के लिए: गाँधी -इरविन समझौता (1931) एक समझौता था जिसे गाँधी जी ने ब्रिटिश विश्वासघात के बावजूद स्वीकार किया था।

भगत सिंह अंग्रेजों को अपूरणीय उत्पीड़क मानते थे, जिन्हें जबरन भारत से बाहर निकाला जाना था। 

उदाहरण के लिए: उन्होंने बातचीत का मज़ाक उड़ाया एवं इस बात पर ज़ोर दिया कि क्रांतिकारियों को औपनिवेशिक शासन को सीधे उखाड़ फेंकना चाहिए।

आर्थिक दृष्टि गाँधी जी ने हस्तशिल्प, कुटीर उद्योग एवं स्थानीय उत्पादन पर जोर देते हुए आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। 

उदाहरण के लिए: गाँधी जी ने ग्रामीण शिल्प एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की।

भगत सिंह ने आर्थिक समानता सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख उद्योगों पर राज्य नियंत्रण के साथ औद्योगीकरण एवं समाजवाद की कल्पना की थी। 

उदाहरण के लिए: उन्होंने जमींदारी एवं पूंजीवाद को खत्म करने का आह्वान किया, यह तर्क देते हुए कि धन श्रमिकों का होना चाहिए।

सार्वजनिक लामबंदी गाँधी जी ने अहिंसक आंदोलनों के माध्यम से जन-आंदोलन पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें लाखों भारतीयों को शामिल किया गया। 

उदाहरण के लिए: सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) ने ब्रिटिश कानूनों के खिलाफ किसानों, छात्रों एवं श्रमिकों को एकजुट किया।

भगत सिंह चुनिंदा क्रांतिकारी कार्रवाई में विश्वास करते थे, जहाँ छोटे समूह जनता को प्रेरित करने के लिए साहसिक कदम उठाते थे। 

उदाहरण के लिए: असेंबली बम विस्फोट (1929) का उद्देश्य लोगों में निडर विद्रोह को प्रज्वलित करना था।

“रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन मंजिल एक ही है।” गाँधी  का अहिंसा का दर्शन एवं भगत सिंह का क्रांतिकारी उत्साह एक ही सिक्के के दो पहलू थे, दोनों ही एक स्वतंत्र भारत के सपने से प्रेरित थे। उनकी संयुक्त विरासत ने भारत की स्वतंत्रता की भावना को आकार दिया, जिसमें संप्रभुता हासिल करने के लिए प्रतिरोध के साथ लचीलापन भी शामिल था।

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