Q. [साप्ताहिक निबंध] बल या शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं मिलती है; बल्कि यह अदम्य इच्छा शक्ति से प्राप्त होती है| (1200 शब्द)

उत्तर:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना:
    • उद्धरण को एक कहानी के माध्यम से उचित रूप से प्रस्तुत करते हुए, इसमें शामिल किए जाने वाले आयामों की विस्तृत चर्चा कीजिए।
  • मुख्य भाग:
    • “शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं मिलती” विषय के संदर्भ में, शक्ति की अवधारणा और इसके विभिन्न आयामों को समझाएं।
    • शक्ति में योगदान देने में शारीरिक क्षमता के महत्व और सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
    • शक्ति निर्माण में ‘अदम्य इच्छाशक्ति’ के महत्व और ‘शारीरिक क्षमता’ के साथ इसके अंतर को स्पष्ट कीजिए।
    • शक्ति बनाए रखने में शारीरिक क्षमता और अदम्य इच्छाशक्ति के बीच परस्पर क्रिया की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
    • शारीरिक क्षमता एवं अदम्य इच्छाशक्ति विकसित करने के उपाय सुझाएं।
  • निष्कर्ष:
    • अपने निबंध का सारांश देते हुए उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

 

प्रस्तावना:

20वीं सदी के प्रारम्भ में, औपनिवेशिक भारत के अशांत परिदृश्य के मध्य, एक दुर्बल लेकिन दृढ़ निश्चयी व्यक्ति लाखों लोगों के लिए आशा की किरण बनकर उभरा। महात्मा गांधी, अक्सर एक साधारण लंगोटी पहने हुए, ब्रिटिश साम्राज्य के दमनकारी शासन के विरुद्ध अवज्ञा के प्रतीक के रूप में दिखाई देते थे। वे शारीरिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति नहीं दिखाई देते थे बल्कि उनकी अदम्य इच्छाशक्ति ने भारत के प्रत्येक व्यक्ति को अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया। कारावास से लेकर शारीरिक हमलों तक, कई बाधाओं का सामना करने के बावजूद, गांधी का संकल्प अटल रहा। अहिंसक प्रतिरोध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और सत्य एवं न्याय की शक्ति में अटूट विश्वास ने लाखों लोगों को भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

गांधी जी की जीवनी व उनके कृत्य इस उद्धरण का सटीक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, कि शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं मिलती है, बल्कि यह अदम्य इच्छाशक्ति से प्राप्त होती है। उनकी जीवनी इस धारणा को रेखांकित करती है कि वास्तविक शक्ति शारीरिक कौशल से परे है, अर्थात विपरीत परिस्थिति का सामना करते हुए यह आंतरिक दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के महत्व पर जोर देती है। इस उद्धरण पर ज़ोर देते हुए, आइए हम शक्ति की बहुमुखी प्रकृति, शारीरिक क्षमता के महत्व और इच्छाशक्ति की शक्ति के विषय में जानें, जो व्यक्तियों को किसी भी दुर्गम बाधा को दूर करने में सक्षम बनाती है।

मुख्य भाग:

‘शक्ति’ एक ऐसी वस्तु है जिसकी चाहत लगभग हर कोई रखता है। यह एक ऐसा गुण है जो उन्हें विपरीत परिस्थितियों से उबरने में मदद करता है। शक्ति एक बहुआयामी अवधारणा है, जो विभिन्न आयामों में प्रकट होती है जो मानव के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं को शामिल करती है। शारीरिक बल, शक्ति का सर्वाधिक तौर पर पहचाना जाने वाला रूप है, जो शारीरिक चुनौतियों की सहनशीलता से संबंधित है। इसके विपरीत, मानसिक शक्ति मन के लचीलेपन और दृढ़ता के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें दृढ़ संकल्प, फोकस, अनुकूलनशीलता और समस्या-समाधान कौशल जैसे गुण शामिल होते हैं, जो व्यक्तियों को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बाधाओं को दूर करने और अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने में सक्षम बनाते हैं।

