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न्याय तक पहुँच की पुनर्कल्पना : थर्ड पार्टी लिटिगेशन फंडिंग

Lokesh Pal October 17, 2024 05:30 67 0

संदर्भ:

तृतीय-पक्ष मुकदमेबाजी वित्तपोषण (टीपीएलएफ) न्याय तक आसान पँहुच की एक  पुनर्कल्पना है। यह  एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जो एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम है, जो संभावित रूप से उन लोगों के लिए न्यायालय के दरवाजे खोल सकता है जो स्वयं को बाहर महसूस करते थे।

थर्ड पार्टी लिटिगेशन फंडिंग (टीपीएलएफ) क्या है?

  • भारत में, बहुत से लोगों को कठिन कानूनी लड़ाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसका वे वहन नहीं कर सकते हैं। 

उदाहरण के लिए, ओडिशा के आदिवासी ग्रामीण एक बड़ी औद्योगिक कंपनी से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही है। उनके सभी तर्क मज़बूत और विचारणीय हैं , लेकिन उनके पास लड़ने के लिए उपयुक्त संसाधन या वित्त का अभाव हैं।

  • यहीं पर थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग (TPLF) की आवश्यकता है। थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग निवेशकों को केस में जीती गई किसी भी राशि के हिस्से के बदले में इन कानूनी लड़ाइयों के लिए भुगतान करने की अनुमति देता है।
  • राम कुमार कूंडू बनाम चंदर कैंटो मुखर्जी मामले में 1876 के प्रिवी काउंसिल के फैसले ने भारत में थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग को अनुमति दी, पुराने अंग्रेजी चैंपर्टी (जो मुकदमेबाजी के लिए तीसरे पक्ष के वित्तपोषण को प्रतिबंधित करता था) कानूनों को खारिज कर दिया।

तृतीय-पक्ष मुकदमेबाजी वित्तपोषण (टीपीएलएफ) के लाभ

  • संभावित तुल्यकारक ( Equaliser) : बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम ए.के. बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग को “अदालत में संभावित तुल्यकारक” बताया।
    • इस फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग तब तक अनुमेय है जब तक वकील मामलों का वित्तपोषण करने वाले नहीं हैं।
  • संवैधानिक गारंटी में सुधार : हालांकि  भारतीय संविधान समानता की वकालत करता है। अतः अक्सर ऐसे आवेदनों पर स्वाभाविक रूप से सवाल उठते हैं, उदाहरण के लिए जब अमीर व्यक्ति और मध्यम वर्ग के मुकदमेबाज अदालत में आमने-सामने होते हैं।
  • विशेष मुकदमेबाजी की सुविधा : चिकित्सा कदाचार और बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) जैसे जटिल क्षेत्रों में,  थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग यह सुनिश्चित करता है कि वैध दावों की सुनवाई हो, न कि उच्च मुकदमेबाजी लागतों से उन्हें दबाया जाए।
  • उपभोक्ता संरक्षण : महानगरीय क्षेत्रों में, थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग उपभोक्ता समूहों को खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों के खिलाफ मुकदमा दायर करने का अधिकार देता है, जिससे बाजार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है और इससे सुरक्षा मानकों को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए, जॉनसन एंड जॉनसन के टैल्कम पाउडर और एस्बेस्टस संदूषण का मामला उत्पाद में मिलावट के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता का उदाहरण है।
  • जनजातियों और गैर सरकारी संगठनों का सशक्तिकरण : थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग गैर सरकारी संगठनों द्वारा समर्थित जनजातीय समुदायों को खनन माफियाओं को चुनौती देने, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और स्वदेशी आबादी के अधिकारों की रक्षा करने की अनुमति देता है। 
    • उदाहरण के लिए, खनन कंपनी वेदांता के खिलाफ डोंगरिया कोंध जनजाति का संघर्ष। 
  • श्रम अधिकारों का संवर्धन : थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग श्रमिक समूहों को सामूहिक रूप से अन्यायपूर्ण प्रथाओं को रेखांकित करने के लिए सशक्त बना सकता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में काम करने की स्थिति में सुधार के साथ ही श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए मानवीय दशाएं सुनिश्चित हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए, मारुति सुजुकी श्रमिकों से जुड़ा 2016 का मामला ऐसी पहलों के महत्त्व को उजागर करता है। 
  • स्टार्टअप के लिए समर्थन : थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग बेंगलुरु के तकनीकी स्टार्टअप को उद्योग के दिग्गजों से कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करता है, जिससे वित्तीय कमी के जोखिम के बिना नवाचार को अनुमति मिलती है। 
  • लंबित मामलों के समाधान में सहायक : थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग भारत भर में लगभग 40 मिलियन लंबित मामलों के मौजूदा बैकलॉग से निपटने में सहायता कर सकता है। उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट में लगभग 80,000 मामले थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग की मदद से हल किए जा सकते हैं। 
  • कॉर्पोरेट जवाबदेही बढ़ाना : थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग व्यक्तियों और समूहों को कदाचार या गलत कार्यों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में सक्षम बनाकर बड़ी कंपनियों और संस्थाओं के बीच जवाबदेही को बढ़ावा देता है, जिससे अधिक न्यायसंगत कानूनी वातावरण को बढ़ावा मिलता है।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • चुनिंदा मामलों को प्राथमिकता देना  : इस बात का जोखिम है कि फंड देने वाले अधिक लाभदायक मामलों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण लेकिन हशिए पर पड़े दावों की उपेक्षा हो सकती है।
    • यह न्याय तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने के थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग के व्यापक उद्देश्य को कमजोर कर सकता है।
  • सावधानीपूर्वक विनियमन की आवश्यकता : कानूनी रणनीतियों पर फंड देने वालों के नियंत्रण की सीमा के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक विनियमन की आवश्यकता है कि ग्राहक हित सर्वोपरि  रहें और फंड देने वाले व्यक्ति या समूह संबंधित मामले के परिणामों को अनुचित रूप से प्रभावित न करें।
  • व्यापक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता : हालाँकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा और गुजरात जैसे कुछ भारतीय राज्यों ने थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग को मान्यता दी है, लेकिन वर्तमान में इसके कार्यान्वयन को नियंत्रित करने वाली कोई व्यापक राष्ट्रीय नीति या विनियमन नहीं है।

