Q. भारत में रुपया-समर्थित स्थिर मुद्रा के संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। भविष्य में इसके विनियमन और अपनाने के लिए एक रोडमैप सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन के संभावित लाभ लिखिए।
  • भारत में रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन की संभावित चुनौतियों के बारे में बताइए।
  • भविष्य में इसके विनियमन और अंगीकरण के लिए एक रोडमैप सुझाइए।

उत्तर

रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन एक डिजिटल टोकन है, जो भारतीय रुपये के साथ 1:1 अनुपात में संबंधित होता है और नकद भंडार या सरकारी प्रतिभूतियों द्वारा समर्थित होता है। यह ब्लॉकचेन की पारदर्शिता को फिएट मुद्रा की स्थिरता के साथ जोड़ता है, जिससे डिजिटल भुगतान, धन प्रेषण और सीमा पार व्यापार को बढ़ाने की क्षमता को प्रोत्साहन मिलता है, साथ ही यह भारत के बढ़ते फिनटेक परिवेश के साथ सामंजस्य स्थापित करता है और RBI के ई-रुपी पायलट प्रोजेक्ट के अनुरूप है।

भारत में रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन के संभावित लाभ

  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा: रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन वंचित आबादी, विशेष रूप से ग्रामीण भारत तक डिजिटल वित्त की पहुँच बढ़ा सकती है। 
    • उदाहरण: आधार-सक्षम eKYC और ऑफलाइन ई-रुपी परीक्षणों से ग्रामीण परिवारों तक सुरक्षित डिजिटल वित्त के विस्तार की संभावना दिखती है।
  • धन प्रेषण लागत में कमी: स्टेबलकॉइन तीव्र और सस्ते सीमा पार लेन-देन को संभव बना सकते हैं, जिससे प्रवासी श्रमिकों और परिवारों को लाभ होगा। 
    • उदाहरण के लिए: भारत को 125 अरब डॉलर का धन प्रेषण प्राप्त हुआ, जहाँ स्टेबलकॉइन लेन-देन शुल्क को 90% तक कम कर सकते हैं।
  • सॉफ्ट पॉवर और वैश्विक पहुँच: रुपये से जुड़े स्टेबलकॉइन अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपये को बढ़ावा दे सकते हैं,  जिससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम हो सकती है। 
    • उदाहरण: हाल ही में भारत-रूस तेल व्यापार का रुपये में भुगतान किया गया, जो रुपये-समर्थित स्टेबलकॉइन की संभावना को दर्शाता है।
  • व्यापार दक्षता में सुधार: निर्यात अनुबंधों को टोकनाइज करके स्टेबलकॉइन SME निपटान को सरल बना‌ सकती है, जिससे व्यापार करने में सुगमता हो सकती है।
  • कम उधार लागत: जारीकर्ता कम दरों पर धन जुटाते हैं, जिससे बैंकों/भारत सरकार को सस्ती ऋण पहुँच और आर्थिक विकास के माध्यम से लाभ होता है।

हालाँकि लाभ महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन को प्रस्तुत करने से गंभीर चुनौतियाँ भी सामने आती हैं, जिनका भारत को समाधान करना होगा।

भारत में रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन की संभावित चुनौतियाँ

