Q. भारत-चीन संबंधों में सहयोग और टकराव की स्थिति बनी रहती हैं। इन संबंधों में तनाव को कम करने वाले प्रमुख संरचनात्मक कारकों का विश्लेषण कीजिए और आकलन कीजिए कि क्या यह परिवर्तन लंबे समय तक संभव है। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि भारत-चीन संबंध, किस प्रकार सहयोग और संघर्षों के बीच विकसित होता रहा है।
  • हाल ही में संबंधों में तनाव कम होने को प्रभावित करने वाले प्रमुख संरचनात्मक कारकों का विश्लेषण कीजिए।
  • मूल्यांकन कीजिए कि क्या यह परिवर्तन लंबे समय तक सतत है।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

भारत-चीन संबंध, सहयोग और संघर्षों के बीच विकसित होता रहा है, विशेषकर वर्ष 1988 में भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद से, जिसने कूटनीतिक संबंधों की नींव रखी। वर्ष 2020 में गलवान जैसी कई सीमा झड़पों के बावजूद, दोनों देशों ने आर्थिक आवश्यकताओं, सैन्य वास्तविकताओं और क्षेत्रीय सुरक्षा पर साझा चिंताओं से प्रेरित होकर तनाव कम करने की कोशिश की है।

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भारत-चीन संबंध सहयोग और संघर्षों के बीच विकसित होता रहा है 

सहयोग के क्षेत्र

  • आर्थिक अंतरनिर्भरता और व्यापार: राजनीतिक तनाव के बावजूद, भारत और चीन मजबूत व्यापार संबंध बनाए हुए हैं, भारत फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए चीनी आयात पर निर्भर है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग चीन से प्राप्त होने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स  (API) पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे भू-राजनीतिक तनावों के बीच भी स्थिर आर्थिक जुड़ाव सुनिश्चित होता है।
  • राजनयिक जुड़ाव और शिखर सम्मेलन: भारतीय और चीनी नेताओं के बीच नियमित उच्च स्तरीय बैठकों ने कूटनीतिक वार्ता और संघर्ष प्रबंधन को सुविधाजनक बनाया है, जिससे छोटे-मोटे विवादों को बड़े पैमाने के संकट में बदलने से रोका जा सका है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1988 में राजीव गांधी की चीन यात्रा ने निरंतर राजनयिक संवाद के लिए तंत्र स्थापित करने में मदद की, जिससे आर्थिक और राजनीतिक सहयोग की नींव रखी गई।
  • पीपुलटूपीपुल (P2P) संबंध: हजारों भारतीय छात्र, चीन में पढ़ते हैं, और कूटनीतिक तनाव के बावजूद सांस्कृतिक और शैक्षणिक विनिमय को जारी रखने में सहायता करते हैं, जिससे दोनों समाजों के बीच दीर्घकालिक समझ बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन में भारतीय मेडिकल छात्रों को सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का लाभ मिलता है, जिससे दोनों देशों के बीच मजबूत सामाजिक और शैक्षिक संबंध बनाए रखने में मदद मिलती है।

संघर्ष के क्षेत्र

  • सीमा विवाद और सैन्य गतिरोध: लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर निरंतर होने वाले क्षेत्रीय विवादों के कारण कई सैन्य झड़पें हुई हैं, जिनमें गलवान (2020) और यांग्त्से (2022) में हाल ही में हुई झड़पें भी शामिल हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प में दोनों पक्षों के सैनिक हताहत हुए, जिससे भारत-चीन संबंधों में काफी तनाव उत्पन्न हुआ और सैन्य तैनाती बढ़ा दी गई।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और रणनीतिक संघर्ष: हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति और पाकिस्तान को मिलने वाली उसकी सहायता, भारत के सामरिक हितों को चुनौती देता है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) में PoK  की परियोजनाएं शामिल हैं, जिसका भारत अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में कड़ा विरोध करता है।
  • तकनीकी और व्यापार प्रतिबंध: भारत ने सुरक्षा चिंताओं के कारण चीनी निवेश पर प्रतिबंध लगाए हैं और कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, जो प्रौद्योगिकी और व्यापार क्षेत्रों में गहरे अविश्वास को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत सरकार ने सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2020 में TikTok और 58 अन्य चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया।

