Q. आपको क्या लगता है कि सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और टकराव ने भारत में संघ की प्रकृति को किस हद तक आकार दिया है? अपने उत्तर को मान्य करने के लिए कुछ हालिया उदाहरण दीजिये। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • हाल के उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए कि भारत में संघ की प्रकृति को सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा एवं टकराव ने किस सीमा तक आकार दिया है।
  • भारत में संघ की प्रकृति को आकार देने में सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा एवं टकराव की सीमाओं का सुझाव दीजिये।

उत्तर

संविधान में निहित भारत का संघीय ढाँचा सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और टकराव के घटकों से निर्मित एक जटिल एवं विकसित होता हुआ ताना-बाना है। यह समझना कि ये गतिशील घटक भारतीय संघवाद की प्रकृति को कैसे आकार देते हैं, इसकी प्रभावकारिता एवं लचीलेपन का आकलन करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

भारत में संघ की प्रकृति को आकार देना सहयोग 

  • अंतरराज्यीय समन्वय: आपदा प्रबंधन एवं जल-साझाकरण समझौतों पर राज्यों का सहयोग।
    • उदाहरण: तमिलनाडु, पुडुचेरी, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश ने चक्रवात मिचौंग राहत प्रयासों के दौरान समन्वय स्थापित किया था। 
  • केंद्र-राज्य कल्याण पहल: केंद्रीय योजनाओं के संयुक्त कार्यान्वयन से शासन की दक्षता बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (शहरी एवं ग्रामीण) राज्य समन्वय पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

प्रतिस्पर्द्धा

  • आर्थिक विकास: राज्य ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की रैंकिंग एवं ‘ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स’ में प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: पहली $1 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने के लिए राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा हुई है।
  • सामाजिक क्षेत्र में नवाचार: राज्य शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा नीतियों में नवाचार करते हैं तथा अंततः बेहतर जीवन स्तर के लिए प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
    • उदाहरण: दिल्ली मॉडल की स्कूल प्रबंधन समितियाँ: स्कूल प्रबंधन में अभिभावकों को शामिल करना।

टकराव

  • कर राजस्व विवाद: राज्य अपने वित्तीय संचालन को प्रभावित करने वाले GST राजस्व वितरण में देरी का विरोध करते हैं।
  • राज्यपाल-राज्य संघर्ष: राज्यपालों की ओर से बिल की मंजूरी को लेकर टकराव, शासन की दक्षता को प्रभावित करता है। 
    • उदाहरण: दिल्ली सरकार एवं उप-राज्यपाल मामला।
  • क्षेत्रीय दलों का उदय: इस गतिशीलता ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप दिया है, राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन सरकारें तेजी से आदर्श बन रही हैं।
    • उदाहरण: महाराष्ट्र में शिवसेना एवं तमिलनाडु में AIADMK।

सहयोग की सीमाएँ

  • आम सहमति का अभाव: केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच मतभेद, खासकर जब अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेतृत्व में, सहयोग को धीमा कर सकते हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन की गति राज्यों में काफी भिन्न रही है।
  • असमान संसाधन वितरण: राज्यों को लग सकता है कि संसाधनों को उचित रूप से साझा नहीं किया जा रहा है, जिससे असंतोष बढ़ रहा है।
    • उदाहरण के लिए: राज्यों के साथ GST राजस्व साझाकरण एवं मुआवजे को लेकर असंतोष।
  • अधिकार क्षेत्रों का ओवरलैप होना: जब जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं किया जाता है, तो भ्रम एवं अक्षमता पैदा होती है।

प्रतिस्पर्द्धा

  • असमान विकास: अमीर राज्य गरीब राज्यों से आगे निकल सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानताएँ एवं भी बढ़ सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: दक्षिणी एवं पश्चिमी राज्यों में विनिर्माण का केंद्रीकरण सामाजिक-आर्थिक तथा बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों के कारण पूर्वोत्तर क्षेत्रों में विकास की खाई को गहरा करता है।
  • विखंडन: अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा राष्ट्रीय नीतियों एवं लक्ष्यों को विभाजित कर सकती है।
  • समन्वय की कमी: राज्य, राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग नहीं कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अक्षमता होती है।
    • उदाहरण: कर्नाटक एवं तमिलनाडु के बीच कावेरी विवाद, सर्वोच्च न्यायालय तथा केंद्र के हस्तक्षेप के बावजूद, खराब अंतर-राज्यीय समन्वय को दर्शाता है।

टकराव

  • संघीय सद्भाव का क्षरण: निरंतर संघर्ष केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच एकता तथा सहयोग को कमजोर करता है। 
    • उदाहरण: पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने केंद्र द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका दुरुपयोग करने का हवाला देते हुए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है।
  • कानूनी विवाद: लंबे समय तक टकराव से महंगी, समय लेने वाली कानूनी लड़ाइयाँ हो सकती हैं।
  • अस्थिरता: चल रहे टकराव से राजनीतिक अस्थिरता एवं नीति में अनिश्चितता पैदा हो सकती है।

सतत् वार्ता से पता चलता है कि सहयोग प्रतिस्पर्द्धा एवं टकराव को प्रगति के उत्प्रेरक में बदल देता है। आज नवाचार तथा संवाद को अपनाने से कल एक लचीला, एकीकृत संघवाद सुनिश्चित होता है, जो ‘विविधता में एकता’ के सिद्धांत द्वारा निर्देशित होता है।

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