Q. भारत में कृषि सुधार वर्ष 1965 की MSP व्यवस्था से लेकर आज की जटिल चुनौतियों तक विकसित हुए हैं। पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संबोधित करते हुए और सतत कृषि को बढ़ावा देते हुए कल्याणकारी उपायों के साथ बाजार अर्थशास्त्र को संतुलित करना कैसे विकसित भारत 2047 को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, इसकी आलोचनात्मक जांच कीजिए साथ ही उपयुक्त नीतिगत उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग 

  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि भारत में कृषि सुधार 1965 की MSP व्यवस्था से लेकर आज की जटिल चुनौतियों तक किस प्रकार विकसित हुए हैं।
  • विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कल्याणकारी उपायों के साथ बाजार अर्थशास्त्र को कैसे संतुलित किया जा सकता है, इसका परीक्षण कीजिए।
  • पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान करते हुए और संधारणीय कृषि को बढ़ावा देते हुए संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इसका परीक्षण कीजिए।
  • उपयुक्त नीतिगत उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत में कृषि सुधारों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, वर्ष 1965 की MSP व्यवस्था से, जो मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करती थी, आज के बाजार एकीकरण, कल्याण और स्थिरता की जटिल चुनौतियों का समाधान करने तक। MSP सुधार और PM-किसान जैसी योजनाओं पर हाल की बहसें, अर्थशास्त्र और कल्याण के बीच संतुलन बनाने के प्रयासों को दर्शाती हैं। हालाँकि, संधारणीय कृषि को बढ़ावा देना ‘विकसित भारत 2047’ के सपने को साकार करने के लिए महत्त्वपूर्ण है ।

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भारत में कृषि सुधारों का विकास (1965 से वर्तमान तक)

  • MSP फ्रेमवर्क की शुरूआत (1965): MSP प्रणाली की शुरुआत गेहूं और चावल के उत्पादन को प्रोत्साहित करके खाद्यान्न की कमी को दूर करने के लिए की गई थी।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1966 में, भारत ने मैक्सिकन गेहूं की किस्मों का आयात किया, जिससे हरित क्रांति की शुरुआत हुई, जो गेहूं और चावल के लिए सुनिश्चित MSP पर निर्भर थी।
  • MSP बास्केट का विस्तार: समय के साथ, राजनीतिक दबावों के कारण MSP का विस्तार हुआ और अधिक फसलों को इसमें शामिल किया गया, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न हुआ। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा, MSP और मुफ्त बिजली के कारण चावल पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे भूजल में कमी और पारिस्थितिकी तंत्र का ह्वास होता है।
  • खुली खरीद: यह प्रणाली खुली खरीद में बदल गई, विशेषकर गेहूं और चावल के लिए, जिससे अक्षमता उत्पन्न हुई और अतिरिक्त स्टॉक की समस्या आई।  
    • उदाहरण के लिए: भारतीय खाद्य निगम के पास बफर मानदंडों से लगभग तीन गुना अधिक चावल का स्टॉक है, जिससे बर्बादी और भंडारण की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • इनपुट पर सब्सिडी: बिजली, उर्वरक और सिंचाई पर सब्सिडी शुरू की गई, जिससे किसानों की लागत कम हुई, लेकिन मृदा निम्नीकरण हुआ और पर्यावरण ह्वास हुआ। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब में ट्यूबवेल के लिए मुफ्त बिजली के कारण भूजल स्तर में खतरनाक गिरावट आई है।
  • डिजिटलीकरण की ओर परिवर्तन: हाल के सुधारों में दक्षता में सुधार के लिए डिजिटलीकरण पर बल दिया गया है, जैसे कि प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण और लाभार्थियों के डिजिटल रिकॉर्ड। 
    • उदाहरण के लिए: PM किसान सम्मान निधि किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करती है, बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करती है और लाभों का लक्षित वितरण सुनिश्चित करती है।

विकसित भारत 2047 के लिए कल्याणकारी उपायों के साथ बाजार अर्थशास्त्र को संतुलित करना

  • कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण को स्वतंत्र बनाना: बाजार की शक्तियों को मूल्य निर्धारित करने की सुविधा देने से फसल विविधीकरण और कुशल उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: फ्यूचर मार्केट्स को बढ़ावा देने से किसान अपेक्षित कीमतों के आधार पर योजना बना सकते हैं, जिससे MSP-संचालित फसल पैटर्न पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • लक्षित प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण: सार्वभौमिक सब्सिडी को लक्षित नकद हस्तांतरण से बदलना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सहायता सबसे कमजोर कृषकों और उपभोक्ताओं तक पहुँचे। 
    • उदाहरण के लिए: उर्वरक सब्सिडी में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) से लीकेज कम करके वर्ष 2024 में 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी।
  • प्रति हेक्टेयर सब्सिडी मॉडल: सार्वभौमिक लाभों के बजाय भूमि के आकार के आधार पर इनपुट सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए जिससे संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित हो। 
    • उदाहरण के लिए: तेलंगाना की रायथू बंधु योजना किसानों को कृषि में निवेश के लिए प्रति एकड़ सालाना ₹10,000 प्रदान करती है।
  • ग्रामीण बुनियादी ढाँचे   में निवेश: बर्बादी को कम करने और खेत से बाजार तक संपर्क को बेहतर बनाने के लिए सड़कों, बाजारों, सिंचाई और मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करना। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने कनेक्टिविटी में सुधार किया, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया और किसानों की आय में सुधार किया।
  • संधारणीय कृषि को बढ़ावा देना: पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए जैविक खेती और फसल विविधीकरण जैसी पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY), जैविक खेती में सहायता करती है और रासायनिक उर्वरक के उपयोग को कम करती है।

