Q. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी मिशन को शामिल करने की क्षमताओं का आकलन करें। भारत में इन प्रौद्योगिकी मिशनों के पूर्ण उपयोग में बाधा डालने वाली चुनौतियों के समाधान पर प्रकाश डालें । (15 अंक, 250 शब्द) अतिरिक्त

उत्तर :

प्रश्न का समाधान कैसे करें

  • भूमिका
    • भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के बारे में संक्षेप में लिखें
  • मुख्य भाग
    • भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी मिशन को शामिल करने की क्षमता लिखें।
    • इन प्रौद्योगिकी मिशनों के पूर्ण उपयोग में बाधा डालने वाली चुनौतियों के बारे में लिखें।
    • इन चुनौतियों का समाधान करने और उचित वितरण सुनिश्चित करने तथा क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के लिए समाधान लिखें।
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

परिचय

भारत में प्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी उर्वरक, बिजली और पानी जैसी इनपुट लागत को कम करके किसानों की सहायता करती है। दूसरी ओर, अप्रत्यक्ष सब्सिडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), फसल बीमा और मूल्य स्थिरीकरण के माध्यम से समर्थन शामिल होता है, जो किसानों को बाजार की स्थितियों में होने वाली उतार-चढ़ावों से सुरक्षित रखते हैं। कृषि सब्सिडी भारत की जीडीपी का लगभग 2% है।

 

मुख्य भाग

भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कृषि सब्सिडी के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी मिशन को शामिल करने की संभावना

  • लक्ष्य निर्धारण और दक्षता में सुधार: प्रौद्योगिकी मिशन डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और ब्लॉकचेन का लाभ उठाकर सब्सिडी को सुव्यवस्थित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एआई फसल के पैटर्न और मौसम के पूर्वानुमान के आधार पर सब्सिडी की जरूरतों का अनुमान लगा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि केवल पात्र किसानों को ही मदद मिले।
  • रीयलटाइम ट्रैकिंग: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ खेतों की निगरानी कर सकती हैं, जिससे अधिकारियों को सब्सिडी के उपयोग पर नज़र रखने में मदद मिलेगी। इससे निधियों का दुरुपयोग या रिसाव कम हो सकता है। उदाहरण के लिए, ड्रोन प्रौद्योगिकियाँ पंजीकृत कृषि भूमि के अस्तित्व और स्थिति को सत्यापित कर सकती हैं।
  • स्मार्ट ग्रिड: प्रौद्योगिकी बिजली और पानी के लिए स्मार्ट ग्रिड बनाने में सहायता कर सकती है। ये ग्रिड अपव्यय को कम करने के लिए संसाधन वितरण की निगरानी और प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे बिजली और सिंचाई के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का इष्टतम उपयोग हो सकेगा।
  • मोबाइल एप्लिकेशन: किसान मोबाइल ऐप के माध्यम से सब्सिडी वितरण, फसल की कीमतों और मौसम के पैटर्न पर वास्तविक समय पर अपडेट प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, ‘किसान सुविधा’ ऐप मौसम, बाजार कीमतों और कृषि सब्सिडी के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: ब्लॉकचेन तकनीक सब्सिडी वितरण के लिए एक सुरक्षित और पारदर्शी खाता प्रदान कर सकती है, जिससे भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है और सुनिश्चित हो सकता है कि धन इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक पहुंचे।
  • डेटा-संचालित नीतियां: प्रौद्योगिकी मिशन महत्वपूर्ण कृषि डेटा तैयार कर सकते हैं, जिसका उपयोग अधिक प्रभावी और लक्षित सब्सिडी नीतियों को डिजाइन करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, उर्वरक उपयोग डेटा का विश्लेषण करने से उर्वरक सब्सिडी नीतियों को संशोधित करने में मदद मिल सकती है।
  • फसल बीमा: प्रौद्योगिकी फसल बीमा, और अप्रत्यक्ष सब्सिडी को अनुकूलित करने में भूमिका निभा सकती है। सैटेलाइट इमेजिंग सटीक मौसम डेटा प्रदान कर सकता है, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संभावित कृषि असफलताओं का पूर्वानुमान कर सकता है।इनसे बीमा भुगतान की दक्षता और सटीकता में सुधार हो सकता है।

