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भारतीय घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा : एक कानून की आवश्यकता

Lokesh Pal February 04, 2025 05:15 10 0

संदर्भ:

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को भारतीय घरेलू कामगारों के लिए, एक पृथक कानून की आवश्यकता की जांच करने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश:

  • घरेलू कामगारों की भेद्यता: सर्वोच्च न्यायालय ने घरेलू कामगारों की भेद्यता को रेखांकित किया, जिन्हें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण श्रम कानूनों से बाहर रखा गया है।
  • राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता: यह स्वीकार करते हुए कि कुछ राज्यों के अपने स्वयं के नियम हैं, न्यायालय ने सभी राज्यों में घरेलू श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा और विनियमन सुनिश्चित करने के लिए एक एकीकृत, राष्ट्रीय कानून की आवश्यकता पर बल दिया।

घरेलू कामगारों के समक्ष आने वाली समस्याएं:

  • स्त्रियोचित व्यवसाय: मुख्य रूप से घरेलू कार्यों को महिलाओं द्वारा किया जाता है, जिनमें से एक महत्वपूर्ण संख्या हाशिए के समुदायों से आने वाली प्रवासी महिलाओं की होती है।
  • वेतन असमानताएँ:  समान कार्य हेतु समान वेतन के अधिकार के बावजूद भी समान कार्यों के लिए वेतन दरें बहुत भिन्न होती हैं, यहाँ तक कि एक ही इलाके में भी भिन्नता देखी जा सकती है। श्रमिकों को खराब कार्य स्थितियों, अतिरिक्त वेतन के बिना कार्यभार में वृद्धि और नौकरी की असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव: स्वास्थ्य लाभ या सेवानिवृत्ति योजना जैसे सामाजिक सुरक्षा उपायों का अभाव, घरेलू कामगारों की भेद्यता को बढ़ाता है, तथा उन्हें शोषणकारी परिस्थितियों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है।
  • अदृश्यता और अपर्याप्त मूल्यांकन: घरेलू काम को अक्सर सभी महिलाओं में निहित कौशल के रूप में देखा जाता है, जो समाज में इसके कम मूल्यांकन और अदृश्यता में योगदान देता है। यह सांस्कृतिक समझ लैंगिक रूढ़िवादिता को बनाए रखती है और घरेलू काम की  औपचारिक श्रम के रूप में मान्यता कम करती है।
  • उत्पीड़न और अपमान: घरेलू कामगारों को अक्सर नियोक्ताओं द्वारा उत्पीड़न और अपमान का सामना करना पड़ता है, ऐसी घटनाओं की शायद ही कभी रिपोर्ट की जाती है या उन पर ध्यान दिया जाता है। इन कामगारों के साथ दुर्व्यवहार, जब कभी ध्यान आकर्षित करता है, तो आमतौर पर अल्पकालिक होता है, उसके बाद विनियमन के अधूरे वादे किए जाते हैं।
  • कानूनी सुरक्षा का अभाव: घरेलू कामगारों को बुनियादी श्रम सुरक्षा से वंचित रखा जाता है। संरचित कानूनी ढांचे की कमी के कारण उन्हें शोषण और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
  • न्यायिक हस्तक्षेप: न्यायपालिका ने कभी-कभी प्लेसमेंट एजेंसियों के पंजीकरण और दस्तावेज़ीकरण का निर्देश दिया है, लेकिन इन हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप घरेलू श्रमिकों की कार्य स्थितियों में पर्याप्त परिवर्तन नहीं हुआ है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन के अनुसमर्थन का अभाव : भारत ने घरेलू कामगारों पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के कन्वेंशन 189 का अभी तक अनुसमर्थन नहीं किया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उनके अधिकारों की रक्षा करना है।

घरेलू कामगारों हेतु अलग कानून की आवश्यकता के निहितार्थ :

  • नए श्रम संहिताओं में शामिल करना: नए श्रम संहिताओं, जैसे कि वेतन संहिता (2019) के तहत घरेलू कामगारों को शामिल करने पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। हालाँकि वेतन संहिता में घरेलू कामगारों को शामिल किया गया है, लेकिन इसकी प्रयोज्यता और प्रवर्तन समस्याग्रस्त बना हुआ है।
  • जटिल रोजगार प्रणालियाँ: रोजगार की विविध प्रणालियाँ – अंशकालिक, पूर्णकालिक, लिव-इन और लिव-आउट – एक समान नियमों को लागू करने में जटिलता पैदा करती हैं।
  • असममित नियोक्ता-कर्मचारी संबंध: घरेलू काम की प्रकृति में शक्ति का असंतुलन शामिल है, क्योंकि कार्यस्थल आमतौर पर नियोक्ता का निजी घर होता है । यह अंतर घरेलू काम को मौजूदा कानूनों द्वारा कवर किए गए अन्य क्षेत्रों से गुणात्मक रूप से अलग बनाता है, जिससे अंततः असममित नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों को बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक अवमूल्यन: इसमें शामिल कार्य, जैसे सफाई, खाना पकाना और देखभाल करना, अक्सर सामाजिक रूप से अवमूल्यन के रूप में देखे जाते हैं, जिससे इस क्षेत्र में श्रम कानूनों का अनुप्रयोग और भी जटिल हो जाता है।

