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निबंध लिखने का दृष्टिकोण
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1990 के दशक के प्रारंभ में, भारत एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था जिसमें उच्च मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा की भारी कमी तथा भुगतान असंतुलन जैसी समस्याएं व्याप्त थीं। ऐसे समय में, जब अनेक व्यवसाय संघर्ष कर रहे थे तथा सिमट रहे थे, रिलायंस इंडस्ट्रीज के दूरदर्शी संस्थापक धीरूभाई अंबानी ने इन कठिन परिस्थितियों में भी एक संभावित अवसर देखा। जहाँ अधिकांश लोग केवल खतरे देख रहे थे, वहीं अंबानी ने इन चुनौतियों को नवाचार का आधार बनाने का निर्णय लिया।
धीरूभाई अंबानी ने इन आर्थिक कठिनाइयों को अपनी योजनाओं में बाधक नहीं बनने दिया। उन्होंने इन्हें परिवर्तन और नवाचार के लिए एक अवसर के रूप में अपनाया। उन्होंने साहसिक निर्णय लेते हुए रिलायंस के कार्यक्षेत्र का पेट्रोकेमिकल्स, दूरसंचार, और खुदरा जैसे क्षेत्रों में विस्तार किया । इस प्रक्रिया में उन्होंने न केवल रिलायंस की स्थिति को मजबूत किया, बल्कि भारतीय व्यापार जगत को भी एक नई दिशा दी। उनकी रणनीतिक दृष्टि और साहसिक निर्णयों ने न केवल रिलायंस को संकट से बाहर निकाला, , बल्कि उभरते उद्योगों में अग्रणी बनने का अवसर भी प्रदान किया। चुनौतियों को अवसर में बदलने की उनकी क्षमता ने रिलायंस को देश के सबसे बड़े और प्रभावशाली औद्योगिक समूहों में स्थान दिलाया, जो उनकी दूरदर्शिता और नवाचार-प्रधान दृष्टिकोण का परिचायक है।
यह दृष्टांत एक महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान करता है: नवाचार का तात्पर्य परिवर्तन का वर्जन करना नहीं है, बल्कि उसमें छिपी संभावनाओं की पहचान करना और उन्हें साकार करना है। एक ऐसे संसार में, जो निरंतर परिवर्तनशील है, परिवर्तन को खतरे के रूप में देखने की मानसिकता को अवसर-प्रधान दृष्टिकोण में बदलना ही सतत प्रगति और दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है।नवाचार और परिवर्तन परस्पर संबद्ध हैं, तथा इन दोनों के मध्य संतुलन बनाकर उनकी पूर्ण क्षमता को प्राप्त करना संभव है।
नवाचार और परिवर्तन एक-दूसरे के पूरक हैं, जो परस्पर एक-दूसरे को प्रेरित और प्रभावित करते हैं। परिवर्तन प्रायः नई समस्याओं, आवश्यकताओं या चुनौतियों को जन्म देता है, जिनके समाधान के लिए नवाचार की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, इंटरनेट की तीव्र वृद्धि ने व्यवसाय करने के नए तरीकों को जन्म दिया, जिसके परिणामस्वरूप ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, और ऑनलाइन सेवाओं का उदय हुआ। बाजार में इस परिवर्तन ने तकनीक और व्यवसाय मॉडल दोनों में नवाचार को प्रेरित किया।
नवाचार और परिवर्तन का परस्पर संबंध समाज को वैश्विक परिवर्तनों के अनुकूल बनाने तक विस्तृत है। उदाहरण के लिए, अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन का समाधान करने की आवश्यकता से प्रेरित है। जैसे-जैसे विश्व पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, सौर और पवन ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में नवाचार महत्वपूर्ण हो गया है। इस प्रकार, पर्यावरणीय परिस्थितियों में परिवर्तन ने ऊर्जा के क्षेत्र में नवाचारी समाधानों के विकास को प्रेरित किया है। यह परस्पर क्रिया यह सुनिश्चित करती है कि समाज बदलती आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए अनुकूल और उत्तरदायी बना रहे।
नवाचार केवल बाहरी परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि एक ऐसा चक्र उत्पन्न करता है जो भविष्य में परिवर्तनों को गति प्रदान करता है। स्मार्टफोन का विकास इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। स्मार्टफोन ने संचार, व्यापार, और कार्य पद्धति में क्रांतिकारी बदलाव किया, जिसके परिणामस्वरूप खुदरा, मनोरंजन और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में नए परिवर्तन हुए। इस नवाचार ने उपभोक्ता व्यवहार में अधिक बदलाव किए तथा साथ ही नए नवाचारों के लिए अवसर उत्पन्न किए। इस प्रकार की परस्पर निर्भरता यह दर्शाती है कि नवाचार और परिवर्तन स्वतंत्र घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि एक सतत और गतिशील प्रक्रिया का अभिन्न अंग हैं, जिसमें दोनों तत्व परस्पर जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को प्रेरित करते हैं।