हाल ही में कम होते तनाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख संरचनात्मक कारक

  • आर्थिक अंतरनिर्भरता और व्यापार आवश्यकता: भारत और चीन दोनों ही आर्थिक विकास के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। भारत को चीनी सामान की जरूरत है और चीन को बाजार विविधीकरण की जरूरत है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के 70% से अधिक एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (API), चीन से प्राप्त होते हैं।
  • सैन्य गतिरोध और लंबे समय तक तैनाती की लागत: दुर्गम सीमा क्षेत्रों में सैन्य तैनाती बनाए रखने की उच्च लागत ने कूटनीतिक जुड़ाव को बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से चल रहे गतिरोध के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है, जिससे दोनों पक्षों के लिए पूर्ण पैमाने पर सैन्य संघर्ष करना अवांछनीय हो गया है।
  • अमेरिकी विदेश नीति पर साझा चिंताएँ: दोनों देश वाशिंगटन से व्यापार प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक दबावों को देखते हुए अमेरिका के साथ अपनी सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चीन को व्यापार और प्रौद्योगिकी के मामले में अमेरिकी जाँच का सामना करना पड़ रहा है, जबकि भारत को आव्रजन और सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर तनाव का सामना करना पड़ रहा है जिससे दोनों ही देश रणनीतिक कूटनीति की ओर बढ़ रहे हैं।
  • वैश्विक चुनौतियों के बीच क्षेत्रीय स्थिरता की आवश्यकता: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और क्षेत्रीय संघर्षों के साथ, भारत-चीन संबंधों में स्थिरता, दोनों देशों के लिए फायदेमंद है। 
    • उदाहरण के लिए: ताइवान और दक्षिण चीन सागर पर चीन का ध्यान उसे बहु-मोर्चे के संघर्षों से बचने के लिए भारत के साथ सीमा तनाव को प्रबंधित करने के लिए मजबूर करता है।
  • सामान्यीकरण के लिए कूटनीतिक रूपरेखा: नियमित उच्च-स्तरीय बैठकें और समझौते तनाव कम करने और विवादों के प्रबंधन के लिए एक संरचनात्मक आधार प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 BRICS शिखर सम्मेलन में भारत और चीन ने कूटनीतिक वार्ता की, जिससे संबंधों में सामान्य स्थिति बहाल करने की इच्छा का संकेत मिला।

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इस बात का आकलन कि क्या यह परिवर्तन लंबे समय तक टिकाऊ रहेगा

दीर्घकाल तक टिकाऊ परिवर्तन 

  • पारस्परिक आर्थिक निर्भरता: राजनीतिक तनाव के बावजूद आर्थिक सहयोग सुनिश्चित करते हुए भारत और चीन दोनों ही व्यापार के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं जिससे पूर्ण विघटन की संभावना कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: वित्त वर्ष 2024 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 118.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • सैन्य गतिरोध और संघर्ष से बचना: सीमा पर सैन्य तैनाती की उच्च लागत को देखते हुए, दोनों देशों के पास स्थिरता बनाए रखने और लंबे समय तक संघर्ष से बचने के लिए प्रोत्साहन हैं। 
    • उदाहरण के लिए: 2020 के गलवान संघर्ष के कारण भारी सैन्य जमावड़ा हुआ, लेकिन दोनों पक्षों ने तनाव कम करने के लिए जल्द ही कूटनीतिक रूप से पुनः वार्ता शुरू कर दी।
  • बहुध्रुवीय विश्व में साझा रणनीतिक हित: दोनों देश पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करना चाहते हैं, जिससे व्यावहारिक सहयोग एक व्यवहार्य दीर्घकालिक रणनीति बन सके। 
    • उदाहरण के लिए: BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत और चीन की भागीदारी वैश्विक मंचों पर सहयोग करने की उनकी इच्छा को दर्शाती है।