विनियमन और प्रवर्तन संबंधी मुद्दे:

  • घरेलू काम को परिभाषित करना: किसी भी कानूनी ढांचे के लिए घरेलू काम की एक व्यापक और समावेशी परिभाषा आवश्यक है। इस परिभाषा में घरेलू काम के भीतर विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए और श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली अनूठी चुनौतियों का समाधान करना चाहिए।
  • रोजगार का प्रमाणन: न्यूनतम मजदूरी अधिनियम जैसे श्रम कानूनों को लागू करने में, एक महत्वपूर्ण चुनौती यह है कि घरेलू कामगारों को अपने रोजगार को साबित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। औपचारिक अनुबंधों या दस्तावेज़ीकरण की अनुपस्थिति में श्रमिकों के लिए अधिकारों का दावा करना या उल्लंघन की रिपोर्ट करना मुश्किल हो जाता है।
  • नियोक्ता प्रतिरोध: कई नियोक्ता स्वयं को नियोक्ता या अपने घर को कार्यस्थल नहीं मानते, जिसके कारण किसी भी नियामक ढांचे के खिलाफ प्रतिरोध पैदा होता है, जो रोजगार संबंध को औपचारिक रूप से मान्यता देता है।

कानून का महत्व:

  • घरेलू कामकाज और देखभाल कार्यों की मान्यता: एक सशक्त व प्रभावी कानून घरेलू कामकाज और देखभाल कार्यों के सामाजिक मूल्य को मान्यता देने में मदद कर सकता है, जिसे अक्सर कम आंका जाता है। 
    • न्यूनतम मूलभूत अधिकार सुनिश्चित करने और निवारण तंत्र स्थापित करने से मौजूदा सत्ता पदानुक्रम को चुनौती देने और घरेलू कामगारों को कानूनी संरक्षण प्रदान करने में भी मदद मिलेगी।
  • क्षेत्रीय और स्थानीय विशिष्टताएँ: जबकि घरेलू काम की वैश्विक स्तर पर समान संरचनात्मक विशेषताएँ हैं, कानून बनाते समय क्षेत्रीय और स्थानीय विशिष्टताओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है। केरल और दिल्ली जैसे राज्यों द्वारा इस संदर्भ में की गई पहल व्यापक कानून के लिए मॉडल के रूप में काम कर सकती है।
  • श्रमिकों की चिंताओं को शामिल करना: किसी भी कानून के प्रारूपण में घरेलू श्रमिकों के संघों की चिंताओं को केंद्रीय स्थान दिया जाना चाहिए। प्रभावी प्रवर्तन और श्रमिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियोक्ता पंजीकरण और अन्य सुरक्षात्मक उपायों के लिए उनकी मांगों पर विचार किया जाना चाहिए।
  • दीर्घकालिक लाभ हेतु प्रयास : हालांकि कानून लागू होने से काम करने की स्थितियों में तुरंत सुधार नहीं हो सकता है, लेकिन यह क्षेत्र में सत्ता की गतिशीलता को मौलिक रूप से बदल सकता है। समय के साथ, इस तरह के कानून से घरेलू कामगारों और उनकी यूनियनों को एक मजबूत आवाज मिल सकती है, जिससे स्थितियों में उपयुक्त सुधार सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • कार्यान्वयन चुनौतियाँ: हालांकि संभावित लाभों के बावजूद, घरेलू कामगार कानूनों का प्रवर्तन एक महत्वपूर्ण चुनौती बना रहेगा। हालाँकि, विधायी ढाँचा आगे के सुधारों और श्रमिकों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा के लिए आधार प्रदान करेगा।
  • अंतर-मंत्रालयी समिति की सिफारिशें: किसी भी भावी कानून की सफलता अंतर-मंत्रालयी समिति के निष्कर्षों और इसकी सिफारिशों पर अमल करने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता पर निर्भर करेगी।

निष्कर्ष:

यद्यपि केवल कानून बनाने से सभी चुनौतियों का समाधान नहीं होगा, फिर भी यह घरेलू कार्य के मूल्य को मान्यता देने, श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने तथा कार्यबल के इस महत्वपूर्ण  वर्ग के लिए, उचित कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों के लिए एक अलग कानून की आवश्यकता पर विचार करने हेतु निर्देश दिया है। भारत में घरेलू कामगारों के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें और चर्चा करें कि कैसे एक समर्पित कानूनी ढांचा उनकी कमजोरियों को दूर कर सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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