नवाचार और परिवर्तन के बीच स्पष्ट संबंध के बावजूद, परिवर्तन को अक्सर एक खतरे के रूप में देखा जाता है, न कि एक अवसर के रूप में। यह धारणा परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली अनिश्चितता और स्थापित प्रणालियों में व्यवधान की संभावना से उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक चरण में अनेक श्रमिकों को मशीनों के कारण अपनी नौकरियाँ खोने का भय था। इसी प्रकार, स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकी प्रगति को कुछ लोग रोजगार और आजीविका के लिए चुनौती के रूप में देखते हैं। यह डर इस विश्वास से उत्पन्न होता है कि परिवर्तन वर्तमान प्रक्रियाओं को अप्रासंगिक बना सकता है तथा नियंत्रण कम कर सकता है।
हालाँकि, एक नवाचारी मानसिकता को अपनाने से परिवर्तन के प्रति यह धारणा बदल सकती है। जब व्यक्ति और संगठन परिवर्तन को खतरे के स्थान पर अवसर के रूप में स्वीकार करते हैं, तो वे नई संभावनाओं के द्वार खोलते हैं। यह दृष्टिकोण नवाचार को प्रोत्साहित करता है तथा नवीन विचारों एवं समाधानों को उत्प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए, स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने न केवल कार्य की प्रकृति को बदला है, बल्कि नए उद्योगों और रोजगार के अवसर भी सृजित किए हैं। इन प्रौद्योगिकियों को मानव उत्पादकता बढ़ाने और कार्य के नए स्वरूप उत्पन्न करने के साधन के रूप में देखा जाए, तो व्यवसाय और श्रमिक अनुकूलन और विकास के अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।
खतरे को अवसर में बदलने का दृष्टिकोण एक सकारात्मक मानसिकता का निर्माण करता है, जो विकास और अनुकूलन को बढ़ावा देता है। परिवर्तन से भयभीत होने के बजाय, समाज और व्यवसाय इसे सुधार और सृजन के अवसर के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों ने परिवर्तन को अपनाकर इसे एक सफल अवसर में बदला। पारंपरिक वीडियो रेंटल सेवाओं के लिए स्ट्रीमिंग सेवाएँ एक चुनौती थीं, लेकिन नेटफ्लिक्स ने इसे एक अवसर के रूप में स्वीकार करते हुए अपनी सेवाओं का विस्तार किया, मौलिक सामग्री का निर्माण किया, और वैश्विक दर्शकों तक पहुँचा। इस प्रकार, परिवर्तन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने पर ही नवाचार और विकास के लिए मार्ग प्रशस्त होता है।
परिवर्तन और नवाचार के प्रति प्रतिरोध गंभीर जोखिम उत्पन्न कर सकता है। वर्तमान में तीव्र गति से बदलती वैश्विक परिस्थितियों में, नवाचार का विरोध करने से ठहराव और अप्रासंगिकता जैसी चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। वे संगठन, उद्योग, अथवा राष्ट्र जो तकनीकी प्रगति के साथ सामंजस्य स्थापित करने में असफल रहते हैं, उन्हें प्रतिस्पर्धा में पीछे रहने का खतरा रहता है । उदाहरण के लिए, ऑटोमोबाइल उद्योग में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का आगमन एक महत्वपूर्ण घटना है। जिन कंपनियों ने ईवी प्रौद्योगिकी में निवेश करने में देरी की, उन्हें टेस्ला जैसी अग्रणी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में अपनी बाजार हिस्सेदारी खोनी पड़ी। टेस्ला ने नवाचार और पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे उद्योग के लिए नए मानदंड स्थापित किए तथा यह प्रदर्शित किया कि प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए परिवर्तन आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त, नवाचार को अस्वीकार करना संगठनों को बदलती परिस्थितियों और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप