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Q. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • भूमिका: जलवायु परिवर्तन को एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दे के रूप में उजागर करें, भारत पर, विशेषकर हिमालयी और तटीय क्षेत्रों में इसके विशिष्ट प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करें।
  • मुख्य भाग :
    • बढ़ते तापमान, परिवर्तित वर्षा और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसे प्रमुख प्रभावों पर चर्चा करें।
    • हिमनदों के निर्वतन, नदी के प्रवाह में बदलाव और जैव विविधता ह्वास जैसे मुद्दों का अन्वेषण करें।
    • बढ़ी हुई चक्रवात गतिविधि और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव की जांच करें।
    • जलवायु प्रतिरोध और सतत विकास के लिए भारत की रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करें।
  • निष्कर्ष: सुभेद्य क्षेत्रों में जोखिमों को कम करने और राष्ट्रीय प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए लक्षित जलवायु कार्रवाई के महत्व पर जोर दीजिए।

 

भूमिका :

जलवायु परिवर्तन एक विकट चुनौती है जिसका भारत सामना कर रहा है, जिसका इसके पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। विशेष रूप से हिमालयी और तटीय क्षेत्रों में तीव्र होता है, जहां अद्वितीय भौगोलिक विशेषताएं सुभेद्यताओं को बढ़ा देती हैं।

मुख्य भाग :

भारत पर सामान्य प्रभाव

  • तापमान और हीटवेव: बढ़ते तापमान ने हीटवेव की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा दिया है, जिससे मानव स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है।
  • वर्षा और जल प्रणाली में परिवर्तन: वर्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण बाढ़ और सूखे सहित अधिक चरम मौसम की घटनाएं हुई हैं, जिससे जल संसाधन और कृषि प्रभावित हुई है।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि और तटीय अपरदन: तटीय क्षेत्रों को समुद्र के बढ़ते स्तर के खतरे का सामना करना पड़ता है, जिससे अपरदन, बाढ़ और मीठे पानी के स्रोत और आवास प्रभावित होते हैं।

हिमालयी राज्यों पर प्रभाव

  • हिमनदों का निर्वतन: हिमालय के ग्लेशियरों के निर्वतन से ग्लेशियरों से पोषित नदियों से जल की आपूर्ति को खतरा होता है, जिससे पीने के पानी, कृषि और जलविद्युत पर असर पड़ता है।
  • नदी प्रवाह परिवर्तनशीलता: सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों के प्रवाह में उतार-चढ़ाव लाखों लोगों के लिए जल की उपलब्धता को बाधित करता है, जिससे कृषि और आजीविका प्रभावित होती है।
  • जैव विविधता ह्वास: जलवायु-प्रेरित परिवर्तनों के कारण आवास में बदलाव हो रहा है और जैव विविधता का ह्वास हो रहा है, जिसका पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और कृषि पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

तटीय राज्यों पर प्रभाव

  • बढ़ी हुई चक्रवात गतिविधि: गर्म समुद्र का तापमान,निरंतर तीव्र चक्रवातों से जुड़ा होता है, जिससे तटीय क्षेत्रों में जीवन और बुनियादी अवसंरचना के लिए खतरा पैदा होता है।
  • मत्स्य पालन में व्यवधान: समुद्र के तापमान और अम्लता में परिवर्तन समुद्री जीवन और मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, जो तटीय समुदायों की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।

राष्ट्रीय अनुकूलन और शमन प्रयास

  • नीतिगत पहल: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) और विभिन्न राज्य-स्तरीय योजनाओं जैसी रणनीतियों का उद्देश्य सतत विकास और नवीकरणीय ऊर्जा पहल के माध्यम से भेद्यता को कम करना है।
  • अवसंरचना और सामुदायिक प्रतिरोध: सुभेद्य आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए जलवायु-प्रतिरोधी अवसंरचना और सामुदायिक अनुकूलन परियोजनाओं में निवेश महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

जलवायु परिवर्तन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ख़तरा है जो विशेष रूप से इसके हिमालयी और तटीय राज्यों को प्रभावित कर रहा है। हालाँकि चुनौतियाँ कठिन हैं, जलवायु अनुकूलन और शमन रणनीतियों पर भारत का सक्रिय रुख प्रतिरोध का मार्ग प्रदान करता है। मौजूदा जलवायु संकट के खिलाफ देश के पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक कल्याण  के लिए इन प्रयासों को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।

 

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