Q. भारत के खाद्य सुरक्षा मानकों में उल्लेखनीय विकास हुआ है, फिर भी जोखिम मूल्यांकन और संचार में अंतराल बना हुआ है। विज्ञान आधारित खाद्य सुरक्षा विनियमों को लागू करने में चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। उपभोक्ता संरक्षण और विनियामक प्रभावशीलता सुनिश्चित करते हुए भारत वैज्ञानिक साक्ष्य और सार्वजनिक धारणा को कैसे संतुलित कर सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • विगत कुछ वर्षों में भारत के खाद्य सुरक्षा मानकों के विकास पर चर्चा कीजिए।
  • भारत के खाद्य सुरक्षा मानकों में जोखिम मूल्यांकन और संचार में अंतराल का परीक्षण कीजिए।
  • भारत में विज्ञान-आधारित खाद्य सुरक्षा विनियमों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
  • चर्चा कीजिए कि भारत उपभोक्ता संरक्षण और नियामक प्रभावशीलता सुनिश्चित करते हुए वैज्ञानिक साक्ष्य और सार्वजनिक धारणा के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित कर सकता है।

उत्तर

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नेतृत्व में भारत के खाद्य सुरक्षा ढाँचे का उद्देश्य सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना है। प्रगति के बावजूद, जोखिम मूल्यांकन, संचार और विनियामक प्रवर्तन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और विश्वास को प्रभावित करती हैं।

भारत के खाद्य सुरक्षा मानकों का विकास

  • वर्ष 2006 से पूर्व खंडित विनियामक ढाँचा: वर्ष 2006 से पहले, भारत की खाद्य सुरक्षा कई कानूनों द्वारा शासित होती थी, जिसके कारण खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 और नियम, 1955 के माध्यम से प्रारंभिक विनियमन के साथ असंगतताएँ और विनियामक अतिव्यापन होता था।
  • वर्ष 2006: खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FSS अधिनियम), 2006 में मौजूदा खाद्य कानूनों को एकल ढाँचे में समेकित किया गया और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2011-प्रमुख विनियमों की अधिसूचना: FSSAI ने खाद्य उत्पादों, योजकों, संदूषकों, लेबलिंग, पैकेजिंग और स्वास्थ्य दावों के मानकों को कवर करने वाले छह प्रमुख विनियमों को अधिसूचित किया।
  • वर्ष 2016-स्वास्थ्य पूरक और न्यूट्रास्युटिकल्स विनियमन: स्वास्थ्य पूरक और न्यूट्रास्युटिकल्स के लिए व्यापक सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को प्रस्तुत किया गया।
  • वर्ष 2017–2022 – विशिष्ट खाद्य विनियमन प्रस्तुत किए गए
    • वर्ष 2017 – खाद्य रिकॉल प्रक्रिया विनियमन: असुरक्षित खाद्य उत्पादों को वापस करने के लिए प्रक्रियाएँ स्थापित की गईं।
    • वर्ष 2017 – आयात विनियमन: खाद्य आयात के लिए सुरक्षा मानक निर्धारित किए गए।
    • वर्ष 2017 – जैविक खाद्य विनियमन: जैविक खाद्य के लिए लेबलिंग और प्रमाणन मानदंड निर्धारित किये गये।
    • वर्ष 2022 – आयुर्वेद आहार विनियमन: आयुर्वेदिक खाद्य उत्पाद सुरक्षा और विपणन को मानकीकृत किया गया।

जोखिम मूल्यांकन में अंतराल

  • सीमित प्रयोगशाला अवसंरचना: भारत में केवल 112 NABL-मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएँ हैं, जो समय पर परीक्षण सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संख्या से कम हैं। 
    • उदाहरण: वर्ष 2024-25 में, गुजरात FDCA ने 351 टन संदिग्ध खाद्य पदार्थ जब्त किए, जो अपर्याप्त परीक्षण क्षमता को उजागर करता है।
  • असंगत संकट प्राथमिकता: जोखिम मूल्यांकन प्रकोष्ठ (RAC) में रियलटाइम आँकड़ों का अभाव है, जिससे उभरते खतरों पर प्रतिक्रिया में देरी होती है।
  • अपर्याप्त नमूनाकरण प्रोटोकॉल: केवल 32% प्रयोगशालाएँ कीटनाशक अवशेषों के लिए परीक्षण करती हैं जिसके कारण खतरे की रूपरेखा अपूर्ण रह जाती है।
  • विलंबित नमूना विश्लेषण: परीक्षण सुविधाओं में लंबित कार्यों के कारण विश्लेषण में अधिक समय लगता है।