होने की क्षमता से वंचित कर सकता है। यह बाधा उन्हें उभरती समस्याओं का प्रभावी समाधान करने में अक्षम बनाती है। उदाहरण स्वरूप, COVID-19 महामारी के दौरान, जिन संस्थानों ने टेलीमेडिसिन को शीघ्र अपनाया वे स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता बनाए रखने एवं बढ़ती स्वास्थ्य आवश्यकताओं का प्रबंधन करने में सक्षम रहे। इसके विपरीत, जिन संस्थानों ने पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता बनाए रखी, वे आपात स्थिति के दौरान अधिक कठिनाइयों का सामना करने को विवश हुए।
लंबी अवधि में, नवाचार का विरोध केवल अवसरों की हानि का कारण नहीं बनता, बल्कि यह सूभेद्यतायें भी उत्पन्न कर सकता है। वे संगठन और समाज जो नवाचार को अपनाने में असफल होते हैं, प्रतिस्पर्धा ,दक्षता और अनुकूलनशीलता के संदर्भ में अप्रासंगिक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कभी फोटोग्राफी उद्योग में अग्रणी कोडक, डिजिटल क्रांति को अपनाने में विफल रहा तथा अंततः दिवालिया हो गया, क्योंकि यह नवीन , अधिक नवाचारी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सका। यह घटना सिद्ध करती है कि नवाचार को न अपनाने से दीर्घकालिक स्थिरता को गंभीर क्षति हो सकती है।
नवाचार को अपनाने के स्पष्ट लाभों के बावजूद, इसकी प्रगति में कई बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इनमें से सबसे सामान्य बाधाओं में से एक है संसाधनों की कमी, जिसमें वित्तीय और मानव संसाधन दोनों शामिल हैं। कई बार संगठनों के पास अनुसंधान और विकास में निवेश करने के लिए पर्याप्त धन की उपलब्धता नहीं होती, या वे कुशल कर्मचारियों को आकर्षित करने और बनाए रखने में असमर्थ रहते हैं, जो नवाचार को प्रोत्साहित कर सकें। संसाधन संबंधी ये बाधाएँ संगठनों की नई विचारधाराओं और समाधानों का अन्वेषण करने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
विफलता का भय भी नवाचार की राह में एक महत्वपूर्ण अवरोध है ,जो संगठनों को निष्क्रिय कर सकता है। नवाचार स्वाभाविक रूप से जोखिमपूर्ण होता है, तथा गलतियाँ करने अथवा असफलता का डर नेतृत्व को नए विचारों को अपनाने से रोक सकता है। विशेष रूप से उन उद्योगों में जहां विफलता को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है या जहां जोखिम अधिक होता है, वहाँ यह भय जोखिम से बचने की संस्कृति को जन्म दे सकता है। इससे रचनात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा संभावित सफलता के अवसर सीमित हो जाते हैं।
परिवर्तन का विरोध भी नवाचार में बाधक का एक प्रमुख कारण है। व्यक्ति और संगठन अपनी पारंपरिक कार्यशैली से गहरे रूप से जुड़े हो सकते हैं, जिससे जड़ता उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, कर्मचारी नवीन तकनीकों के कारण अपनी नौकरियों को लेकर चिंतित हो सकते हैं, जबकि संगठन अपने प्राचीन एवं स्थापित संचालन मॉडल को प्रतिस्थापित करने में अनिच्छुक हो सकते हैं। इस परिवर्तन से इनकार करने का परिणाम यह होता है कि संगठन नए बाजार अवसरों और चुनौतीपूर्ण परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन करने में असमर्थ हो जाते हैं।
नवाचार की बाधाओं को दूर करने के लिए, संगठनों को एक सक्रिय और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।। बाहरी नवप्रवर्तकों, स्टार्टअप, या शैक्षणिक संस्थानों के साथ रणनीतिक साझेदारी से वे उन संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं जो उनके पास नहीं होते। इसके साथ ही, संगठन आंतरिक संरचना में नवाचार केंद्र या इनक्यूबेटर स्थापित कर सकते हैं, जो आंतरिक प्रयोग को बढ़ावा देने और नवाचार से जुड़े वित्तीय जोखिमों को कम करने में सहायक हो सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, संगठनात्मक संस्कृति में परिवर्तन के द्वारा विफलता के डर को दूर करने में मदद मिल सकती है। नेताओं को ऐसा परिवेश तैयार करना चाहिए, जहाँ विफलता को एक असफलता नहीं, बल्कि सीखने और सुधार करने के अवसर के रूप में देखा जाए। यह मानसिकता परिवर्तन जोखिम लेने को प्रोत्साहित करती है, जो अभिनव समाधानों के विकास के लिए आवश्यक है। जब विफलता को नवाचार प्रक्रिया का अभिन्न अंग माना जाता है, तो यह कम भयावह होती है तथा प्रगति का एक स्वाभाविक हिस्सा बन जाता है।