दूसरी ओर, भावनात्मक शक्ति से तात्पर्य किसी की भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और विनियमित करने की क्षमता से है। इसमें लचीलापन, आत्म-जागरूकता, सहानुभूति इत्यादि के साथ  उदासी, क्रोध या भय जैसी कठिन भावनाओं से निपटने की क्षमता शामिल है। अंत में, आध्यात्मिक शक्ति में आंतरिक शांति, उद्देश्य और स्वयं से अधिक महान किसी चीज़ से जुड़ाव शामिल है। इसमें विश्वास और किसी समुदाय या उच्च शक्ति से संबंधित होने की भावना जैसे गुण शामिल हैं।

शक्ति या ताकत के प्रत्येक पहलू को समझना और विकसित करना किसी व्यक्ति के समग्र लचीलेपन और जीवन की जटिलताओं को साहस और अनुग्रह के साथ संचालित करने की क्षमता में योगदान देता है। उदाहरण के लिए, किसी ऐसे व्यक्ति पर विचार कीजिए जो कार्यस्थल पर चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें अत्यधिक कार्यभार, पारस्परिक संघर्ष और उनके करियर पथ में अनिश्चितता शामिल है। इन जटिलताओं से निपटने के लिए, उसे अपनी नौकरी की मांगों को पूरा करने के लिए ऊर्जा के रूप में शारीरिक शक्ति, समस्या सुलझाने के कौशल विकसित करने के लिए मानसिक शक्ति, पारस्परिक संघर्षों से निपटने के लिए भावनात्मक शक्ति और कई अन्य चुनौतियों के बीच अपने मूल्यों और सत्यनिष्ठा  को बनाए रखने के लिए आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है।

मूर्त प्रकृति और दृश्यता के कारण, शारीरिक क्षमता को अक्सर बल या शक्ति के समतुल्य माना जाता है, और किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक कार्यों को निष्पादित करने में  इसकी अत्यधिक आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, मैराथन जीतने की लालसा रखने वाले एथलीट के पास कठिन दौड़ को जीतने के लिए शारीरिक सहनशक्ति और ताकत होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सफलता का मार्ग प्रशस्त करने से पहले शारीरिक चुनौतियों पर विजय प्राप्त करनी होगी। चाहे पर्वत पर चढ़ना हो या शारीरिक श्रम करना हो, शारीरिक क्षमता अपरिहार्य है।

समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बनाए रखने के लिए शारीरिक क्षमता भी आवश्यक है। यह व्यक्तियों को विविध वातावरण और परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की सहूलियत देता है, जिससे उन्हें दुर्गम क्षेत्रों में शारीरिक रूप से कठिन कार्यों को निष्पादित करने में मदद मिलती है। प्रशिक्षण और कंडीशनिंग(कंडीशनिंग का अर्थ व्यायाम, आहार और आराम के माध्यम से शारीरिक रूप से फिट बनने के लिए प्रशिक्षण की प्रक्रिया है) के माध्यम से शारीरिक क्षमता विकसित करने से व्यक्ति का आत्मविश्वास, लचीलापन भी बढ़ता है और उसकी शक्ति में योगदान होता है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2016 के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि नियमित रूप से व्यायाम करने वाली दिनचर्या व्यक्ति के आत्मसम्मान में वृद्धि करती है

कुछ मामलों में, जैसे खेल या शारीरिक श्रम से जुड़े व्यक्ति प्रभावशाली दिखाई पड़ सकते हैं। बहरहाल, यह स्वीकार करना जरूरी है कि शारीरिक क्षमता शक्ति के केवल एक पहलू का प्रतिनिधित्व करती है और हमेशा यह हर परिस्थिति में सर्वोपरि नहीं होती है। मानसिक लचीलापन, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और रणनीतिक सोच जैसे अन्य गुण अक्सर समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेष रूप से शारीरिक परिश्रम से परे जटिल और गतिशील वातावरण में।

