Q. सोशल मीडिया युवाओं में आत्म-मूल्य को तेजी से परिभाषित कर रहा है, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है। इस घटना के बहुआयामी प्रभाव की जाँच कीजिए और भारत के विविध सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में मानसिक कल्याण के साथ डिजिटल स्वतंत्रता को संतुलित करने वाले नीतिगत हस्तक्षेपों का सुझाव दीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • युवाओं के लिए सोशल मीडिया द्वारा उत्पन्न मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • युवाओं पर सोशल मीडिया के बहुआयामी प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
  • भारत के विविध सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में डिजिटल स्वतंत्रता और मानसिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित करने वाले नीतिगत हस्तक्षेपों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

सोशल मीडिया भारतीय युवाओं के जीवन में गहराई से समाया हुआ है, जो अभिव्यक्ति और जुड़ाव को सक्षम बनाता है। हालाँकि, इसका व्यापक प्रभाव मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक चुनौतियाँ उत्पन्न करता है। भारत के विविध सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में यह सुनिश्चित करना कि डिजिटल जुड़ाव समग्र विकास को बढ़ावा दे, अति महत्त्वपूर्ण है।

युवाओं पर सोशल मीडिया की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक चुनौतियाँ

मनोवैज्ञानिक चुनौतियाँ

  • डिजिटल लत: सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से निर्भरता बढ़ती है, जिससे एकाग्रता, शैक्षणिक प्रदर्शन व भावनात्मक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। 
    • उदाहरण: NIMHANS के एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में 27% किशोरों में सोशल मीडिया की लत के लक्षण दिखाई देते हैं, जिससे मानसिक परेशानी होती है।
  • नींद में व्यवधान: निरंतर ऑनलाइन व्यस्तता के कारण युवा देर रात तक जागते हैं, जिससे उनकी स्लीप साइकिल बाधित होती है और प्रतिरक्षा कमजोर होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: लंबे समय तक संपर्क में रहने से चिंता, अवसाद और नकारात्मक आत्म-धारणा जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

सामाजिक चुनौतियाँ

  • साइबरबुलिंग: प्लेटफॉर्म पर उत्पीड़न, भावनात्मक आघात और सामाजिक अलगाव का कारण बन सकता है। 
    • उदाहरण: ऑनलाइन दुर्व्यवहार और ट्रोलिंग विशेष रूप से लड़कियों में, मानसिक संकट को बढ़ाने में योगदान देते हैं।
  • सामाजिक अलगाव: वस्तुतः वर्चुअली कनेक्शन के कारण, युवाओं को वास्तविक जीवन में वार्तालाप करने एक -दूसरे को समझने में समस्या का सामना करना पड़ता है
  • विकृत सामाजिक मानदंड: सोशल मीडिया साथियों के दबाव और अवास्तविक तुलना को बढ़ावा देता है, जिससे युवाओं का आत्मविश्वास कम होता है। 
    • उदाहरण: भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) 2022 के सर्वेक्षण में पाया गया कि 65% भारतीय किशोर, प्रभावशाली लोगों और साथियों के साथ खुद की तुलना करने के पश्चात् स्वयं को कमतर आँकते हैं।

नैतिक चुनौतियाँ

  • अनुचित सामग्री के संपर्क में आना: अनफिल्टर्ड एक्सेस, नैतिक विकास को प्रभावित करती है और उपयोगकर्ताओं को असंवेदनशील बनाती है। 
    • उदाहरण: युवा अक्सर हिंसक या स्पष्ट सामग्री का सामना करते हैं, जो उनके मूल्यों और दृष्टिकोणों को प्रभावित करती है।
  • गलत सूचना का प्रसार: आलोचनात्मक सोच की कमी के कारण युवा वर्ग फेक न्यूज और छल-कपट का शिकार हो जाता है। 
    • उदाहरण: चुनाव और स्वास्थ्य संकट के दौरान फैलाई गई फेक न्यूज, युवाओं को गुमराह करती हैं।
  • गोपनीयता का उल्लंघन: जागरूकता की कमी के कारण अत्यधिक जानकारी साझा की जाती है, जिससे व्यक्तिगत डेटा और सुरक्षा जोखिम में पड़ जाती है। 
    • उदाहरण: कई किशोर अनजाने में लोकेशन और तस्वीरें साझा करते हैं, जिससे वे साइबर अपराधों का लक्ष्य बन जाते हैं।