बाज़ार अर्थशास्त्र, पर्यावरण संबंधी चिंताएँ और संधारणीय कृषि में संतुलन

  • संधारणीयता के लिए फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना: किसानों को चावल और गेहूं जैसी  अधिक जल-गहन फसलों के बजाय दलहन, तिलहन और बाजरा की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे भूजल की कमी कम होगी और मृदा की गुणवत्ता में सुधार होगा। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा मिलेट मिशन बाजरा की खेती को प्रोत्साहित करता है, जिससे आय और मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है, जबकि जलगहन धान की कृषि कम होती है।
  • बाजार से जुड़े मूल्य निर्धारण तंत्र लागू करना: MSP की जगह मूल्य में कमी वाली भुगतान योजनाएँ लागू करनी चाहिए, ताकि किसानों को उचित मूल्य मिले और साथ ही चुनिंदा फसलों के अधिक उत्पादन को हतोत्साहित किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश में भावांतर भुगतान योजना, किसानों को बाजार मूल्य में कमी की भरपाई करती है, जिससे बाजार की गतिशीलता को बिगाड़े बिना आय स्थिरता सुनिश्चित होती है।
  • संधारणीय इनपुट उपयोग को अपनाना: ड्रिप सिंचाई और जैविक खेती जैसे पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए उर्वरकों और बिजली के लिए सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिए: PM -KUSUM योजना सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंपों को बढ़ावा देती है, जिससे सब्सिडी वाली बिजली पर निर्भरता कम होती है और भूजल का दोहन कम होता है।
  • परिशुद्ध कृषि के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: किसानों को मृदा की गुणवत्ता, फसल के चयन और जल के उपयोग पर रियल टाइम डेटा प्रदान करने के लिए AI और IoT का उपयोग करना चाहिए और संसाधनों का स्थायी रूप से अनुकूलन करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु में कीटनाशक के उपयोग के लिए ड्रोन का उपयोग अपशिष्ट को कम करता है और दक्षता व पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • कृषि-मूल्य शृंखलाओं को मजबूत करना: फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और जल्दी खराब होने वाली उपज के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने हेतु कुशल मूल्य शृंखलाओं और कोल्ड स्टोरेज संयंत्रों का निर्माण करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: ऑपरेशन ग्रीन्स का उद्देश्य मजबूत भंडारण और आपूर्ति श्रृंखला बनाकर टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों को स्थिर करना है।

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सुझाए गए नीतिगत उपाय

  • लक्षित सब्सिडी के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण: इनपुट सब्सिडी की जगह किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से बदलें, जिससे उचित वितरण सुनिश्चित हो और संसाधनों की बर्बादी कम हो। 
    • उदाहरण के लिए: उर्वरक वितरण में DBT लागू करने से  यह सुनिश्चित होगा कि सब्सिडी योग्य किसानों तक कुशलतापूर्वक पहुँचे।
  • भूमि पट्टा बाजार विकसित करना: उत्पादकता बढ़ाने वाली प्रथाओं में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए छोटे किसानों और बटाईदारों के लिए विनियमित भूमि पट्टे को खोलना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: आंध्र प्रदेश की भूमि पट्टा नीति जोतदार किसानों को सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे संस्थागत ऋण और लाभ तक पहुँच संभव होती है।
  • कृषि-बुनियादी ढाँचे   में निवेश करना: ग्रामीण सड़कों, सिंचाई प्रणालियों और भंडारण सुविधाओं पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए ताकि बाज़ार तक पहुँच बेहतर हो और बर्बादी कम हो। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई कवरेज और जल उपयोग दक्षता को बढ़ाया है।
  • कृषि-वानिकी और जलवायु-प्रतिरोधी फसलों का समर्थन करना: जलवायु परिवर्तन से निपटने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि-वानिकी और सूखा-प्रतिरोधी किस्मों की खेती को बढ़ावा देना‌ चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: कृषि-वानिकी पर पंजाब की नीति किसानों को पेड़ लगाने, जैव विविधता में सुधार और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • कृषि अनुसंधान और विस्तार को बढ़ावा देना: संधारणीय कृषि की तकनीक विकसित करने और विस्तार सेवाओं के माध्यम से ज्ञान का प्रसार सुनिश्चित करने के लिए कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), जीरोटिलेज कृषि को बढ़ावा देता है , जिससे लागत कम होती है और मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है।

कृषि सुधारों के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कल्याणकारी उपायों के साथ बाजार संचालित तंत्रों का सम्मिश्रण शामिल है, विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों को अपनाकर और संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करके और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देकर, भारत एक समावेशी, प्रत्यास्थ और पर्यावरणीय रूप से संधारणीय कृषि क्षेत्र का निर्माण होता है जो किसानों को सशक्त बनाता है और देश के भविष्य को सुरक्षित करता है।

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