केवल शारीरिक शक्ति ही चुनौतियों का सामना करने में सफलता या लचीलेपन की गारंटी नहीं दे सकती है। हालांकि यह कुछ गतिविधियों में लाभकारी हो सकता है, जैसे भारी वजन उठाना या शारीरिक परिश्रम करना।  ताकत या बल के अन्य रूप, जैसे मानसिक लचीलापन या भावनात्मक दृढ़ता, अक्सर परिणामों को निर्धारित करने में समान या उससे भी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2020 में हुए टोक्यो ओलंपिक खेलों का विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन में पाया गया कि मनोवैज्ञानिक तनाव एथलीटों के प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, चाहे उनकी शारीरिक स्थिति कुछ भी हो। इस घटना का उदाहरण टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका का वर्ष 2021 के फ्रेंच ओपन से हटना है, इसका कारण ओसाका ने अवसाद, चिंता सहित मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों को बताया। यह घटना एथलेटिकों के जीवन में सफलता के मायने व मानसिक लचीलेपन की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।

इसके अतिरिक्त, शारीरिक क्षमता स्वाभाविक रूप से सीमित होती है और वक्त के साथ यह परिवर्तन के अधीन है। आयु, चोट या रोग जैसे कारक शारीरिक शक्ति को कम करते हैं। इसके विपरीत, दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और अनुकूलनशीलता जैसे गुण शारीरिक विशेषताओं पर कम निर्भर होते हैं और इन्हें आयु या शारीरिक स्थिति की परवाह किए बिना विकसित और मजबूत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग को 21 वर्ष की उम्र में एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) नामक रोग का पता चला था, जिससे वह व्हीलचेयर आ गए थे और बिना सहायता के बोलने में वे असमर्थ थे। लेकिन ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के उनके दृढ़ संकल्प ने खगोलीय विज्ञान और ब्लैक होल में उनके अभूतपूर्व कार्य को बढ़ावा दिया।

“शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं मिलती” शक्ति की बहुमुखी प्रकृति को रेखांकित करती है, जो व्यक्तिगत कौशल से आगे बढ़कर व्यापक सामाजिक दायरे को कवर करती है। जिस तरह व्यक्ति भौतिक क्षमता पर भरोसा करते हैं, उसी तरह समुदाय, समाज और राष्ट्र भी प्रगति के लिए भौतिक बुनियादी ढांचे का लाभ उठाते हैं। यद्यपि किसी समाज या देश की प्रगति के लिए भौतिक क्षमता आवश्यक है, इसे अक्सर आपदाओं के रूप में बाधाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिन्हें केवल ठोस संसाधनों से दूर नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, वेनेज़ुएला को अपनी भौतिक क्षमता और तेल संसाधन संपदा के बावजूद, कई राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण हाल के वर्षों में इस देश की आर्थिक स्थिति में गिरावट आई।

इसलिए, जीवन की चुनौतियों का सामना करने में वास्तविक शक्ति और लचीलापन प्राप्त करने हेतु शक्ति के अन्य आयामों, जैसे मानसिक लचीलापन, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक कल्याण को पहचानना और विकसित करना आवश्यक है। यहां मनुष्यों को उनके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संसाधनों का उपयोग करने एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में मदद करने में “अदम्य इच्छाशक्ति” की भूमिका नजर आती है।

अदम्य इच्छाशक्ति” का तात्पर्य बाधाओं, असफलताओं या प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद लक्ष्य की प्राप्ति में दृढ़ संकल्प या अटूट संकल्प से है। यह किसी व्यक्ति के चरित्र और आंतरिक दृढ़ता का प्रतीक है जो उन्हें बाह्य परिस्थितियों से वश में होने या पराजित होने से इनकार करते हुए चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2011 में  एक दुखद दुर्घटना में अपना एक पैर खोने के बावजूद  अरुणिमा सिन्हा ने वर्ष 2013 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली विकलांग महिला बनने का गौरव हासिल किया जो उनकी अदम्य इच्छाशक्ति को प्रदर्शित करता है यह शारीरिक क्षमता पर “अदम्य इच्छाशक्ति” की प्रधानता को उजागर करता है जो चुनौतियों पर काबू पाने और सफलता प्राप्त करने में सहायक है।

