Q. ‘स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, आत्महत्या एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है’। इस कथन के आलोक में, भारत में आत्महत्या को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की आवश्यकता की जाँच कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद भारत में आत्महत्या एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा क्यों बनी हुई है।
  • भारत में आत्महत्या को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

 

उत्तर:

वर्ष 2022 में 170,000 मामलों (प्रति 100,000 व्यक्तियों पर 12) की संख्या के साथ, आत्महत्या एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बन गई है। स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण में प्रगति के बावजूद, आत्महत्या की दरें बढ़ती जा रही हैं विशेष रूप से युवा वयस्कों और कमजोर समूहों में। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे ,आर्थिक संकट और सामाजिक दबाव जैसे कारक स्थिति को और खराब करते हैं, जिससे बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जाता है।

आत्महत्या भारत में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बनी हुई है-

  • स्वास्थ्य सेवा में प्रगति के बावजूद, छात्र, किसान और महिलाएँ जैसे समूह तनाव, पृथक्करण और सामाजिक दबाव के कारण आत्महत्या के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बने हुए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 में, 10,732 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें से 864 परीक्षा में असफल हुये थे, जो शैक्षणिक सफलता के दबाव को दर्शाता है।
  • आत्महत्या दरों में लैंगिक असमानताएँ: भारत की महिलाओं में आत्महत्या की उच्च दर है, जो वैश्विक औसत से दोगुनी है और सामाजिक दबाव और लिंग-आधारित चुनौतियों से प्रेरित है। 
    • उदाहरण के लिए: 15-39 वर्ष की आयु की महिलाएँ असमान रूप से प्रभावित होती हैं, और घरेलू हिंसा एवं सामाजिक अपेक्षाएँ जैसे कारक उनके आत्महत्या जोखिम में महत्वपूर्ण रूप से योगदान करते हैं।
  • आर्थिक संकट: आर्थिक कठिनाइयां, विशेष रूप से किसानों और दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों के बीच, कर्ज, गरीबी और स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच के कारण व्यक्तियों को आत्महत्या की ओर प्रेरित करती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: स्वास्थ्य सेवा में प्रगति के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच है, जिसके कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का इलाज नहीं हो पाता है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को पर्याप्त धन नहीं मिल पाता है और इसकी पहुँच भी कम है, खास तौर पर उन क्षेत्रों में जहाँ आत्महत्या की दर अधिक है।
  • मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में कलंक: भारत में लोग,मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मदद लेने से कतराते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: मनोदर्पण जैसे अभियानों के बावजूद , कई व्यक्ति सामाजिक कलंक के कारण परामर्श लेने से बचते हैं, जिससे मानसिक बीमारियों का इलाज नहीं हो पाता और आत्महत्या की दर बढ़ती है।

भारत में आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की आवश्यकता

  • आत्महत्या की रोकथाम योग्य प्रकृति : समय पर मध्यक्षेप, परामर्श और सामुदायिक सहायता के माध्यम से आत्महत्या को काफी हद तक रोका जा सकता है जिसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है । 
    • उदाहरण के लिए: KIRAN जैसे कार्यक्रम जो एक टोल-फ्री मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन है, महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करते हैं, परंतु व्यापक प्रभाव के लिए ऐसे प्रयासों को देश भर में विस्तारित करने की आवश्यकता है।
  • आत्महत्या की उच्च आर्थिक लागत: आत्महत्या भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है, उत्पादक जीवन की हानि से परिवारों और समुदायों के लिए आर्थिक कठिनाई उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण के लिए: WHO का अनुमान है कि अगर मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित उत्पादकता हानि को अनदेखा किया गया तो वर्ष 2030 तक भारत को लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर बढ़ता बोझ: अवसाद और चिंता के बढ़ते मामलों के साथ, सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिए से आत्महत्या को संबोधित करने से स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर बोझ कम हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम (MHA) 2017 ने आत्महत्या को अपराध से मुक्त कर दिया और इसे मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में मान्यता दी, लेकिन इसके कार्यान्वयन को और अधिक व्यापक और मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक स्वास्थ्य लक्ष्य संरेखण: आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में देखना वैश्विक स्वास्थ्य लक्ष्यों के साथ संरेखित है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 3, जिसका उद्देश्य वैश्विक आत्महत्या दरों को कम करना है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (2023) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक आत्महत्याओं में 10% की कमी लाना है, जो वैश्विक स्वास्थ्य पहलों में योगदान देगा।
  • जन जागरूकता की भूमिका: सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को कम कर सकते हैं, समय रहते मध्यक्षेप को प्रोत्साहित कर सकते हैं और आत्महत्या की रोकथाम को राष्ट्रीय प्राथमिकता बना सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: आत्महत्या से संबंधित जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है, परंतु भारत में दीर्घकालिक परिणामों के लिए अधिक सतत, स्थानीय प्रयासों की आवश्यकता है।

आगे की राह 

  • मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना: स्वास्थ्य सुविधाओं में निवेश के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को अधिक लोगों तक पहुँचने के लिए टियर-2 और टियर-3 शहरों में मानसिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ।
  • व्यापक आत्महत्या डेटा संग्रह: आत्महत्या डेटा संग्रह को मानकीकृत करने के लिए पुलिस और स्वास्थ्य सेवा विभागों के साथ सहयोग करने से सुभेद्य समूहों और जोखिम कारकों की पहचान करने में मदद मिलेगी। 
    • उदाहरण के लिए: NCRB पूरे भारत में आत्महत्या के कारणों के बारे में अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए स्वास्थ्य विभागों से डेटा एकीकृत कर सकता है ।
  • जन जागरूकता अभियान: राष्ट्रीय अभियानों के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ाने से कलंक को कम करने और व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता लेने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: सड़क सुरक्षा अभियान से दुर्घटनाओं में कमी आई; मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की रोकथाम के लिए इसके समान मॉडल का उपयोग किया जा सकता है ।
  • स्कूल-आधारित मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम: स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा शुरू करने से छात्रों को शैक्षणिक दबाव और भावनात्मक चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मनोदर्पण पहल का उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना है ।
  • सुभेद्य समूहों के लिए सहायता प्रणालियों को मजबूत करना: किसानों , छात्रों और दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों जैसे उच्च जोखिम वाले समूहों के लिए लक्षित सहायता प्रदान करने से आत्महत्या को बढ़ावा देने वाले तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है।

आत्महत्या भारत में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। इसे संबोधित करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता, आर्थिक राहत और सामुदायिक सहभागिता को एकीकृत करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बुनियादी ढांचे में सुधार, कलंक को कम करने और सुभेद्य आबादी पर ध्यान केंद्रित करके, भारत आत्महत्याओं को रोकने और आत्महत्या दरों को कम करने के WHO के वर्ष 2030 लक्ष्य जैसे वैश्विक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने में पर्याप्त प्रगति कर सकता है।

 

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