Q. गन्ने की खेती के लिए नीतिगत प्रोत्साहनों से उत्पन्न भारत का अधिशेष चीनी उत्पादन, भूजल की कमी का कारण कैसे बन रहा है? परीक्षण कीजिए । (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: चीनी उत्पादन में भारत की उपलब्धि पर प्रकाश डालिए। साथ ही, इस सफलता से जुड़े भूजल की कमी के मुख्य मुद्दे का परिचय भी दीजिये।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • अतिरिक्त चीनी उत्पादन को प्रेरित करने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये।
    • भूजल पर गन्ने की खेती के प्रभाव पर जोर दीजिये।
    • प्रासंगिक उदाहरण अवश्य प्रदान कीजिये।
  • निष्कर्ष: जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए नीतिगत हस्तक्षेप और टिकाऊ प्रथाओं की आवश्यकता का सुझाव देते हुए निष्कर्ष निकालिए।

परिचय:

भारत अपनी समृद्ध कृषि विरासत के लिए जाना जाता है। इसने 2021-2022 में दुनिया का अग्रणी चीनी उत्पादक बनकर एक सराहनीय उपलब्धि हासिल की है। हालाँकि, यह मधुर सफलता अपने साथ एक अंतर्निहित चिंता भी लेकर आती है, वह है भूजल में तेजी से कमी।

मुख्य विषयवस्तु:

अतिरिक्त चीनी उत्पादन को प्रेरित करने वाले कारक:

  • सरकारी नीतियां और सब्सिडी:
    • उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) योजना यह सुनिश्चित करती है कि गन्ना किसानों को उनकी उपज के लिए गारंटीकृत मूल्य मिले।
    • यह आश्वासन अधिक किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहित करता है।
    • उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गन्ने की कीमतों में नियमित बढ़ोतरी पानी की लागत के बावजूद, अधिक किसानों को गन्ना बोने के लिए प्रेरित करती है।
  • घरेलू मांग:
    • दुनिया के सबसे बड़े चीनी उपभोक्ता के रूप में भारत की पहचान से स्वाभाविक रूप से घरेलू गन्ने की खेती को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए, भारत में कई त्यौहार और पारंपरिक समारोह आयोजित किए जाते हैं, जहाँ मिठाइयाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस कारण चीनी की लगातार माँग बनी रहती है ।
  • निर्यात को प्रोत्साहन:
    • अतिरिक्त चीनी उत्पादन के साथ, सरकार निर्यात के लिए सब्सिडी प्रदान करती है, जिससे और भी अधिक उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए, 2020 में  भारत सरकार ने स्थानीय किसानों को गिरती घरेलू कीमतों से बचाने के लिए 6 मिलियन टन चीनी के निर्यात के लिए सब्सिडी को मंजूरी दी।

गन्ने की खेती का भूजल पर प्रभाव:

  • जलाशयों में पानी की कमी:
    • गन्ना, एक जल-गहन फसल होने के कारण  भारी मात्रा में भूजल निकालने की आवश्यकता होती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा कम होती है।
    • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र  सूखाग्रस्त होने के बावजूद, एक प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्र है। परिणामस्वरूप, हाल के वर्षों में भूजल स्तर में नाटकीय रूप से गिरावट आई है।
  • पर्यावरणीय परिणाम:
    • भूजल में कमी जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे संभावित रूप से जैव विविधता का ह्वास होता है और आश्रित समुदाय प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए, गोदावरी जैसी नदियों में कम प्रवाह को, आंशिक रूप से, इसके बेसिन में गन्ने की व्यापक खेती से जोड़ा जा सकता है।
  • किसानों और आजीविका पर प्रभाव:
    • जैसे-जैसे भूजल स्तर गिरता है, किसानों को अपनी फसलों को बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे पैदावार कम हो जाती है और बाद में आर्थिक कठिनाइयां होती हैं।
    • उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में, किसानों को गहरे बोरवेल खोदने पड़े हैं, जिससे लागत बढ़ गई है और कुछ लोगों के लिए खेती अलाभकारी हो गई है।
  • दीर्घकालिक स्थिरता मुद्दे:
    • गन्ने के लिए भूजल के अनियंत्रित दोहन से जलभृतों को अपूरणीय क्षति हो सकती है, जिससे भविष्य की कृषि गतिविधियाँ खतरे में पड़ सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में, गन्ने के अत्यधिक दोहन के कारण तटीय क्षेत्रों में खारे पानी की अधिकता हो  गई हैं, जिससे भूजल की दीर्घकालिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा है।

निष्कर्ष

इस प्रकार देखा जाये तो भारत की चीनी उत्पादन उपलब्धियाँ प्रशंसनीय हैं, लेकिन नीति-संचालित गन्ने की खेती के कारण होने वाली भूजल की कमी को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। यदि भूजल के अनियंत्रित दोहन को नियंत्रित नहीं किया गया तो परिणाम पर्यावरणीय क्षरण से लेकर लाखों लोगों की आजीविका को खतरे में डालने तक हो सकते हैं। टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना, नीतिगत प्रोत्साहनों पर दोबारा विचार करना और फसल विविधीकरण पर जोर देना तत्काल जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत की मधुर सफलता बाद में कड़वा स्वाद न छोड़े।

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