इसी प्रकार, परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध को व्यापक परिवर्तन प्रबंधन रणनीतियों के माध्यम से कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, प्रशिक्षण प्रदान करना, लोगों को नवाचार प्रक्रिया में शामिल करना, तथा परिवर्तन के लाभों को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करना भय को कम करने और विश्वास निर्माण में सहयोग कर सकता है। जब लोग समावेशित और समर्थित महसूस करते हैं, तो उनमे परिवर्तन के प्रति स्वामित्व की भावना विकसित होती है , जिससे संगठनों के लिए अनुकूलन और सफलता प्राप्त करना सुगम हो जाता है।
यद्यपि नवाचार को अपनाना, विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, किंतु कुछ परिस्थितियों में परिवर्तन का विरोध करना अधिक विवेकपूर्ण और तार्किक निर्णय हो सकता है। उदाहरण के लिए, जब नवीन तकनीक किसी ऐसी कार्यरत प्रणाली को प्रतिस्थापित करती है जो प्रभावी रूप से कार्य कर रही है, तो इससे अधिक हानि हो सकती है। ऐसे मामलों में, संगठन नवाचार को धीरे-धीरे अपनाने का निर्णय ले सकते हैं, जिससे संचालन में बाधा को न्यूनतम करते हुए इसे सावधानीपूर्वक एकीकृत किया जा सके।
साथ ही, कुछ नवाचार, जो प्रारंभ में आशाजनक प्रतीत हों, वे अप्रत्याशित और अनपेक्षित नकारात्मक परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, नई तकनीकों से नैतिक दुविधाओं, पर्यावरणीय हानियों, या सामाजिक असमानताओं जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिनका सामना करने के लिए संगठन तैयार नहीं होते। इन परिस्थितियों में, नवाचारों को शीघ्र अपनाने के बजाय उनके संभावित प्रभावों का गहन अध्ययन करना और विवेकपूर्ण विचार के लिए समय देना, बेहतर निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
इसके अतिरिक्त, ऐसी परिस्थितियों में परिवर्तन का विरोध उचित हो सकता है, जहाँ स्थिरता और निरंतरता बनाए रखना आवश्यक हो। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो सार्वजनिक विश्वास पर अत्यधिक निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में नई तकनीकों या विधियों को शीघ्र अपनाने से अवांछित व्यवधान हो सकते हैं, जिससे सेवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।।इन मामलों में, सतर्क दृष्टिकोण अपनाने से नवाचार के प्रभाव का समुचित मूल्यांकन किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नई तकनीक या प्रक्रिया को मौजूदा मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए सावधानीपूर्वक एकीकृत किया जाए, जिससे प्रणाली की प्रामाणिकता बनी रहे।
नवाचार की जटिलताओं को प्रभावी रूप से समझने और प्रबंधित करने के लिए, संगठनों को परिवर्तन अपनाने और स्थिरता बनाए रखने के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। नवाचार को कभी भी नैतिक प्रथाओं, कर्मचारियों के कल्याण, या सामाजिक न्याय से समझौता करते हुए लागू नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यद्यपि तकनीकी उन्नति दक्षता में सुधार कर सकती है, किंतु इसे सतत दृष्टिकोण एवं सामाजिक उत्तरदायित्व को प्राथमिकता देते हुए अपनाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, नवाचार को संगठन या समाज के मूल्यों और दृष्टिकोण के साथ समन्वित होना चाहिए। कई बार, नवाचार को इतनी तीव्रता से अपनाया जाता है कि इसके नैतिक प्रभाव या सामाजिक परिणामों पर ध्यान नहीं दिया जाता। अतः, नवाचार प्रक्रिया में नैतिक ढांचे और टिकाऊपन को शामिल करना अनिवार्य है। उदाहरण के लिए, जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) परिवर्तनकारी संभावनाएँ प्रदान करती है, इसका उपयोग गोपनीयता, निष्पक्षता, और रोजगार विस्थापन की संभावनाओं पर विचार करते हुए सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना कि नवाचार समाज के मूल्यों के अनुरूप है, विश्वास और दीर्घकालिक स्वीकृति को बढ़ावा देगा।