  • विनियामक अनिश्चितता और अतिव्यापन: RBI, SEBI और वित्त मंत्रालय के बीच समन्वय जटिल होगा। नियामक मध्यस्थता से बचने और स्थिर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट क्षेत्राधिकार सीमाओं की आवश्यकता है।
  • मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम: बड़े पैमाने पर अपनाने से RBI का मुद्रा आपूर्ति और ऋण पर नियंत्रण कमजोर हो सकता है, जिससे मौद्रिक संप्रभुता तथा वित्तीय अस्थिरता संबंधी चिंताएँ बढ़ेंगी।
  • AML/KYC और दुरुपयोग संबंधी चिंताएँ: नियामक सुरक्षा उपायों के बावजूद, स्टेबलकॉइन का दुरुपयोग मनी लॉण्ड्रिंग, आतंकवाद के वित्तपोषण और कर चोरी के लिए किया जा सकता है, जिससे सख्त अनुपालन ढाँचे आवश्यक हो जाते हैं।
    • उदाहरण: प्रवर्तन निदेशालय ने HPZ टोकन क्रिप्टो लॉण्ड्रिंग मामले में ₹91.6 करोड़ जब्त किए।
  • प्रौद्योगिकी और साइबर भेद्यताएँ: स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स में हैकिंग या कोडिंग की खामियाँ डिजिटल प्रणाली को अस्थिर कर सकती हैं। 
    • उदाहरण: पॉली नेटवर्क हैक (2021) के परिणामस्वरूप 600 मिलियन डॉलर की चोरी हुई,  जो हाइटेक रिस्क को दर्शाता है।
  • समावेशन में परिचालन संबंधी चुनौतियाँ: सीमित इंटरनेट पहुँच वाली ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी आबादी के लिए ऑफलाइन कार्यक्षमता सुनिश्चित करना कठिन है तथा विभिन्न क्षेत्रों में इसका अंगीकरण असमान हो सकता है।

विनियमन और अंगीकरण के लिए रोडमैप

क. विनियमन

  • स्टेबलकॉइन ढाँचे को परिभाषित करना: भारत को रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन को अस्थिर क्रिप्टो-परिसंपत्तियों से अलग विनियमित उपकरणों के रूप में वर्गीकृत करना चाहिए। 
    • उदाहरण: यू.एस. जीनियस एक्ट (2024) ने पूरी तरह से समर्थित स्टेबलकॉइन को कानूनी डिजिटल टोकन के रूप में मान्यता दी।
  • आरक्षित निधि एवं लेखापरीक्षा अनिवार्य: स्टेबलकॉइन्स को स्वतंत्र ऑडिट के साथ 100% भंडार नकद या सरकारी प्रतिभूतियों में रखना होगा। 
    • उदाहरण: अमेरिका में USDC का मासिक रूप से थर्ड पार्टी ऑडिट होता है, जिससे विश्वसनीयता और उपयोगकर्ता का विश्वास सुनिश्चित होता है।
  • विनियामक समन्वय सुनिश्चित करना: RBI, SEBI और वित्त मंत्रालय को कराधान, निर्गमीकरण और अनुपालन नियमों को डिजाइन करने के लिए सहयोग करना चाहिए।

अंगीकरण

  • RBI सैंडबॉक्स के अंतर्गत पायलट प्रोजेक्ट: राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पहले नियंत्रित पायलट योजनाओं के अंतर्गत स्टेबलकॉइन्स का परीक्षण किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण: RBI के ई-रुपये पायलट (2022) ने जोखिमों का आकलन करने हेतु फिनटेक कंपनियों को पर्यवेक्षण के अंतर्गत शामिल किया।
  • UPI और आधार स्टैक के साथ एकीकरण: स्टेबलकॉइन को भुगतान हेतु UPI और अनुपालन के लिए आधार से जोड़ा जाना चाहिए। 
    • उदाहरण: UPI लाइट पहले से ही ऑफलाइन लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है  जिससे अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका सुगम अंगीकरण हो पाता है।
  • चरणबद्ध विस्तार रणनीति: इसकी शुरुआत धन प्रेषण से होनी चाहिए, उसके बाद SME व्यापार और बाद में सीमा पार उपयोग किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण: सिंगापुर के प्रोजेक्ट उबिन के चरणबद्ध CBDC पायलट एक सफल अंगीकरण रोडमैप प्रस्तुत करते हैं।

निष्कर्ष

रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन वित्तीय समावेशन, वैश्विक व्यापार और प्रेषण को बढ़ा सकता है और साथ ही रुपये की अंतरराष्ट्रीय भूमिका को भी मजबूत कर सकता है। हालाँकि, वित्तीय अस्थिरता, AML के दुरुपयोग और संप्रभुता के हनन के जोखिम को दूर करने हेतु कड़े नियमन की आवश्यकता है। एक चरणबद्ध, लेखापरीक्षित एवं नवाचार-उन्मुख रूपरेखा भारत को स्टेबलकॉइन अंगीकरण में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकती है।

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