Q. ट्रंप प्रशासन द्वारा टैरिफ एंड ट्रेड बेरियर का हथियारीकरण भारत की व्यापार नीति के लिए नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। भारत के व्यापार हितों पर ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए और अमेरिका के साथ अपने आर्थिक जुड़ाव की सुरक्षा के लिए उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ एंड ट्रेड बेरियर के शस्त्रीकरण से भारत की व्यापार नीति के लिए उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • भारत के व्यापार हितों पर ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  • अमेरिका के साथ अपने आर्थिक संबंधों को सुरक्षित रखने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

टैरिफ का शस्त्रीकरण, व्यापार बाधाओं और टैरिफ का उपयोग आर्थिक दबाव या प्रभाव डालने के लिए उपकरण के रूप में करने को संदर्भित करता है। ट्रम्प प्रशासन के तहत, यह रणनीति अमेरिका फर्स्ट व्यापार नीतियों के लिए केंद्रीय बन गई। ये संरक्षणवादी उपाय भारत की व्यापार नीति के लिए गंभीर चुनौतियाँ पेश करते हैं, विशेष रूप से टैरिफ, बाजार पहुँच और निर्यात वृद्धि के संबंध में।

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टैरिफ एंड ट्रेड बेरियर के शस्त्रीकरण के कारण भारत की व्यापार नीति के लिए चुनौतियाँ

  • व्यापार अनिश्चितता में वृद्धि: अमेरिका फर्स्ट ट्रेड पॉलिसी के कारण अमेरिका के साथ भारत की व्यापार वार्ता में अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है, जो वैश्विक साझेदारी पर घरेलू हितों को प्राथमिकता देता है। 
    • उदाहरण के लिए: ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, भारत ने अपनी सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) का दर्जा को दिया, जिससे वस्त्र और हस्तशिल्प जैसे निर्यात प्रभावित हुए, जिन्हें पहले अमेरिकी बाजारों में टैरिफ-मुक्त पहुँच का लाभ मिला था।
  • प्रमुख निर्यातों पर उच्च टैरिफ: भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ लगाने से अमेरिकी बाजार में निर्यात कम प्रतिस्पर्धी हो सकता है, जिससे भारतीय व्यवसायों के लिए व्यापार की मात्रा और लाभप्रदता कम हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: ट्रम्प के प्रशासन ने वर्ष 2018 में भारतीय स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ लगाया, जिसके कारण भारत ने सेब और बादाम जैसे अमेरिकी कृषि उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाया।
  • व्यापार समझौतों में नीतिगत प्रभाव में कमी: यह संभावना है कि अमेरिका रियायतें प्राप्त करने के लिए टैरिफ को सौदेबाजी के उपकरण के रूप में उपयोग करेगा , जिससे व्यापार समझौतों में अनुकूल शर्तों पर बातचीत करने की भारत की क्षमता कम हो जाएगी।
  • ऊर्जा व्यापार में व्यवधान: ईरान और वेनेजुएला के तेल आयात को लक्षित करने वाले ट्रम्प के निकास आदेशों ने भारत के ऊर्जा विविधीकरण विकल्पों को सीमित कर दिया है, जिससे अमेरिका या खाड़ी देशों के महंगे विकल्पों पर निर्भरता बढ़ गई है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2019 में, भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल आयात करना बंद करना पड़ा, जिससे उसे सऊदी अरब और अमेरिका से अधिक महंगे कच्चे तेल का आयात करना पड़ा।
  • चीन के खिलाफ अमेरिकी नीतियों के साथ तालमेल बिठाने का दबाव: अगर ट्रंप प्रशासन चीन के साथ रणनीतिक रूप से फिर से जुड़ता है, तो अमेरिका-चीन व्यापार तनाव से लाभ उठाने की भारत की रणनीति बाधित हो सकती है, जिससे निवेश और व्यापार प्रोत्साहन प्रभावित हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पिछले संघर्षों के बावजूद ट्रंप द्वारा शी जिनपिंग से हाल ही में की गई वार्ता, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध में संभावित बदलाव का संकेत देती है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की स्थिति को प्रभावित कर सकती है।

