Q. प्रभावी खाद्य लेबलिंग विनियमनों को लागू करने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में खाद्य उत्पाद स्वास्थ्यप्रदता पर निष्कर्षों के आलोक में भारत स्वास्थ्यप्रद खाद्य विकल्पों की सामर्थ्य और उपलब्धता में कैसे सुधार कर सकता है?(15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • प्रभावी खाद्य लेबलिंग विनियमों को लागू करने में भारत के सम्मुख आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि भारत किस प्रकार स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों को किफायती बनाने के संबंध में सुधार कर सकता है।
  • चर्चा कीजिए कि भारत स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों की उपलब्धता में कैसे सुधार सकता है।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

हाल ही में जारी ग्लोबल एक्सेस टू न्यूट्रिशन इंडेक्स,सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में खाद्य लेबलिंग की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है, विशेषकर उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में। चिंताजनक बात यह है कि केवल 30% कंपनियाँ ही किफायती स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्प प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जो एक अंतर को उजागर करता है जिसके लिए लक्षित सुधारों की आवश्यकता है। PUBLIC EYE और IBFAN जैसी रिपोर्टें समान पोषण पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सख्त वैश्विक और भारतीय नियमों की आवश्यकता पर जोर देती हैं।

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भारत में प्रभावी खाद्य लेबलिंग विनियमनों को लागू करने में आने वाली चुनौतियाँ

  • अनिवार्य मानकों का अभाव: अनिवार्य फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) की अनुपस्थिति, शुगर (शर्करा), फैट(वसा) और सोडियम जैसे अस्वास्थ्यकर अवयवों के संबंध में
    उपभोक्ता जागरूकता को सीमित करती है। 

    • उदाहरण के लिए: FSSAI की सिफारिशों के बावजूद, भारत ने चिली के ब्लैक वार्निंग  लेबल के मामले में स्पष्ट लेबलिंग मानकों को पूरी तरह से नहीं अपनाया है।
  • उद्योग जगत से प्रतिरोध: खाद्य और पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनियाँ अक्सर सख्त नियमों के खिलाफ़ एक हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि इससे बिक्री और मुनाफ़े पर असर पड़ेगा। 
    • उदाहरण के लिए: बड़ी कंपनियों के विरोध के कारण पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के लिए प्रस्तावित FSSAI-हेल्थ स्टार रेटिंग के कार्यान्वयन में देरी हुई है।
  • कम उपभोक्ता जागरूकता: कई उपभोक्ताओं(विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के) में मौजूदा खाद्य लेबल और उनके स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों के संबंध में समझ का अभाव है
  • सीमित प्रवर्तन: कमज़ोर विनियामक तंत्र, मौजूदा लेबलिंग मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं जिससे खाद्य पैकेजिंग पर भ्रामक दावे किए जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: बाजार में अक्सर “स्वस्थ” खाद्य उत्पाद के रूप में टैग प्राप्त उत्पादों में  शर्करा और वसा की वास्तविक मात्रा को छुपाया जाता है जो उपभोक्ताओं को गुमराह करती है।
  • खंडित आपूर्ति शृंखला: भारत का असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र उत्पादों में लेबलिंग मानकों के सुसंगत अनुप्रयोग में बाधा डालता है।
    • उदाहरण के लिए: छोटे पैमाने के निर्माता अक्सर संसाधन की कमी के कारण लेबलिंग आवश्यकताओं को अनदेखा कर देते हैं।

स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों को किफायती बनाने के संबंध में किये जा सकने वाले सुधार

  • अस्वास्थ्यकर उत्पादों पर कर: शर्करा युक्त पेय पदार्थों और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर उच्च कर लगाये जाने चाहिए ताकि इनकी खपत को कम किया जा सके और धन को स्वस्थ खाद्य कार्यक्रमों की ओर पुनर्निर्देशित किया जा सके।
    • उदाहरण के लिए: मेक्सिको के शर्करा कर ने पहले वर्ष में चीनी युक्त पेय पदार्थों की खपत में 10% की कमी की।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): निजी कंपनियों के साथ मिलकर कम सुविधा वाले क्षेत्रों में किफायती, पौष्टिक भोजन का उत्पादन और वितरण करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: नेस्ले का आयरन-फोर्टिफाइड मिल्क प्रोग्राम किफायती फोर्टिफाइड डेयरी उत्पादों के माध्यम से कुपोषित समुदायों को लक्षित करता है।
  • मूल्य विनियमन नीतियाँ: आवश्यक स्वास्थप्रद पदार्थों की कीमतों को सीमित करना चाहिए ताकि उन्हें आर्थिक रूप से सुभेद्य वर्गों के लिए सुलभ बनाया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: भारत का आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 मुख्य खाद्य पदार्थों के लिए विनियमित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करता है, जिससे कम आय वाले परिवारों को पोषण प्राप्त होता है।
  • पौष्टिक खाद्य पदार्थों के लिए सब्सिडी: उपभोक्ताओं के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थों को किफायती बनाने के लिए फलों, सब्जियों और फोर्टिफाइड अनाज जैसे स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों पर सब्सिडी प्रदान करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (2007) निम्न आय वाले परिवारों को रियायती दरों पर फोर्टिफाइड चावल उपलब्ध कराता है।
  • पोषण प्रोत्साहन कार्यक्रम: कम आय वाले परिवारों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु वाउचर या नकद हस्तांतरण कार्यक्रम लागू करने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ब्राजील का बोल्सा फ़मिलिया कार्यक्रम कम आय वाले परिवारों को विविध और पौष्टिक आहार उपलब्ध कराता है।