इसके अतिरिक्त, नवाचार को संगठन या समाज के मूल्यों और उद्देश्यों के साथ सुसंगत होना चाहिए। कई बार, तीव्रता से नवाचार अपनाने के प्रयास में इसके नैतिक प्रभाव या सामाजिक परिणामों की उपेक्षा की जाती है। अतः नवाचार प्रक्रिया में नैतिक संरचना एवं सतत दृष्टिकोण को सम्मिलित करना अनिवार्य है। उदाहरण के लिए, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन इसे गोपनीयता, निष्पक्षता, और रोजगार ह्वास जैसी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक लागू करना चाहिए। यह सुनिश्चित करना कि नवाचार समाज के मूल्यों के अनुरूप है, न केवल सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा देगा, बल्कि इसकी दीर्घकालिक स्वीकृति भी सुनिश्चित करेगा।
साथ ही , सरकार, व्यवसाय, और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग नवाचार को दिशा देने और स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है। ऐसे सहयोग नियामक ढांचे विकसित कर सकते हैं जो यह सुनिश्चित करें कि नवाचार सार्वजनिक हित में हो। उदाहरण के लिए, हरित प्रौद्योगिकी (ग्रीन टेक्नोलॉजी) के विकास में केवल व्यावसायिक क्षेत्र ही नहीं, बल्कि नीति-निर्माताओं और पर्यावरणविदों का योगदान भी आवश्यक है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि ये नवाचार व्यावहारिक और सतत हों। इस प्रकार, सहयोग की संस्कृति को प्रोत्साहन देकर, नवाचार को इस दिशा में ले जाया जा सकता है कि यह समाज के व्यापक हित में हो और संभावित नकारात्मक प्रभावों को न्यूनतम कर सके।
निष्कर्षतः नवाचार तब सर्वाधिक प्रभावी होता है, जब परिवर्तन को बाधा के बजाय विकास और सुधार के अवसर के रूप में देखा जाता है। परिवर्तन को अपनाने, उसके साथ अनुकूलन करने, एवं निरंतर नवाचार की क्षमता प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति और सफलता का मूल आधार है—चाहे वह व्यवसाय हो, स्वास्थ्य सेवा हो, या शिक्षा। एक निरंतर वैश्विक परिदृश्य में प्रासंगिक और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए परिवर्तन को सकारात्मक मानसिकता से स्वीकार करना और उसके अनुसार कार्य करना अनिवार्य है।
यह दृष्टिकोण न केवल व्यक्तिगत और संगठनात्मक सफलता के लिए आवश्यक है, बल्कि एक प्रत्यास्थ और अनुकूलनीय भविष्य के निर्माण के लिए भी महत्वपूर्ण है। आज, जब विश्व अभूतपूर्व चुनौतियों और अनिश्चितताओं का सामना कर रहा है, तो नवाचार की क्षमता यह निर्धारित करती है कि हम इन परिवर्तनों को कितनी कुशलता और प्रभावशीलता से संभालते हैं। जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, “कठिनाई में अवसर निहित होता है।“ ऐसे समय में, जब बाधाएँ और अनिश्चितताएँ प्रबल होती हैं, महानतम नवाचारों का उदय होता है, बशर्ते हम उन्हें बाधाओं के बजाय अवसर के रूप में देखना सीखें।
नवाचार की इस यात्रा में सचेत प्रयास और बहु-क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है। यह केवल तकनीकी प्रगति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी संस्कृति के निर्माण पर केंद्रित है, जो प्रयोग करने, असफलता से सीखने, और नवीनीकरण के लिए जोखिम उठाने को प्रोत्साहित करती है। ऐसे वातावरण को बढ़ावा देकर, जहाँ रचनात्मकता और अन्वेषण को प्राथमिकता दी जाती है, समाज अपनी पूर्ण क्षमता को उजागर कर सकता है तथा एक सतत और समावेशी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इसलिए, नवाचार की मानसिकता को अपनाना केवल एक रणनीतिक कदम नहीं है, बल्कि यह एक आवश्यक कौशल है, जो हमें आधुनिक युग की जटिलताओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने और भविष्य को संवारने में सक्षम बनाता है।
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