युवाओं पर सोशल मीडिया का बहुआयामी प्रभाव

  • शैक्षणिक प्रदर्शन: निरंतर ध्यान भटकने से अध्ययन प्रगति में बाधा आती है और शिक्षण दक्षता कम हो जाती है।
  • बॉडी इमेज संबंधी समस्याएँ: बॉडी इमेज संबंधी ट्रेंड, आत्मसम्मान संबंधी समस्याएँ और विकार उत्पन्न करते हैं।
  • सांस्कृतिक प्रभाव: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मूल्यों, व्यवहारों और भाषा को आकार देते हैं व युवाओं की  पहचान को प्रभावित करते हैं। 
    • उदाहरण: सोशल मीडिया ट्रेंड्स ड्रेसिंग स्टाइल, भाषा के उपयोग और युवा अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं।
  • सूचना का अतिभार: निरंतर अपडेट से मानसिक थकान और भ्रम उत्पन्न होता है
  • सामाजिक पूँजी निर्माण: नेटवर्किंग कौशल का निर्माण करता है और आत्म-अभिव्यक्ति व नेतृत्व के लिए मंच तैयार करता है ।

डिजिटल स्वतंत्रता और मानसिक स्वास्थ्य के मध्य संतुलन के लिए नीतिगत हस्तक्षेप

  • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: शिक्षा और पाठ्यक्रम एकीकरण के माध्यम से जिम्मेदार डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा देना चाहिए। 
    • उदाहरण: NEP 2020 छात्रों को नैतिक रूप से ऑनलाइन स्पेस का उपयोग करने में मदद करने हेतु डिजिटल साक्षरता को एकीकृत करता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणालियाँ: शैक्षणिक संस्थानों में परामर्श और सहायता तक पहुँच को बढ़ाना चाहिए। 
    • उदाहरण: टेली-मानस ऐप युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए सरकार समर्थित उपकरण प्रदान करता है।
  • अभिभावक जागरूकता अभियान: अभिभावकों को स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखने और ऑफलाइन जुड़ाव को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षित करना चाहिए। 
    • उदाहरण: IAMAI की रिपोर्ट के अनुसार, जिन किशोरों ने अपने माता-पिता के साथ अपने सोशल मीडिया अनुभवों पर चर्चा की, उनके बीच साइबरबुलिंग का अनुभव होने की संभावना 35% कम थी।
  • आयु-उपयुक्त विनियमन: नाबालिगों के लिए कंटेंट फिल्टर और सख्त गोपनीयता सेटिंग्स लागू करनी चाहिए।
    • उदाहरण: सरकार के प्रस्तावों में सुरक्षित डिजिटल वातावरण के लिए आयु-सत्यापन तंत्र शामिल हैं।
  • युवाओं के नेतृत्व वाले अभियान: डिजिटल सुरक्षा पर सहकर्मी शिक्षा और समर्थन का नेतृत्व करने के लिए युवाओं को सशक्त बनाना चाहिए।
    • उदाहरण: ‘इट्स ओके टू टॉक’ जैसी पहल सोशल मीडिया के प्रभावों पर खुली वार्ता को बढ़ावा देती है।

सोशल मीडिया भारतीय युवाओं के लिए दोधारी तलवार है, जो रचनात्मकता और जुड़ाव प्रदान करने के साथ गंभीर मानसिक, नैतिक और सामाजिक जोखिम भी उत्पन्न करता है। युवाओं, परिवारों, संस्थानों और नीति निर्माताओं को शामिल करते हुए एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण, डिजिटल स्वतंत्रता को कल्याण व जिम्मेदारी के साथ संतुलित करने के लिए आवश्यक है।

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