Q. भारत के आर्थिक परिदृश्य के संदर्भ में, विशेष रूप से रिपोर्ट की गई जीडीपी वृद्धि दर के संबंध में, "रोजगार विहीन विकास" की घटना की जांच करें। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के आंकड़ों और अपर्याप्त रोजगार अवसरों के बीच अंतर का विश्लेषण करें । (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: रोजगार विहीन विकास” को परिभाषित कीजिए और भारत के आर्थिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता बताइए।
  • मुख्य विषयवस्तु:  
    • भारत में रोजगार विहीन विकास की वर्तमान स्थिति के बारे में बताइए।
    • रोजगार विहीन विकास के रुझान और श्रम बल की भागीदारी पर चर्चा कीजिए।
    • रोजगार विहीन विकास की चुनौतियों/प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
    • प्रमुख रोजगार सृजन योजनाओं पर प्रकाश डालिए।
  • निष्कर्ष: संतुलित विकास मॉडल की आवश्यकता पर बल देते हुए, रोजगार विहीन विकास की चुनौती पर विचार करते हुए निष्कर्ष निकालिए। साथ ही भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता का लाभ उठाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत कीजिए ।  

परिचय:

“रोजगार विहीन विकास” शब्द एक आर्थिक विरोधाभास को संदर्भित करता है, जिसमें एक देश रोजगार के अवसरों में वृद्धि के बिना सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का अनुभव करता है। भारत में, हालिया आर्थिक रुझानों ने इस घटना के लक्षण प्रदर्शित किए हैं। गौरतलब है कि भारत में प्रभावशाली विकास दर के बावजूद, रोजगार सृजन एक महत्वपूर्ण चिंता बनी हुई है, जो देश के विकास मॉडल की समावेशिता और स्थिरता पर सवाल उठाती है।

मुख्य विषयवस्तु:

रोजगार विहीन विकास तब होता है जब अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बावजूद बेरोजगारी दर अधिक रहती है। ऐसा तकनीकी प्रगति, पूंजी-गहन विकास या अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव सहित विभिन्न कारणों से हो सकता है। 

उदाहरण के लिए, भारत के सेवा क्षेत्र में तेजी से विकास होने के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र, जो परंपरागत रूप से एक बड़ा नियोक्ता है, ने उतना विस्तार नहीं देखा है, जिससे रोजगार सृजन सीमित हो गया है। 

भारत में रोजगार विहीन विकास की वर्तमान स्थिति:

  • बेरोजगारी के रुझान:
    • बेरोजगारी दर लगभग 7-8% तक बढ़ गई है, जो पांच साल पहले 5% के आस- पास थी ।
    • नौकरी की संभावनाओं पर निराशा और कोविड-19 लॉकडाउन के प्रभावों के संयोजन के कारण कार्यबल कम हो गया।
  • श्रम बल की भागीदारी:
    • श्रम बल भागीदारी दर छह वर्षों के भीतर 46% से गिरकर 40% हो गई, जो दर्शाता है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक रोजगार में संलग्न नहीं है।
  • डेटा विसंगति:
    • आधिकारिक बेरोज़गारी आँकड़े अक्सर ज़मीनी वास्तविकताओं को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ने 4.2% बेरोजगारी दर की सूचना दी, जो अन्य आकलन के अनुरूप नहीं है।

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रोजगार विहीन विकास की चुनौतियाँ/प्रभाव:

  • सामाजिक निहितार्थ:
    • अग्निपथ योजना पर देखे गए विरोध प्रदर्शन, व्यापक बेरोजगारी से उत्पन्न होने वाले सामाजिक असंतोष को दर्शाते हैं।
  • कार्यबल में महिलाएं:
    • कामकाजी महिलाओं की संख्या में गिरावट आई है: सीएमआईई के अनुसार, यह 2010 में 26% से घटकर 2020 में 19% हो गई, तथा 2022 तक इसमें और तेज गिरावट के साथ यह 9% हो गई।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश बनाम जनसांख्यिकीय अभिशाप:
    • भारत की युवा आबादी, जिसे एक समय लाभ के रूप में देखा जाता था, यदि सार्थक रोजगार के अवसर पैदा नहीं किए गए तो उसके दायित्व के रूप में बदलने का जोखिम है।
  • क्षेत्रीय बदलाव:
    • गौरतलब है कि कृषि, जो परंपरागत रूप से एक महत्वपूर्ण नियोक्ता है, उसकी भागीदारी में गिरावट देखी गई है, जो लोग बाहर नौकरी के लिए जा रहे हैं वे मुख्य रूप से कम वेतन वाली, अस्थिर नौकरियों में प्रवेश कर रहे हैं।
    • भारत में श्रम प्रचुरता के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी की तीव्रता बढ़ी है, जिससे नौकरी के अवसर कम हो गए हैं।
  • कौशल विरोधाभास:
    • भारत एक साथ कौशल की कमी और श्रम अधिशेष से जूझ रहा है, जिसका उदाहरण ड्राइवरों की कमी के कारण बेकार पड़े ट्रक या स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नर्सों की आवश्यकता है।

सरकारी हस्तक्षेप   

  • डेटा संग्रहण:
    • सीधे व्यवसायों से अधिक सटीक रोजगार डेटा इकट्ठा करने और अनौपचारिक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास चल रहे हैं।
  • रोज़गार सृजन योजनाएँ:
    • मेक इन इंडिया पहल को उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं में परिवर्तित किया गया।
    • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई): आय-सृजन गतिविधियों के लिए 10 लाख रुपये तक संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई): सरकार द्वारा वहन की जाने वाली फीस के साथ कौशल विकास और प्रशिक्षण प्रदान करती है।

निष्कर्ष:

रोजगारी विहीन विकास भारत के समावेशी और सतत विकास के दृष्टिकोण के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में जिम्मेदारी केवल उच्च जीडीपी वृद्धि के आंकड़े हासिल करने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी है कि यह वृद्धि जनता के लिए रोजगार और आजीविका में ठोस सुधार लाए। जैसे-जैसे भारत प्रगति कर रहा है, श्रम सुधारों, कौशल पहल और औद्योगिक प्रोत्साहनों को शामिल करने वाली एक बहु-आयामी रणनीति आवश्यक होगी, तभी भारत अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता को वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश में बदल सकता है व आर्थिक विकास को व्यापक-आधारित समृद्धि में बदल सकता है।

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