प्रश्न की मुख्य माँग
- सार्वजनिक वित्त के प्रहरी के रूप में CAG की संवैधानिक स्थिति का परीक्षण कीजिए।
- विश्लेषण कीजिए कि इसकी नियुक्ति प्रक्रिया इसकी स्वतंत्रता पर किस प्रकार प्रभाव डालती है।
- संघीय संतुलन और प्रशासनिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए CAG की प्रभावशीलता को मजबूत करने के लिए सुधारों का सुझाव दीजिये।
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उत्तर
संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत स्थापित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सार्वजनिक वित्त के संरक्षक के रूप में कार्य करता है, जो सरकारी व्यय में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। CAG की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, व्यय और राजस्व संग्रह में अक्षमताओं सहित राजकोषीय प्रबंधन में खामियाँ वित्तीय अनुशासन और संवैधानिक औचित्य को लागू करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती हैं।
सार्वजनिक वित्त के प्रहरी के रूप में CAG की संवैधानिक स्थिति
- व्यापक लेखापरीक्षा शक्तियाँ: CAG संघ और राज्य वित्त का लेखापरीक्षा करता है, जिसमें सरकारी खाते, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और ऑफ-बजट उधारी शामिल हैं।
- उदाहरण के लिए: केरल की ऑफ-बजट उधारी पर आई CAG रिपोर्ट ने राजकोषीय पारदर्शिता और वित्तीय विवेकशीलता से संबंधित चिंताओं को उजागर किया।
- संसदीय निगरानी: CAG की रिपोर्ट संसदीय वित्तीय समितियों के लिए आधार बनती है जिससे कार्यकारी जवाबदेही बढ़ती है।
- उदाहरण के लिए: लोक लेखा समिति (PAC) सरकारी व्यय और नीति क्रियान्वयन की जांच के लिए CAG की रिपोर्टों पर निर्भर करती है।
- त्रि-स्तरीय लेखा परीक्षा: CAG अनुपालन, वित्तीय और निष्पादन लेखा परीक्षा आयोजित करता है जिससे सार्वजनिक व्यय में दक्षता, पारदर्शिता और प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली आबकारी नीति ऑडिट ने राजस्व लीकेज, लाइसेंसिंग में अनियमितताओं और नीतिगत खामियों को उजागर किया।
- सीमित नियंत्रक भूमिका: ब्रिटेन के विपरीत, भारत के CAG के पास व्यय-पूर्व अनुमोदन की शक्तियाँ नहीं हैं, जिससे रियलटाइम वित्तीय नियंत्रण सीमित हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: उत्तराखंड में प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) की लेखापरीक्षा ने वनरोपण परियोजनाओं में देरी और पर्यावरण निधि के दुरुपयोग को उजागर किया।
- कार्यपालिका से स्वतंत्रता: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और उसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की तरह हटाया जाता है, जिससे कार्यकाल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिए: अनुच्छेद 148 यह सुनिश्चित करता है कि CAG का वेतन और व्यय भारत की संचित निधि पर डाला जाएगा जिससे इसे कार्यकारी नियंत्रण से बचाया जा सकेगा।
CAG की स्वतंत्रता पर नियुक्ति प्रक्रिया का प्रभाव
- नियुक्ति पर कार्यकारी नियंत्रण: राष्ट्रपति कार्यकारी सलाह पर CAG की नियुक्ति करता है, जिसमें संसदीय या स्वतंत्र निगरानी का अभाव होता है।
- राजनीतिक प्रभाव का जोखिम: कार्यकारी-नियंत्रित नियुक्ति से सरकारी निर्णयों से संबंधित ऑडिट में पक्षपात संबंधित चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली आबकारी नीति ऑडिट को देरी से पेश किए जाने के कारण राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे।
- कोई निश्चित चयन मानदंड नहीं: संविधान में CAG की नियुक्ति के लिए कोई स्पष्ट योग्यता प्रदान नहीं की गई है, जिससे यह प्रक्रिया अस्पष्ट और विवेकाधीन हो गई है।
- आगे के पद के लिए अयोग्यता: हालाँकि CAG सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं संभाल सकते, लेकिन निजी क्षेत्र की भूमिकाओं पर सेवानिवृत्ति के बाद प्रतिबंध न होने से चिंता उत्पन्न होती है।
- CAG के प्रदर्शन पर सीमित निगरानी: न्यायिक और चुनाव आयोगों के विपरीत, CAG की दक्षता या निष्ठा की समीक्षा करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है।
हालाँकि, CAG की नियुक्ति प्रक्रिया की स्वतंत्रता के कुछ सकारात्मक उदाहरण भी हैं।
- राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 148 के तहत की जाती है, जो संवैधानिक रूप से अनिवार्य चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
- कार्यकाल की सुरक्षा: CAG को हटाने के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जिससे कार्यकारी दबाव से मुक्ति सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिए: किसी भी CAG को कभी भी मनमाने ढंग से नहीं हटाया गया है जिससे वित्तीय निर्णयों की लेखा परीक्षा में इसकी स्वतंत्रता मजबूत होती है।
- प्रभारित व्यय: CAG का वेतन और भत्ते भारत के समेकित कोष पर भारित होते हैं जिससे सरकार पर वित्तीय निर्भरता कम होती है।
- उदाहरण के लिए: नियमित सरकारी अधिकारियों के विपरीत, CAG के कोष को विधायी अनुमोदन के बिना कम नहीं किया जा सकता है।
संघीय संतुलन और स्वायत्तता बनाए रखते हुए CAG को मजबूत करने के लिए सुधार
- स्वतंत्र चयन समिति: CAG की नियुक्ति के लिए एक द्विदलीय समिति की स्थापना की जानी चाहिए जिससे पारदर्शिता और योग्यता आधारित चयन सुनिश्चित हो सके।
- राज्य स्तरीय महालेखा परीक्षक: संघीय चिंताओं को दूर करने के लिए लोक सेवा आयोगों की तरह राज्यों के लिए अलग लेखा परीक्षा निकायों का निर्माण करना चाहिए।
- रिपोर्ट का समयबद्ध प्रस्तुतीकरण: अनावश्यक देरी को रोकने के लिए विधानमंडलों में CAG रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक निश्चित समयसीमा अनिवार्य करनी चाहिए।
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- उदाहरण के लिए: अनुच्छेद 151 सरकारों को इच्छानुसार रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति देता है, जिससे समय पर विधायी जाँच प्रभावित होती है।
- संसदीय निगरानी को मजबूत करना: PAC और CoPU का कार्यकाल बढ़ाना चाहिए तथा बेहतर जाँच के लिए उन्हें तकनीकी लेखा परीक्षा विशेषज्ञ उपलब्ध कराना चाहिए।
- CAG के लिए लेखापरीक्षा तंत्र: स्वायत्तता से समझौता किए बिना CAG की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु सहकर्मी-समीक्षा तंत्र या बाह्य लेखापरीक्षा लागू करना।
वित्तीय अखंडता और शासन के लिए एक वास्तविक स्वतंत्र CAG महत्त्वपूर्ण है। कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से नियुक्ति प्रक्रिया को मजबूत करना, निश्चित कार्यकाल सुनिश्चित करना और रियलटाइम ऑडिट तक अधिक पहुँच प्रदान करना प्रभावशीलता को बढ़ाएगा। संस्थागत सुधारों को संसदीय निगरानी को बनाए रखते हुए संघीय स्वायत्तता को संतुलित करना चाहिए, जिससे एक मजबूत और जवाबदेह लोकतंत्र सुनिश्चित हो सके।
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