भारत के व्यापार हितों पर संरक्षणवादी नीतियों का प्रभाव

  • निर्यात राजस्व में कमी: भारतीय IT सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल पर टैरिफ में वृद्धि से भारत की निर्यात आय में कमी आएगी, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो अमेरिकी बाजारों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जून 2019 में GSP कार्यक्रम को वापस लेने से पहले भारत इसका सबसे बड़ा लाभार्थी था, जिसका असर 1,945 भारतीय उत्पादों पर पड़ा। टैरिफ रियायतों में 241 मिलियन डॉलर से अधिक की हानि हुई, जिससे भारत की व्यापार लागत बढ़ गई।
  • भारत के IT-BPM उद्योग के लिए खतरा: AI-संचालित ऑटोमेशन का उदय और H-1B वीजा पर प्रतिबंध, भारतीय तकनीकी पेशेवरों के लिए नौकरी के अवसरों को कम कर सकते हैं, जिससे IT क्षेत्र के विदेशी राजस्व पर असर पड़ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने कहा कि 25% न्यू कोड पहले से ही AI-जेनरेटेड है, जो भविष्य में मानव सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की माँग में कमी का संकेत देता है।
  • अमेरिकी आयात की उच्च लागत: भारतीय फार्मास्यूटिकल्स, ऑटो पार्ट्स और इंजीनियरिंग वस्तुओं पर टैरिफ लगाने से आवश्यक अमेरिकी आयात की लागत बढ़ सकती है, जिससे घरेलू उद्योग प्रभावित होंगे।
  • भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता का कमजोर होना: वैश्विक कर समझौतों और संरक्षणवादी व्यापार नीतियों से अमेरिका के पीछे हटने से निवेश प्रवाह सीमित हो जाएगा, जिससे भारतीय विनिर्माण वैश्विक स्तर पर कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा।
    •  उदाहरण के लिए: USAID फंडिंग को रोकना और पेरिस समझौते से बाहर निकलना, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिकी निवेश को कम कर सकता है, जिससे भारत का हरित संक्रमण धीमा हो सकता है।
  • वैश्विक व्यापार गठबंधनों में रणनीतिक परिवर्तन: भारत को अमेरिका के साथ कम हुए व्यापार लाभ को संतुलित करने के लिए यूरोप, जापान और ASEAN देशों के साथ व्यापार साझेदारी में विविधता लानी पड़ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर वार्ता करने के भारत के हालिया प्रयास, अमेरिकी व्यापार व्यवधानों से होने वाले नुकसान को कम करने के उसके प्रयास को उजागर करते हैं।

अमेरिका के साथ भारत के आर्थिक संबंधों की सुरक्षा के उपाय

  • द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को मजबूत करना: भारत को अमेरिका के साथ एक व्यापक व्यापार समझौते पर वार्ता करनी चाहिए ताकि तरजीही टैरिफ हासिल किए जा सकें, बाजार तक पहुँच सुनिश्चित की जा सके और व्यापार से जुड़ी अनिश्चितताओं को कम किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में संभावित भारत-अमेरिका मिनी व्यापार समझौते पर चर्चा की गई थी, जिसमें GSP लाभ बहाल करने और फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे प्रमुख निर्यातों पर टैरिफ कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • निर्यात बाजारों में विविधता लाना: भारत को अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने के लिए यूरोप, जापान, आसियान और अफ्रीका के साथ अपनी व्यापार साझेदारी का विस्तार करके अमेरिका पर अपनी अत्यधिक निर्भरता कम करनी होगी।
  • घरेलू विनिर्माण और आत्मनिर्भरता को बढ़ाना: मेक इन इंडिया और PLI योजनाओं जैसी पहलों को बढ़ावा देकर भारत,अमेरिकी आयात पर निर्भरता कम कर सकता है और अपने घरेलू औद्योगिक आधार को मजबूत कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना ने पहले ही एप्पल और सैमसंग जैसी वैश्विक कंपनियों को भारत में विनिर्माण के लिए आकर्षित किया है।
  • AI और प्रौद्योगिकी पर रणनीतिक भागीदारी: भारत को AI, सेमीकंडक्टर विनिर्माण और उभरती प्रौद्योगिकियों में अमेरिकी प्रौद्योगिकी फर्मों के साथ सहयोग करना चाहिए, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका कुशल कार्यबल प्रासंगिक बना रहे।
    • उदाहरण के लिए: सेमीकंडक्टर विनिर्माण पर भारत-अमेरिका चर्चाएँ, जैसे कि गुजरात में माइक्रोन टेक्नोलॉजी निवेश, तकनीकी सहयोग को गहरा करने के प्रयासों का संकेत देती हैं।
  • अनुकूल वीजा और आव्रजन नीतियों पर वार्ता: भारत को H-1B वीज़ा नीतियों को और अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए और भारतीय पेशेवरों व व्यवसायों के हितों की रक्षा के लिए अमेरिकी नीति निर्माताओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, भारत ने H-1B प्रतिबंधों को कम करने के लिए कूटनीतिक वार्ता की, जिससे हजारों भारतीय IT पेशेवरों को लाभ हुआ।

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अमेरिका के साथ अपने आर्थिक जुड़ाव को बनाये रखने के लिए, भारत को बहुपक्षीय व्यापार समझौतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, घरेलू उद्योगों को मजबूत करने और नवाचार में निवेश करते हुए एक विविध व्यापार रणनीति अपनानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, रणनीतिक कूटनीति और सक्रिय व्यापार वार्ता मजबूत व्यापार संबंधों को बनाए रखते हुए संरक्षणवादी नीतियों के प्रभावों को कम करने में मदद करेगी ।

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