स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों की उपलब्धता में सुधार

  • कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देना: किसानों को प्रोत्साहन देकर पोषक तत्वों से भरपूर फसलों जैसे बाजरा, दालें और फलों की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष, 2023 पहल ने बाजरा उत्पादन को प्रोत्साहित किया, जिससे उसकी उपलब्धता बढ़ी।
  • फोर्टिफिकेशन कार्यक्रमों को मजबूत करना: पोषण संबंधी गुणवत्ता में सुधार के लिए तेल , डेयरी और पैकेज्ड स्नैक्स जैसे अधिक उत्पादों को शामिल करने हेतु खाद्य फोर्टिफिकेशन प्रयासों का विस्तार करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: FSSAI की खाद्य फोर्टिफिकेशन पहल ने भारत में फोर्टिफाइड चावल और गेहूं की उपलब्धता बढ़ा दी है।
  • आपूर्ति श्रृंखला को सुव्यवस्थित करना: फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिए और जल्दी खराब होने वाले, स्वस्थ खाद्य पदार्थों का समय पर वितरण सुनिश्चित करना होगा। 
    • उदाहरण के लिए: ऑपरेशन ग्रीन्स के तहत बनाये गये कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क, शहरी क्षेत्रों में फलों और सब्जियों की आपूर्ति में सुधार करते हैं।
  • स्थानीय उद्यमों को प्रोत्साहित करना: स्थानीय खाद्य उत्पादकों और सहकारी समितियों को किफायती और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्पों तक पहुँच बढ़ाने में सहायता करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: अमूल मॉडल, आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देता है, जिससे ग्रामीण और शहरी उपभोक्ताओं को लाभ मिलता है।
  • स्वस्थ खाद्य पदार्थों के लिए खुदरा विनियमन: सुपरमार्केट और स्टोर्स को स्वस्थ खाद्य विकल्पों के लिए शेल्फ स्पेस आवंटित करने का आदेश दिया गया है ताकि दृश्यता में सुधार हो सके। 
    • उदाहरण के लिए: UK की स्वस्थ खाद्य प्लेसमेंट नीति के कारण खुदरा स्टोरों में स्वस्थ खाद्य पदार्थों की बिक्री में वृद्धि हुई।

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आगे की राह

  • अनिवार्य फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल (FOPL) अपनाना: जैसा कि चिली में देखा गया है, उच्च चीनी, वसा और सोडियम सामग्री के लिए स्पष्ट और अनिवार्य वार्निंग लेबल के नियम को लागू करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: चिली में पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर मौजूद वार्निंग लेबल ने शर्करा युक्त पेय पदार्थों की खरीद में 24% की कमी की।
  • जागरूकता के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: उपभोक्ता ज्ञान को बढ़ाने के लिए खाद्य उत्पादों पर रियलटाइम पोषण संबंधी जानकारी प्रदान करने वाले मोबाइल एप्लिकेशन विकसित करने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ईट राइट इंडिया जैसे ऐप्स उपभोक्ताओं को पोषण संबंधी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जो FSSAI के लक्ष्यों के अनुरूप है।
  • विनियामक निकायों को मजबूत करना: अनुपालन की निगरानी करने और उल्लंघनों को प्रभावी ढंग से दंडित करने के लिए अधिक प्रवर्तन क्षमताओं के साथ FSSAI को सशक्त बनाना होगा। 
    • उदाहरण के लिए: नए लेबलिंग मानदंडों के साथ उन्नत निगरानी प्रणाली, व्यापक अनुपालन सुनिश्चित कर सकती है।
  • स्कूल पोषण नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना: बच्चों में स्वास्थप्रद भोजन की आदतें डालने के लिए स्कूलों में अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बिक्री पर सख्त नियम लागू करने चाहिए।
  • उपभोक्ता जागरूकता अभियान को बढ़ावा देना: खाद्य लेबल और स्वस्थ भोजन के महत्व पर उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिए: FSSAI के ईट राइट मूवमेंट ने संतुलित आहार और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाई है।

भारत में गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ के कारण खाद्य लेबलिंग और स्वस्थ विकल्पों की उपलब्धता से संबंधित तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग को अपनाकर, खाद्य फोर्टिफिकेशन में सुधार करके और कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देकर, भारत चिली और ब्राजील जैसे सफल मॉडलों का अनुकरण कर सकता है। राष्ट्रीय पोषण मिशन और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ प्रयासों को संरेखित करने से सभी के लिए स्वस्थ, किफायती और सुलभ भोजन सुनिश्चित होगा , जिससे देश भर में स्वास्थ्य संबंधी असमानताएँ कम होंगी।

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