इन तकनीकी मिशनों के पूर्ण उपयोग को बाधित करने वाली चुनौतियां

  • डिजिटल विभाजन: कई ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी के कारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक उल्लेखनीय डिजिटल विभाजन है, जो डिजिटल प्लेटफार्मों के प्रभावी कामकाज में बाधा डाल सकता है, जिससे किसानों की वास्तविक समय बाजार डेटा या डिजिटल सब्सिडी तक पहुंचने की क्षमता कम हो सकती है। उदाहरण- 2017 तक, सर्वेक्षण में शामिल 41% किसानों ने कृषि संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरनेट का उपयोग किया।
  • तकनीकी साक्षरता: कई किसानों में अभी भी प्रौद्योगिकी का पूरा लाभ उठाने के लिए आवश्यक डिजिटल साक्षरता का अभाव है। उदाहरण के लिए, ‘किसान सुविधा’ जैसी मोबाइल एप्लिकेशन्स की प्रभावकारिता सीमित हो सकती है अगर किसान इस प्रकार के प्लेटफॉर्म का उपयोग करने में कुशल नहीं हैं जिससे इन सेवाओं का अपर्याप्त उपयोग हो सकता है।
  • बुनियादी ढांचे के मुद्दे: इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) उपकरणों, ड्रोन और उपग्रह इमेजिंग जैसी उन्नत तकनीक को अपनाने के लिए मजबूत सहायक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है। लगातार बिजली और नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमी इन प्रौद्योगिकियों के कार्यान्वयन को कठिन बना सकती है। उदाहरण- 91% उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें कॉल ड्रॉप की समस्या का सामना करना पड़ता है, जबकि 56% ने कहा कि उनके मामले में समस्या गंभीर थी।
  • प्रारंभिक लागत: नई प्रौद्योगिकियों की अग्रिम लागत अधिक हो सकती है, जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न कर सकती है। उदाहरण के लिए, सटीक कृषि उपकरण जो संसाधनों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने में मदद करते हैं, इन किसानों की वित्तीय पहुंच से परे हो सकते हैं
  • रखरखाव चुनौतियाँ: उच्च तकनीक वाले उपकरणों में तकनीकी खराबी के कारण दूरदराज के क्षेत्रों में मरम्मत करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी दूरदराज के गांव में एक खराब IoT उपकरण कुशल तकनीशियन की अनुपस्थिति के कारण मरम्मत के बिना रह सकता है, जिससे इसकी उपयोगिता प्रभावित हो सकती है।
  • नीतिगत बाधाएँ: मौजूदा नियामक ढाँचे प्रौद्योगिकी अपनाने में बाधा बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, जहाँ ड्रोन फसल स्वास्थ्य की निगरानी में सहायक हो सकते हैं, वहीं उनके उपयोग के संबंध में सख्त नियम भारतीय कृषि में उनकी क्षमता को सीमित कर सकते हैं।

इन चुनौतियों का समाधान करने और उचित वितरण सुनिश्चित करने और क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने के समाधान

  • ग्रामीण कनेक्टिविटी को बढ़ाना: डिजिटल विभाजन कम करने के लिए ग्रामीण इंटरनेट बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। भारतनेट परियोजना इस प्रकार की पहल का उदाहारण है, जिसका उद्देश्य भारत के सभी ग्रामीण घरों को ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान करना है, जिससे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स की क्षमता और पहुँच में सुधार हो।”
  • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ाना: माइक्रोसॉफ्ट के प्रोजेक्ट संगम जैसी पहल, अच्छे मॉडल के रूप में काम करती है ,जो ग्रामीण व्यक्तियों को डिजिटल कौशल में प्रशिक्षित करती है, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है, जिससे किसानों को प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से लाभ उठाने में सक्षम बनाया जा सकता है।
  • सब्सिडी वाली प्रौद्योगिकी की पेशकश: सरकार छोटे और सीमांत किसानों के लिए उच्च कृषि प्रौद्योगिकियों के सस्ते पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए सब्सिडी या कम ब्याज वाले ऋण प्रदान करके कृषि क्षेत्र में बराबरी बनाए रख सकती है, उदाहरण- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवाई)।
  • रखरखाव सेवाएँ विकसित करना: स्थानीय रूप से प्रशिक्षित तकनीशियनों का एक नेटवर्क स्थापित करने से उच्च तकनीक वाले उपकरणों की कुशल मरम्मत सुनिश्चित हो सकती है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में एचसीएल की आईटी सेवाएं डिजिटल सिस्टम को बनाए रखने के लिए एक अच्छा मॉडल पेश करती हैं।
  • सामुदायिक सहभागिता को प्रोत्साहित करना: कृषक समुदायों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से भय और चिंताओं को दूर करने से प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा मिल सकता है। प्रायोगिक कार्यशालाएँ और प्रदर्शन किसानों को नए उपकरणों और तकनीकों से परिचित करा सकते हैं।
  • नीतियों को संशोधित करना: नीतिगत ढांचे में कृषि में प्रौद्योगिकी की बढ़ती भूमिका को समायोजित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, मौजूदा ड्रोन नियमों को और अधिक उदार बनाने के लिए संशोधित करने से खेती में व्यापक उपयोग का मार्ग प्रशस्त हो सकता है
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन को अपनाना: पायलट क्षेत्रों से शुरू करके और धीरे-धीरे विस्तार करके चरणबद्ध कार्यान्वयन के माध्यम से नई प्रौद्योगिकियों को स्केल किया जा सकता है . विभिन्न जिलों में भूमि रिकॉर्ड का क्रमिक डिजिटलीकरण इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है।

निष्कर्ष

प्रौद्योगिकी मिशनों की क्षमता का दोहन भारत में कृषि सब्सिडी प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। वर्तमान चुनौतियों पर काबू पाने से ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा जहां सब्सिडी का कुशलतापूर्वक उपयोग और समान रूप से वितरण किया जाएगा, जिससे देश में कृषि समृद्धि और स्थिरता के एक नए युग को बढ़ावा मिलेगा।

 

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