Q. क्या आप इस बात से सहमत हैं, कि जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में विनियामक और सेवा प्रावधान शक्तियों का संकेन्द्रण संस्थागत रूप से तर्कहीन और प्रशासनिक रूप से अक्षम है? उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (15 अंक 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में विनियामक और सेवा प्रावधान शक्तियों का संकेंद्रण संस्थागत रूप से तर्कहीन और प्रशासनिक रूप से अकुशल है।
  • जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में विनियामक और सेवा प्रावधान शक्तियों के संकेंद्रण के लाभों का परीक्षण कीजिए।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

भारत में जिला मजिस्ट्रेट (DM) के कार्यालय में विनियामक और सेवा प्रावधान शक्तियों का संकेंद्रण औपनिवेशिक प्रशासन की देन है, जिसे दक्षता के बजाय नियंत्रण के लिए अभिकल्पित किया गया है। जबकि यह त्वरित निर्णय लेने के लिए प्राधिकरण को केंद्रीकृत करता है, यह अत्यधिक बोझ, विशेषज्ञता की कमी और दुरुपयोग की संभावना के कारण संस्थागत रूप से तर्कहीन और प्रशासनिक रूप से अक्षम है।

सत्ता संकेंद्रण की संस्थागत तर्कहीनता और प्रशासनिक अकुशलता

  • अत्यधिक जिम्मेदारी के कारण देरी होती है: अत्यधिक जिम्मेदारियाँ समय पर निर्णय लेने में बाधा बन सकती हैं। 
    • उदाहरण: कुछ जिलों में, जिला मजिस्ट्रेट के अत्यधिक कार्यभार के कारण भूमि अधिग्रहण के कई सारे मामले लंबित ही रह गए हैं।
  • विशिष्ट विशेषज्ञता का क्षरण: केंद्रीकरण डोमेन-विशिष्ट ज्ञान को दरकिनार कर सकता है। 
    • उदाहरण: स्वास्थ्य कार्यक्रम तब प्रभावित होते हैं, जब चिकित्सा विशेषज्ञता की कमी वाले जिला मजिस्ट्रेट पर्याप्त परामर्श के बिना महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।
  • जवाबदेही में कमी: समेकित शक्ति के परिणाम स्वरूप जिम्मेदारी तय करने में समस्या आ सकती है। 
    • उदाहरण: प्रशासनिक चूक के मामलों में, केवल DM कार्यालय को जवाबदेह तय करना चुनौतीपूर्ण है।
  • स्थानीय प्रशासन में लचीलापन: केंद्रीय प्राधिकरण सूक्ष्म-स्तर के मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर सकता है। 
    • उदाहरण: ग्राम-स्तर के विवादों के लिए अक्सर विशिष्ट समझ की आवश्यकता होती है, जिसे केंद्रीकृत प्रशासन अनदेखा कर सकता है।
  • सत्ता के दुरुपयोग की संभावना: अनियंत्रित अधिकार मनमाने निर्णयों को जन्म दे सकते हैं। 
    • उदाहरण: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहाँ जिला मजिस्ट्रेट ने बिना किसी उचित कारण के प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे सार्वजनिक असंतोष पैदा हुआ है।

विनियामक और सेवा प्रावधान शक्तियों को DM कार्यालय में केंद्रित करने के लाभ

  • एकीकृत कमान दक्षता बढ़ाती है: केंद्रीकृत प्राधिकरण आपात स्थितियों के दौरान त्वरित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। 
    • उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान, जिला मजिस्ट्रेट ने स्वास्थ्य सेवाओं का समन्वय किया, लॉकडाउन लागू किया और राहत प्रयासों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया।
  • सुव्यवस्थित सार्वजनिक सेवा वितरण: एक ही प्राधिकरण द्वारा कई कार्यों की देख-रेख करने से नौकरशाही में होने वाली देरी कम होती है। 
    • उदाहरण: उत्तर प्रदेश में, जिला मजिस्ट्रेट एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (IGRS) की देख-रेख करते हैं, जिससे नागरिकों की शिकायतों का त्वरित समाधान होता है।
  • प्रभावी कानून और व्यवस्था बनाए रखना: डीएम गड़बड़ी को रोकने के लिए निषेधाज्ञा लागू कर सकते हैं। 
    • उदाहरण: CrPC की धारा 144 के तहत, कई  DM ने विभिन्न जिलों में सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए हैं।
  • समन्वित आपदा प्रबंधन: जिला मजिस्ट्रेट आपदा प्रतिक्रिया प्रयासों का नेतृत्व करते हैं व समय पर राहत सुनिश्चित करते हैं। 
    • उदाहरण: बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में, DM जिला आपदा प्रबंधन योजनाओं को सक्रिय करते हैं तथा निकासी और राहत कार्यों का समन्वय करते हैं।
  • समग्र विकास योजना: जिला मजिस्ट्रेट समेकित विकास के लिए विभिन्न विभागीय योजनाओं को एकीकृत करते हैं। 
    • उदाहरण: जिला योजना समितियों के अध्यक्ष के रूप में, जिला मजिस्ट्रेट बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं को स्थानीय आवश्यकताओं के साथ जोड़ते हैं।

आगे की राह

  • कार्यों का विकेंद्रीकरण: विशिष्ट विभागों को विशिष्ट जिम्मेदारियाँ सौंपने से कार्यकुशलता बढ़ सकती है। 
    • उदाहरण: स्थानीय विकास कार्यों के लिए ब्लॉक विकास अधिकारियों (BDO) को सशक्त बनाने से DM का बोझ कम होता है।
  • क्षमता निर्माण: नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम अधिकारियों को आवश्यक कौशल प्रदान कर सकते हैं। 
    • उदाहरण: लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (LBSNAA) प्रशासनिक दक्षताओं को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम संचालित करती है।
  • प्रौद्योगिकीय एकीकरण: ई-गवर्नेंस उपकरणों को अपनाने से प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण: ई-ऑफिस सिस्टम के कार्यान्वयन से कई जिलों में फाइल प्रबंधन और निर्णय ट्रैकिंग में सुधार हुआ है।
  • स्थानीय संस्थाओं को मजबूत बनाना: पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने से जमीनी स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित हो सकती है।
    • उदाहरण: ग्राम पंचायतों को धन और कार्य सौंपने से केरल जैसे राज्यों में स्थानीय शासन अधिक उत्तरदायी हुआ है।
  • आवधिक भूमिका मूल्यांकन: नियमित समीक्षा से DM की जिम्मेदारियों को पुनः निर्धारित करने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने प्रशासनिक अधिभार को रोकने के लिए भूमिकाओं को पुनः परिभाषित करने की सिफारिश की।

जबकि जिला मजिस्ट्रेट के समेकित अधिकार ने ऐतिहासिक रूप से एकजुट प्रशासन की सुविधा प्रदान की है, लेकिन शासन की बदलती माँगों के कारण अब इसके पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है। केंद्रीकृत निगरानी को विकेंद्रीकृत निष्पादन के साथ संतुलित करने से दक्षता, और जवाबदेही बढ़ सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकता है कि प्रशासनिक संरचना समकालीन आवश्यकताओं तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप हो।

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