जोखिम संचार में अंतराल

  • तकनीकी भाषा संबंधी बाधाएँ: वैज्ञानिक डेटा अक्सर आम जनता के लिए उपलब्ध नहीं होता है। 
    • उदाहरण: RAC रिपोर्ट में सरलीकृत सारांश का अभाव होता है, जिससे उपभोक्ताओं को समझने में कठिनाई होती है।
  • शहरी-केंद्रित आउटरीच: संचार रणनीतियाँ मुख्य रूप से शहरी आबादी को लक्षित करती हैं। 
    • उदाहरण: FSSAI की ‘फूड सेफ्टी ऑन व्हील्स’ वैन की ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच सीमित है।
  • विलंबित सार्वजनिक अलर्ट: उपभोक्ताओं को जोखिम संबंधी अलर्ट तुरंत जारी नहीं किए जाते। 
    • उदाहरण: खाद्य आयात अस्वीकृति चेतावनी (FIRA) पोर्टल ने सिंगापुर और हांगकांग द्वारा प्रतिबंध के बाद भी दूषित भारतीय मसालों पर अलर्ट देने में देरी की
  • सीमित हितधारक प्रतिक्रिया: संचार को आकार देने में सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए तंत्र कमजोर हैं। 
    • उदाहरण: FSSAI का फूड सेफ्टी कनेक्ट ऐप शिकायत की सुविधा प्रदान करता है, लेकिन इसमें नीति निर्धारण या लेबल पुनः डिजाइन के लिए उपभोक्ता इनपुट के संरचित उपयोग का अभाव है।

विज्ञान-आधारित विनियमों को लागू करने में चुनौतियाँ

  • बुनियादी ढाँचे की कमी: मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की कमी के कारण समय पर निरीक्षण में बाधा आती है।
  • जटिल विनियामक ढाँचा: ओवरलैपिंग मानक खाद्य व्यवसाय संचालकों (FBO) के लिए भ्रम उत्पन्न करते हैं। 
    • उदाहरण: हर्बल सप्लीमेंट्स को FSSAI और आयुष मंत्रालय दोनों द्वारा विनियमित किया जाता है, जिससे लाइसेंसिंग में देरी और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • सीमित उपभोक्ता जागरूकता: खाद्य सुरक्षा विनियमों के बारे में जनता की जानकारी सीमित है। 
    • उदाहरण: जागो ग्राहक जागो कार्यक्रम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को शिक्षित करना है, लेकिन इसे सभी जनसांख्यिकीय समूहों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • अनौपचारिक बाजारों में विनियामक अंतराल: खाद्य आपूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, विशेष रूप से लघु विक्रेताओं से, अनियमित बना हुआ है।
  • उभरते हुए प्रदूषक: रासायनिक प्रदूषक नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं। 
    • उदाहरण: FSSAI इन प्रदूषकों के लिए अधिकतम अवशेष स्तर (MRL) को लागू करने पर कार्य कर रहा है।

वैज्ञानिक साक्ष्य और सार्वजनिक धारणा में संतुलन

  • पारदर्शी संचार: निर्णयों के पीछे के साक्ष्यों का खुलासा करने से जनता का विश्वास बढ़ता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में, FSSAI ने किसान समूहों और पर्यावरणविदों के प्रतिरोध के बाद MRL परिवर्तनों के लिए विस्तृत औचित्य प्रकाशित किया।
  • समावेशी हितधारक सहभागिता: विभिन्न हितधारकों को शामिल करने से विविध दृष्टिकोण सुनिश्चित होते हैं। 
    • उदाहरण: FSSAI और कारगिल इंडिया के CHIFSS ने समावेशी दिशानिर्देश विकास के लिए बहु-हितधारक कार्यशालाएँ आयोजित कीं।
  • उपभोक्ता शिक्षा अभियान: उपभोक्ताओं को शिक्षित करने से सूचित खाद्य विकल्पों को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण: ईट राइट इंडिया पहल सुरक्षित खाद्य प्रथाओं और पोषण जागरूकता को प्रोत्साहित करती है।
  • सार्वजनिक चिंताओं के अनुसार विनियामक अनुकूलन: सार्वजनिक प्रतिक्रिया के आधार पर विनियमों को अनुकूलित करना, प्रासंगिकता सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण: जनता की माँग के बाद FSSAI ने एलर्जेन के बारे में स्पष्ट जानकारी शामिल करने हेतु लेबलिंग मानदंडों को संशोधित किया।
  • प्रवर्तन तंत्र को मजबूत बनाना: मजबूत प्रवर्तन सुरक्षा मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।

भारत के खाद्य सुरक्षा मानकों के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे, सुव्यवस्थित विनियमन और प्रभावी संचार रणनीतियों की आवश्यकता है। वैज्ञानिक साक्ष्य को सार्वजनिक धारणा के साथ जोड़कर और मजबूत प्रवर्तन सुनिश्चित करके, भारत एक सुरक्षित खाद्य वातावरण बना सकता है जो जनता के विश्वास और स्वास्थ्य को बढ़ावा देगा।

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