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Q. भारत में जल प्रदूषण के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिए। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने क्या उपाय किये हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण

  • भूमिका
    • भारत में जल प्रदूषण के बारे में संक्षेप में लिखिये।
  • मुख्य भाग
    • भारत में जल प्रदूषण के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में लिखिए।
    • सरकार ने इस मुद्दे के समाधान के लिए क्या उपाय किए हैं, उन्हें लिखिए।
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

भूमिका          

जल प्रदूषण मानवीय गतिविधियों का परिणाम है जो जल को मानव उपयोग के लिए असुरक्षित बनाता है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है। नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन सूचकांक”, 2018 की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर है, जिसमें लगभग 70% सतही जल दूषित है

मुख्य भाग

भारत में जल प्रदूषण का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव

पर्यावरणीय प्रभाव:

  • जैव विविधता ह्वास: प्रदूषित जल निकायों में जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए: गंगा नदी डॉल्फिन को मुख्य रूप से गंगा में उच्च प्रदूषण स्तर के कारण IUCN की लुप्तप्राय सूची में डाल दिया गया है।
  • मिट्टी का क्षरण: दूषित पानी से मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है। उदाहरण के लिए: प्रदूषित यमुना नदी में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि नदी के किनारे उगाई जाने वाली या इसके पानी से सिंचित फसलों और सब्जियों में भारी धातुएँ होती हैं।
  • प्रवाल भित्तियों का क्षरण: समुद्र में बहने वाला प्रदूषित जल, प्रवाल भित्तियों को प्रभावित करता है, जो समुद्री जैव विविधता के लिए आवश्यक हैं। मन्नार की खाड़ी , जो भारत की मूंगा चट्टानों का निवास स्थान है , विभिन्न स्रोतों से प्रदूषकों से प्रभावित हुई है।
  • यूट्रोफिकेशन: पोषक तत्वों से भरपूर प्रदूषक, शैवाल की अत्यधिक वृद्धि का कारण बनते हैं जिससे जल निकायों में मृत क्षेत्र (Dead zones) बनते हैं। उदाहरण के लिए: मणिपुर में लोकतक झील में यूट्रोफिकेशन देखा गया है, जिससे मछलियों की आबादी में कमी आई है

स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • जलजनित रोग: प्रदूषित जल, स्रोत हैजा और पेचिश जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जलजनित रोगों का कई प्रकोप देखा गया है राष्ट्रीय स्वास्थ्य रिपोर्ट 2019 के अनुसार , डायरिया संबंधी बीमारियाँ भारत में  रुग्णता का दूसरा सबसे बड़ा कारण बनीं।
  • भारी धातु विषाक्तता: भारी धातुओं से दूषित पानी के सेवन से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। उदाहरण: आईआईटी खड़गपुर की 2021 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के लगभग 20% भूमि क्षेत्र के भूजल में खतरनाक रूप से उच्च स्तर का आर्सेनिक है , जिससे देश भर में 250 मिलियन से अधिक लोग खतरे में हैं।
  • शिशु मृत्यु दर: दूषित जल, शिशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है। उदाहरण: डायरिया भारत में होने वाली शिशु मृत्युओं का तीसरा प्रमुख कारण है।
  • कैंसर का खतरा: जल में रासायनिक प्रदूषक, कैंसरकारी हो सकते हैं। पंजाब में औद्योगिक क्षेत्रों के पास के गांवों में कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी गई है , संभवतः प्रदूषित जल स्रोतों के कारण।

सरकार ने इस मुद्दे के समाधान के लिए जो उपाय किये हैं

  • नमामि गंगे कार्यक्रम: इस पहल का लक्ष्य गंगा नदी को साफ करना है जो देश के 28% संसाधनों के लिए पानी उपलब्ध कराती है।उदाहरण के लिए: वाराणसी, जो कि गंगा के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक शहर है, ने सीवेज उपचार संयंत्रों को उन्नत किया है, जिससे नदी में प्रदूषक तत्वों का प्रवेश कम हो गया है।
  • राष्ट्रीय जल नीति 2012: इसमें गैर-अनुपालन के लिए सख्त दंड के साथ-साथ जल की गुणवत्ता के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं। उदाहरण के लिए: यह नदी बेसिन संगठनों की वकालत करता है जो गोदावरी और कृष्णा जैसी नदियों के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों का प्रबंधन करते हैं , जिससे बेहतर जल प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है और प्रदूषण कम होता है।
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी): एनजीटी ने जल प्रदूषण को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए: 2017 में, इसने उत्तर प्रदेश के बिजनौर और अमरोहा जिलों में उन औद्योगिक इकाइयों को बंद करने का आदेश दिया, जो गंगा में प्रदूषकों का निर्वहन करती पाई गईं, जिससे सख्त प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक मिसाल कायम हुई।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) दिशानिर्देश: दिल्ली के पास यमुना जैसी नदियों के किनारे निगरानी स्टेशन स्थापित किए गए हैं , जिससे प्रदूषण की शीघ्र पहचान और जल को शुद्ध करने के लिए जल उपचार सुविधाएं स्थापित करने जैसे सुधारात्मक उपाय किए जा सकते हैं।
  • जल जीवन मिशन: यह मिशन सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों में सुधार के लिए समग्र जल संसाधन प्रबंधन को लक्षित करता है।
  • समुदाय-आधारित पहल: राजस्थान में, तरूण भारत संघ जैसे समूह सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से नदियों को पुनर्जीवित करने और भूजल स्तर में सुधार करने में सहायक रहे हैं। उनके प्रयासों को सरकार द्वारा व्यापक समर्थन मिला है।
  • जन जागरूकता अभियान: सरकारी एजेंसियों और वॉटरएड इंडिया जैसे गैर सरकारी संगठनों के बीच साझेदारी ने कोलकाता और बैंगलोर जैसे शहरों में शैक्षिक कार्यक्रमों को जन्म दिया है। वे समुदायों को स्वच्छ जल के महत्व के बारे में शिक्षित करते हैं, जिससे स्थानीय जल प्रबंधन प्रयासों में अधिक सार्वजनिक भागीदारी होती है।

निष्कर्ष

जल प्रदूषण से निपटने के लिए भारत का बहुआयामी दृष्टिकोण ,पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों में सकारात्मक परिणाम दे रहा है। निरंतर सरकारी फोकस और सामुदायिक भागीदारी के साथ , देश सभी के लिए स्वच्छ, सुरक्षित पानी सुनिश्चित करने की राह पर है।

 

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