इसके अतिरिक्त, एक अदम्य इच्छाशक्ति केवल व्यक्तिगत उपलब्धि पर केंद्रित नहीं होती है, बल्कि अक्सर समाज में सकारात्मक योगदान देने या विश्व में बदलाव करने तक विस्तारित होती है। यह व्यक्तियों को अन्याय का सामना करने, यथास्थिति को चुनौती देने और उन उद्देश्यों की वकालत करने के लिए सशक्त बनाता है जिनमें वे विश्वास करते हैं, भले ही मार्ग में उन्हें कितनी भी बाधाओं का सामना करना पड़े। उदाहरण के लिए, मलाला युसुफजई जो एक पाकिस्तानी कार्यकर्ता हैं, को स्वात घाटी क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने के लिए तालिबान द्वारा निशाना बनाया गया था। उन्होंने गंभीर खतरे का सामना करने के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मौलिक मानव अधिकार के रूप में शिक्षा का समर्थन करना जारी रखा।

इच्छाशक्ति व्यक्तियों के लिए उनकी शारीरिक सीमाओं को पार करने और कठिन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में भी कार्य करती है। अपनी आंतरिक शक्ति और दृढ़ संकल्प का उपयोग करके, व्यक्ति किसी भी परिस्थिति व बाधा को चुनौती दे सकते हैं और उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं। इसका उदाहरण हेलेन केलर की कहानी है, जिन्होंने बहरेपन और अंधेपन की दोहरी चुनौतियों पर काबू पाकर एक प्रमुख लेखिका, और व्याख्याता बनीं साथ ही उन्होंने विकलांग लोगों की वकालत भी की। अपनी गहन संवेदी दुर्बलताओं के बावजूद, केलर की अदम्य इच्छाशक्ति और शिक्षा की निरंतर भूख ने उन्हें दुनिया भर में लाखों लोगों को संवाद करने, सीखने और अंततः प्रेरित करने में सक्षम बनाया।

‘अदम्य इच्छाशक्ति’ न केवल व्यक्ति की प्रगति में असाधारण भूमिका निभाती है, बल्कि समाज और देश को भी आगे ले जाती है। पर्याप्त भौतिक क्षमता की कमी के बावजूद अदम्य इच्छाशक्ति के माध्यम से अपनी शक्ति साबित करने वाले देश का एक उल्लेखनीय उदाहरण सिंगापुर है। इस छोटे से द्वीपीय राष्ट्र ने, अपने लचीलेपन के माध्यम से, अपनी भौतिक सीमाओं को पार कर लिया है और दुनिया की सबसे समृद्ध और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है।

उपरोक्त प्रत्येक उदाहरण में, ‘अदम्य इच्छाशक्तिएक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है जो व्यक्ति को उनकी शारीरिक सीमाओं को पार करने और असाधारण परिणाम प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। अपने प्रेरक उदाहरणों के माध्यम से, ये व्यक्ति हमें विपरीत परिस्थितियों पर विजय पाने और महानता हासिल करने की मानवीय भावना की असीम क्षमता की याद दिलाते हैं।

इसलिए, शारीरिक क्षमता” और “अदम्य इच्छाशक्ति” एक दूसरे के पूरक हैं, जिससे एक सहक्रियात्मक प्रभाव पैदा होता है। जबकि भौतिक क्षमता ताकत के लिए आधार और क्षमता प्रदान करती है, यह अटूट दृढ़ संकल्प है जो यह तय करता है कि उस क्षमता का कितने प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है। दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में अपनी सीमाओं को पार करते हुए, अपनी शारीरिक क्षमताओं का भरपूर उपयोग करते हैं।