संभावित  उपाय

  • ग्राहक अधिकारों की रक्षा करना : ऐसे नियम स्थापित करना जो फंडिंग करने वाले व्यक्तियों / समूहों / संस्थाओं के साथ जुड़ने वाले ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा कर सकें ।
  • वित्तीय सुदृढ़ता और नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करना : फंडिंग संस्थाओं की वित्तीय स्थिरता और नैतिक आचरण का आकलन और सत्यापन करना।
  • पारदर्शिता को अनिवार्य बनाना : ऐसे उपायों को लागू करना जो फंडिंग समझौतों में पारदर्शिता बनाए रखते हैं और शोषण को रोकने के लिए फंडर्स के लाभ मार्जिन को सीमित करते हैं।
  • एक समर्पित निरीक्षण निकाय की स्थापना : फंडिंग व्यवस्था की निगरानी करने और विनियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए एक समर्पित निरीक्षण निकाय बनाया जाना चाहिए ।
  • न्यायालय की भागीदारी : थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग संबंधी समझौतों में न्यायालय की निगरानी और भागीदारी का निर्धारण आवश्यक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यासों से सीखना  : मध्यस्थता में थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग के लिए, हांगकांग की 2019 की आचार संहिता में प्रकटीकरण और लागत देयता की आवश्यकता महसूस की गई थी।  जो इस प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, भारत के समक्ष विचार करने के लिए एक मॉडल पेश करता है।

निष्कर्ष 

थर्ड-पार्टी लिटिगेशन फंडिंग, भारत में न्याय तक पहुंच को बेहतर बनाने के लिए एक नवाचारी व आशाजनक विकल्प प्रदान करता है। एक सुव्यवस्थित व विनियमित न्यायिक ढांचा अधिकारों की रक्षा कर सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि वित्तीय नवाचार न्यायिक अखंडता से समझौता न करें।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न : भारत में न्याय तक पहुँच पर थर्ड पार्टी लिटिगेशन फंडिंग (टीपीएलएफ) के संभावित प्रभाव की आलोचनात्मक जाँच करें। यह कानूनी प्रणाली में मौजूदा चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है और वित्तीय नवाचार को न्याय के मौलिक अधिकार के साथ संतुलित करते हुए इसके नैतिक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए कौन से नियामक उपाय आवश्यक हैं?

(15अंक, 250 शब्द)

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