यह परिवर्तन टिकाऊ नहीं

  • अनसुलझे सीमा विवाद और राष्ट्रवाद: दोनों देशों में सीमा पर बार-बार होने वाली झड़पें और राष्ट्रवादी बयानबाजी, दीर्घकालिक शांति को कमजोर बनाती है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2017 में डोकलाम गतिरोध और उसके बाद की झड़पें यह संकेत देती हैं कि क्षेत्रीय विवाद किसी भी समय तनाव को फिर से भड़का सकते हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और सैन्य गठबंधन: अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते संबंध और QUAD में भागीदारी तथा इंडो-पैसिफिक में बढ़ती उपस्थिति चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व को चुनौती देती है, जिससे रणनीतिक अविश्वास बढ़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन, QUAD को क्षेत्र में अपने प्रभुत्व के लिए खतरा मानता है और अक्सर इसे एशियाई NATO कहता है।
  • आर्थिक और तकनीकी संघर्ष: चीनी निवेश पर भारत के प्रतिबंध और तकनीक पर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, आर्थिक संबंधों में दीर्घकालिक संघर्ष का कारण बन सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध और भारत के 5G नेटवर्क में हुआवेई की भागीदारी पर प्रतिबंध, गहरे रणनीतिक अविश्वास को दर्शाता है।

आगे की राह 

  • संकट प्रबंधन के लिए कूटनीतिक चैनलों को मजबूत करना: गलतफहमियों को रोकने और संघर्षों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए नियमित उच्च स्तरीय वार्ता और कूटनीतिक जुड़ाव को संस्थागत बनाया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: सीमा मुद्दों पर विशेष प्रतिनिधियों के संवाद की पुनः: शुरुआत करने से खुला संचार बनाए रखने और भविष्य में तनाव को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • सुरक्षा उपायों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाना: जबकि व्यापार अभी भी आवश्यक है, भारत को आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लानी चाहिए और गैर-संवेदनशील क्षेत्रों
    में नियंत्रित चीनी निवेश को अनुमति देनी चाहिए।

    • उदाहरण के लिए: हरित ऊर्जा और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करने से राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए बिना आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिल सकता है।
  • सीमा पर विश्वास-निर्माण उपाय (CBM): सीमा प्रोटोकॉल को मजबूत करने, सैन्य संचार को बढ़ाने और विघटन तंत्र को मजबूत करने से भविष्य में होने वाली झड़पों को रोका जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: स्थानीय सैन्य कमांडरों के बीच हॉटलाइन संचार स्थापित करने से सीमा पर होने वाली घटनाओं के मामले में तनाव को शीघ्रता से कम करने में मदद मिल सकती है।
  • स्थिरता के लिए बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाना: दोनों देशों को, हितों को संरेखित करने और शत्रुता को कम करने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों पर सहयोग करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: BRICS और SCO में संयुक्त पहल से व्यापार, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर वार्ताओं को बढ़ावा मिलेगा तथा आपसी विश्वास को बढ़ावा मिलेगा।
  • पीपुलटूपीपुल संपर्क (P2P) को बढ़ावा देना: शैक्षणिक, सांस्कृतिक और व्यावसायिक आदान-प्रदान को बढ़ाने से सामाजिक स्तर पर समझ मजबूत हो सकती है और नकारात्मक धारणाएं कम हो सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: छात्र विनिमय कार्यक्रमों और सांस्कृतिक उत्सवों का विस्तार करने से शत्रुता का मुकाबला करने और दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक सद्भावना बनाने में मदद मिल सकती है।

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कूटनीतिक जुड़ाव, आर्थिक अंतरनिर्भरता और रणनीतिक पुनर्संतुलन भारत-चीन संबंधों में हाल ही में आए सहजता के संकेतों के पीछे प्रमुख कारक रहे हैं। हालाँकि, दीर्घकालिक स्थिरता निरंतर आपसी विश्वास, सीमा मुद्दों के सावधानीपूर्वक प्रबंधन और वैश्विक भू-राजनीतिक गतिशीलता पर निर्भर करेगी। संघर्ष समाधान और सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने से एक संतुलित भविष्य को आकार मिल सकता है।

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