इसके अतिरिक्त, शारीरिक क्षमता और अदम्य इच्छाशक्ति के बीच परस्पर क्रिया स्थिर नहीं बल्कि गतिशील है, जो चुनौतियों, अनुभवों और व्यक्तिगत विकास के प्रतिउत्तर में समय के साथ विकसित होती है। उदाहरण के लिए, सचिन तेंदुलकर ने अपने अपेक्षाकृत छोटे कद के बावजूद, अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और अपनी कला के प्रति अटूट दृढ़ संकल्प के कारण असाधारण रूप से शारीरिक प्रतिभा विकसित की। इसलिए, व्यक्तियों के लिए अपनी शारीरिक क्षमता और अदम्य इच्छाशक्ति दोनों को बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जिससे शक्ति और लचीलेपन के नए स्तर खुल सकें।

विभिन्न प्रकार के व्यायामों और गतिविधियों को दैनिक दिनचर्या में शामिल करने से लोगों को स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क प्राप्त करने और अपने सपनों को पूरा करने में मदद मिलती है। बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और कन्फ्यूशीवाद जैसे कई धर्म अनुष्ठानों, प्रार्थनाओं और ध्यान जैसी सचेतन प्रथाओं के माध्यम से आंतरिक शक्ति विकसित करने के महत्व पर जोर देते हैं। इस तरह, अनुशासित अभ्यास, दृढ़ता और आत्म-सुधार के प्रति प्रतिबद्धता के माध्यम से, व्यक्ति अपनी शारीरिक क्षमता और अपनी अदम्य इच्छाशक्ति दोनों को बढ़ा सकते हैं, जिससे शक्ति और लचीलेपन के नए स्तर खुल सकते हैं।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः यह इस गहन सत्य को समाहित करता है कि वास्तविक शक्ति मानव आत्मा के लचीलेपन, दृढ़ संकल्प और अटूट संकल्प से उत्पन्न होती है। जबकि शारीरिक क्षमता निश्चित रूप से कुछ संदर्भों में भूमिका निभाती है, जैसे कि खेल या शारीरिक श्रम। यह अदम्य इच्छाशक्ति है जो व्यक्तियों को विपरीत परिस्थितियों से उबरने, चुनौतियों का सामना करने और उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने में सक्षम बनाती है। इस उद्धरण का उदाहरण महात्मा गांधी के जीवनी से लिया जा सकता जिनकी “अदम्य इच्छाशक्ति” ने भारत जैसे राष्ट्र को अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने और भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया, जो अटूट दृढ़ संकल्प की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रदर्शन करता है।

इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जो जीवन में, अदम्य इच्छाशक्ति को दर्शाते हैं। जैसा कि उन व्यक्तियों की कहानियों से पता चलता है जो बाधाओं को पार कर यथास्थिति को चुनौती देते हैं, और अपने लक्ष्यों और मूल्यों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से सकारात्मक बदलाव को प्रेरित करते हैं। अदम्य इच्छाशक्ति के सार को अपनाकर एवं लचीलापन, दृढ़ संकल्प और साहस विकसित करके, हम अपने भीतर शक्ति के वास्तविक स्रोत को खोलते हैं, जो हमें जीवन की जटिलताओं को अनुग्रह, साहस और लचीलेपन के साथ संचालित करने के लिए सशक्त बनाता है। जैसे-जैसे हम आत्म-खोज और विकास की अपनी यात्रा जारी रखते हैं, हमें याद रखना चाहिए कि वास्तविक शक्ति हमारी मांसपेशियों के आकार में नहीं, बल्कि हमारे दृढ़ रहने, पनपने और आसपास के वातावरण पर सार्थक प्रभाव डालने की अदम्य इच्छाशक्ति की गहराई में निहित है।

हृदय की शांत गहराइयों में, वास्तविक शक्ति निवास करती है,

मांसपेशियों के पराक्रम या उभार के अभिमान में नहीं।

अदम्य इच्छाशक्ति, उज्ज्वल जलती लौ,

सबसे अंधेरी रात में हमारा मार्गदर्शन करती है

जब परिस्थितियाँ हमारे साहस और पराक्रम की परीक्षा लेती हैं,

तो यह भीतर की इच्छाशक्ति ही है जो लड़ाई को प्रज्वलित करती है।

हम तूफानों का सामना करते हैं, अटूट आत्मा के साथ,

हम फिर से उठते हैं, प्रत्येक शब्द और प्रतीक के साथ

 

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