Q. सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सिंचाई सुविधाओं के बावजूद, भारत का कृषि क्षेत्र चावल और गेहूं पर बहुत अधिक निर्भर है। उन कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए जिनके कारण इन फसलों को अन्य फसलों की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी गई है, तथा भारतीय कृषि में फसल विविधता लाने के लिए स्थायी उपाय सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के कृषि क्षेत्र में गेहूँ और चावल को प्राथमिकता देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये।
  • भारत सरकार द्वारा उठाए गए फसल विविधीकरण के कदमों की कमियों पर प्रकाश डालिए।
  • भारत में फसल की खेती में विविधता लाने के लिए संधारणीय उपाय सुझाइये।

उत्तर

फसल विविधीकरण का तात्पर्य गेहूं और चावल जैसे मुख्य अनाजों से बाजरा, दालें और तिलहन जैसी फसलों की व्यापक श्रेणी में परिवर्तन से है। सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सिंचाई सुविधाओं के बावजूद, भारत का कृषि क्षेत्र चावल और गेहूं पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे पारिस्थितिक और आर्थिक तनाव उत्पन्न होता है।

भारत के कृषि क्षेत्र में गेहूँ और चावल को प्राथमिकता देने वाले कारक

  • MSP पर सुनिश्चित खरीद: लगभग गारंटीकृत सरकारी खरीद, चावल और गेहूं उगाने वाले किसानों के लिए मूल्य जोखिम को कम करती है  जिससे उनकी निरंतर खेती को प्रोत्साहन मिलता है।
  • सिंचाई और अनुसंधान के कारण कम उपज जोखिम: ये फसलें सुनिश्चित सिंचाई के तहत पनपती हैं और उन्नत सार्वजनिक अनुसंधान से लाभान्वित होती हैं जिससे उच्च और अधिक स्थिर उपज मिलती है।
  • निरंतर प्रजनन और उच्च रिटर्न: नियमित आनुवंशिक नवाचारों ने उपज क्षमता, तनाव सहिष्णुता और संसाधन दक्षता में सुधार किया है। 
    • उदाहरण: आनुवंशिक रूप से संशोधित चावल की किस्म कमला 9 टन/हेक्टेयर तक उपज देती है, जल्दी पकती है, और जल व उर्वरक का उपयोग कम करती है।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित उपज वृद्धि: डॉयरेक्टसीडेड राइस (DSR) और उर्वरक-उत्तरदायी किस्मों को अपनाने से लाभप्रदता बढ़ती है तथा श्रम और जल का उपयोग कम होता है।
  • केंद्रित सार्वजनिक अनुसंधान एवं विस्तार समर्थन: सरकारी अनुसंधान एवं विकास संस्थान बड़े पैमाने पर गेहूं और चावल को प्राथमिकता देते हैं, तथा निरंतर नवाचार और पहुँच प्रदान करते हैं।

सरकारी फसल विविधीकरण पहल की कमियाँ

  • असमान MSP और खरीद समर्थन: दालों, बाजरा और तिलहन की सीमित खरीद किसानों को विविधीकरण से हतोत्साहित करती है।
  • अनुसंधान और इनपुट प्रोत्साहन में असमानता: अधिकांश अनुसंधान और विकास तथा सब्सिडी अनाज को लक्षित करते हैं, जिससे अन्य फसलें अविकसित रह जाती हैं। 
    • उदाहरण: BT कपास के आने के बाद से अनाज में निरंतर नवाचारों के विपरीत, कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है।
  • सिंचाई के बुनियादी ढाँचे में पक्षपात: सिंचाई प्रणालियों में निवेश से बड़े पैमाने पर जल की अधिक खपत वाली फसलों को लाभ होता है। 
    • उदाहरण: मध्य प्रदेश में सिंचाई में वृद्धि के साथ गेहूं का रकबा 59.1 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 78.1 लाख हेक्टेयर और चावल का रकबा 20.2 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 38.7 लाख हेक्टेयर हो गया।
  • जलवायु-प्रतिरोधी फसलों की उपेक्षा: जलवायु जोखिमों के बावजूद सूखा-सहिष्णु फसलों पर कम ध्यान दिया जाता है।
  • प्रसंस्करण और भंडारण के बुनियादी ढाँचे की कमी: गैर-अनाज फसलों के लिए बुनियादी ढाँचा कमजोर है, जिससे बाजार तक पहुँच और लाभप्रदता सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण: खराब कोल्ड चेन के कारण जल्दी खराब होने वाली और मोटे अनाज वाली फसलों में भारी नुकसान, विविधीकरण में बाधा उत्पन्न करता है।

भारत में फसल की खेती में विविधता लाने के लिए स्थायी उपाय

  • MSP और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करना: दालों, बाजरा और तिलहनों के लिए MSP और अनुसंधान सहायता का विस्तार करना चाहिए
  • जल-बचत प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना: डॉयरेक्टसीडेड राइस, फसल चक्र और जलवायु-अनुकूल किस्मों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण: कमला चावल और DSR को अपनाने से जल की बचत होती है और उर्वरक का उपयोग काफी कम हो जाता है।
  • तनाव-प्रतिरोधी फसल प्रजनन को बढ़ावा देना: जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों के लिए
    अजैविक तनाव-सहिष्णु किस्में विकसित करनी चाहिए।

    • उदाहरण: सूखा और लवणता प्रतिरोध के लिए  पूसा DST राइस 1, प्रत्यास्थ फसल विकास के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता है।
  • सिंचाई निवेश को पुनर्गठित करना: कम जल-गहन फसलों को प्राथमिकता देनी चाहिए और सूक्ष्म सिंचाई तक पहुँच में सुधार करना चाहिए।
    • उदाहरण: बड़ी नहर परियोजनाओं को दी जाने वाली निधि को दलहन और तिलहन के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम में स्थानांतरित करना चाहिए
  • फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: विविध फसलों के लिए
    कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयों और आपूर्ति श्रृंखलाओं का विस्तार करना चाहिए

    • उदाहरण: बेहतर बुनियादी ढाँचे से मोटे अनाजों में होने वाले नुकसान में कमी आएगी, जिससे वे व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनेंगे।

MSP और सिंचाई के बावजूद चावल और गेहूं पर भारत की अत्यधिक निर्भरता संसाधनों पर दबाव डालती है और प्रत्यास्थता को सीमित करती है। दीर्घकालिक कृषि संधारणीयता और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सतत फसल विविधीकरण हेतु नीतिगत समानता, अनुसंधान फोकस और बुनियादी ढाँचे के उन्नयन की आवश्यकता है।

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